http://web.archive.org/web/20110926104943/http://hindini.com/fursatiya/archives/57
मैं ,
सारी दुनिया को
अपनी मुठ्ठियों में भींचकर
चकनाचूर कर देना चाहता हूं।
हर गगनचुम्बी इमारत को जमींदोज
और सामने उठने वाले हर सर को
कुचल देना चाहता हूं।
मेरा हर स्वप्न
मुझे शहंशाह बना देता है
हर ताकत मेरे कदमों में झुकी
कदमबोसी करती है।
बेखयाली के किन लम्हों में
पता नहीं किन सुराखों से
इतनी कमजोरी मेरे दिमाग में दाखिल हो गई!
सारी दुनिया को
अपनी मुठ्ठियों में भींचकर
चकनाचूर कर देना चाहता हूं।
हर गगनचुम्बी इमारत को जमींदोज
और सामने उठने वाले हर सर को
कुचल देना चाहता हूं।
मेरा हर स्वप्न
मुझे शहंशाह बना देता है
हर ताकत मेरे कदमों में झुकी
कदमबोसी करती है।
बेखयाली के किन लम्हों में
पता नहीं किन सुराखों से
इतनी कमजोरी मेरे दिमाग में दाखिल हो गई!
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