आज सुबह टहलने निकले तो गेट के बाहर ही कुत्ते भौंकते दिखे। ऐसा लगा कि किसी बड़े चैनल में प्राइम टाइम बहस हो रही हो। थोड़ी देर में अपने आप शांत भी हो गए जैसे बहस के बीच कमर्शियल ब्रेक होने पर होता है।
एक मोर सड़क पर इतराता हुआ टहल रहा था। ऐसे जैसे सड़क रैम्प हो और वह कोई सुंदर मॉडल। टहलते हुए मोड़ उचककर एक घर के अंदर टहलने लगा।
पार्क के पास कुछ बच्चे नीचे उतरकर पोज देते हुए पालथी मारकर बैठे फोटो खिंचा रहे थे। टेढ़े होते हुए उँगली से वी बनाते हुए। फोटोबाजी के बाद बच्चे चले गए।
टहलते हुए उस जगह से गुजरे जहां शाखा लगती है। पुलिया पर बैठे हुए दो बुजुर्ग एक्जिट पोल की चर्चा करते हुए अपने जननायकों को ठेठ अंदाज में गरियाते हुए याद कर रहे थे। गाली निकालकर कुछ डायलॉग जो याद रह गए:
-अरे उसने पेंशन बंद करवा दी।
-अब तो मर गया वो।
-अरे ये भी जाएगा। मरेगा। दस साल से आंख मूंदे बैठा है। कुछ करना धरना नहीं बस झूठ बोलवा लेव।
इसके बाद मुफ़्त बंटने वाले अनाज की खराब क्वालिटी, महंगाई और दीगर समस्याओं का जिक्र करते हुए सरकार के प्रति मुक्तकंठ , सेन्सरविहीन प्रेम प्रदर्शन करते रहे दोनों बुजुर्ग। अपन चुपचाप उनके द्वारा अभिव्यक्ति के अधिकार का उपयोग होते सुनते रहे।
अपन तमाम सरकार समर्थक मित्रों की बातें भी इसी तरह सुनते रहते हैं। आजकल दुनिया में हर बात के समर्थन में अनगिनत रेडीमेड तर्क सर्वसुलभ हैं। हाल यह कि इंसान अपना कत्ल करने वाले के पक्ष में भी तर्क करते हुए अपनी गर्दन उसके सामने झुकाने में लिए तैयार रहता है -'ले भाई काट ले गर्दन मेरी बिना किसी संकोच के।'
शाखा में एक नए बुजुर्ग का स्वागत पहले से मौजूद बुजुर्गों ने 'युवा साथी' कहते हुए किया। मेसेजिंग घराने की बातचीत का पुराना चलन है यह। बिना ‘बेबी’ कहे लोगों को जवानी का एहसास नहीं होता।
सारे ‘बुजुर्ग बेबी’ लोग आपस में मजे लेते हुए बतियाने लगे। अपन बाहर निकल आये।
पार्क में कुछ बच्चे क्रिकेट खेलने के लिए टीम बना रहे थे। टीम बनाने के बाद बच्चों ने चंदा जमा करके 'दांव'लगाया। दस-दस, बीस-बीस रुपये इकट्ठा करके सौ रुपये का 'दांव'लगाया एक टीम ने। दूसरी ने उकसाते हुए कहा -'अरे, बढा के दांव लगावो यार।'
लेकिन शायद उस टीम के साथियों के पास और पैसा नहीं था इसलिए दांव आगे नहीं बढ़ा।
खेल शुरू हुआ। ओपनिंग करने वाले बच्चे ने पहले ओवर में ही 20 रन बना डाले। बॉलर बिना विचलित हुए गेंद फेंकता रहा। ईंटो का विकेट था। एक बच्चा गेंदबाज के पास से अंपायरिंग कर रहा था। दूसरा अंपायर विकेट के पीछे फिसलपट्टी पर बैठा लेग अंपायर का रोल निभा रहा था।
दूसरे ओवर की पहली गेंद टेढ़ी-मेढ़ी पड़ी। उस पर भी छक्का पड़ गया। कप्तान ने पहली गेंद के बाद ही बॉलर बदल दिया। खेल आगे बढ़ गया। अपन भी।
रास्ते में यूट्यूब पर जस्टिस काटजू जी का इंटरव्यू सुनते गए। काटजू जी अपने अंदाज में बोल रहे थे। किसी सवाल के जवाब में एंकर को हड़का भी दे रहे थे-'आप सुनती तो हैं नहीं। हम जवाब दे तो रहे हैं।'
काटजू जी के बेबाक इंटरव्यू के खत्म होने से पहले एंकर ने पूछा -'आप सरकार की इतनी खिलाफत करते हैं। कहीं आपके खिलाफ कोई कार्रवाई हो गई तो क्या होगा।'
काटजू जी ने जबाब में दोहा सुनाया:
चाह गई, मिटी , मनुआ बेपरवाह,
जिनको कछू न चाहिए, वे शाहन के शाह।
(इंटरव्यू का लिंक टिप्पणी कमेंट बॉक्स में)
हमारा भी मन करता है कि अपन भी अपना यूट्यूब चैनल शुरू करें। रोजनामचा का वीडियो बनाया करें। लेकिन फिर सोचते है कि इतने यूट्यूब चैनल चैनल चल रहे हैं। एक ठो और चालू करके ध्वनि प्रदूषण फैलाने से क्या फायदा। लिखना होता रहे नियमित यही बहुत है।
है कि नहीं?
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