Sunday, March 02, 2008

संवेदना के नये आयाम

http://web.archive.org/web/20140419213809/http://hindini.com/fursatiya/archives/391

संवेदना के नये आयाम

कल अविनाश की कलाबाजी पोस्ट पढ़कर आश्चर्य हुआ, क्षोभ हुआ और तकलीफ़ भी।
सच तो यह है कि यह कलाबाजी पोस्ट नहीं शातिराना पोस्ट थी। निहायत भोलेपन से आप पूछते हैं – मैथिलीजी,क्‍या भड़ास को बैन किया जा सकता है?
मतलब आप मैथिलीजी से पूछ भी रहे हैं और आपके अनुरोध का अंदाज बता रहा है कि आप मन से बैन लगाने के लिये मेहनत से जी चुरा रहे हैं। जितनी ताकत से आपने नारद का विरोध किया था , न जाने कहां-कहां, क्या-क्या लिखा था, उसकी आधी-क्या चौथियाई ताकत भी आपने मैथिलीजी से अनुरोध करने में नहीं लगाई। क्योंकि आपको आगे और जरूरी बातें लिखनी थीं।
लचर और बेमन से किये अनुरोध के बाद आपने महिलाओं के ब्लाग चोखेरबाली से जुड़ी बातें बताईं। इसके बाद असल खेल शुरू हुआ। आपने मनीषा से आपस की बातचीत को अपनी पोस्ट पर सजाया। यह सजावट आपको इतनी मनभाई कि मनीषा के तल्ख एतराज के बाद भी आपने इसे हटाना गवारा नहीं किया। इसके बाद आपने यह लिखा भी कि आपने केवल जरूरी अंश छापे हैं , बातें तो और भी हुई हैं।
बाद में मनीषा ने क्षोभ में आकर वे अंश भी जाहिर किये जो चैट के हिस्से रहे होंगे। हो सकता है कोई और मसाला हो आपके पास जिसे समय आपने पर आप उद्घाटित करें।
अविनाश जी वैसे तो आप गुनी-ज्ञानी हैं और आप अपनी हर बात के लिये कोई तर्क गढ़ लेंगे । माहिर हैं आप इसमें। हम ठहरे मूढ़मति, भलेमानस ( मूढ़मति और भलेमानस दोनों आपकी दी हुई उपाधियां हैं मुझे) सो मुझे लगता है कि आपकी निहायत घटिया और दुखी करने वाली हरकते हैं।
क्यों हैं ? यह बताने का प्रयास अपनी मंदबुद्धि से करता हूं। लेकिन पहले ये तमाम बार सुन चुका शेर एक बार पुन: बांच लें। याद आ गया ,क्या किया जाये-

मैं सच बोलूंगी हार जाउंगी,
वो झूठ बोलेगा, लाजबाब कर देगा।
आप मोहल्ले में तमाम बातों के अलावा नारी मुक्ति या नारी समानता की भी बात करते हैं। तमाम सनसनीखेज पोस्टें इसी मुद्दे पर चढ़ाई हैं। मनीषा की ये जो बातचीत आपने यहां नुमाइश में लगाई उसे पढ़कर लगता है कि यह किसी कोई सहमी, असहाय सी महिला आपसे सहायता की कातर पुकार कर रही हो।
मनीषा ने अपने ब्लाग पर जो पोस्टें लिखीं उससे उनकी छवि एक बहादुर स्त्री की बनती है। कुछ पोस्टों में वे फ़ैशन के लिहाज से ज्यादा बहादुर भी दिखीं।
इस चैट की नुमाइश करके क्या यह साबित करना चाहते हैं आप अविनाशजी ? क्या यह कि बड़ी बहादुर बनती हैं। देखो ये है इस बहादुर बालिका की हिम्मत। हमसे सहयोग मांग रही है।
अविनाश बाबू, ये कैसी संवेदनशीलता है आपकी कि अपनी वर्षों की मित्र से हुयी उन क्षणों आपसी बातचीत को दुनिया को भर में दिखाओ जिस क्षणों में वो शायद अपना मन हलका करने के लिये जो मन में आये आपसे कहती जा रही हो? यह कैसा स्त्री विमर्श है आपका अविनाश बाबू कि आप अपनी मित्र को मजबूर कर दें कि वह क्षोभ में आकर उस बातचीत के बाकी अंश खुद जाहिर कर दे जिसे वह हटाने के लिये बार-बार अनुरोध कर रही हो।
अपने किसी भी मित्र की इस तरह की आपसी बातचीत को चाहे वह आपका पुरुष मित्र हो या महिला मित्र , उसकी अनुमति के जगजाहिर करना निहायत खराब बात है। यह और भी खराब बात है जब आपकी मित्र मित्र इसे हटाने के लिये बार-बार आपसे कहे और आप उसे हटाने की बजाय एक और पोस्ट लिखें/लिखवायें कि लोगों को मुद्दा पता नहीं है।
आपका कोई मित्र अपनी सालों की मित्रता के अधिकार के साथ आपसे आपसी बातचीत को हटाने का अनुरोध कर रहा हो और आप अपनी समझ और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुधारी तलवार से अनुरोध की गरदन उड़ा दें।
ये निहायत घटिया हरकत है अविनाशजी। निंदनीय और शर्मनाक। इसलिये मैं इसकी निंदा करता हूं, भर्त्सना करता हूं।
काफ़ी पहले नारद पर एक ब्लाग को बैन करने पर हुये बवाल को लेकर अपनी समझ में एक बड़ी धांसू च फ़ांसू पोस्टलिखी थी मैं। ये पोस्ट मेरी सबसे खराब पोस्टों में से एक होगी शायद (उसके बाद से कभी पढ़ी भी नहीं) लेकिन जिस दिन लिखा उस दिन हमारी स्थिति मुग्धा नायिका की थी। मुझे इस पोस्ट की एक उपलब्धि इस पर अभय तिवारी की टिप्पणी लगती है। अभय ने लिखा थालिखने वाले को अपने एक एक अक्षर से प्यार हो जाता है.. जैसे छोटे बच्चे उत्सर्जन कर के उसमें रचनात्मक सुख लेते हैं.. और उस चार छै महीने के फ़ेज़ में मल मूत्र से अभिभूत रहते हैं..!
यही या शायद इससे भी अधिक रचनात्मक सुख आपको अपनी आपसी बातचीत को अपनी पोस्ट पर सजाये रखने में मिल रहा होगा। सो उसे हटाने से मजबूर रहे होंगे।
बहरहाल, हमें दुख हुआ। अफसोस हुआ , गुस्सा भी है। सो जाहिर कर रहे हैं।

ऐसा क्यों होता है?

यह भी सोचने की बात है। अभय ने एकाधिक बार कहा कि अविनाश अच्छा लड़का है। यशवंत सिंह के मित्र भी कहते हैं यशवंत अच्छे दिल के स्वामी हैं। मैं दिल्ली में दोनों से मिला भी था। यशवंत से काफ़ी देर बातचीत भी हुयी। ब्लाग में वे भड़ास के संचालक हैं।
गाली-गलौज जो कल-परसों भड़ास की किसी पोस्ट में छपी वे अपने घर वालों, बच्चों, मां-बाप, बहन-भाई को पढ़ा सकते हैं?
क्या वे अपनी बेटी से कह सकते हैं कि आऒ बिटिया तुमको गाली-गलौज का ककहरा सिखाते हैं? शुरुआत मां-बहन से करते हैं!
क्या वे अपनी बहन से कह सकते हैं- आओ बहनिया- जी हल्का करने के लिये तुमको प्यारे भड़ासी की पोस्ट पढ़ाते हैं इसमें खुल कर जनभाषा का प्रयोग हुआ है। तुम्हारे मन में भी अटकी हो तुम भी कह डालो। भड़ से । संकोच न करो।
नवाज देवबंदी का शेर अक्सर संचालक शिव ऒम अम्बर जी सुनाते थे-

बदनजर उठने ही वाली थी उसकी जानिब मगर,
बेटी का ख्याल आया तो दिल कांप गया।
(उसकी तरफ़ बुरी नजर उठने ही वाली थी लेकिन बेटी का ख्याल आया तो दिल कांप गया।)
जो लड़के हिज हाइनेस के छ्द्म नाम से गाली-गलौज करते हैं उनको अपनी मां-बहन का ख्याल नहीं आता क्या?
अविनाश अभी नये-नये एक बिटिया के पिता बने हैं। वे कितनी भी प्रगतिशील-पतनशील बातें करें , निश्चित तौर पर अपनी बिटिया या बहन के नाम से हुई गाली-गलौज के लिये यह जानने की कोशिश नहीं करेंगे कि -पहले जरा समझ लें कि माजरा क्य है? क्यों ये भड़ासी तुम्हारे नाम से गाली-गलौज कर रहे हैं। वे चाहे गांव से आये हों या शहर से, अपनी बिटिया-बहन को गाली देने वाली का टेटुआ दबा देने को मचल उठेंगे। वहां यह नहीं कहेंगे कि -तुम फ़लाने से काहे नहीं शिकायत करती। यही बात महिला मित्र के लिये भी सही है।
पिछले साल एक महिला अंग्रेजी ब्लागर से एक संस्थान के लड़कों ने गाली-गलौज की थी। उस महिला ब्लागर के दोस्तों से उस संस्थान के संचालक की ऐसी कम तैसी कर दी थी। महीनों सैकड़ों पोस्ट लिखीं गयीं थीं। मैंने भी लिखी थीएक पोस्ट । उस संस्थान के खिलाफ़ लिखते हुये मैंने लिखा था-
1.ये कैसे संस्थान हैं जो अपने लड़कों को इतनी जाहिल,कमीनी, जलालत भरी भाषा सिखाते हैं? इससे कई गुना बेहतर भाषा गुंडे,मवाली बोल लेते हैं जिन्होंने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा होता।
2.ये कैसा जाहिल संस्थान है जो अपने ऊपर लगे आरोपों (अगर वे गलत हैं तो) का जवाब नहीं दे पाता?
3.ये कितना असंस्कृत संस्थान है जो संस्थान के नाम पर एक महिला के खिलाफ इतनी टुच्चीभाषा के इस्तेमाल के लिये अपने तथाकथित छात्रों की भर्त्सना नहीं कर सकता? छात्र अगर उससे संबंधित नहीं हैं तो यह सूचित करते हुये खेद क्यों नहीं जता सकता?
4.किसी महिला के द्वारा लगाये आरोप के जवाब क्या उसको चरित्रहीन, समलैंगिक,मंदबुद्धि बताये बिना नहीं दिये जा सकते?
यहां भी दोस्ती के नाम पर दोस्त के कमजोर क्षणों को फ़्रीज करके दुनिया भर को दिखाया जा रहा है। धन्य हैं ऐसे मित्र। अच्छा मित्र को भी मित्र की असलियत का अंदाज हो गया-
एक जरा सी बात पर बरसों के याराने गये,
पर चलो अच्छा हुआ, कुछ लोग पहचाने गये।
ऐसे कौन से कारण हैं कि ऐसे जहीन लोग , जिनको दुनिया जहान की खबर है, एक दूसरे की इज्जत उतारने में लगे रहते हैं। हर कोई दूसरे की पोल-खोलने में लगा है। एक -दूसरे से ज्यादा पतित होने की दौड़ में जुटा है। सनसनी फ़ैलाने के लिये लोगों के दिय बयान तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहा है। एकाध दिन में भड़ास पर यशवंत ने अविनाश की पोल-पट्टी खोलने की बात कही है।
क्या ऐसा इसलिये है कि आज समाज की हालत ऐसी है कि किसी सार्थक बदलाव की आशायें लोग त्याग रहे हैं। कभी क्रांतिकारिता के सपने देखने वाले भ्रांतिकर्म में जुट गये हैं। सनसनी फ़ैलाना , अपनी टीआरपी बटोरना और मस्त हो जाना एकमात्र उद्देश्य रह गया है।
हम बता नहीं पा रहे हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है लेकिन कुछ ऐसा लगता है कि लोगों को लगता है हमारे किये कुछ होने वाला नहीं अब। आओ पतनशील हो जायें। टुन्न होकर एक-दूसरे की लानत-मलानत करें। बड़ा कठिन समय है। ऐसे में क्या किया जाये?
हमें तो कुछ समझ में आ नहीं रहा। अब आप ही बतायें!
मेरी पसन्द
खारेपन का अहसास
मुझे था पहले से
पर विश्वासों का दोना
सहसा बिछल गया
कल ,
मेरा एक समंदर
गहरा-गहरा सा
मेरी आंखों के आगे उथला निकल गया।
डा.कन्हैयालाल नंदन

25 responses to “संवेदना के नये आयाम”

  1. Tarun
    ये नये आयामों वाली संवेदना इन्ही संवेदनशील टीआरपी पसंद संवेदन पत्रकारों के आगमन के साथ शुरू हुई थी, हमने तभी ये आशंका व्यक्त कर दी थी। अभी तो नये नये आयाम छूने हैं पिछले साल और इस साल की घटनायें तो ट्रैलर मात्र हैं शायद। तिल का तहाड़ कहावत सिर्फ सुनी भर दी इन चंद दिनों में समझ भी ली।
  2. प्रमेन्‍द्र प्रताप सिंह
    आप बेजा कुछ मामलों में हस्‍तक्षेप करते है, यहॉ भी वही लगता है।
    जैसा कि आपने कहा है कि पिछली पोस्‍ट आपकी सबसे खराब मे एक होगा, आपका कहना सही है। मोहल्‍ला एक टूटती हुई सीढ़ी है और वह भड़ास प्रकरण से अपने आपको संजीवनी देना चाहता है। भड़ास के खुलेमंच के बाद मोहल्‍ला को अपनी ब्‍लाग दुनिया का अस्तित्‍व खतरे में नजर आने लगा था। यही कारण है कि वह भड़ास पर प्रतिबन्‍ध की बात कर खोई लोकप्रियता पाने में लग गये।
    भड़ास के स्‍वामी श्री यंशवंत जी से मै मिला था, जब वे इलाहाबाद में थे, मैने भड़ास की भाषा की निन्‍दा उनके सामने की थी, और आज भी करता हूँ। किन्‍तु इतना जरूर कहना चाहॅगा कि भड़ास को राजनीति का शिकार नही होने दिया जायेगा।
  3. प्रमोद सिंह
    सही लिखा. मगर यह सब किससे कह रहे हैं, पंडिजी? कहीं चाम है? सब दाम और दंड ही है! लड़कियां ऐसे ही छतों से कूदकर जान नहीं दे देतीं.. अलबत्‍ता उसके जान दे चुकने पर उसका भी मसाला बालकर ये ब्‍लॉग-चिलम सजा लेंगे! आपकी हिंदी का यही चिरगिल्‍ला हाई और जंप हैं. मोस्‍टली जंक है..
  4. हिंदी ब्लॉगर
    पूरे प्रकरण से अवगत नहीं हूँ, लेकिन आपकी व्यथा और क्रोध को देख कर मामले की गंभीरता समझ में आती है. कामना करता हूँ कि मामला और नहीं बिगड़े, और संबद्ध लोगों/पक्षों के बीच सदभावना बहाल हो!
  5. Praveen
    Sir ji gambhir mahaul me agambheer baat kah raha hu jara aap mere blog (http://praveenshar.blogspot.com) pe najareinayat kijiye aur mere dukho ko door kijiye. Waha mane aap ke liye ek shikayat likh ke rakhi hui hai.
  6. swapandarshi
    bahut hi badhiyaa likha hai aapane. aapse meri sahmati hai. isi tarah ke khyalo se mera man bhee shubd hai.
  7. bhuvnesh
    मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा गुरू. ये क्‍या मामला चल रहा है आजकल. ब्‍लागिंग मैं भी करता हूं और दूसरों के ब्‍लाग भी पढ़ता हूं पर विवादग्रस्‍त पोस्‍टें और ब्‍लाग पढ़ने में अपन क्‍यों टाइम खोटी करें।
    ये समझ नहीं आता कि लोगों के पास इतना फालतू समय और ऊर्जा कैसे आ जाती है कि ब्‍लागिंग के जरिए कुछ सार्थक करने की बजाय गाली-गलौज और जूतम-पैजार में लगे हैं.
    मेरे ख्‍याल से ये डरे हुए और कायर लोग हैं जो वर्चुअल जगत में गाली-गलौज कर और लड़-झगड़कर खुद की भड़ास निकाल रहे हैं और खुद को शेर मान रहे हैं।
    यदि हिम्‍मत है तो वर्चुअल वर्ल्‍ड को राम-राम कहो और अपने-अपने गली-मोहल्‍ले में दूसरों की मां-बहन को गाली दो, मार-पीट करो। फिर जब चांद पर जूते बजेंगे तो सब भड़ास निकल लेगी। शायद ऐसा इन लोगों के साथ हो भी चुका हो। इसलिए ऐसा माध्‍यम चुना है कि अपनी टुच्‍ची हरकतें भी जारी रखें और पिटने और समाज का डर भी न रहे। एक कहावत सुनी थी कि- गधे को कितना भी नहलाओ वह कीचड़ में ही लोटेगा। इन पर ये कहावत एकदम सटीक बैठती है। भले ही कितना भी इंटेलेक्‍चुअल दिखने की कोशिश करें पर औकात सामने आ ही जाती है।
    अनूपजी मैं आपका बहुत सम्‍मान करता हूं इसीलिए आपसे ये अनुरोध कर रहा हूं कि इन गंदे, कायर, टुच्‍चे लोगों की बातों पर ध्‍यान मत दीजिए। ये तो हमेशा ऐसा ही करते रहेंगे और मौका लगने पर आप पर भी कीचड़ उछालने से नहीं चूकेंगे। आप तो बस अपनी गजब की पोस्‍टें पढ़वाते रहिए………आजकल कम क्‍यों लिख रहे हैं और फागुन में कुछ कविता-सविता हो जाए……….
  8. masijeevi
    अविनाश ने इस प्रकरण में आला दरजे की असंवेदनशीलता का परिचय दिया है इसमें शक नहीं। पत्रकार जब ब्‍लॉगर बनते हैं तो पत्राकरिता के कई औजार व संपर्क यहॉं लाभ देते हैं किंतु कई चीजें डीलर्न भी की जानी होती हैं जिसे समझने में अविनाश से चूक हुई है। इस प्रकरण से हमें कई दीर्घकालीन नुकसान सहने होंगे पहला तो यही है कि अब लोग ब्‍लॉग को विमर्श विधा मानने से और चिंहुकेंगे।
    एक बात अच्‍छी हुई और वो ये कि मुझे आशंका हुई थी कि पिछले अनुभवों से कहीं आप लोग ऐसे प्रकरणों में हस्तक्षेप से बचने न लगें पर सुखद है कि आप कहने से बाज नहीं आ रहे हैं आर हमें क्‍या फर्क पड़ता है वाला रवैया नहीं है। भला किया जो लिखा।
  9. अरूण
    ये क्या जगह है दोस्तो ,ये कौन सा दयार है,..?
  10. sujata
    4.किसी महिला के द्वारा लगाये आरोप के जवाब क्या उसको चरित्रहीन, समलैंगिक,मंदबुद्धि बताये बिना नहीं दिये जा सकते?
    bahut sahee prashna uthaaye hai .
  11. अभय तिवारी
    ‘बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा’-कुछ लोगों के इस जीवन-दर्शन के चलते बाकी लोग जो आए थे हरि भजन को कपास ओटने लग पडे हैं..चेतो भैया!
  12. eswami
    भुवनेश नें जो कहा काफ़ी है! आम आवलोकन है…कु्छ नये दिलचस्प ट्रैंड विकसित हुए हैं.. जिनके प्रभावों को रेखांकित करने लिखा है – http://hindini.com/eswami/?p=157
  13. Sanjeet Tripathi
    बहुत बढ़िया और बहुत सही!!
  14. शेष
    आश्चर्य इस पर है कि जो “निजी चैट” मनीषा के पक्ष में खड़े होने का मजबूत आधार बन रहा है, उसे हटाने का आग्रह अविनाश और मोहल्ले की मंशा पर शक के रूप में सामने आ रही है। इस चैट के बिना मनीषा के लिए कहां खड़ा हुआ जाए, यह समझना मुश्किल है। तब फिर भड़ास वालों की इस दलील से आप कैसे असहमत हो सकते हैं कि उनकी “हिज हाईनेस मनीषा” मुंबई की हैं और वे मनीषा पांडेय नहीं हैं। जिस पोस्ट पर मनीषा पांडेय के साथ-साथ जरा-सा भी आदमी हो चुके किसी भी शख्स को तकलीफजदा होने से ज्यादा शर्मसार होना चाहिए, दरअसल यह लड़ाई उस सबकी होनी चाहिए। इसमें मनीषा पांडेय (माफ कीजिएगा यहां बार-बार पांडेय लिखना मजबूरी है) को जहां सबसे आगे रहने की जिद करनी चाहिए, वे चैट हटाने को मुद्दा बना कर इस पूरी लड़ाई को खत्म करती हुई लग रही हैं। ऐसा लगता है कि उनका चैट हटाने का आग्रह भड़ास की उस पोस्ट से उपजी तल्खी से बड़ा मुद्दा बन चुका है। आखिर खुद मनीषा ही तो कह रही हैं कि (उसी चैट में) ये दो लोगों की लड़ाई का मसला नहीं है और ये निजी लड़ाई नहीं है। जो भी बातचीत इस चैट में है, उसमें न केवल कुछ भी आपत्तिजनक नहीं लग रहा है, बल्कि यह मुद्दे को ही विस्तार देने में मदद करता है। यह ब्लॉग, उस पर लिखे गए पोस्ट, उस पर आई टिप्पणियां हमारी निजी बातचीत के सार्वजनिक होने का ही विस्तार हैं। ध्यान रहे कि कुछ लोग ब्लॉग पर बहस के तर्क को सिरे से खारिज करते हैं और मानते हैं कि यह नितांत निजी चीज है। अगर भड़ास ने मनीषा पांडेय को लक्ष्य नहीं भी किया हो, तो भी उस डिक्शनरी को किसी मजबूरी में पढ़ने के बाद उसके खिलाफ खड़ा होना क्या उनकी जिम्मेदारी नहीं बनती है? मनीषा पांडेय के लिखे हुए को देख कर अब तक जो धारणा बन सकी है, वह एक बहादुर और इंपावर्ड औरत की है। उन्होंने अपने कई पोस्ट में विमर्श के जो गहरे बिंदु छोड़े हैं, वह मुग्ध करता है। भड़ास की जिस पोस्ट से उन्हें तकलीफ पहुंची है, उससे ज्यादा तकलीफ बहुत सारे लोगों को भी है। लेकिन यहां चूंकि केंद्र में वे हैं, इसलिए उम्मीद भी वही हैं। देह को लक्षित कोई भी गाली आखिरकार स्त्री के सिर पर ही फूटती है, और वह हमारी व्यापक चिंता का मामला होना चाहिए। आपने चैट में अविनाश को कुछ करने के लिए कहा है। अविनाश करें या कोई भी करे, आप साथ-साथ या बिल्कुल आगे दिखनी चाहिए। आपको बहुत नहीं जानता हूं, लेकिन अब तक यही राय बनी है कि किसी को आगे करके पीछे रहने या हटने के ब्राह्मणवादी तरीकों से आप ऊपर उठ चुकी हैं। और हां, अगर कुछ बेनामी की टिप्पणियों को आधार बनाएं,(यशवंत ने यह फतवा जारी किया है कि अगर कुछ बेनामियों की टिप्पणियां नहीं हटाई गईं तो अंजाम बहुत बुरा होगा।) तो बहुत थोड़ी-सी बात बहुत कुछ कह जाती है। जो आदमी कदम-कदम पर कुंठाएं घोंटते हुए चल रहा हो, उसकी उल्टियां भी उतनी ही सड़ी हुई होंगी। इसलिए पागल लोगों से उम्मीद करना हमारी गलती होगी। उस आदमी या उसके ब्लॉग से जुड़ने की गलती जिन-जिन लोगों को महूसस हो रही है, उनके लिए यह फिर से सोचने का वक्त है। आपको देखना चाहिए कि भड़ास से जुड़े लगभग सभी लोग किस हद तक कुंठित और एक समूची मर्दानगी के मालिक हैं। हमें पता है कि हम जैसे लोगों को वे नपुंसक कह कर ही संबोधित करेंगे। लेकिन अपने घर-परिवार की औरतों के सामने अपनी ही तरह की मर्दानगी का इजहार करने वाले मर्दों की वे शायद हत्या कर दें।
  15. प्रमेन्‍द्र प्रताप सिंह
    पुन:श्‍च आपसे कहूँगा कि आप विवादी विषयों पर हाथ मत डाला कीजिऐ, क्‍योकि आपके नाम आने ने काफी लोगों को अपनी बात मनवाने का अवसर प्राप्‍त होता है। आप एक लोकप्रिय और सम्‍मानित चिट्ठकाकार है और मेरे भी, मै बस यही कहूँगा कि आप अपनी बात स्‍पष्‍टता से कहा कीजिऐ,क्‍यो‍कि आपकी कुछ लेख और कुछ टिप्‍पणी कई गलत लोगों का अप्रत्‍यक्ष समर्थन कर देते है।
    मेरी कोई बात बुरी लगी हो तो क्षमा कीजिएगा।
  16. Dr. Chandra Kumar Jain
    mere blog par aapkee
    shubhkamnaon ke liye aabhar.
  17. आपने ऐसा क्यों किया?
    फुरसतिया जी,
    जब परमेन्दर जी यशवंत सिंह जी से मुलाक़ात कर चुके हैं और भड़ास को समर्थन दे चुके हैं तो फिर आपको बेवजह इन मामलों में टांग अड़ाने (पहली टिपण्णी के हिसाब से आपने टांग अडाई और दूसरी के हिसाब से आपने हाथ डाला) की जरूरत क्या है. ऊपर से आप अपनी बात स्पष्टता से नहीं कहते. और आप ‘कुछ’ लेख और टिप्पणियां लिखकर ग़लत लोगों का समर्थन करते हैं और वह भी अप्रतक्ष्य.
    आपकी हिम्मत कैसे हुई ऐसा करने की? उन बातों पर बोलने की जिनपर परमेन्दर जी पहले ही बोल चुके हैं.
  18. Shiv Kumar Mishra
    सबकुछ बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है.
  19. anitakumar
    अनूप जी बहुत ही संवेदनशील और विवेकपूर्ण पोस्ट दी है । आशा करती हूँ कि आप की पोस्ट रंग लायेगी और इन सबके आपसी झगड़े खत्म हो जाएगें
  20. अनूप भार्गव
    सार्थक लेख के लिये बहुत बहुत बधाई ।
  21. neelimasayshi
    आपके द्वारा बहुत दमदार तरीके से इस मुद्दे को उठाया गया है ! देखकर सुकून हुआ ! स्त्री विमर्श के मसलों पर सेल्फ स्टाइल्ड लडाके बने बैठे अविनाश के कर्मों की मैं घोर निंदा करती हूं !
  22. प्रमेन्‍द्र प्रताप सिंह
    आपने ऐसा क्यों किया? says:
    Added on मार्च 2nd, 2008 at 7:23 pm
    फुरसतिया जी,
    जब परमेन्दर जी यशवंत सिंह जी से मुलाक़ात कर चुके हैं और भड़ास को समर्थन दे चुके हैं तो फिर आपको बेवजह इन मामलों में टांग अड़ाने (पहली टिपण्णी के हिसाब से आपने टांग अडाई और दूसरी के हिसाब से आपने हाथ डाला) की जरूरत क्या है. ऊपर से आप अपनी बात स्पष्टता से नहीं कहते. और आप ‘कुछ’ लेख और टिप्पणियां लिखकर ग़लत लोगों का समर्थन करते हैं और वह भी अप्रतक्ष्य.
    आपकी हिम्मत कैसे हुई ऐसा करने की? उन बातों पर बोलने की जिनपर परमेन्दर जी पहले ही बोल चुके हैं.
    आपने ऐसा क्यों किया? महोदय,
    किसी बात को कहने का साहस होना चाहिऐ, जो आप में नही है, अगर आपको कोई बात कहनी होती तो आप अपने नाम से कहते अपनी वास्‍तुस्थिति छिपा कर न कहते है। जहाँ तक मै पहली टिप्‍पणी की थी वह रात करीब रात 12 बजे के बाद की थी, और वह मेरे उग्र स्‍वाभाव के कारण की गई थी और दूसरी करीब 12 घन्‍टे के बाद शान्‍त मन से।
    फुरसतिया जी, एक सम्‍मानित लेखक है, और उनकी बात में दम होता है, अगर कोई कितना भी हठी क्‍यो‍ न हो किन्‍तु इनकी बात अस्‍वीकार नही कर सकता है, उनमें मेरा नाम भी आप जोड़ सकते है। फुरसतिया जी से मेरी कुछ जगह मतभेद रहते है किन्‍तु कोई मनभेद नही है।
    जहॉं तक बोलने की बात है तो मै और फुरसतिया जी अपने नाम से बात करते है और आपको अपनी बात कहने के लिये बेनामी की की चादर ओड़नी ओड़ कर करनी पड़ती है। बेनामी की चादर उतार कर देखों, आप को अपनी वास्तिविकता का पता चलेगा।
    जहॉं तक मेरा समर्थन यशवंत जी को था भड़ास को नही, भड़ास की भाषा का खुले आम निन्‍दा की है और करता रहूँगा।
  23. मनीष
    जैसा मैंने पढ़ा – आपने बहुत सुंदर और स्पष्ट रूप से कहा है – व्यक्ति पर नही मुद्दे पर बात की है – संस्कारों की रक्षा सही बात है – मैं भी उम्मीद करता हूँ अच्छाई की बुद्धि बढेगी – नंदन जी की पंक्तियाँ बड़ी सामयिक हैं बाकी सब आदिम गंधों का फरेब है – सादर -मनीष
  24. सुभाष नीरव
    आपने बेहद शालीन ढ़ंग से बहुत सार्थक और दमदार बात कही है।
  25. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176

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