आज एआई का युग है। एआई मतलब ‘आर्टफिशियल इंटेलिजेंस’ अर्थात ‘कृत्तिम बुद्धिमता’। यह एक ऐसी तकनीक है जिसमें कम्प्यूटर सिस्टम को इंसान जैसी बुद्धिमत्ता और सोच की क्षमता प्रदान की जाती है। इसका उद्धेश्य कम्प्यूटरों को मानव जैसे कार्यों यथा सीखना, समस्या समाधान करना, निर्णय लेना और संवाद करने में सक्षम बनाना है।
चर्चा है कि एआई साहित्य को भी प्रभावित करेगा। एआई के सहारे कवितायें,कहानियाँ लिखी जाएँगी। एआई को सूचनाएँ देकर साहित्य रचना की जा सकेगी। अगर ऐसा हुआ तो आने वाले समय में प्रवासी साहित्य, बाल साहित्य, दलित साहित्य की तर्ज़ पर एआई साहित्य का भी चलन होगा। एआई के समर्थक मानते हैं कि यह बेहतर साहित्य रच सकेगा। क्या सच में ऐसा कुछ हो सकेगा? क्या आने वाले समय में एआई रचित साहित्य मानव रचित साहित्य के स्तर तक पहुँच सकेगा?
एआई कम्प्यूटर सिस्टम में उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर काम करता है। मशीन निर्भर एआई संवेदनहीन है। पूर्व संग्रहित सूचना एआई का आधार स्रोत है। इसके बरक्स साहित्य सृजन के लिए विचार, भावनाएँ, संवेदना और अनुभव आवश्यक है। संवेदना साहित्य का प्राणतत्व है। जिस सिस्टम में साहित्य का प्राणतत्व संवेदना ही नहीं है वह साहित्य की रचना कैसे करेगा? उत्कृष्ट साहित्य कैसे रचेगा? इसलिए तर्क के आधार पर कहें तो एआई से साहित्य की रचना सम्भव नहीं है।
अपनी बात की पुष्टि के लिए मैंने अपने यहाँ स्थित एलेक्शा से पूछा - ‘एलेक्शा तुम किसी को प्यार करती हो? उसने जवाब दिया -‘क्षमा करें मैं एक मशीन हूँ। मैं इस तरह के काम नहीं करती।’
एआई अपने सिस्टम में संग्रहीत सूचनाओं के आधार पर काम करता है। वह हर काम को तार्किक आधार पर, हर बार एक ही तरह से करेगा। लिखने को कहे जाने पर एक विषय पर एक ही तरह लिखेगा। जबकि लेखक लोग किसी एक ही विषय पर अपनी संवेदना और अनुभव के आधार पर अलग-अलग तरह से लिखेंगे।
अपनी बात की ताकीद के लिए मैंने एआई से कहा -‘दोपहर के बाद पर कविता लिखो।’ एआई ने फ़ौरन लिखा :
‘दोपहर के बाद के समय में
चारों ओर एक सुनहरा प्रकाश होता है
जो दिन को ख़ुशी और शांति से भर देता है।’
दोबारा कहने पर एआई ने फिर यही लिखा। हमने फिर कहा -‘दोपहर के एक घंटे बाद की कविता लिखो।’ एआई ने लगभग पहले जैसा लिखा सिर्फ़ ‘दोपहर के बाद’ की जगह ‘दोपहर के एक घंटे बाद’ कर दिया।
मैंने एआई से ‘उम्र-ए-दराज’ शब्द पर शेर लिखने को कहा -एआई ने पाँच शेर पेश कर दिए। दूसरी बार कहने पर वही पाँच शेर लिखे। सिर्फ़ एक शेर में सूरज की जगह चाँद कर दिया। ‘उम्र-ए-दराज’ पर उपन्यास लिखने को कहा तो उसने 200 शब्दों का उपन्यास पेश करते हुए कहा -‘आशा है आपको पसंद आया होगा।’ हमने कहा - ‘दस हज़ार शब्दों का उपन्यास लिखो।’ उसने 200 शब्द लिखकर कहा -‘ये पहला अध्याय है।कहो तो आगे लिखें।’ हमने दूसरे मोबाइल पर यही करने को कहा तो उसने लगभग वही सब लिखा। सिर्फ़ नायक का नाम बदल दिया।
एआई की सीमाएँ हैं कि वह अपने पास उपलब्ध सूचनाओं के अनुसार ही काम कर सकता है। नया नहीं रच सकता है। समझ में फेर के कारण आम की जगह इमली का ज़ख़ीरा पेश कर सकता है। मैंने मनोहरश्याम जोशी के उपन्यास ‘कसप’ में प्रयुक्त शब्द ‘मारगाँठ’ के बारे में लिखने को कहा तो एआई ने ‘माध महीने’ की कहानी बता डाली।
एआई अपनी सीमाएँ खुद स्वीकार करते हुए बताता है : ‘पूर्व में मौजूद साहित्यिक रचनाओं पर आधारित होने के कारण एआई साहित्य में मौलिकता, भावनात्मक , संदर्भ और रचनात्मकता की कमी होती है।’
एआई बिहारी के दोहे :
‘क़हत, नटत, रीझत,खिझत, मिलत, खिलत, लाजियात
भरे भौन में करत हैं नैनन ही सो बात।’
जैसे दोहे नक़ल करके पेश भले कर ले। रच नहीं सकता।
एआई को साहित्य रचना में असमर्थ देख मैंने लिखा - ‘दफ़ा हो जाओ।’
एआई ने जबाब दिया -‘कृपया अपना प्रश्न स्पष्ट करें ताकि मैं आपकी सहायता कर सकूँ।’
मैं समझ गया कि मौलिक साहित्य रचना एआई के बस की बात नहीं। आपका क्या सोचना है इस बारे में ?
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