Wednesday, July 02, 2008

टिप्पणी_ करी करी न करी

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29 responses to “टिप्पणी_ करी करी न करी”

  1. Shiv Kumar Mishra
    लगता है आप मुझसे नाराज हैं. आपने मेरी पिछली तीन पोस्ट पर कमेन्ट नहीं किया….. :)
  2. Gyandutt Pandey
    सवेरे आपने टिप्पणी मना कर रखी थी, सो चार घण्टे की देर हो गयी टिप्पणी करने में।
    चार घण्टे के लिये क्षमा क्षमा क्षमा क्षमा याचना। :-)

    ज्ञानजी, हमें पता है कि आपको क्षमा-वमा से मतलब नहीं है। आप मौज ले रहे हैं। क्षमा-वमा का हिसाब-किताब आपै करॊ। हमें तो उत्पात ही करनें दें। :)
  3. प्रियंकर
    ‘शिकायत करना अपनापा प्रदर्शन का सबसे सरल उपाय है।’
    तब तो हमरी भी शिकायत दर्ज़ की जाए . वरना जनता सोचेगी आत्मीयता नहीं है हममें . है जी है . लो कर दी शिकायत .
  4. Abhishek Ojha
    चलिए अपना असमंजस दूर कर हम भी टिपण्णी कर ही देते हैं… वैसे हमें किसी से शिकायत नहीं है… जो हमारे यहाँ टिपण्णी करते हैं उनके लिए आभार जरूर है :-)
  5. parul
    टिप्पणी_ करी करी न करी ” satya vachan
  6. अजित वडनेरकर
    हमें तो जब से प्रमोदसिंह ने हड़काया है कि माई-बापू के रहते टिप्पणियों के लिए रोवत हो, सरम नहीं न आती ? सो तबसे टिप्पणी मोह से दूर हो गए। हम यही समझे है कि अनाथों की तरह टिप्पणियों का आसरा चाहना शोभा नहीं देता । यही प्रमोदबाबू समझाना चाहते थे।
    बाकी आपने सही लिखा है। सहमत है।
  7. डा०अमर कुमार
    चलो हटो भी ?
    खुद तो पता नहीं कबसे मुझे टिप्पणी नहीं दी, अउर ईहाँ बापू आसाराम बन के पिंगल छाँट रहे हो !
    रेशमी मसनद का टेक लगाय के विहँस विहँस माया का पाठ पढ़ाना कउन मुस्किल है ?
    आजै नवा चौंचक सूट पहन के निकरो अउर कउनो मेहरिया कनखिओ से ना देखे , तो लौट के.. ई पाठ पढ़ायो !
  8. संजय बेंगाणी
    शिकायत का मौका न देते हुए टिप्पणी कर रहा हूँ. पहले आपने ही टिप्पणी लेने से मना कर रखा था.
  9. समीर लाल
    शिकायत करना अपनापा प्रदर्शन का सबसे सरल उपाय है- इसी बात को मद्देनजर रखते हुए शिकायत है कि व्यक्तिगत वार्तालाप को सार्वजनिक करना भी क्या अपनापा प्रदर्शन का ही कोई उपाय है??
    आप ज्ञानी है, अनुभवी हैं और वस्तु स्थिति का विश्लेषण कर लेते हैं, इसीलिये इस शिकायत के माध्यम से सलाह चाह रहा था.
    समीरजी, व्यक्तिगत वार्तालाप को सार्वजनिक करना अपनापा प्रदर्शन करने का उपाय है या नहीं यह इस बात पर निर्भर करता है कि व्यक्तिगत वार्तालाप कैसे, किससे, किस उद्देश्य से हुआ और उसको सार्वजनिक किस उद्देश्य से किया गया। अगर व्यक्तिगत वार्तालाप को सार्वजनिक करने से वार्ताकार को तकलीफ़ होती है तब तो यह निंदनीय भी कहलायेगा।
    आपकी शिकायत जायज है। जो हुआ उसका पूरा निराकरण तो नही हो सकता लेकिन जित्ता हो सके उत्ते के लिये इस पोस्ट से व्यक्तिगत वार्तालाप हटा दिया। आपकी टिप्पणी भी इसी क्रम में संसोधित की गयी है।
    एक के साथ एक फ़्री के मौसम में एक बात जिसको मानता हूं वह बता रहा हूं वह यह है कि अगर आप अपने अलावा किसी से बतिया रहे हैं तो यह समझकर बतियाइये कि सारी दुनिया से बतिया रहे हैं। अपने अलावा किसी से भी गयी बातें देर-सबेर लोगों को पता चल ही जाती हैं। इति श्री सलाह चर्चा। :)
  10. sujata
    सही बात कही – टिप्पणी करी करी , न करी !
  11. abha
    कुछ तो करी, पंसद ही करी -अगर समय का आभाव हो तो मै तो ऐसा ही करती हूँ .
  12. समीर लाल
    आप तो सिरियस मोड में आ गये सलाह देते देते. :)
  13. anitakumar
    :) आज प्रवचन देने के मूड में हैं? सच है शिकायत अपनापन दिखाने का तरीका है , देखिए हम शिकायत कर रहे हैं कि आज हम प्रवचन सुनने के मूड में नहीं थे और “मेरी पंसद” भी नहीं डाला, कितना अपनापन दिखा रहे हैं, है न?
  14. डा० अमर कुमार
    ऎ भाई,
    आप लोग अपना सल्टियाते रहो, आओ पहले एक टिप्पणी ठेलो हमरे गली मा !
    देखि लेयो, इसी बहाने आपका टिप्पणी संख्या यक ठईं अउर बढ़ा दिया, काहे अपना कर्ज़ा
    बढ़ाये जा रहे हो ? ई कर्ज़वा तो सोनिया गाँधी माफ़ करे से रहीं !
    अपने अपने तर्क सही हो सकते हैं,किंतु मेरा यह मानना है कि बिना सहमति कुछ भी सार्वज़निक
    किया जाना उचित नहीं लगता । बात दीगर है कि जग जानता है कि चोली के पीछे क्या है, फिर भी चोली में खुल्लम-खुल्ला हाथ नहीं डाल देता । क्षमा करें, उपमा कुछ बेहूदी किसिम की लिख
    गयी है, किंतु इस बक्से के नीचे से स्वानुभूति की याद भी तो दिलायी जा रही है । यही सही !
  15. Manish Kumar
    टिप्पणी स्वतःस्फूर्त रहे तभी उसका असल आनंद है।
  16. प्रमोद सिंह
    अलहियाकानी, नाखूनतानी जबान में टिप्‍पणी करूं, चलेगा?या मुंहबिरानी बान में? लेकिन ठहरिये, अभी पंद्रह सवाल और हैं, उनको सलटाय लें, फिर तय करें आपके यहां टिपियाने पर कवन रूख लें..
  17. लावण्या
    हम तो ६ घँटे पूर्व आये थे तब आपका पन्ना खुल ही नहीँ रहा था –
    अभी दुबारा पढकर कह देते हैँ
    - “उपस्थित ” :)
    -लावण्या
  18. siddharth
    ऐसी टिप्पणी चर्चा पढ़कर तो मुझे अपना संतोषी मन ही ठीक लग रहा है। शुरू में थोड़ा खटकता था, लेकिन अबतो यह मान बैठा हूँ कि यह सब मेरे लिए नहीं है। हाँ आदरणीय ज्ञानजी का जो समर्पण मैने ब्लॉग जगत के प्रति देखा है उसके हिसाब से वे बेशुमार टिप्पणियों के अधिकारी हैं।
  19. Dr.Arvind Mishra
    आख़िर आपकी यह पोस्ट भी टिप्पणी ललचाऊ बन गयी !
  20. Sanjeet Tripathi
    हम तो इतने दिन बाद छुपते-छुपाते आए लेकिन टिप्पणी करने के मोह से बच न पाए ;)
  21. arvind mishra
    अनूप जी मैंने आपके इस पोस्ट को पढ़ा था और टिप्पणी भी की थी …..आप भूल गए न रियाया को !
  22. प्रवीण त्रिवेदी-प्राइमरी का मास्टर
    लगता है आप मुझसे नाराज हैं. आपने मेरी पिछली तीन पोस्ट पर कमेन्ट नहीं किया….. :)
    ‘शिकायत करना अपनापा प्रदर्शन का सबसे सरल उपाय है।’
  23. विवेक सिंह
    हमने तो करी और आपको भी करनी होगी ! कैसे नहीं करेंगे हमारी उधार है आप पर :)
  24. टिप्पणी का शास्त्र और मनोविज्ञान « उठो !जागो!
    [...] टिप्पणी_ करी करी न करी [...]
  25. टिप्पणी का शास्त्र और मनोविज्ञान भाग- एक « उठो !जागो!
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  26. टिप्पणी का शास्त्र और मनोविज्ञान भाग- एक « उठो! जागो!
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  27. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] टिप्पणी_ करी करी न करी [...]
  28. चंदन कुमार मिश्र
    पहिला बात तो ई इस ब्लाग-जगत में ब्लाग पर हर सप्ताह कोई-न-कोई लिख ही देता है।
    दूसरा- अपने ५० बरस के हो गए तो बच्चों को काहे समझाते हैं कि खिलौना बेकार होता है। तनी खेल लेने दीजिए। ऊ खुदे समझ लेगा।
    चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..हिन्दी.blogspot.com या हिन्दी.tk लिखिए जनाब न कि hindi.blogspot.com या hindi.tk
  29. चंदन कुमार मिश्र
    ‘उसके मष्तिष्क का प्रतिबद्धता भाग लुप्त हो जाता है, विवेक भाग उत्तरोत्तर क्षीण होता है, अपने वर्तमान स्तर की सुरक्षा व प्रगति हेतु चेष्टा करने वाला भाग ग्रीष्म के वायु की भांति प्रलयंकर हो जाता है। तो क्या निर्धन, विकलांग, स्त्रियां, बालक या पण्यविहीन वनों में रहने वाले संन्यासी ब्लागिंग नहीं कर सकते यदि करें तो उनके विचार कैसे होंगे?’……………………..हारमोनियम पर यह मिला।
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1 comment:

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