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मैं सच बोलूंगी हार जाउंगी,
वो झूठ बोलेगा, लाजबाब कर देगा।
संवेदना के नये आयाम
By फ़ुरसतिया on March 2, 2008
कल अविनाश की कलाबाजी पोस्ट पढ़कर आश्चर्य हुआ, क्षोभ हुआ और तकलीफ़ भी।
सच तो यह है कि यह कलाबाजी पोस्ट नहीं शातिराना पोस्ट थी। निहायत भोलेपन से आप पूछते हैं – मैथिलीजी,क्या भड़ास को बैन किया जा सकता है?
मतलब आप मैथिलीजी से पूछ भी रहे हैं और आपके अनुरोध का अंदाज बता रहा है कि आप मन से बैन लगाने के लिये मेहनत से जी चुरा रहे हैं। जितनी ताकत से आपने नारद का विरोध किया था , न जाने कहां-कहां, क्या-क्या लिखा था, उसकी आधी-क्या चौथियाई ताकत भी आपने मैथिलीजी से अनुरोध करने में नहीं लगाई। क्योंकि आपको आगे और जरूरी बातें लिखनी थीं।
लचर और बेमन से किये अनुरोध के बाद आपने महिलाओं के ब्लाग चोखेरबाली से जुड़ी बातें बताईं। इसके बाद असल खेल शुरू हुआ। आपने मनीषा से आपस की बातचीत को अपनी पोस्ट पर सजाया। यह सजावट आपको इतनी मनभाई कि मनीषा के तल्ख एतराज के बाद भी आपने इसे हटाना गवारा नहीं किया। इसके बाद आपने यह लिखा भी कि आपने केवल जरूरी अंश छापे हैं , बातें तो और भी हुई हैं।
बाद में मनीषा ने क्षोभ में आकर वे अंश भी जाहिर किये जो चैट के हिस्से रहे होंगे। हो सकता है कोई और मसाला हो आपके पास जिसे समय आपने पर आप उद्घाटित करें।
अविनाश जी वैसे तो आप गुनी-ज्ञानी हैं और आप अपनी हर बात के लिये कोई तर्क गढ़ लेंगे । माहिर हैं आप इसमें। हम ठहरे मूढ़मति, भलेमानस ( मूढ़मति और भलेमानस दोनों आपकी दी हुई उपाधियां हैं मुझे) सो मुझे लगता है कि आपकी निहायत घटिया और दुखी करने वाली हरकते हैं।
क्यों हैं ? यह बताने का प्रयास अपनी मंदबुद्धि से करता हूं। लेकिन पहले ये तमाम बार सुन चुका शेर एक बार पुन: बांच लें। याद आ गया ,क्या किया जाये-
मैं सच बोलूंगी हार जाउंगी,
वो झूठ बोलेगा, लाजबाब कर देगा।
आप मोहल्ले में तमाम बातों के अलावा नारी मुक्ति या नारी समानता की भी बात करते हैं। तमाम सनसनीखेज पोस्टें इसी मुद्दे पर चढ़ाई हैं। मनीषा की ये जो बातचीत आपने यहां नुमाइश में लगाई उसे पढ़कर लगता है कि यह किसी कोई सहमी, असहाय सी महिला आपसे सहायता की कातर पुकार कर रही हो।
मनीषा ने अपने ब्लाग पर जो पोस्टें लिखीं उससे उनकी छवि एक बहादुर स्त्री की बनती है। कुछ पोस्टों में वे फ़ैशन के लिहाज से ज्यादा बहादुर भी दिखीं।
इस चैट की नुमाइश करके क्या यह साबित करना चाहते हैं आप अविनाशजी ? क्या यह कि बड़ी बहादुर बनती हैं। देखो ये है इस बहादुर बालिका की हिम्मत। हमसे सहयोग मांग रही है।
अविनाश बाबू, ये कैसी संवेदनशीलता है आपकी कि अपनी वर्षों की मित्र से हुयी उन क्षणों आपसी बातचीत को दुनिया को भर में दिखाओ जिस क्षणों में वो शायद अपना मन हलका करने के लिये जो मन में आये आपसे कहती जा रही हो? यह कैसा स्त्री विमर्श है आपका अविनाश बाबू कि आप अपनी मित्र को मजबूर कर दें कि वह क्षोभ में आकर उस बातचीत के बाकी अंश खुद जाहिर कर दे जिसे वह हटाने के लिये बार-बार अनुरोध कर रही हो।
अपने किसी भी मित्र की इस तरह की आपसी बातचीत को चाहे वह आपका पुरुष मित्र हो या महिला मित्र , उसकी अनुमति के जगजाहिर करना निहायत खराब बात है। यह और भी खराब बात है जब आपकी मित्र मित्र इसे हटाने के लिये बार-बार आपसे कहे और आप उसे हटाने की बजाय एक और पोस्ट लिखें/लिखवायें कि लोगों को मुद्दा पता नहीं है।
आपका कोई मित्र अपनी सालों की मित्रता के अधिकार के साथ आपसे आपसी बातचीत को हटाने का अनुरोध कर रहा हो और आप अपनी समझ और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुधारी तलवार से अनुरोध की गरदन उड़ा दें।
ये निहायत घटिया हरकत है अविनाशजी। निंदनीय और शर्मनाक। इसलिये मैं इसकी निंदा करता हूं, भर्त्सना करता हूं।
काफ़ी पहले नारद पर एक ब्लाग को बैन करने पर हुये बवाल को लेकर अपनी समझ में एक बड़ी धांसू च फ़ांसू पोस्टलिखी थी मैं। ये पोस्ट मेरी सबसे खराब पोस्टों में से एक होगी शायद (उसके बाद से कभी पढ़ी भी नहीं) लेकिन जिस दिन लिखा उस दिन हमारी स्थिति मुग्धा नायिका की थी। मुझे इस पोस्ट की एक उपलब्धि इस पर अभय तिवारी की टिप्पणी लगती है। अभय ने लिखा थालिखने वाले को अपने एक एक अक्षर से प्यार हो जाता है.. जैसे छोटे बच्चे उत्सर्जन कर के उसमें रचनात्मक सुख लेते हैं.. और उस चार छै महीने के फ़ेज़ में मल मूत्र से अभिभूत रहते हैं..!
यही या शायद इससे भी अधिक रचनात्मक सुख आपको अपनी आपसी बातचीत को अपनी पोस्ट पर सजाये रखने में मिल रहा होगा। सो उसे हटाने से मजबूर रहे होंगे।
बहरहाल, हमें दुख हुआ। अफसोस हुआ , गुस्सा भी है। सो जाहिर कर रहे हैं।
ऐसा क्यों होता है?
यह भी सोचने की बात है। अभय ने एकाधिक बार कहा कि अविनाश अच्छा लड़का है। यशवंत सिंह के मित्र भी कहते हैं यशवंत अच्छे दिल के स्वामी हैं। मैं दिल्ली में दोनों से मिला भी था। यशवंत से काफ़ी देर बातचीत भी हुयी। ब्लाग में वे भड़ास के संचालक हैं।
गाली-गलौज जो कल-परसों भड़ास की किसी पोस्ट में छपी वे अपने घर वालों, बच्चों, मां-बाप, बहन-भाई को पढ़ा सकते हैं?
क्या वे अपनी बेटी से कह सकते हैं कि आऒ बिटिया तुमको गाली-गलौज का ककहरा सिखाते हैं? शुरुआत मां-बहन से करते हैं!
क्या वे अपनी बहन से कह सकते हैं- आओ बहनिया- जी हल्का करने के लिये तुमको प्यारे भड़ासी की पोस्ट पढ़ाते हैं इसमें खुल कर जनभाषा का प्रयोग हुआ है। तुम्हारे मन में भी अटकी हो तुम भी कह डालो। भड़ से । संकोच न करो।
नवाज देवबंदी का शेर अक्सर संचालक शिव ऒम अम्बर जी सुनाते थे-
बदनजर उठने ही वाली थी उसकी जानिब मगर,
बेटी का ख्याल आया तो दिल कांप गया।
(उसकी तरफ़ बुरी नजर उठने ही वाली थी लेकिन बेटी का ख्याल आया तो दिल कांप गया।)
जो लड़के हिज हाइनेस के छ्द्म नाम से गाली-गलौज करते हैं उनको अपनी मां-बहन का ख्याल नहीं आता क्या?
अविनाश अभी नये-नये एक बिटिया के पिता बने हैं। वे कितनी भी प्रगतिशील-पतनशील बातें करें , निश्चित तौर पर अपनी बिटिया या बहन के नाम से हुई गाली-गलौज के लिये यह जानने की कोशिश नहीं करेंगे कि -पहले जरा समझ लें कि माजरा क्य है? क्यों ये भड़ासी तुम्हारे नाम से गाली-गलौज कर रहे हैं। वे चाहे गांव से आये हों या शहर से, अपनी बिटिया-बहन को गाली देने वाली का टेटुआ दबा देने को मचल उठेंगे। वहां यह नहीं कहेंगे कि -तुम फ़लाने से काहे नहीं शिकायत करती। यही बात महिला मित्र के लिये भी सही है।
पिछले साल एक महिला अंग्रेजी ब्लागर से एक संस्थान के लड़कों ने गाली-गलौज की थी। उस महिला ब्लागर के दोस्तों से उस संस्थान के संचालक की ऐसी कम तैसी कर दी थी। महीनों सैकड़ों पोस्ट लिखीं गयीं थीं। मैंने भी लिखी थीएक पोस्ट । उस संस्थान के खिलाफ़ लिखते हुये मैंने लिखा था-
1.ये कैसे संस्थान हैं जो अपने लड़कों को इतनी जाहिल,कमीनी, जलालत भरी भाषा सिखाते हैं? इससे कई गुना बेहतर भाषा गुंडे,मवाली बोल लेते हैं जिन्होंने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा होता।
2.ये कैसा जाहिल संस्थान है जो अपने ऊपर लगे आरोपों (अगर वे गलत हैं तो) का जवाब नहीं दे पाता?
3.ये कितना असंस्कृत संस्थान है जो संस्थान के नाम पर एक महिला के खिलाफ इतनी टुच्चीभाषा के इस्तेमाल के लिये अपने तथाकथित छात्रों की भर्त्सना नहीं कर सकता? छात्र अगर उससे संबंधित नहीं हैं तो यह सूचित करते हुये खेद क्यों नहीं जता सकता?
4.किसी महिला के द्वारा लगाये आरोप के जवाब क्या उसको चरित्रहीन, समलैंगिक,मंदबुद्धि बताये बिना नहीं दिये जा सकते?
यहां भी दोस्ती के नाम पर दोस्त के कमजोर क्षणों को फ़्रीज करके दुनिया भर को दिखाया जा रहा है। धन्य हैं ऐसे मित्र। अच्छा मित्र को भी मित्र की असलियत का अंदाज हो गया-
एक जरा सी बात पर बरसों के याराने गये,
पर चलो अच्छा हुआ, कुछ लोग पहचाने गये।
ऐसे कौन से कारण हैं कि ऐसे जहीन लोग , जिनको दुनिया जहान की खबर है, एक दूसरे की इज्जत उतारने में लगे रहते हैं। हर कोई दूसरे की पोल-खोलने में लगा है। एक -दूसरे से ज्यादा पतित होने की दौड़ में जुटा है। सनसनी फ़ैलाने के लिये लोगों के दिय बयान तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहा है। एकाध दिन में भड़ास पर यशवंत ने अविनाश की पोल-पट्टी खोलने की बात कही है।
क्या ऐसा इसलिये है कि आज समाज की हालत ऐसी है कि किसी सार्थक बदलाव की आशायें लोग त्याग रहे हैं। कभी क्रांतिकारिता के सपने देखने वाले भ्रांतिकर्म में जुट गये हैं। सनसनी फ़ैलाना , अपनी टीआरपी बटोरना और मस्त हो जाना एकमात्र उद्देश्य रह गया है।
हम बता नहीं पा रहे हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है लेकिन कुछ ऐसा लगता है कि लोगों को लगता है हमारे किये कुछ होने वाला नहीं अब। आओ पतनशील हो जायें। टुन्न होकर एक-दूसरे की लानत-मलानत करें। बड़ा कठिन समय है। ऐसे में क्या किया जाये?
हमें तो कुछ समझ में आ नहीं रहा। अब आप ही बतायें!
मेरी पसन्द
खारेपन का अहसास
मुझे था पहले से
पर विश्वासों का दोना
सहसा बिछल गया
कल ,
मेरा एक समंदर
गहरा-गहरा सा
मेरी आंखों के आगे उथला निकल गया।
खारेपन का अहसास
मुझे था पहले से
पर विश्वासों का दोना
सहसा बिछल गया
कल ,
मेरा एक समंदर
गहरा-गहरा सा
मेरी आंखों के आगे उथला निकल गया।
डा.कन्हैयालाल नंदन
Posted in बस यूं ही | 25 Responses
भड़ास के स्वामी श्री यंशवंत जी से मै मिला था, जब वे इलाहाबाद में थे, मैने भड़ास की भाषा की निन्दा उनके सामने की थी, और आज भी करता हूँ। किन्तु इतना जरूर कहना चाहॅगा कि भड़ास को राजनीति का शिकार नही होने दिया जायेगा।
यदि हिम्मत है तो वर्चुअल वर्ल्ड को राम-राम कहो और अपने-अपने गली-मोहल्ले में दूसरों की मां-बहन को गाली दो, मार-पीट करो। फिर जब चांद पर जूते बजेंगे तो सब भड़ास निकल लेगी। शायद ऐसा इन लोगों के साथ हो भी चुका हो। इसलिए ऐसा माध्यम चुना है कि अपनी टुच्ची हरकतें भी जारी रखें और पिटने और समाज का डर भी न रहे। एक कहावत सुनी थी कि- गधे को कितना भी नहलाओ वह कीचड़ में ही लोटेगा। इन पर ये कहावत एकदम सटीक बैठती है। भले ही कितना भी इंटेलेक्चुअल दिखने की कोशिश करें पर औकात सामने आ ही जाती है।
shubhkamnaon ke liye aabhar.
Added on मार्च 2nd, 2008 at 7:23 pm