Wednesday, February 13, 2008

मैं ब्लागर क्यों बना…

http://web.archive.org/web/20110907203718/http://hindini.com/fursatiya/archives/389

मैं ब्लागर क्यों बना…

इन दिनों व्यस्तता कुछ ज्यादा ही हो गयी। दोस्तों के ब्लाग देखता हूं, टिप्पणी चाहते हुये भी नहीं कर पाता। क्या विडम्बना है। ब्लाग का नाम फ़ुरसतिया और लिखने टिपियाने की फ़ुरसत नहीं। :)
कल देखा तो मेरे ब्लाग की दो पोस्टें नदारद हैं। तमाम लोगों ने उन पोस्टों के लिंक देकर कई पोस्टें लिखीं है। आधार पोस्ट गायब है। मैंने मिटाई नहीं, क्या लफ़ड़ा हुआ। स्वामीजी के अनुसार तो इसके पीछे होस्टिंग कम्पनी का हाथ है-
मुझे लगता है इसका श्रेय हमारी साईट की होस्टिंग कंपनी को जाता है – हाल ही में उनकी मेल आई थी की वे हमारी साईट को बेहतर सर्वर पर डाल रहे हैं – लगता है की उन्होंने पुराने डाटाबेस की रिकवरी कर दी और आपका ताजा माल हवा हो गया, मैने उन्हें मेल भेजी है!
क्या कहीं से ये पोस्टें मिल सकती हैं! अगर किसी साथी के पास हों तो कृपया मुझे भेज दें ताकि मैं उनको दुबारा पोस्ट कर सकूं। एक का शीर्षक है – ज्ञानजी को कायदे मौज लेना नहीं आता। दूसरी का है- …फ़ूल खिला एक दिख जाता है।
इसमें पहली पोस्ट तो लफ़ड़े वाली थी जिसके चलते कुछ लोगों को बुरा भी लगा। दूसरी पोस्ट जो मैंने अभय की माताजी से मुलाकात के बाद लिखी थी उसमें भी कुछ भाई लोगों ने अपनी अकल के हिसाब से मतलब निकाले। वैसे भी लोकतंत्र है सो हर एक को अपने संसाधन उपयोग करने का अधिकार है।
हमारे एक मित्र ने एक एस.एम.एस. भेजा है। अपने नौकरी की समस्यायें बताते हुये उसने सात कारण बतायें हैं कि उसने नौकरी क्यों ज्वाइन की। मुझे लगा कि ये सारे कारण तो हम पर भी लागू होते हैं कि मैं ब्लागर क्यों बना। आप पढ़िये और देखिये शायद आप पर भी ये कारण लागू होते हों:-

मैं ब्लागर क्यों बना

मैं ब्लागर बना क्योंकि :
१. मुझे सोने से नफ़रत है। (जागते रहते हैं इसलिये ब्लागियाते हैं) :)
२.मैंने अपनी जिन्दगी के सारे मजे बचपन में ले लिये हैं। (अब जिन्दगी में कुछ मजा बचा नहीं है सो ब्लागर बन गये):)
३. मैं अस्त-व्यस्त(डिस्टर्ब) पारिवारिक जीवन चाहता हूं।(ब्लागिंग के अपरिहार्य साइड इफ़ेक्ट हैं ये ) :)
४.मैं अपने आप से बदला लेना चाहता हूं। (दिन-रात बेमतलब खुटुर-खुटुर करने का और क्या कारण हो सकता है) :)
५. मैं अपने सबसे अच्छे दोस्तों से दूर होना चाहता हूं। (लिखने, कमेंटियाने, माडरेटियाने, बहसियाने और हें,हें,हें में ही जुटे रहेंगे तो दोस्तों के लिये समय कहां से आयेगा!) :)
६.मैं सामाजिक बहिष्कार चाहता हूं। ( मिलेंगे, जुलेंगे नहीं तो कट ही जायेंगे। रही-सही कसर ब्लागिंग के किसी लफ़ड़े में पूरी हो जायेगी।) :)
७.मैं छुट्टियों में भी काम करना पसन्द करता हूं।( हफ़्ते भर में जो रह गया उसे छुट्टियों में ठेलने के प्रयास में रहते हैं) :)

फ़ुरसतिया

अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।

6 responses to “मैं ब्लागर क्यों बना…”

  1. Vaibhav
    Bahut accha post hai.
    Likhte rahiye.
    Cheers
  2. bhuvnesh
    वाह जी लगता है होस्टिंग कंपनी वालों को अपने नाम से आपके लेख छपवाने होंगे. इसलिए पहले आपकी ही साइट से साफ कर दिये. देख लीजिए वर्ना ऐसा ना हो कि कल को ये होस्टिंग वाले आपकी रचनाएं चुराकर कालजयी लेखक बन जायें और आप कुछ कर भी न पाएं.
    फिर आप शायद ये पोस्‍ट लिखें- हाय मैं ब्‍लागर क्‍यों बना. :)
  3. समीर लाल
    वो ही मै सोच रहा था कि फुरसतिया जी तो ऐसे न थे जो पोस्ट उतार लें..आप का रायपुर कार्यक्रम क्या है?
  4. Rinku Pandey
    मेरे साथ भी ऐसा ही कुछ हुवा था तब मैं भी सर पटक कर रह गया था भाई ………हुवा कुछ ऐसा था की मेरा कुछ important डाटा डिलीट हो गया था मैने पचीसो ए-मेल कर डाला था अपनी होस्टिंग कंपनी को लैकेन कुछ नहीं हुवा फिर सोचा की श्याम को आने वाले १ रुपिया वाले न्यूज़ पेपर मैं इस खबर को डलवाया जाये लैकेन पचासों रुपिया का पेट्रोल खर्चा करने के बाद भी वह काम भी नहीं बना ……. फिर लगा की फर्जी बकैती करने से अच्छा है चुप हो कर बैठ जाओ …….आज आपका फुरसतिया देख कर मोका अपन पुरनिया दिन याद आ गया ……
  5. मैं चिट्ठे लिखता क्यों हूँ? « जिंदगानी - मेरी बकवास
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