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अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।
नगर निगम चौकस हुआ, हिजड़े दिये लगाय
अभी कुछ दिन पहले संजय बेंगाणी ने हिजड़ों से त्रस्त होकर एक पोस्ट लिखी थी। इसपर कई लोगों ने अपने विचार भी व्यक्त किये थे।
अभी तीन दिन पहले अमर उजाला अखबार में एक खबर छपी थी। खबर के अनुसार, आर्थिक संकट से गुजर रहे पटना नगर निगम ने बकायेदारों से निपटने के लिये अब हिजड़ों की मदद लेनी शुरू कर दी है। निगम ने अपने वसूली अभियान में फिलहाल आधा दर्जन हिजड़ों को शामिल किया है। इस सेवा के बदले नगर निगम हिजड़ों को चार फ़ीसदी कमीशन देता है। निगम ने इस साल ६० करोड़ रुपये की वसूली का लक्ष्य रखा है।
यह भी पता चला है कि हिजड़ों के इस्तेमाल का अच्छा नतीजा सामने आया है और एक दिन में ही हिजड़ों की मदद से बकायेदारों से पांच लाख रुपये से अधिक की वसूली हो चुकी है।
इसका मतलब है कि हिजड़ों की कमीशन से आमदनी लगभग तीन हजार रुपये प्रति हिजड़ा प्रति दिन रही।
इस खबर को मैं व्यापक परिपेक्ष्य में देखने का प्रयास रहा हूं।
पटना नगर निगम की बकायेदारों से सफलता पूर्वक वसूली की खबर फैलते ही सारी दुनिया में ह्ल्ला मच जायेगा। जिनका-जिनका पैसा कहीं भी फंसा है वे हिजड़ों को किराये पर रखने के लिये भागते नजर आयेंगे। पटना नगर निगम के किस्से सुनाकर बलिया नगर निगम का अधिकारी अपने मातहतों पर गुर्रायेगा- क्या हिजड़ों की तरह बैठे हो जाओ कहीं से हिजड़ा पकड़कर लाओ और वसूली करो। खाली हाथ वापस आये तो तुम्हे हिजड़ा बनाकर छोड़ देंगे वसूली के लिये। और हो सके तो उसी हिजड़ा पार्टी को पकड़कर लाओ जिसने पटना वाला प्रोजेक्ट किया था।
अपने अभियान की सफलता सुनिश्चित करने के लिये कहो वे लोग ‘कुंडलिया किंग’ समीरलाल से कोई कुंडलिया भी लिखा कर गाते हुये कहें:-
नगर निगम की सफल वसूली का मामला अखबारों में छपेगा और किसी ‘बुरे कर्ज’ से पिटते हुये किसी बैंक का अधिकारी अपने बाल नोचते हुये जब यह नया तरीका देखेगा तो उछलकर भागता हुआ अपने बास के पास पहुंचेगा। बहदवासी दिखाने के लिये वह अपने पैर से चप्पल फेंककर एम.एफ.हुसैन बन जायेगा और अपने मुंह पर हवाइयां उड़ाने लगेगा। हांफते हुये हिजड़े कमीशन पर लगाकर कर्जा वसूलने की योजना पेश करेगा। बास उसको थोड़ी सी घास डालकर अपने नाम से वसूली अभियान शुरू कर देगा और कालान्तर में थोड़ा शरमाते हुये और बहुत सारा भरमाते वाह-वाही लूटता पाया जायेगा।
एक बार जब बैकों में हिजड़े सफल हो गये तो सारे व्यापारी अपने सारे तकादीगीरों को गले लगाकर विदा कर देंगे और हिजड़े किराये पर पाल लेंगे। हिजड़े उसी तरह तकादगीरों के पेट पर लात मारते नजर आयेंगे जैसे आजकल एक कंप्यूटर चार क्लर्कों को विदा कर देता है। हर बड़ी फर्म अपने यहां हिजड़े रखने लगेगी। किसी भी कंपनी की आर्थिक स्थिति आंकने के लिये देखा जायेगा कि उसने वसूली के लिये कितने हिजड़े रखे हैं। आर्थिक समाचार कुछ इस तर्ज पर होंगे-
सफलता का गणित अंधों का गणित होता है। आर्थिक क्षेत्र में हिजड़ों के उपयोग के किस्से की खबरें फैलते ही दुनिया के हर क्षेत्र में हिजड़ों के भाव सोने के भाव की तरह या फिर चुनाव जीतकर गठबंधन सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल किसी निर्दलीय की पूछ की तरह बढ़ जायेंगे। समाज की हर बीमारी का इलाज हिजड़े बन जायेंगे। कोई अधिकारी परेशान होगा /करेगा तो पीडि़त हिजड़े की शरण में जायेगा और घूस के मुकाबले बहुत कम पैसे में काम कराकर खुशी के गीत गायेगा। किसी का इनकम टैक्स का केस फंसा होगा और उसका उसक वकील/चार्टेड अकाउंटेंट अधिकारी को पटा पाने में असफल होकर रोने का प्रयास करते-करते हिजड़े की शरण में जाने की सलाह देगा और हिजडे की ताली के मदद से उसका वह काम चुटकी बजाते हो जायेगा जिसको कराने में उसके चेहरे की घड़ी में सब कुछ बज गया, घड़ी तक खाली हो गयी।
पैसे-रुपये के लेन-देन में फार्मूला सफल होते ही जीवन के हर क्षेत्र में हिजड़े आजमाये जाने लगेगें। किसी का पति हाथ से निकलकर किसी दूसरे की जुल्फों में खो गया है तो हिजड़े उसे वापस वसूल लायेंगे। कहीं जाम लगा होगा तो हिजड़े ताली बजाकर जाम को हटाकर ओवरब्रिज और ‘वन वे’ जैसी जरूरतों को खलाश कर देंगे। आपके किसी परिजन को कोई अपहरण करके ले गया है तो आप चिंता न करें बगल के हिजड़ा केंद्र को फोन करें वे पलक झपकते ही अपहरण करने वाले से फिरौती समेत आपके परिजन को आपको सौंप देंगे। किसी भी विमान अपहरण की खबर हवा में गूंजते ही लोग कहेंगे-
देश के किसी भी हिस्से में जहां कोई वारदात हुई,आग लगी, बम फटा, लोग मरे-फौरन हिजड़े लगा दिये जायेंगे। खबरें कुछ इस तरह की हों शायद:-
हिजड़ों के प्रयोग के इस अभूतपूर्व सफल उपयोग से समाज की हर समस्या का निदान हिजड़ों में खोजा जाने लगेगा। चाहे वो आसाम से बंगलादेशियों को भगाने का मामला हो या कश्मीर को आतंकवादियों से मुक्त कराने का संकट। वो चाहे बुंदेलखंड में ददुआ से मुक्ति की बात हो या तमिलनाडु की पानी की समस्या या फिर तेलंगाना में किसानों की आत्महत्या के अंतहीन किस्से। समस्या चाहे बढ़ती आबादी हो या भ्रष्टाचार, सारी समस्याऒं का ही इलाज होगा- हिजड़ॊं का सहयोग लेना। शायद नारे भी गूंजने लगें:-
मांग और आपूर्ति के शाश्वत नियम के चलते कुछ दिनों में हिजड़ों की संख्या में कमी आ जायेगी। हिजड़ों की आकर्षक आर्थिक स्थिति देखते हुये तमाम गुंडे-बदमाश चाकू, तमंचे की नोक या फिर कुछ लेकर-देकर डाक्टरों से अपने हिजड़ा होने का प्रमाण पत्र हासिल करके अपनी गुंडागर्दी की गद्दी चेलों को थमाकर हिजड़ागिरी करने लगेंगे। कोई नामीगिरामी कुख्यात गुंडा,माफिया अपने बुढा़पे में हो सकता है कहे- यार अब अपन से यह सब गुंडागर्दी नहीं हो पाती, हाथ-पैर कांपते हैं किसी तरह से हिजड़ा बनवा दो तो बुढ़ापा चैन से कटे। अभी तक जो कमाया वो सब जमानत और थाने में गंवा दिया अब कम से कम बुढा़पे में तो रोटी के ऊपर रोटी खाने को मिले।
जो डाक्टर जितने ज्यादा लोगों को हिजड़ा बना देगा वह उतना सफल माना जायेगा। मरीजों के अभाव में मक्खी मारता कोई डाक्टर हो सकता है अपने साथी हिजड़ा डाक्टर से जानपहचान का फायदा उठाकर अपने लिये एक प्रमाणपत्र हासिल कर ले और क्लीनिक में ताला लगाकर ताली बजाने लगे और हिजड़ों के कारवां में शामिल हो जाये।
हो सकता है रिमेक की आंधी में दीवार सिनेमा की तर्ज पर कोई सिनेमा बने और दो भाई अपनी-अपनी डींग हांकते हुये कहें मेरे पास यह है, मेरे पास वह है, तेरे पास क्या है। इस पर कमजोर सा दिखने वाला भाई डायलाग मारे -मेरे पास हिजड़ा है। यह सुनते ही अमीर और संपन्न से दिखने वाले भाई की हवा उसी तरह निकल जाये जिस तरह चैंपियन्स ट्राफी में विश्वस्तरीय बल्लेबाजों से युक्त भारतीय टीम के बल्लेबाजी की ‘छुच्छी’ निकल गयी।
जैसे कि हर दवा के साइड इफ़ेक्ट होते हैं और लोहे को लोहा काटता है उसी तरह लोग अपने खिलाफ हिजड़ों की सहायत से होने वाली कार्रवाई का मुकाबला करने के लिये हिजड़ों की सवायें लेने लगेगें। जहां लोग देखेंगे कि वसूली के लिये हिजड़ों को आते देखेंगे वैसे ही मुकाबले के लिये अपने हिजड़ों की फ़ौज को लगा देंगे। एक फटे गले वाले हिजड़े के सामने नखरीले गले वाले हिजड़े को खड़ा कर देंगे। मोटे गले और थुलथुल शरीर वाले हिजड़े के मुकाबले में सुराहीदार गरदन वाला हिजड़ा बीस साबित होगा। या फिर कुछ और तुलनात्मक अध्ययन का मन हो तो यह मान लो कि मनु शर्मा को फांसी की सजा से बचाने के लिये सरकारी वकीलों का मुकाबले एक घंटे में एक लाख की फीस वाले सबसे मंहगे वकील रामजेठमलानी जी को खड़ा कर दिया जाये।
यह कुछ-कुछ ऐसा ही होगा है जैसे दो मुकदमा लड़ने वाली पार्टियां वकीलों की बहस को निर्लिप्त भाव से चाय-पीते हुये सुनती रहती हैं। हिजड़ों की तालियां की जुगलबंदी और गालियों के जवाबी कीर्तन को फंसाव और बचाव पार्टी हौसला आफजाई करते हुये और ये दिल मांगे मोर कहते हुये आंनद सागर में लहालोट होते रहेंगे।
पता नहीं क्या-क्या बात करते हुये हम कहां से कहां पहुंच गये। अखबार की खबर से शुरू की बात अदालत तक
पहुंच गयी-गये थे हरिभजन को ओटन लगे कपास।
पटना नगर निगम के जिन अधिकारियों ने बकाया वसूली के लिये हिजड़ों के उपयोग की बात सोची और उसमें शुरुआती सफलता हासिल हुयी उसकी हो सकता है तमाम लोग वाह-वाही करें। हो सकता है कुछ मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट इस प्रयोग के अपने पाठ्यक्रम में शामिल करें और ‘हिजड़ागीरी’ एक नयी वसूली विधा के रूप में स्थापित हो जाये। संभव है जिस अधिकारी ने इसकी परिकल्पना की उसे तमाम संस्थानों से ‘लेक्चर’ देने के लिये बुलाया और विदेशों से उसे ‘अतिथि व्याख्याता’ के रूप में आमंत्रित किया जाये। संभव है कि सरकार की तरफ़ से उसे किसी समारोह में पुरस्कार भी दिया जाये।
लेकिन इस सारे वाकये के पीछे जो मुख्य बात है वह यह सवाल है कि किसी शहर का नगर निगम कैसे इतना असहाय हो गया कि वह अपने नागरिकों से बकाये की रकम वसूल करने में असफल हो गया और वसूली के लिये उसे समाज के उस वर्ग की शरण लेनी पड़ी जिसे शारीरिक कमी के चलते न मर्द में समझा जाता है न औरत में। किसी भी शहर का नगर निगम शहर के नागरिकों की सेवा के लिये होता है। इसके लिये उसके अगर कुछ कर्तव्य होते हैं तो उनके निर्वाह के लिये तमाम अधिकार भी होते हैं। पुलिस, अदालत, कानून, पैसा, साधन किसी भी किस्म से किसी भी शहर का नगर निगम किसी एक या कुछ नागरिकों के मुकाबले हमेशा बहुत-बहुत सक्षम, शक्ति संपन्न और समर्थ होता है। अभी ज्यादा दिन नहीं हुये जब नागपुर नगर पालिका के अधिकारियों ने अपने साधनों का उपयोग करके नागपुर की कायपलट करके उसे देश के सबसे खूबसूरत, व्यवस्थित शहरों की श्रेणी में शामिल करा दिया। इस काम में जनता का भी भरपूर सहयोग उनको मिला। फिर ऐसा कैसे है कि दूसरे शहर के नगर निगम के अधिकारी इतने असहाय हो गये कि बकाया वसूली के लिये हिजड़ों का पल्लू थामना ही आखिरी हथियार समझ लिया!
कुछ लोगों को यह एक अभिनव प्रयोग लग सकता है लेकिन वस्तुत: यह प्रयोग सामाजिक अराजकता की निशानी है। सामाजिक अराजकता, जहां सारी व्यवस्थायें ध्वस्त हो गयी हैं। लोगों के मन में न कानून का डर है न पुलिस का डर है और न ही यह कि सरकारी कर्मचारी दरवाजे पर वसूली के लिये खड़ा है। आदमी के मन से सजा का डर खत्म हो गया केवल उपहास से डरता है अभी वह। सामाजिक उपहास से डरकर अभी वह बकाया चुका देता है और कुछ दिन में वह उपहास की तरह से भे उदासीन हो सकता है और यह भी संभव है कि कुछ दिनों में इतना थेथर हो जाये कि तालियां बजाकर वसूली में सहयोग देने वाले हिजड़ों से ज्यादा तेज और कुशलतापूर्वक तालियां बजाकर उन्हें वापस कर दे।
पता नहीं ऐसी अराजक होती जा रही सामाजिक स्थिति के कारण क्या हैं? लेकिन कभी-कभी मुझे लगता है कि इसका कारण हमारा समाज से विमुख होते जाना है। जब तक अपने पर बात नहीं आती तब तक हम निश्चिंत रहते हैं। समाज का लगभग हर तबका अपने सहज सामाजिक कर्तव्यों को पासिंग द पार्सल की तरह दूसरों के हाथ में थमाता जा रहा है। हम मान लेते हैं कि देश की हर कमी के लिये दोषी नेता हैं, नेता मानता है जनता सुधरना नहीं चाहती, पुलिस सोचती है कि अनुशासित होना लोगों का काम हैं हमें तो चौराहे पर केवल भरा ट्रक पकड़ना है, अध्यापक मानता है बच्चे जैसे संस्कार घरवाले देगें वैसा ही तो बनेगा वहीं माता-पिता सोचते हैं हम फीस काहे के लिये देते हैं इतनी ज्यादा सब कुछ सिखाना उन्हीं का काम है। पूरा समाज इस इंतजार में है कि देश की हालत अब बहुत खराब हो गयी अब समय हो गया किसी को आना चाहिये जो देश का बीड़ा उठाये, समबाडी मस्ट टेक द चार्ज। सारा समाज भये प्रकट कपाला दीन दयाला के रियाज में जुटा है।
हमें तो जो लगता है वह हम कह चुके। अब आपौ बताओ कि आपको क्या लगता है?
अभी तीन दिन पहले अमर उजाला अखबार में एक खबर छपी थी। खबर के अनुसार, आर्थिक संकट से गुजर रहे पटना नगर निगम ने बकायेदारों से निपटने के लिये अब हिजड़ों की मदद लेनी शुरू कर दी है। निगम ने अपने वसूली अभियान में फिलहाल आधा दर्जन हिजड़ों को शामिल किया है। इस सेवा के बदले नगर निगम हिजड़ों को चार फ़ीसदी कमीशन देता है। निगम ने इस साल ६० करोड़ रुपये की वसूली का लक्ष्य रखा है।
यह भी पता चला है कि हिजड़ों के इस्तेमाल का अच्छा नतीजा सामने आया है और एक दिन में ही हिजड़ों की मदद से बकायेदारों से पांच लाख रुपये से अधिक की वसूली हो चुकी है।
इसका मतलब है कि हिजड़ों की कमीशन से आमदनी लगभग तीन हजार रुपये प्रति हिजड़ा प्रति दिन रही।
इस खबर को मैं व्यापक परिपेक्ष्य में देखने का प्रयास रहा हूं।
पटना नगर निगम की बकायेदारों से सफलता पूर्वक वसूली की खबर फैलते ही सारी दुनिया में ह्ल्ला मच जायेगा। जिनका-जिनका पैसा कहीं भी फंसा है वे हिजड़ों को किराये पर रखने के लिये भागते नजर आयेंगे। पटना नगर निगम के किस्से सुनाकर बलिया नगर निगम का अधिकारी अपने मातहतों पर गुर्रायेगा- क्या हिजड़ों की तरह बैठे हो जाओ कहीं से हिजड़ा पकड़कर लाओ और वसूली करो। खाली हाथ वापस आये तो तुम्हे हिजड़ा बनाकर छोड़ देंगे वसूली के लिये। और हो सके तो उसी हिजड़ा पार्टी को पकड़कर लाओ जिसने पटना वाला प्रोजेक्ट किया था।
अपने अभियान की सफलता सुनिश्चित करने के लिये कहो वे लोग ‘कुंडलिया किंग’ समीरलाल से कोई कुंडलिया भी लिखा कर गाते हुये कहें:-
नगर निगम चौकस भया, हिजड़े दिये लगाय
जिसके पास बकाया पैसा, वो धरे यहां पर आय
धरे यहां पर आये, नहीं तो खूब बजेगी ताली
शान में बट्टा लग जायेगा, कोसेगी घरवाली
कह ‘समीर’ कविराय करो,कुछ तो लाज-शरम
तुरत उधार चुकाओ अपना,कहता नगर निगम।
नगर निगम की सफल वसूली का मामला अखबारों में छपेगा और किसी ‘बुरे कर्ज’ से पिटते हुये किसी बैंक का अधिकारी अपने बाल नोचते हुये जब यह नया तरीका देखेगा तो उछलकर भागता हुआ अपने बास के पास पहुंचेगा। बहदवासी दिखाने के लिये वह अपने पैर से चप्पल फेंककर एम.एफ.हुसैन बन जायेगा और अपने मुंह पर हवाइयां उड़ाने लगेगा। हांफते हुये हिजड़े कमीशन पर लगाकर कर्जा वसूलने की योजना पेश करेगा। बास उसको थोड़ी सी घास डालकर अपने नाम से वसूली अभियान शुरू कर देगा और कालान्तर में थोड़ा शरमाते हुये और बहुत सारा भरमाते वाह-वाही लूटता पाया जायेगा।
एक बार जब बैकों में हिजड़े सफल हो गये तो सारे व्यापारी अपने सारे तकादीगीरों को गले लगाकर विदा कर देंगे और हिजड़े किराये पर पाल लेंगे। हिजड़े उसी तरह तकादगीरों के पेट पर लात मारते नजर आयेंगे जैसे आजकल एक कंप्यूटर चार क्लर्कों को विदा कर देता है। हर बड़ी फर्म अपने यहां हिजड़े रखने लगेगी। किसी भी कंपनी की आर्थिक स्थिति आंकने के लिये देखा जायेगा कि उसने वसूली के लिये कितने हिजड़े रखे हैं। आर्थिक समाचार कुछ इस तर्ज पर होंगे-
अभी-अभी पता चला है कि फलानी फर्म ने अपने हिजड़ों की संख्या में कमी कर दी है। फर्म की इस तरह गिरती आर्थिक स्थिति का पता चलते ही उसके शेयरों की कीमत में अचानक गिरावट आ गयी। दूसरी तरफ़ ढिमाकी फर्म द्वारा अपने यहां पचास हिजड़ों की भर्ती की खबर पता चलते ही अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उसके शेयरों अभूतपूर्व उछाल आया है।
सफलता का गणित अंधों का गणित होता है। आर्थिक क्षेत्र में हिजड़ों के उपयोग के किस्से की खबरें फैलते ही दुनिया के हर क्षेत्र में हिजड़ों के भाव सोने के भाव की तरह या फिर चुनाव जीतकर गठबंधन सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल किसी निर्दलीय की पूछ की तरह बढ़ जायेंगे। समाज की हर बीमारी का इलाज हिजड़े बन जायेंगे। कोई अधिकारी परेशान होगा /करेगा तो पीडि़त हिजड़े की शरण में जायेगा और घूस के मुकाबले बहुत कम पैसे में काम कराकर खुशी के गीत गायेगा। किसी का इनकम टैक्स का केस फंसा होगा और उसका उसक वकील/चार्टेड अकाउंटेंट अधिकारी को पटा पाने में असफल होकर रोने का प्रयास करते-करते हिजड़े की शरण में जाने की सलाह देगा और हिजडे की ताली के मदद से उसका वह काम चुटकी बजाते हो जायेगा जिसको कराने में उसके चेहरे की घड़ी में सब कुछ बज गया, घड़ी तक खाली हो गयी।
पैसे-रुपये के लेन-देन में फार्मूला सफल होते ही जीवन के हर क्षेत्र में हिजड़े आजमाये जाने लगेगें। किसी का पति हाथ से निकलकर किसी दूसरे की जुल्फों में खो गया है तो हिजड़े उसे वापस वसूल लायेंगे। कहीं जाम लगा होगा तो हिजड़े ताली बजाकर जाम को हटाकर ओवरब्रिज और ‘वन वे’ जैसी जरूरतों को खलाश कर देंगे। आपके किसी परिजन को कोई अपहरण करके ले गया है तो आप चिंता न करें बगल के हिजड़ा केंद्र को फोन करें वे पलक झपकते ही अपहरण करने वाले से फिरौती समेत आपके परिजन को आपको सौंप देंगे। किसी भी विमान अपहरण की खबर हवा में गूंजते ही लोग कहेंगे-
मंत्री- संत्री की जगह किसी काबिल हिजड़े को भेजो। मंत्री तो फिरौती देकर आयेगा, आतंकवादी छोड़ देगा लेकिन हिजड़े तो अपहरणकर्ता समेत सबको छुड़ा लायेंगे-ताली बजाकर।
देश के किसी भी हिस्से में जहां कोई वारदात हुई,आग लगी, बम फटा, लोग मरे-फौरन हिजड़े लगा दिये जायेंगे। खबरें कुछ इस तरह की हों शायद:-
अभी-अभी पता चला है कि एक बम विस्फोट में पचास लोग मारे गये हैं, सौ घायल हुये हैं। घटना की जिम्मेदारी अभी तक किसी ने नहीं ली है। इससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि इसके पीछे कुछ गैरजिम्मेदार लोगों का झाथ है। फिलहाल सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गयी है और हिजड़ों की संख्या दूनी कर दी गयी है। उधर फसादपुर और लफड़ानगर में हुये दंगों के बाद स्थिति तनावपूर्ण किंतु नियंत्रण में है। दोनों शहरों की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुये पुलिस के सहयोग के लिये हिजड़ों की संख्या में बढ़ोत्तरी कर दी गयी है। इस बीच पता चला है कि वरुण नगर में एक बाल्टी पानी के लिये दो गुटों में मारपीट के बाद खून-खराबा हो गया। पुलिस केलाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले छोडने के बावजूद जब भीड़ तितर-बितर नहीं हुयी तो पास के शहर से कुछ हिजड़े बुलाने पड़े। हिजडों ने आते ही ताली बजा-बजाकर और शानदार भद्दे इशारे करते हुये पूरी भीड़ को दस मिनट में तितर-बितर कर दिया। लोग जो बाल्टियां छोड़कर भाग गये हैं वे स्थानीय थाने में जमा करा दी गयीं हैं।
हिजड़ों के प्रयोग के इस अभूतपूर्व सफल उपयोग से समाज की हर समस्या का निदान हिजड़ों में खोजा जाने लगेगा। चाहे वो आसाम से बंगलादेशियों को भगाने का मामला हो या कश्मीर को आतंकवादियों से मुक्त कराने का संकट। वो चाहे बुंदेलखंड में ददुआ से मुक्ति की बात हो या तमिलनाडु की पानी की समस्या या फिर तेलंगाना में किसानों की आत्महत्या के अंतहीन किस्से। समस्या चाहे बढ़ती आबादी हो या भ्रष्टाचार, सारी समस्याऒं का ही इलाज होगा- हिजड़ॊं का सहयोग लेना। शायद नारे भी गूंजने लगें:-
१. हिजड़ों से हाथ मिलाइये, परेशानियां दूर भगाइये।
२. हिजड़ों के पास आयें, सारे झंझट दूर भगायें।
३. हिजड़े ने ताली बजाई, मुसीबत फूट ली भाई।
४. हिजड़ा.काम में रजिस्टर करायें, सारे लफड़े हमें दे जायें
५. सबको परखा इतनी बार, हमको परखो एक बार- हिजड़ा सेवक संघ।
मांग और आपूर्ति के शाश्वत नियम के चलते कुछ दिनों में हिजड़ों की संख्या में कमी आ जायेगी। हिजड़ों की आकर्षक आर्थिक स्थिति देखते हुये तमाम गुंडे-बदमाश चाकू, तमंचे की नोक या फिर कुछ लेकर-देकर डाक्टरों से अपने हिजड़ा होने का प्रमाण पत्र हासिल करके अपनी गुंडागर्दी की गद्दी चेलों को थमाकर हिजड़ागिरी करने लगेंगे। कोई नामीगिरामी कुख्यात गुंडा,माफिया अपने बुढा़पे में हो सकता है कहे- यार अब अपन से यह सब गुंडागर्दी नहीं हो पाती, हाथ-पैर कांपते हैं किसी तरह से हिजड़ा बनवा दो तो बुढ़ापा चैन से कटे। अभी तक जो कमाया वो सब जमानत और थाने में गंवा दिया अब कम से कम बुढा़पे में तो रोटी के ऊपर रोटी खाने को मिले।
जो डाक्टर जितने ज्यादा लोगों को हिजड़ा बना देगा वह उतना सफल माना जायेगा। मरीजों के अभाव में मक्खी मारता कोई डाक्टर हो सकता है अपने साथी हिजड़ा डाक्टर से जानपहचान का फायदा उठाकर अपने लिये एक प्रमाणपत्र हासिल कर ले और क्लीनिक में ताला लगाकर ताली बजाने लगे और हिजड़ों के कारवां में शामिल हो जाये।
हो सकता है रिमेक की आंधी में दीवार सिनेमा की तर्ज पर कोई सिनेमा बने और दो भाई अपनी-अपनी डींग हांकते हुये कहें मेरे पास यह है, मेरे पास वह है, तेरे पास क्या है। इस पर कमजोर सा दिखने वाला भाई डायलाग मारे -मेरे पास हिजड़ा है। यह सुनते ही अमीर और संपन्न से दिखने वाले भाई की हवा उसी तरह निकल जाये जिस तरह चैंपियन्स ट्राफी में विश्वस्तरीय बल्लेबाजों से युक्त भारतीय टीम के बल्लेबाजी की ‘छुच्छी’ निकल गयी।
जैसे कि हर दवा के साइड इफ़ेक्ट होते हैं और लोहे को लोहा काटता है उसी तरह लोग अपने खिलाफ हिजड़ों की सहायत से होने वाली कार्रवाई का मुकाबला करने के लिये हिजड़ों की सवायें लेने लगेगें। जहां लोग देखेंगे कि वसूली के लिये हिजड़ों को आते देखेंगे वैसे ही मुकाबले के लिये अपने हिजड़ों की फ़ौज को लगा देंगे। एक फटे गले वाले हिजड़े के सामने नखरीले गले वाले हिजड़े को खड़ा कर देंगे। मोटे गले और थुलथुल शरीर वाले हिजड़े के मुकाबले में सुराहीदार गरदन वाला हिजड़ा बीस साबित होगा। या फिर कुछ और तुलनात्मक अध्ययन का मन हो तो यह मान लो कि मनु शर्मा को फांसी की सजा से बचाने के लिये सरकारी वकीलों का मुकाबले एक घंटे में एक लाख की फीस वाले सबसे मंहगे वकील रामजेठमलानी जी को खड़ा कर दिया जाये।
यह कुछ-कुछ ऐसा ही होगा है जैसे दो मुकदमा लड़ने वाली पार्टियां वकीलों की बहस को निर्लिप्त भाव से चाय-पीते हुये सुनती रहती हैं। हिजड़ों की तालियां की जुगलबंदी और गालियों के जवाबी कीर्तन को फंसाव और बचाव पार्टी हौसला आफजाई करते हुये और ये दिल मांगे मोर कहते हुये आंनद सागर में लहालोट होते रहेंगे।
पता नहीं क्या-क्या बात करते हुये हम कहां से कहां पहुंच गये। अखबार की खबर से शुरू की बात अदालत तक
पहुंच गयी-गये थे हरिभजन को ओटन लगे कपास।
पटना नगर निगम के जिन अधिकारियों ने बकाया वसूली के लिये हिजड़ों के उपयोग की बात सोची और उसमें शुरुआती सफलता हासिल हुयी उसकी हो सकता है तमाम लोग वाह-वाही करें। हो सकता है कुछ मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट इस प्रयोग के अपने पाठ्यक्रम में शामिल करें और ‘हिजड़ागीरी’ एक नयी वसूली विधा के रूप में स्थापित हो जाये। संभव है जिस अधिकारी ने इसकी परिकल्पना की उसे तमाम संस्थानों से ‘लेक्चर’ देने के लिये बुलाया और विदेशों से उसे ‘अतिथि व्याख्याता’ के रूप में आमंत्रित किया जाये। संभव है कि सरकार की तरफ़ से उसे किसी समारोह में पुरस्कार भी दिया जाये।
लेकिन इस सारे वाकये के पीछे जो मुख्य बात है वह यह सवाल है कि किसी शहर का नगर निगम कैसे इतना असहाय हो गया कि वह अपने नागरिकों से बकाये की रकम वसूल करने में असफल हो गया और वसूली के लिये उसे समाज के उस वर्ग की शरण लेनी पड़ी जिसे शारीरिक कमी के चलते न मर्द में समझा जाता है न औरत में। किसी भी शहर का नगर निगम शहर के नागरिकों की सेवा के लिये होता है। इसके लिये उसके अगर कुछ कर्तव्य होते हैं तो उनके निर्वाह के लिये तमाम अधिकार भी होते हैं। पुलिस, अदालत, कानून, पैसा, साधन किसी भी किस्म से किसी भी शहर का नगर निगम किसी एक या कुछ नागरिकों के मुकाबले हमेशा बहुत-बहुत सक्षम, शक्ति संपन्न और समर्थ होता है। अभी ज्यादा दिन नहीं हुये जब नागपुर नगर पालिका के अधिकारियों ने अपने साधनों का उपयोग करके नागपुर की कायपलट करके उसे देश के सबसे खूबसूरत, व्यवस्थित शहरों की श्रेणी में शामिल करा दिया। इस काम में जनता का भी भरपूर सहयोग उनको मिला। फिर ऐसा कैसे है कि दूसरे शहर के नगर निगम के अधिकारी इतने असहाय हो गये कि बकाया वसूली के लिये हिजड़ों का पल्लू थामना ही आखिरी हथियार समझ लिया!
कुछ लोगों को यह एक अभिनव प्रयोग लग सकता है लेकिन वस्तुत: यह प्रयोग सामाजिक अराजकता की निशानी है। सामाजिक अराजकता, जहां सारी व्यवस्थायें ध्वस्त हो गयी हैं। लोगों के मन में न कानून का डर है न पुलिस का डर है और न ही यह कि सरकारी कर्मचारी दरवाजे पर वसूली के लिये खड़ा है। आदमी के मन से सजा का डर खत्म हो गया केवल उपहास से डरता है अभी वह। सामाजिक उपहास से डरकर अभी वह बकाया चुका देता है और कुछ दिन में वह उपहास की तरह से भे उदासीन हो सकता है और यह भी संभव है कि कुछ दिनों में इतना थेथर हो जाये कि तालियां बजाकर वसूली में सहयोग देने वाले हिजड़ों से ज्यादा तेज और कुशलतापूर्वक तालियां बजाकर उन्हें वापस कर दे।
पता नहीं ऐसी अराजक होती जा रही सामाजिक स्थिति के कारण क्या हैं? लेकिन कभी-कभी मुझे लगता है कि इसका कारण हमारा समाज से विमुख होते जाना है। जब तक अपने पर बात नहीं आती तब तक हम निश्चिंत रहते हैं। समाज का लगभग हर तबका अपने सहज सामाजिक कर्तव्यों को पासिंग द पार्सल की तरह दूसरों के हाथ में थमाता जा रहा है। हम मान लेते हैं कि देश की हर कमी के लिये दोषी नेता हैं, नेता मानता है जनता सुधरना नहीं चाहती, पुलिस सोचती है कि अनुशासित होना लोगों का काम हैं हमें तो चौराहे पर केवल भरा ट्रक पकड़ना है, अध्यापक मानता है बच्चे जैसे संस्कार घरवाले देगें वैसा ही तो बनेगा वहीं माता-पिता सोचते हैं हम फीस काहे के लिये देते हैं इतनी ज्यादा सब कुछ सिखाना उन्हीं का काम है। पूरा समाज इस इंतजार में है कि देश की हालत अब बहुत खराब हो गयी अब समय हो गया किसी को आना चाहिये जो देश का बीड़ा उठाये, समबाडी मस्ट टेक द चार्ज। सारा समाज भये प्रकट कपाला दीन दयाला के रियाज में जुटा है।
हमें तो जो लगता है वह हम कह चुके। अब आपौ बताओ कि आपको क्या लगता है?
Posted in बस यूं ही | 10 Responses
और हां, गजब कुण्डली लिखें हैं, मजा आ गया.
-बधाई, इतने गंभीर मुद्दे को समय पर उठाने के लिये.
हो सकता है जल्दी ही कोई प्रबन्धन संस्थान हिजड़ो से प्रबन्धन के पाढ़ पढ़ने के लिए आमंत्रित करे.
उच्चकोटि का व्यंग्य है. उक्त पंक्तियां सोचने पर मजबूर कर रही है. धन्यवाद और बहुत बधाई अनूप जी.
व्यंग्य की शैली बहुत रोचक है। लगता है वह दिन दूर नहीं जब आपका नाम भी श्रीलाल शुक्ल जैसे दिग्गजों की पाँत में रखा जायेगा।