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आज हमने बास को हड़का दिया
By फ़ुरसतिया on August 8, 2007
वे झटके से हमारे कमरे में घुसे। फ़टके से कुर्सी खींची और धंस के बैठ गये।
हमें लगा वे हमें मित्रता दिवस की शुभकामनायें देंगे। लेकिन उनके चेहरे पर पाकिस्तान पसरा था।
वे लंबी सांसे ले रहे थे। हमें पहले तो लगा कि शायद योगासन वगैरह करके आये होंगे। मैं अपने को योग विमर्स के लिये तैयार करने लगा। कपालभाती और अनुलोम विलोम पर उनके लेक्चर मन ही मन दोहराने लगा।
लेकिन वे आज दूसरे मूड में थे। अर्दली को चाय लेने के बहाने कमरे में तखलिया करने के बाद बोले- आज हमने बास को हड़का दिया। ऐसी खड़काई की कि जवाब नहीं देते बना। अब महीनों नहीं बोलेंगे हमसे।
हमने उनके चेहरे पर वीरता की हवाइयां उड़ती देखीं। अपने बास को हड़का देने का गौरव देखा। थोड़ा रोमांच भी चिपका हुआ था। हम अविभूत हो गये।
चाय के साथ वे टीवी चैनल होते चले गये। हर डायलाग को दोहरा-दोहरा के बताने लगे। सिर्फ़ वीडियो रिकार्डिंग की कमी थी। फ़िर भी शब्द चित्र से हम अच्छी तरह महसूस कर पा रहे थे कि आज इन्होंने अपने बास को इतना हड़का दिया है जितना कि आलोक पुराणिक ने बुश को भी नहीं हड़काया होगा।
वे चाय पीकर चले गये। लेकिन कमरे में अपना प्रताप छोड़ गये। हम अपने को धिक्कारने के मूड में आ गये। हाय हम हमेशा डांट खाते रहते हैं। बास को जब फ़ुरसत मिलती है बुला के हमें डांट देता है। समय की कमीं होती है तो कमरे में आकर डांट देता है। सच तो यह है कि जिस दिन नहीं डांटता उस दिन लगता है कि कोई अनहोनी होने वाली है। बास की डांट हमारे लिये ट्र्कों के आगे लटका हुआ नींबू, मिर्च और उलटा जता है। जिस दिन नहीं पड़ती ,लगता है कोई दुर्घटना होने वाली है।
हमारे कुछ दोस्त तो इस बात पर इतना यकीन करते हैं कि सबेरे काम की शुरुआत ही बास का डांट-प्रसाद ग्रहण करके करते हैं। चले जाते हैं बास के आफिस मंदिर और ले आते हैं अपने हिस्से का प्रसाद। बास भी भोले भंडारी हैं किसी भक्त को निराश नहीं करते। जो उनसे मिलने आता है उसे डांट देते हैं। दूरस्थ लोगों के लिये फोन-डांट सेवा प्रदान करते हैं।
हम यही सोच रहे थे कि जिसकी डांट से सबके द्फ़्तर की नैया चलती है उसको ये हमारा मित्र डांट आया। बांस बरेली के लिये लाद दिये। हम उसके प्रति श्रद्धा से नत हुये सोच सागर में डूबे रहे काफ़ी देर। जब उबरे तो पता चला कि वे जा चुके थे। बगल के कमरे से आती आवाजें बता रहीं थीं कि वहां भी चैनेल चालू था- आज मैंने बास की बोलती बंद कर दी।
हम अपने प्रति हीन भावना से ग्रस्त होने लगे। अपने को धिक्कारने लगे। दोस्त की वीरता के प्रति सलाम भावना से ओतप्रोत होने लगे। सोचने लगे -गणतंत्र दिवस पर वीरता पुरस्कार में उन नौकरीशुदा बच्चों को भी शामिल करना चाहिये जिन्होंने बहादुरी पूर्वक अपने बासों का मुकाबला करते हुये उन्हें हड़का दिया।
हम हीन ही बने रहते अगर बगल के कमरे से हमारे मित्र न आ जाते। आते ही वे मुस्कराने लगे और कुछ नया ताजा सुनाने के लिये उकसाने लगे।
हमने अभी-अभी गुजरा हुआ हादसा उन्हें सुना दिया। वे मुस्कराने च खिलखिलाने लगे।
हम समझ न पाये। पलके झपकाने लगे। वे फ़िर हमें तफ़सील से दोस्त का बताया किस्सा दोहराने लगे। ऐसे डांटा ,वैसे हड़काया, ये सुनाया वो गरियाया -सब कुछ तफ़सील से बताने लगे।
हमने पूछा -क्या आप भी घटनास्थल पर थे जब अपना बहादुर दोस्त हमारे बास को हड़का रहा था।
वो बोले हम वहां थे नहीं लेकिन उसने तुमको ऐसा ही बताया होगा। वह ऐसे ही बताता रहता है। इसीलिये हमको पता रहता कि क्या बोला होगा। उसको थरथराइटिस है।
हमने आर्थराइटिस सुना था, ब्रोंकाइटिस जानते थे,स्पांडलाइटिस कई लोगों की देख चुके थे। लेकिन थरथराइटिस के बारे में कुछ नहीं जानते थे।
हमारे चेहरे पर उमड़ती अज्ञानता की लहरों को अपनी दिव्य मुस्कान से सहलाते हुये मित्र ने बताया- ये भाईजान ऐसे ही जिस-किसी को अपनी काल्पनिक बहादुरी के किस्से सुनाते रहते हैं। इसको ऐसी कर दी, उसकी तैसी कर दी। इसकी ऐसी तरह से की उसकी वैसी तरह से की। बास को देखते ही इनकी नानी न जाने कितने बार मर जाती है। हर बार मरती है। बास के सामने आने पर तो ये खड़े तक नहीं हो पाते लड़खड़ाते रहते हैं।
लेकिन ये आज तो हड़का के आये हैं। इसकी तो तारीफ़ होनी चाहिये भाई। वीरता सम्मानित होनी चाहिये। हम दफ़्तरजीवियों को यह समझना चाहिये कि बास हमारे लिये एक व्यक्ति मात्र नहीं है। एक संस्थान है। हमें संस्थान का विरोध करने वाले का सम्मान करना चाहिये। चाहे वह सही हो या लगत। बड़े मुश्किल से तो कोई विरोध करने वाला मिलता है। अगर हम उसका संरक्षण नहीं करेंगे तो वह यहां के जंगली जानवरों की तरह विलुप्त हो जायेगा।
मित्र अभी भी मुस्करा रहे थे। अब प्रवचन वाले अंदाज में बोले- यार मैं तुमको बता चुका कि उसको थरथराइटिस है। वह गया होगा बास के कमरे में सबेरे-सबेरे अपना प्रसाद ग्रहण करने के लिये। आज कुछ ज्यादा पा गया होगा। देर तक डांटा गया होगा। अपने बचाव में कुछ मिनमिनाते हुये बोलने का प्रयास किया होगा। बास ने फ़िर हड़काया होगा। इसके ऊपर न्यूटन का जड़त्व का नियम लागू हो गया होगा सो और पिनपिनाया होगा। डर के मारे कांपने लगा होगा। इसीलिये बाहर आकर ऐसा कह रहा है कि आज बास को हड़का दिया। संतलन का सिद्धान्त है यह। अंदर डांट खा के आया। बाहर डांटता घूमता रहा है। इसी को थरथराइट्सि कहते हैं।
हम हक्का च बक्का हुये इस नयी बीमारी के बारे में ज्ञान प्राप्त कर रहे थे।
दोस्त आगे बता रहे थे- थरथराइट्सि का मरीज हमेशा अकेले में बास को हड़काने की बात कहता है। वह बास के सामने जाने की बात सोचने मात्र से सिहरने लगता है, सामने पहुंचने पर कांपने लगता है और अगर बास डांटने लगे तो थरथराने लगता है। अगर बास पूछे कि बोलते क्यों नहीं क्या मुंह में जबान नहीं है तो वह सारी, माफ़ कीजिये, आइंदा गलती नहीं होगी, एक मौका और दे दीजिये प्लीज के मंत्र पढ़ते हुये आई बला को टालने के जल तू जलाल तू करते हुये मुंह में जबान होने का प्रमाण देने लगता है।
लेकिन फिर बाहर आकर वह बास को हड़काने की बात क्यों करता है? हम जिज्ञासु से हो गये।
यार, ये मनोवैज्ञानिकों के हिस्से का किस्सा है। वे इसकी व्याख्या कर सकते हैं। लेकिन मुझे तो यही लगता है कि आदमी जब कोई बहादुरी नहीं कर पाता तो बहादुरी के किस्से गढ़ने लगता है। दफ़्तरों में आजकल असहमति की आवाजें सुनी नहीं जातीं। बास अपने को सर्वज्ञानी मानता है। ज्यादातर लोग के सर का स्टियरिंग व्हील बास की भौंहों में लगा होता है। ऐसे ही में कोई भी आदमी कंडम साबित कर दिया जा सकता है। कल तक कंडम हो चुका आज सबसे काबिल हो सकता है। कुछ सदाबहार काबिल भी होते हैं। ऐसे में ही कुछ सदाबहार कंडम भी होते हैं। बास को जब कुछ समझ में नहीं आता इनको बुलाकर डांट देता है। अपनी काबिलियत झाड़ देता है।
ऐसे ही लोग जब कुछ नहीं कर पाते और उनको बुरा लगता है कि बास ने उनको आज फिर डांट दिया तो बेचारे बाहर आकर कहने रहते हैं- आज मैंने फ़िर से बास को हड़का दिया। अपनी डर से कांपती टांगों में वे अपने रोष के लक्षण देखते हैं।
लेकिन यार यह तो बुरी बात है कि बास ऐसे किसी को डांटे कि बेचारा दिन भर थरथराता रहे। थरथराइटिस से पीड़ित रहे। हम मानवाधिकार वादी हो गये।
हमारे दोस्त हमें वात्सल्य से देखने लगे। स्निग्ध आवाज में बोले- ये बीमारी न हो तो दफ़्तरों में जिन्दगी नरक हो जाये। ये समझो कि अपने अधीनस्थ को डांट के बास अपने को काबिल समझ लेता है। अधीनस्थ पांच मिनट की डांट खाने के बाद दिन भर बास को हड़काने के किस्से सुनाता रहता है। दूसरे लोग खुश होते हैं -यार , आज मैं बच गया। इसी में दिन पार हो जाता है। दिल लगा रहता है सबका।
लेकिन बास लोग ऐसे क्यों करते हैं?
उनका भी तो कोई बास होता है। वे भी तो थरथराते हैं।
हमें कुछ समझ में नहीं आ रहा। आपको कुछ आ रहा हो तो बताओ। तब तक हम आते हैं जरा बास को हड़का आयें।
मेरी पसंद
महाभारत कथा
किसी राजा के यहां नौकरी करते हुये बङी सावधानी से काम करना चाहिये.राजा के पूछने पर ही कुछ सलाह देना चाहिये.राजा की सेवा में तत्पर रहना चाहिये किंतु अधिक बातें नहीं करनी चाहिये.उसके बिना पूंछे आप ही मंत्रणा देते रहना राजसेवक के लिये उचित नहीं.समय पाकर राजा की स्तुति भी करनी चाहिये.मामूली से मामूली काम के लिये भी राजा की अनुमति ले लेनी चाहिये.राजा मानों मनुष्य के रूप में आग है.उसके न तो बहुत नजदीक जाना चाहिये,न ही बहुत दूर हट जाना चाहिये.मतलब यह कि राजा से न तो बहुत हेल-मेल रखना चाहिये ,न ही उसकी लापरवाही ही करनी चाहिये.
राजसेवक कितना ही विश्वस्त क्यों न हो ,कितने ही अधिकार उसे क्यों न प्राप्त हों,उसको चाहिये कि सदा पदच्युत होने के लिये तैयार रहे और दरवाजे की ओर देखता रहे.राजाओं पर भरोसा करना नासमझी है.यह समझकर कि अब तो राजस्नेह प्राप्त हो गया है,उसके आसन पर बैठना और उसके वाहनों पर चढना अनुचित है.राजसेवक को चाहिये कि वह कभी सुस्ती न करे और अपने मन पर काबू रखे.राजा चाहे गौरवान्वित करे चाहे अपमानित,सेवक को चाहिये कि अपना हर्ष या विषाद प्रकट न करे.
भेद की जो बातें कही या की जायें ,उन्हें बाहर किसी से न कहे.उन्हें स्वयं पचा ले .प्रजाजनों से रिश्वत न ले.किसी दूसरे सेवक से ईर्ष्या न करे.हो सकता
,राजा सुयोग्य व्यक्तियों को छोडकर निरे मूर्खों को ऊंचे पद पर नियुक्त करे. इससे जी छोटा न करना चाहिये.उनसे खूब चौकन्ना रहना चाहिये.
(धौम्य ऋषि द्वारा पाण्डवों को अज्ञातवास के पूर्व आशीर्वाद एवं उपदेश)
,राजा सुयोग्य व्यक्तियों को छोडकर निरे मूर्खों को ऊंचे पद पर नियुक्त करे. इससे जी छोटा न करना चाहिये.उनसे खूब चौकन्ना रहना चाहिये.
(धौम्य ऋषि द्वारा पाण्डवों को अज्ञातवास के पूर्व आशीर्वाद एवं उपदेश)
Posted in बस यूं ही | 20 Responses
और यहा पर उसका तफ़सील से विवरण दिया होगा.
कोई बात नही जी आप दुबारा कोशिश करे और फ़िर भी ना कर पाये तो हमे लिखे हम आपको एक सोफ़्ट्वेयर भेज देगे जिससे आप कम्पयूटर पर तो बास की खबर ले कर खुश हो ही सकते है
अरे भाई, हमने तो सुना है, लोगों में कम्पटीशन होता कि ’मेरा #$%^@ बॉस ज्यादा कमीना है’ दूसरा बोलता है नही, मेरा। और फिर शुरु हो जाता है, सिलसिलेवार मेरी बुराई का सिलसिला।
देखिये बास के बास को सैट करना चाहिए। बोले तो बास की बीबी को, मतलब कि उसे किसी बाबा, ज्योतिषी या होम्योपैथी के लपेटे में डालकर मामला जमाना चाहिए। बाबा, ज्योतिषी और होम्यौपैथी के करतबों के रिजल्ट चूंकि दस बीस तीस पचास सालों में आते हैं, इसलिए टाइम बाऊंड परफारमेंस ओरियेंटड रिजल्ट ना मांगा जायेगा।
ज्योतिष का क्रैश कोर्स मैं सिखा चुका हूं। आप आदेश करेंगे, तो एक संशोधित कापी आपको ईमेल कर दूंगा।