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ब्लागिंग -सामर्थ्य और सीमा
By फ़ुरसतिया on April 3, 2008
ब्लागिंग की दुनिया में आये चार साल होने को आये।
शुरुआती दिनों में जब हम कोई पोस्ट लिखते थे तो देखते थे कि कहीं कोई गलती न रह जाये। पहले कागज पर लिखते तब टाइप करते।
धीरे-धीरे अभ्यास छूट गया। हम जड़मति थे। अभ्यास छोड़कर सुजान बन गये।
सीधे नेट प्रैक्टिस करने लगे। टाइप किया और पोस्ट कर दिया। इसके बाद पलटकर शायद पोस्ट पढ़ना भी बन्द कर दिया। मात्रा , व्याकरण की गलतियां जस की तस बनी रहती हैं ब्लाग पर। अब तो अखरती भी नहीं। बेशरम टाइप हो गये हैं।
बहरहाल, वो सब तो अपनी कहानी है। बात ब्लागिंग की कर रहे थे।
कल राजीव टंडन से बात हो रही थी। कह रहे थे कि देखते हैं कि पुरानी पोस्टों को कोई बांचता नहीं है।
जो दो-चार दिन में बांच ली गयीं वे बंच गयीं। बाकी ऐसे ही पड़ी रहती हैं अनपढ़ी। बंचने से मतलब उनका टिप्पणियों से होगा। कि जो टिप्पणियां शुरू की आ गयीं वे आ गयीं वर्ना उसके बाद दुकान बन्द।
यह बात नियमित पाठकों के लिये हैं। जो नये पाठक मिलते हैं वे अक्सर पुरानी पोस्टों से ही मिलते हैं। हमारी प्रमोद तिवारी के बारे में लिखी गयी पोस्ट को उन्होंने लिखने के साल भर बाद पढ़ा और टिपियाया।
यह शायद ब्लाग की तात्कालिकता की प्रवृत्ति के कारण है। दो दिन बाद पोस्ट बासी हो जाती है। फिर उसे कोई नहीं पढ़ता। न लिखने वाला न कोई पाठक।
पढ़ने का दबाब भी विकट चीज है। आप किसी एग्रीगेटर में देखते हैं। जो पोस्टें ताजी होती हैं उनको आप देख लेते हैं। जो पोस्टें आपके पसंदीदा लेखकों /मित्रों की होती हैं उनको पढ़कर व्यवहार निभा देते हैं। कुछ में हंसी-खिलखिलाहट, कुछ में गरमाहट और कुछ में उकताहट ठेल कर आगे बढ़ लेते हैं।
जब आप कोई पोस्ट पढ़ रहे होते हैं तो बगल की खिड़की में खुली दूसरी पोस्ट भी आपके दिमाग में दस्तक देती रहती है। पढ़ी जाने वाली पोस्ट को धकियाती है- चल हट मुई। हमें भी पढ़ने के लिये समय तो दे इनको। वर्ना ये चले जायेंगे दफ़्तर और हम रह जायेंगे अनपढ़े।
इस बात को लोग समझते हैं। समझने लगे हैं। छोटी-छोटी ज्ञानदत्तीय या आलोक पुराणकीय पोस्ट शायद आदर्श साइज है पढ़े जाने के लिये। एक आध फोटो और तीन चार सुधड़ पैराग्राफ़ में अपने मतलब की बात कह के किनारे हो लो।
हम फ़ुरसतिये टाइप के लोग लंबी पोस्ट लिखने के आदी थे । छोटे लेख लिखने के लिये मजबूर हो जाते हैं। शार्ट एन्ड स्वीट के चक्कर में अपने को सीमित करना पड़ता है। ऐसा लगता है बेलबाटम पहने के आदी व्यक्ति को बरमूडा पहना के सड़क पर दौड़ा दिया जाये।
ऐसा नहीं है कि लम्बे लेख ठेलने का मन नहीं होता। होता है और जब समय मिलेगा वही होगा। लेकिन समय का अभाव मुआ ऐसा है कि मन की नहीं कर पाते। मन लंबी पोस्टों में ही रमता है।
तमाम लोगों के अच्छे-अच्छे , बेहतरीन लेख बिन पढ़े रह जाते हैं। बिन टिपियाये भी।
समझदार लेखक पाठकों के लिहाज से समय भी तय करके लिखते हैं। अपने लेख सबेरे -सबेरे पोस्ट करते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा पाठक पढ़ सकें। वैसे सुबह-सबेरे का समय तब से आदर्श हुआ है जब से भारत में ब्लागिंग करने वालों की संख्या बढ़ी है। शुरुआत में जब ज्यादातर लिखने-पढ़ने वाली प्रवासी हिंदी भाषी, ज्यादातर अमेरिका से, ब्लागर मैदान में थे तो रात में पाठक ज्यादा आते थे ब्लाग पर।
अब देखिये, दुकान जाने का समय हो गया लेकिन पोस्ट पूरी न हो पायी। क्या कहना चाहते थे क्या लिखते गये।
हम कहना शायद यह चाहते थे कि तात्कालिकता ब्लागिंग की सामर्थ्य है और यही इसकी सीमा भी।
लेकिन कह नहीं पाये कायदे से। फ़िर भी पोस्ट ठेल रहे हैं।
यह क्या है ? बेशर्मी या तात्कालिकता ?
बूझिये न ! बताइये भी।
Posted in बस यूं ही | 21 Responses
रोज का लेखन वन डे वाला है, छोटा होना मंगता। बड़का टाइप का लेखन उपन्यास या कहानी में हो सकता है। पर उसे लिखने वाला फुरसतिया और पढ़ने वाला तो विकट ही फुरसतिया चाहिये, जो अब बहुत कम होते हैं।
अब बहुत जल्दी एसएमएस उपन्यास का दौर आने वाला है। तब डायलाग यूं होंगे
-हां जी फुरसतियाजी मेरा उपन्यास पढ़ लिया क्या।
नहीं पढ़ा, इत्ता लंबा लिखोगो तो कौन पढ़ेगा, पूरी आठ लाइन का उपन्यास लिखा है, तुमने। हमसे ना पढ़ा जायेगाजी।
main to aajkal raat 12 ke aas pas post karta hun.. jisase USA aur bharat dono ke hi log jyada padhen..
aur jo lambi post hoti hai use main 2 bhaag me baant deta hun..
आप बरमूडा लिखें या बेलबाटॉम या लंगोट, सब मस्त लगता है।
फुरसतिया की पोस्ट छोटी हो या मोटी (ध्यान रहे, छोटी-मोटी नही लिखा), पढने के लिए पाठकों की कमी नही रहेगी कभी। बशर्ते मतलब समझाने के लिए फुरसतिया चैट पर मौजूद रहें।
पुरानी पोस्टों के जरिए कभी-कभी लोग आते तो हैं। लेकिन, ज्यादातर तो नए पे ही मुंह मारते हैं। बासी खाने का जमाना भी नहीं रहा। हां, मिजाज से शराबी पाठक, ब्लॉगर पुरानी शराब की तरह पुरानी पोस्ट में ज्यादा मजा पा लेते हैं। विषय अच्छा है, हम भी बहुत छोटा नहीं लिख पाते। वैसे मेरी भी ये कोशिश जारी है।