फ़ुरसतिया

हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै

Sunday, October 31, 2004

क्या देह ही है सब कुछ?

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"क्या देह ही है सब कुछ ?" इस सवाल का जवाब पाने के लिये मैं कई बार अपनी देह को घूर निहार चुका हूं-दर्पण में.बेदर्दी आईना हर बार ...
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Saturday, October 30, 2004

सफल मनोरथ भये हमारे

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आखिर हमनें जिता ही दिया आस्ट्रेलिया को रिकार्ड अंतर से.नागपुर टेस्ट की शानदार हार बताती है कि सच्चे मन से जो मांगा जाता है वो मिल के रहता ह...
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Tuesday, October 26, 2004

हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे

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आजकल मैं देश के तकनीकी विकास के लिये बहुत चिन्तित रहता हूं.इन्टरनेट तकनीकी विकास का महत्वपूर्ण माध्यम है.मैं मानता हूं कि 'पीसी' मे...
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Thursday, October 14, 2004

आधे हाथ की लोमडी,ढाई हाथ की पूंछ

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मेरी पत्नी का नाम आशा नहीं है और एक पत्नीशुदा व्यक्ति होने के कारण मेरा 'आशा'से फिलहाल कोई संबंध नहीं है.पर इस देश का यारों क्या कहन...
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Wednesday, October 06, 2004

गुडिया जो मेले में कल दुकान पर थी

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जब इश्क की बात चलती है तो मुझे 'वाली असी' का शेर याद आता है:- अगर तू इश्क में बरवाद नहीं हो सकता, जा तुझे कोई सबक याद नहीं हो ...
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Sunday, October 03, 2004

विकल्पहीन नहीं है दुनिया

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कल गांधी जयंती थी.कुल ६१ लोगों की बलि दी गयी-नागालैंड और असम में.शान्ति और अहिंसा के पुजारी का जन्मदिन इससे बेहतर और धमाकेदार तरीके से कैसे ...
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Tuesday, September 21, 2004

तीन सौ चौंसठ अंग्रेजी दिवस बनाम एक हिंदी दिवस

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हिंदी दिवस आया -चला गया.पता ही नहीं चला.हम कुछ लिखे भी नहीं .अब चूंकि शीर्षक उडाया हुआ( ठेलुहा .कहते हैं कि यह हमारा है उनके दोस्त बताते हैं...
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Saturday, September 18, 2004

ब्लाग को ब्लाग ही रहने दो कोई नाम न दो

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हम भावविभोर हैं. हमारा स्वागत हुआ.हार्दिक.हमारा कंठ अवरुद्द है.धन्यवाद तक नहीं फूटा हमारा मुंह से.सही बात तो यह कि हम अचकचा गये. देबाशीषजी ....
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Monday, September 13, 2004

गालियों का सांस्कृतिक महत्व

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" आयाहै मुझे फिर याद वो जालिम गुजरा जमाना बचपन का" हास्टल के दिन.पढाई की ऊब को निजात पाने के लिये लडके अपने-अपने कमरों से बाहर निक...
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Wednesday, September 08, 2004

हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै?

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ब्लाग क्या है?इसपर विद्घानों में कई मत होंगे.चूंकि हम भी इस पाप में शरीक हैं अत: जरूरी है कि बात साफ कर ली जाये.हंस के संपादकाचार्य राजे...
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Saturday, September 04, 2004

नहीं जीतते- क्या कर लोगे?

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कल लखनऊ में कानून और व्यवस्था का भरत मिलाप हो गया. काफी खून बह गया.पुलिस खुश कि गोली नहीं चली.बेचारा जो दरोगा समझाने की कोशिश में था वो पह...
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Friday, August 27, 2004

फुरसतिया बनाम फोकटिया

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जब मैनें देखादेखी ब्लाग बनाने की बात सोची तो सवाल उठा नाम का.सोचा फुरसत से तय किया जायेगा.इसी से नाम हुआ फुरसतिया.अब जब नाम हो गया तो...
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Friday, August 20, 2004

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अब कबतक ई होगा ई कौन जानता है
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अनूप शुक्ल
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