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टिप्पणी_ करी करी न करी
By फ़ुरसतिया on July 2, 2008
दो दिन पहले ज्ञानजी ने अपनी पोस्ट में लिखा-
मोहल्ले वाले अविनाश ने अपने ब्लाग की काम भर की जगह में जो यहां नहीं आते आप वहां भी जायें
लिखकर प्रमोदजी, मनीषा, ज्ञानजी, अनिल रघुराज, ज्ञानजी, शिवकुमार मिश्र, सुजाता और हमारा माने अनूप शुक्ल का नाम लिख रहा है।
जहां तक मुझे याद है अविनाश ने मुझे जाहिल, कूपमंडूक और यथास्थितिवादी टाइप उपाधियां सस्नेह प्रदान की हैं। प्रमोद जी के लिये भी अभी लिखा वैसे भी अज़दकी बिलाड़ों का समूह ऐसी बहसों पर खाऊं खाऊं रहता है और भाषा में नकली छौंक से चमत्कार करने की कोशिश करता रहता है। ये कविता उन्हें असल देशज रोशनी दिखाएगी।
ये कैसा चरित्र है मीडिया से जुड़े लोगों का भाई कि जाहिलों, कूपमंडूकों के पास पब्लिक को खदेड़ रहे हैं। नकली भाषा की छौंक वाले का ब्लाग बांचने की सलाह दे रहे हैं। ई दुचित्तापन कैसा है जी?
अविनाश की बात तो ऐसे ही आ गयी लेकिन बात आम शिकायत की ही करना चाहते थे- आपने मेरे ब्लाग पर कमेंट नहीं किया क्या आप मुझसे नाराज हैं?
आपने मेरी मेल का जबाब नहीं दिया लगता है आप मुझसे खफ़ा हैं।
इसी तरह की और भी शिकायतें आपके अपने आपसे करते होंगे। शिकायत अपनों से ही की जाती है। इस स्वर्णिम सूत्र को थाम कर सारी शिकायतें उड़ेल दीजिये। शिकायत करना अपनापा प्रदर्शन का सबसे सरल उपाय है। हर्र लगे न फिटकरी अपनापा चोखा।
आपकी जो सबसे ज्यादा शिकायत करता है समझ लीजिये आपको सबसे ज्यादा चाहता।
यह हर जगह हो रहा है। हर आदमी अपने आप-पास से नाराज है। देश-समाज से परेशान है। शिकायत है हर एक को दूसरे से। यह शिकायत दूसरे के प्रति अपनापे का प्रतीक है। देश को दिलोजान से चाहने वाले ही देश के रेशे-रेशे के प्रति शिकायत रख सकते हैं।
कहां से कहां पहुंच गये। ज्ञान गली , मोहल्ला रोड से होते हुये देश का बखान होने लगा।
कहना सिर्फ़ हम यह चाहते थे कि (और हैं भी) कि टिप्पणी को अपने प्रति प्रेम का पैमाना न बनायें। बहुत लोग हैं जो आपसे बहुत खुश होंगे लेकिन आपके ब्लाग पर टिपियाते नहीं। टिप्पणी तो क्षणिक है जी। प्रेम शाश्वत है। आराम से प्रकट होगा।
हमारे तमाम दोस्त हैं जो मेरे ब्लाग पर टिप्पणी नहीं करते। लेकिन जब पढ़ते हैं जबरिया सलाह देते हैं। ये अच्छा है, वो कूड़ा है। ये क्यों लिखा, वो क्यों लिखा। बहुत दिन से मजेदार नहीं लिखा, टाइप्ड हो गया, इससे अच्छा लिखना बंद कर दो, अरे लिखना बंद क्यों कर दिया। अजब हो यार! हमने तो मजाक किया था।
अब ऐसे दोस्तों से हम शिकायत करें ,वो भी अपने ब्लाग पर, कि तुम मेरे ब्लाग पर कमेंट नहीं करते तो कित्ती अजब-गजब बात होगी। है कि नहीं?
बहुत दिन के अपने अनुभव से बताते हैं कि टिप्पणी किसी पोस्ट पर आयें या न आयें लिखते रहें। टिप्पणी से किसी की नाराजगी /खुशी न तौले। मित्रों के कमेंट न करने को उनकी नाराजगी से जोड़ना अच्छी बात नहीं है। मित्रों के साथ और तमाम तरह के अन्याय करने के लिये होते हैं। फ़िर यह नया अन्याय किस अर्थ अहो?
हमारे लिये टिप्पणी तो मन की मौज है। जब मन , मौका, मूड होगा -निकलगी। टिप्पणी का तो ऐसा है- टिप्पणी करी करी न करी।
पठनीय
अगर आपने यह लेख न पढ़ा हो तो अवश्य बांचे। ये लिखते हैं-
तकनीकी कारणों से वहां तारीफ़ न कर पायें यहीं कर दें। उन तक शायद पहुंच जायें।
कल घोस्ट बस्टर जी ने मेरी पोस्ट पर टिप्पणी नहीं की। शायद नाराज हो गये। मेरा उन्हे नाराज करने या उनके विचारों से टकराने का कोई इरादा न था, न है। मैं तो एक सम्भावना पर सोच व्यक्त कर रहा था। पर उन्हें यह बुरा लगा हो तो क्षमा याचना करता हूं। उनके जैसा अच्छा मित्र और टिप्पणीकार खोना नहीं चाहता मैं।इस पर घोस्ट बस्टर जी ने भी क्षमा की अर्जी ठेल दी और बोले-
सबसे पहले तो आपसे क्षमा मांग लें. आपके आज के शब्दों ने हमें वाकई शर्मसार कर दिया. कृपया ऐसा न कहें.क्षमा-क्षमा की ट्क्कर का कचरा अभी भी इस पोस्ट पर पड़ा है देख लीजिये।
मोहल्ले वाले अविनाश ने अपने ब्लाग की काम भर की जगह में जो यहां नहीं आते आप वहां भी जायें
लिखकर प्रमोदजी, मनीषा, ज्ञानजी, अनिल रघुराज, ज्ञानजी, शिवकुमार मिश्र, सुजाता और हमारा माने अनूप शुक्ल का नाम लिख रहा है।
जहां तक मुझे याद है अविनाश ने मुझे जाहिल, कूपमंडूक और यथास्थितिवादी टाइप उपाधियां सस्नेह प्रदान की हैं। प्रमोद जी के लिये भी अभी लिखा वैसे भी अज़दकी बिलाड़ों का समूह ऐसी बहसों पर खाऊं खाऊं रहता है और भाषा में नकली छौंक से चमत्कार करने की कोशिश करता रहता है। ये कविता उन्हें असल देशज रोशनी दिखाएगी।
ये कैसा चरित्र है मीडिया से जुड़े लोगों का भाई कि जाहिलों, कूपमंडूकों के पास पब्लिक को खदेड़ रहे हैं। नकली भाषा की छौंक वाले का ब्लाग बांचने की सलाह दे रहे हैं। ई दुचित्तापन कैसा है जी?
अविनाश की बात तो ऐसे ही आ गयी लेकिन बात आम शिकायत की ही करना चाहते थे- आपने मेरे ब्लाग पर कमेंट नहीं किया क्या आप मुझसे नाराज हैं?
आपने मेरी मेल का जबाब नहीं दिया लगता है आप मुझसे खफ़ा हैं।
इसी तरह की और भी शिकायतें आपके अपने आपसे करते होंगे। शिकायत अपनों से ही की जाती है। इस स्वर्णिम सूत्र को थाम कर सारी शिकायतें उड़ेल दीजिये। शिकायत करना अपनापा प्रदर्शन का सबसे सरल उपाय है। हर्र लगे न फिटकरी अपनापा चोखा।
आपकी जो सबसे ज्यादा शिकायत करता है समझ लीजिये आपको सबसे ज्यादा चाहता।
यह हर जगह हो रहा है। हर आदमी अपने आप-पास से नाराज है। देश-समाज से परेशान है। शिकायत है हर एक को दूसरे से। यह शिकायत दूसरे के प्रति अपनापे का प्रतीक है। देश को दिलोजान से चाहने वाले ही देश के रेशे-रेशे के प्रति शिकायत रख सकते हैं।
कहां से कहां पहुंच गये। ज्ञान गली , मोहल्ला रोड से होते हुये देश का बखान होने लगा।
कहना सिर्फ़ हम यह चाहते थे कि (और हैं भी) कि टिप्पणी को अपने प्रति प्रेम का पैमाना न बनायें। बहुत लोग हैं जो आपसे बहुत खुश होंगे लेकिन आपके ब्लाग पर टिपियाते नहीं। टिप्पणी तो क्षणिक है जी। प्रेम शाश्वत है। आराम से प्रकट होगा।
हमारे तमाम दोस्त हैं जो मेरे ब्लाग पर टिप्पणी नहीं करते। लेकिन जब पढ़ते हैं जबरिया सलाह देते हैं। ये अच्छा है, वो कूड़ा है। ये क्यों लिखा, वो क्यों लिखा। बहुत दिन से मजेदार नहीं लिखा, टाइप्ड हो गया, इससे अच्छा लिखना बंद कर दो, अरे लिखना बंद क्यों कर दिया। अजब हो यार! हमने तो मजाक किया था।
अब ऐसे दोस्तों से हम शिकायत करें ,वो भी अपने ब्लाग पर, कि तुम मेरे ब्लाग पर कमेंट नहीं करते तो कित्ती अजब-गजब बात होगी। है कि नहीं?
बहुत दिन के अपने अनुभव से बताते हैं कि टिप्पणी किसी पोस्ट पर आयें या न आयें लिखते रहें। टिप्पणी से किसी की नाराजगी /खुशी न तौले। मित्रों के कमेंट न करने को उनकी नाराजगी से जोड़ना अच्छी बात नहीं है। मित्रों के साथ और तमाम तरह के अन्याय करने के लिये होते हैं। फ़िर यह नया अन्याय किस अर्थ अहो?
हमारे लिये टिप्पणी तो मन की मौज है। जब मन , मौका, मूड होगा -निकलगी। टिप्पणी का तो ऐसा है- टिप्पणी करी करी न करी।
पठनीय
अगर आपने यह लेख न पढ़ा हो तो अवश्य बांचे। ये लिखते हैं-
अयं कः।अब बतायें ऐसा शोध लेख लिखने के बावजूद अनिल यादव की इस पोस्ट पर कोई टिपिया नहीं रहा है तो क्या लोग इनसे नाराज हैं।
अयं ब्लागरः
ब्लागरं किं करोति
कटपट-पश्यति-खटपट- पश्यति, क्लिकति पुनपुनः मूषकम्।
तकनीकी कारणों से वहां तारीफ़ न कर पायें यहीं कर दें। उन तक शायद पहुंच जायें।
चार घण्टे के लिये क्षमा क्षमा क्षमा क्षमा याचना।
ज्ञानजी, हमें पता है कि आपको क्षमा-वमा से मतलब नहीं है। आप मौज ले रहे हैं। क्षमा-वमा का हिसाब-किताब आपै करॊ। हमें तो उत्पात ही करनें दें।
तब तो हमरी भी शिकायत दर्ज़ की जाए . वरना जनता सोचेगी आत्मीयता नहीं है हममें . है जी है . लो कर दी शिकायत .
बाकी आपने सही लिखा है। सहमत है।
खुद तो पता नहीं कबसे मुझे टिप्पणी नहीं दी, अउर ईहाँ बापू आसाराम बन के पिंगल छाँट रहे हो !
रेशमी मसनद का टेक लगाय के विहँस विहँस माया का पाठ पढ़ाना कउन मुस्किल है ?
आजै नवा चौंचक सूट पहन के निकरो अउर कउनो मेहरिया कनखिओ से ना देखे , तो लौट के.. ई पाठ पढ़ायो !
आप ज्ञानी है, अनुभवी हैं और वस्तु स्थिति का विश्लेषण कर लेते हैं, इसीलिये इस शिकायत के माध्यम से सलाह चाह रहा था.
समीरजी, व्यक्तिगत वार्तालाप को सार्वजनिक करना अपनापा प्रदर्शन करने का उपाय है या नहीं यह इस बात पर निर्भर करता है कि व्यक्तिगत वार्तालाप कैसे, किससे, किस उद्देश्य से हुआ और उसको सार्वजनिक किस उद्देश्य से किया गया। अगर व्यक्तिगत वार्तालाप को सार्वजनिक करने से वार्ताकार को तकलीफ़ होती है तब तो यह निंदनीय भी कहलायेगा।
आपकी शिकायत जायज है। जो हुआ उसका पूरा निराकरण तो नही हो सकता लेकिन जित्ता हो सके उत्ते के लिये इस पोस्ट से व्यक्तिगत वार्तालाप हटा दिया। आपकी टिप्पणी भी इसी क्रम में संसोधित की गयी है।
एक के साथ एक फ़्री के मौसम में एक बात जिसको मानता हूं वह बता रहा हूं वह यह है कि अगर आप अपने अलावा किसी से बतिया रहे हैं तो यह समझकर बतियाइये कि सारी दुनिया से बतिया रहे हैं। अपने अलावा किसी से भी गयी बातें देर-सबेर लोगों को पता चल ही जाती हैं। इति श्री सलाह चर्चा।
आप लोग अपना सल्टियाते रहो, आओ पहले एक टिप्पणी ठेलो हमरे गली मा !
देखि लेयो, इसी बहाने आपका टिप्पणी संख्या यक ठईं अउर बढ़ा दिया, काहे अपना कर्ज़ा
बढ़ाये जा रहे हो ? ई कर्ज़वा तो सोनिया गाँधी माफ़ करे से रहीं !
अपने अपने तर्क सही हो सकते हैं,किंतु मेरा यह मानना है कि बिना सहमति कुछ भी सार्वज़निक
किया जाना उचित नहीं लगता । बात दीगर है कि जग जानता है कि चोली के पीछे क्या है, फिर भी चोली में खुल्लम-खुल्ला हाथ नहीं डाल देता । क्षमा करें, उपमा कुछ बेहूदी किसिम की लिख
गयी है, किंतु इस बक्से के नीचे से स्वानुभूति की याद भी तो दिलायी जा रही है । यही सही !
अभी दुबारा पढकर कह देते हैँ
- “उपस्थित ”
-लावण्या
‘शिकायत करना अपनापा प्रदर्शन का सबसे सरल उपाय है।’
दूसरा- अपने ५० बरस के हो गए तो बच्चों को काहे समझाते हैं कि खिलौना बेकार होता है। तनी खेल लेने दीजिए। ऊ खुदे समझ लेगा।
चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..हिन्दी.blogspot.com या हिन्दी.tk लिखिए जनाब न कि hindi.blogspot.com या hindi.tk
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