एक बार फिर जबलपुर आना हुआ। पूरे आठ साल एक महीना और सात दिन बाद । 30 अप्रैल, 2016 को जबलपुर से कानपुर जाते समय तुरन्त लौटकर आने का प्लान था। प्लान बदलता गया और आठ साल निकल गए। इस बीच कानपुर, शाहजहांपुर होते हुए वापस कानपुर आकर रिटायर भी हो गए।
रिटायर इंसान की बात लोग मानते कहाँ हैं।
प्रदीप-आस्था के साथ हम लोग लंबे समय तक मेस में रहे। अपन ने रहने के लिए वही कमरा खुलवाया जिसमें चार साल रहे थे। कमरा नम्बर 14 । बताया गया कमरे का एसी खराब है। हमने कहा कोई बात नहीं। बन जायेगा। रहेंगे इसी कमरे में। चार साल रहे हैं इस कमरे में। इसी में रहेंगे।
कमरा खुल गया। सामान जमा लिया। दरवज्जा खोलकर बैठे हैं। सूरज भाई अपनी किरण-उजाला के कुनबे के साथ हमको देखकर मुस्करा रहे थे।
अजय कुमार राय Ajai Kumar Rai बनारस के लिए निकलने वाले थे। बहुत छुटकी मुलाकात हुई। आठ साल के भूले-बिसरे गीत आठ-दस मिनट में गा लिए गए।
अजय राय और प्रदीप के साथ शुरआती चाय पानी के बाद उनको विदा करके पुलिया की तरफ गए।
पुलिया के पहले एक आदमी अपना स्कूटर खोले स्टार्ट करने में जुटा था। किक पर किक मारे जा रहा था लेकिन स्कूटर स्टार्ट ही नहीं हो रहा था। स्कूटर वाला झुककर उससे विनती सरीखी करता हुआ किक मारे जा रहा था।
पुलिया पर एक आदमी बैठा था। हाथ में पट्टी बंधी हुई थी। यही बातचीत की शुरुआत का बहाना बनी। हमने पूछा -'चोट कैसे लगी?'
कूलर ठीक कर रहे थे। सीट लग गयी।
नाम,काम-धाम पूछने पर पता चला कि वीएफजे से रिटायर हुए हैं 2017 में। नाम इतवारी लाल। इतवार को पैदा होने के कारण नाम पड़ा इतवारी लाल। पिता खरिया में काम करते थे। इतवारी लाल एम पी वी में स्टोर का काम देखते थे। सामान रखने, इशू करने का।
सामने वाली पुलिया पर कोई था नहीं। सुबह लोग बैठते होंगे। कल देखेंगे।
लौटते हुए देखा स्कूटर वाला चला गया था। स्कूटर स्टार्ट हो गया होगा।
अपन भी स्टार्ट हो गये जबलपुर में।
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