http://web.archive.org/web/20140419215429/http://hindini.com/fursatiya/archives/529
शौक बड़ी घर कुलिया मां
जबसे ये कहावत पढ़ी मौज आ गयी। लगता है हमारे लिये ही कही गई है। दुनिया में हर अच्छी चीज को अपने लिये समझना सहज मानव स्वभाव है। इसीलिये हम इसे अपना लिये। कोई जुर्म?
आज एक दोस्त से बतियाने लगे! बोले -बिटिया का एडमिशन करा दिया।
हम बोले- गुड है जी! जिम्मेदार बाप का नमूना पेश किया।
उइ बोले- जिम्मेदार बनने का हम कोई प्रयास नहीं करते। जिम्मेदारियां पता नहीं कहां-कहां से आके भिड़ जाती हैं।
हम बोले- तुम्हारी भी मरन-मौज है!
उइ बोले- इसमें कुछ लोच है। इसे खोलो, समझाओ, जरा खुलकर बताओ।
हम बोले- अरे बच्चा! मरन- माने जिम्मेदारी भिड़ गयी। मौज- माने निभ गयी।
उइ बोले- सही कहा। बढ़ाओ इस कविता को आगे।
हम-जिम्मेदारी निभाने में तो बज गई
जब निभ गई तो मौज भई।
उइ- सज गई पौवा बढ़ा
लोगों में हौवा बढ़ा।
हम-भिड़ी तो सबका गरियाइन
निभी तो चवन्नी का परसाद चढ़ाइन!
उइ- अब कुछ विषय परिवर्तन हो जाये,
लोकल बहुत कही, कुछ ग्लोबल हो जाये।
हम- सुना है अमेरिका की बजी पड़ी है
का सच्ची मां खटिया खड़ी है?
उइ- खटिया खड़ी का है, लुंज-पुंज है
है घना अंधेरा न कोई ज्योति पुंज है।
हम- अब इसका क्या कोई इलाज है?
या बढ़ता जायेगा ज्यों कोढ़ में खाज है?
बस्स। यहीं काव्य व्यवधान हो गया। हमारा मित्र वहां से उखड़ गया जिसे दुनिया हत्थे के नाम से जानती है। वह बोलने लगा -तुम ससुर कब तक इन पुराने बिम्बों की गोदी में खेलते रहोगे। कुछ नया-वया सोचो! कोढ़ में खाज, बखारी में अनाज, बिना सुर के साज, एक रुपया उधारी सौ रुपया ब्याज। कब तक इन चिर प्राचीन चिरकुट बिम्बों के बल पर कविता करते रहोगे? कुछ नया कहो।
हम बोले-गुरु तुमने हमारी कविता उखाड़ दी। भगवान तुम्हें कभी क्षमा नहीं करेगा। दूसरे हम इतने महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा कर रहे थे। अमेरिका की स्थिति पर चिंतित हो रहे थे। समाधान खोज रहे थे। तुमने व्यवधान उत्पन्न करे दिया। अब बताओ कैसे इस समस्या का हल होगा? कौन खोजेगा इसका हल?
वो बोले- कौन समस्या अमेरिका वाली? उसका हल चाहिये?
हम बोले- हां भाई, अगर वो निपट गयी तो समझ लो सब निपट गया।
वो बोला -बतायें उसका हल? किसी से बताओगे तो नहीं?
हम बोले-न जी हम कोई बताने के लिये थोड़े ही पूछ रहे हैं? हम तो स्वांताय सुखाय उस मसले का हल खोज रहे हैं। इससे निपटें तो विश्व की अन्न्यान्न समस्याओं पत दृष्टिपात किया जाये।
वो बोले- दुनिया की सारी समस्याओं का हल तुम्हारे इसी दृष्टिपात में छिपा हुआ है।
हमने किंचित चकित होते हुये कहा- अरे भाई तुम अनाम ब्लागरों की तरह चिरमुट टिप्पणियां न बुझाओ, जरा खुल के बताओ।
वो बोला- हमें अपने की तरफ़ लौटना होगा। हमें सीखना होगा कि कौन थे, क्या हो गये हैं और क्या होंगे अभी। जहां उधर की तरफ़ लौटे सब समस्याओं का हल तुम्हें ऐसे ही मिल जायेगा जैसे कि…।… जैसे कि ।… जैसे कि। अब क्या कहें?इसके आगे जो मन आये लगा लो।
हम बोले- यार तुम बहुत बड़े ज्ञानी कहलाने की क्षुद्र इच्छा के शिकार हो गये प्रतीत होते हो। इसीलिये इस अंदाज में बोल रहे हो ताकि तुम्हारी बातें कुच्छ समझ में नहीं आ रही हैं। जरा खुल के बताओ। वर्ना यहां चले जाऒ। मैं कोई मीडियम या कोई हल्का ही सही दूसरा ज्ञानी पकड़ लूंगा। यहां कोई ज्ञानियों का अकाल थोड़े ही पड़ा है- एक ढूंढो हजार मिलते हैं, बच के निकलो टकरा के चलते हैं।
वो बोला- दुनिया की सारी समस्यायों का हल रागदरबारी में बताया गया है। वैद्यजी कहते हैं- दुनिया के सारे झमेले ब्रह्मचर्य के नाश से पैदा होते हैं। दुनिया में सारी समस्याओं का राज ब्रह्मचर्य में छिपा है। अगर आपने ब्रह्मचर्य बचा लिया तो सब कुछ बचा लिया। ब्रह्मचर्य गंवा दिया तो सब कुछ गया हाथ से। यही सबके साथ हो रहा है। अमेरिका की खटिया इसी लिये खड़ी है क्योंकि उसने अपना ब्रह्मचर्य गंवा दिया है। जब किसी का ब्रह्मचर्य गुम जाता है तब वो खटिया का क्या करेगा? वो अपने आप खड़ी हो जाती है। चाहे वो खुद खड़ी करे या दूसरे खड़ी कर दें।
हम बोले-धत ससुर, तू भी क्या मसखरी करने पर उतर आया आज। हम सोचते थे कि इस समस्या का कालजयी हल खोजेंगे। और तुम ससुर हमको टहला दिये। सब टाइम खोटी कर दिये।
जाते-जाते वो बोला- मालजयी समस्याओं का कालजयी हल खोजोगे? इसी लिये कहा गया है-शौक बड़ी घर कुलिया मां।
शौक बड़ी घर कुलिया मां
By फ़ुरसतिया on September 24, 2008
जबसे ये कहावत पढ़ी मौज आ गयी। लगता है हमारे लिये ही कही गई है। दुनिया में हर अच्छी चीज को अपने लिये समझना सहज मानव स्वभाव है। इसीलिये हम इसे अपना लिये। कोई जुर्म?
आज एक दोस्त से बतियाने लगे! बोले -बिटिया का एडमिशन करा दिया।
हम बोले- गुड है जी! जिम्मेदार बाप का नमूना पेश किया।
उइ बोले- जिम्मेदार बनने का हम कोई प्रयास नहीं करते। जिम्मेदारियां पता नहीं कहां-कहां से आके भिड़ जाती हैं।
हम बोले- तुम्हारी भी मरन-मौज है!
उइ बोले- इसमें कुछ लोच है। इसे खोलो, समझाओ, जरा खुलकर बताओ।
हम बोले- अरे बच्चा! मरन- माने जिम्मेदारी भिड़ गयी। मौज- माने निभ गयी।
उइ बोले- सही कहा। बढ़ाओ इस कविता को आगे।
हम-जिम्मेदारी निभाने में तो बज गई
जब निभ गई तो मौज भई।
उइ- सज गई पौवा बढ़ा
लोगों में हौवा बढ़ा।
हम-भिड़ी तो सबका गरियाइन
निभी तो चवन्नी का परसाद चढ़ाइन!
उइ- अब कुछ विषय परिवर्तन हो जाये,
लोकल बहुत कही, कुछ ग्लोबल हो जाये।
हम- सुना है अमेरिका की बजी पड़ी है
का सच्ची मां खटिया खड़ी है?
उइ- खटिया खड़ी का है, लुंज-पुंज है
है घना अंधेरा न कोई ज्योति पुंज है।
हम- अब इसका क्या कोई इलाज है?
या बढ़ता जायेगा ज्यों कोढ़ में खाज है?
बस्स। यहीं काव्य व्यवधान हो गया। हमारा मित्र वहां से उखड़ गया जिसे दुनिया हत्थे के नाम से जानती है। वह बोलने लगा -तुम ससुर कब तक इन पुराने बिम्बों की गोदी में खेलते रहोगे। कुछ नया-वया सोचो! कोढ़ में खाज, बखारी में अनाज, बिना सुर के साज, एक रुपया उधारी सौ रुपया ब्याज। कब तक इन चिर प्राचीन चिरकुट बिम्बों के बल पर कविता करते रहोगे? कुछ नया कहो।
हम बोले-गुरु तुमने हमारी कविता उखाड़ दी। भगवान तुम्हें कभी क्षमा नहीं करेगा। दूसरे हम इतने महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा कर रहे थे। अमेरिका की स्थिति पर चिंतित हो रहे थे। समाधान खोज रहे थे। तुमने व्यवधान उत्पन्न करे दिया। अब बताओ कैसे इस समस्या का हल होगा? कौन खोजेगा इसका हल?
वो बोले- कौन समस्या अमेरिका वाली? उसका हल चाहिये?
हम बोले- हां भाई, अगर वो निपट गयी तो समझ लो सब निपट गया।
वो बोला -बतायें उसका हल? किसी से बताओगे तो नहीं?
हम बोले-न जी हम कोई बताने के लिये थोड़े ही पूछ रहे हैं? हम तो स्वांताय सुखाय उस मसले का हल खोज रहे हैं। इससे निपटें तो विश्व की अन्न्यान्न समस्याओं पत दृष्टिपात किया जाये।
वो बोले- दुनिया की सारी समस्याओं का हल तुम्हारे इसी दृष्टिपात में छिपा हुआ है।
हमने किंचित चकित होते हुये कहा- अरे भाई तुम अनाम ब्लागरों की तरह चिरमुट टिप्पणियां न बुझाओ, जरा खुल के बताओ।
वो बोला- हमें अपने की तरफ़ लौटना होगा। हमें सीखना होगा कि कौन थे, क्या हो गये हैं और क्या होंगे अभी। जहां उधर की तरफ़ लौटे सब समस्याओं का हल तुम्हें ऐसे ही मिल जायेगा जैसे कि…।… जैसे कि ।… जैसे कि। अब क्या कहें?इसके आगे जो मन आये लगा लो।
हम बोले- यार तुम बहुत बड़े ज्ञानी कहलाने की क्षुद्र इच्छा के शिकार हो गये प्रतीत होते हो। इसीलिये इस अंदाज में बोल रहे हो ताकि तुम्हारी बातें कुच्छ समझ में नहीं आ रही हैं। जरा खुल के बताओ। वर्ना यहां चले जाऒ। मैं कोई मीडियम या कोई हल्का ही सही दूसरा ज्ञानी पकड़ लूंगा। यहां कोई ज्ञानियों का अकाल थोड़े ही पड़ा है- एक ढूंढो हजार मिलते हैं, बच के निकलो टकरा के चलते हैं।
वो बोला- दुनिया की सारी समस्यायों का हल रागदरबारी में बताया गया है। वैद्यजी कहते हैं- दुनिया के सारे झमेले ब्रह्मचर्य के नाश से पैदा होते हैं। दुनिया में सारी समस्याओं का राज ब्रह्मचर्य में छिपा है। अगर आपने ब्रह्मचर्य बचा लिया तो सब कुछ बचा लिया। ब्रह्मचर्य गंवा दिया तो सब कुछ गया हाथ से। यही सबके साथ हो रहा है। अमेरिका की खटिया इसी लिये खड़ी है क्योंकि उसने अपना ब्रह्मचर्य गंवा दिया है। जब किसी का ब्रह्मचर्य गुम जाता है तब वो खटिया का क्या करेगा? वो अपने आप खड़ी हो जाती है। चाहे वो खुद खड़ी करे या दूसरे खड़ी कर दें।
हम बोले-धत ससुर, तू भी क्या मसखरी करने पर उतर आया आज। हम सोचते थे कि इस समस्या का कालजयी हल खोजेंगे। और तुम ससुर हमको टहला दिये। सब टाइम खोटी कर दिये।
जाते-जाते वो बोला- मालजयी समस्याओं का कालजयी हल खोजोगे? इसी लिये कहा गया है-शौक बड़ी घर कुलिया मां।
या बढ़ता जायेगा ज्यों कोढ़ में खाज है?
” wah bhut shee kha hai, great article to read in such a language, interesting”
Regards
ऐसे लोगों को लेकर समस्या के खेत में हल चलाने निकले थे
अमरीका के जले पर बर्नोल लगाने निकले थे
हमरी सुनिए और आप एक काम कीजिये
अगली फुर्सत मिलते ही हमें बुला लीजिये
हमदोनों मिलकर कविता को आगे ले जायेंगे
जहाँ से उन्होंने छोड़ा था, वही से से उठाएंगे
अमेरिका की समस्याओं को ख़तम कर देंगे
मिलकर पूरा झमेला ही दफ़न कर देंगे
धन्य हो फुरसतिया जी……..धन्य हो……सही ठिकाने लगाये हो….
इतना कर रहे हो सबको टीज़।
बढ़ रहा है लेप्रोसी में स्कैबीज़!
टाइप!
भली कही, गुरु आपने ?
पहले आपन देखा जाय.. दुनिया जाये रसातल में !
अबहिन आपन लिंग अउर गुट सत्यापित करवाय मा बिज़ी हन,
अब लौट के टीपाटिपी खेला जायी ?
देख्यौ ससुर का निकारि देत हैं, कउन भरोसा.. जनो लउंडिया बताय दियें…
तुम्हार तो मौज़ हुई जायी.. एकु गर्लफ़्रेन्ड पा जईहो, सेंत में !
ज्ञानदत्तौ सिफ़ारिश करे का दउड़ा रहे हैं,
अमरेका से बाद में निपटा जायी …
राम राम
का टिपआयें …
जय हो ! जय हो फुरसतिया जी | परमानंद आ गया “शौक बड़ी घर कुलिया मां।”
धन्यवाद
मिसरा जी का पढ़ के मौज आयी कि
“हमदोनों मिलकर कविता को आगे ले जायेंगे
जहाँ से उन्होंने छोड़ा था, वही से से उठाएंगे”
एक फिलिम देखे थे जिसमे मुकेश गाते हैं -
“हम दोनों मिलके कागज़ के दिल पे एक
चिट्ठी लिखेंगे जवाब आएगा”
तो देखें मिसिर और सुकुल कहाँ ले जाते हैं | अब ससुर, जहाँ भी लई जाएँ , मौज तो अइबे करी.
घोस्ट बस्टर जी, ऊ नासमझ हमहीं रहे, मौजै मौज में सुकुल से ‘मौजां ही मौजां’ कर लिए, कहो तो आपौ से लई लें , अगर कौनो अड़चन ना होय तो |
वैसे भी हम झाँखर हैं
राह चलते अरझते हैं |
सुकुल, कुलिया का मीनिंग बताय देव सबका कौनो कुलिया मा लई जाय के
- लावण्या
फॉर्मूला तो कालजयी ढूंढ कर लाये हैं. संसद में बिल पास करवा दिया जाए – कल से सारी समस्यायें हल!
धीरेन्द्र पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..चीनी हमला और फिल्म हकीकत का पुनरावलोकन
गूगल बाबा नाराज है हमारी आई.डी. नहीं दे रहे है
— हेमा दीक्षित