Friday, September 26, 2008

चुपाय रहव दुलहिन मारा जाई कउवा

http://web.archive.org/web/20140419214524/http://hindini.com/fursatiya/archives/530

25 responses to “चुपाय रहव दुलहिन मारा जाई कउवा”

  1. manvinder bhimber
    bahut sunder ……kothe utte kaa boldha , ajj mera veer aaega….je punjaabi ki kahawat hai….ise pad kar mujhe yaad aa gai….
  2. vipin
    achchi post
  3. डा. अमर कुमार
    चुपाय रहौ फ़ुरसतिया मारा जाई चिठेरा …
    कऊवे की इमेज़ काहे बिगाड़ रहे हो ? उसके इतने बुरे दिन तो नहीं कि
    ब्लागर का बुद्धिविलास विषय बने । यहाँ की काँव काँव में कऊव्वे की
    क्या गति होगी…. जरा विचार कर देखो गुरु ? उसे बख़्स दो, वही तो
    अब विरहिणी का एकमात्र संबल रह गया है !

    कागा सबतन खाइयो चुन चुन खाइयो मांस
    दो नैना मत खाइयो जिन पिया मिलन की आस

    मुंडेरी पर बैठा कऊव्वा देख रहा है, कि..
    पिया निर्मोहिया मोबाइल ही नहीं उठा रहे हैं !
    वहू का मा्ड्डाले की अपशगुनी बात करके करेजा झकझोरे दे रहो है !

  4. anil pusadkar
    सही कहा भैया। अब तो बस कवओ का ज़माना आ गया है, कोयल बेचारी का तो कोई नाम लेवा नही बचा।
  5. Dr.Arvind Mishra
    पितृपक्ष के आख़िरी दिन तक आख़िर किसी न किसी बहाने कौए ने अपनी सुधि आपको दिला ही दी -आदर दै दै बोलियत ,कागा नकबेसर ले भागा और जैसा कि आपने कौए को शकुन अपशकुन संदेशों का वाहक माना है .लेकिन जिस अर्थ में चुप रह दुलहिन का मामला है वह कौवे के आभूषणों -चमकती चीजों के प्रति बेतरह आकर्षण और उन्हें ले भागने की आदत से जुडा है -घर का कोई आभूषण इधर उधर हुआ नहीं कि शक कौवे पर गया -अगर वह न भी ले गया हो तो भी मानिनी की जिद पर मारा ही तो जायेगा बिचारा -वैज्ञानिकों ने भी कौए के इस आदतकी जांच परख कर इस पर सच्चाई की मुहर लगा दी है -वह अगर रानी का नौलखा ले कर भाग गया हो तो कोई आश्चर्य नहीं ! वह अपने घोसले को इन रंगबिरंगी चीजों से सजाता है -
    इतनी जोरदार पोस्ट के लिए अब कृपा कर एक मदद -गिरिराज किशोर जी का टेलीफोन नम्बर ,ई मेल और घर का पोस्टल अड्रेस देने का कष्ट करें .
    drarvind3@gmail.com
  6. संजय बेंगाणी
    शीर्षक आपने हिन्दी में समझा दिया तो अच्छा हुआ.
    पोस्ट का कद सही है :)
    वैसे काले कौए का स्थान काले मोबाइल ने ले लिया है.
  7. seema gupta
    ha ha ha bhut khub, vaise kauva ke image kub badlee hai, “jhut bole kauva katey” but aaj tk to kise ko bhee kauve ne kaataa hee nahe ha ha ha , bhut accha lga pdh kr”
    Regards
  8. Ghost Buster
    आप तो अलग ही अर्थ निकाल लिए इस गीत से. हमारी अल्पबुद्धि कुछ और ही कहती थी. हमारे पास है ये पूरा गीत. एक झलक दिखला देते हैं. कहें तो बाकी का पूरा भी आपको मेल करें. दो टुकडियां यहाँ दे रहे हैं. कुल सात हैं.
    —————————————–
    चुपाई मारो दुल्हिन
    मारा जाई कौआ.
    [१]
    दे रोटी?
    गयी कहाँ थी बड़े सबेरे
    कर चोटी?
    लाला के बाजार में,
    मिली दुअन्नी
    पर वह भी निकली खोटी,
    दिन भर सोयी,
    बीच बाजार में बैठ के रोई,
    सांझ को लौटी
    ले खाली झौआ.
    चुपाई मारो दुल्हिन
    मारा जाई कौआ.
    [२]
    दे धोती?
    दिन भर चरखा कात
    सांझ को क्यों रोती?
    सूत बेचकर
    पी आए घर में ताड़ी,
    छीन लँगोटी,
    काटी बोटी-बोटी,
    किस्मत ही निकली खोटी,
    ऊपर नेग मांगते हैं
    ये बाभन-नौआ.
    चुपाई मारो दुल्हिन
    मारा जाई कौआ.
    —————————————
  9. ताऊ रामपुरिया
    जिस बात को देखकर बहू रोने लगती है उसे देखकर बिटिया चहकने लगती है।
    कौवे के बहाने हमको तो बड़ी मनोरंजक और सटीक पोस्ट लगी ये ! धन्यवाद !
  10. kanchan
    hmm kauve ka hamare lok sangeet se bada gaharaa sambandha hai..! kabhi vo sandeshe le jaata hai, kabhi vo jevar jatte le jaata hai..! kabhi duae.n le jaata hai, aur kabhi galiya.n khata hai.
  11. सतीश सक्सेना
    अनूप भाई !
    रूहेलखंड में मुंडेर पर कौए के बोलने का अर्थ, किसी मेहमान के आगमन की पूर्व सूचना मानी जाती है !बहुत प्यारा लेख है !
  12. दीपक
    कौवा ने अपनी इमेज नही सुधारी ,अपनी इमेज कौवो जैसे हो रही है!!
  13. परमजीत बाली
    बढिया पोस्ट है।
  14. Abhishek Ojha
    “अरे बहू चुप हो जा, ये कौवा मारा जायेगा। ” मुझे तो लगा की मतलब होगा की चुप हो जा क्या टाँय-टाँय कर रही है, कौवे से भी बर्दाश्त नहीं हो रहा है ये तो अब… बेचारा कहीं मर ना जाय ! :D
    और कौवे बचे ही कहाँ है इमेज बचाने के लिए. यहाँ तो नहीं दीखते, हाँ कानपुर में बड़े दीखते थे… :-) शाम को हजारों की झुंड में हमारे कैम्पस के पेड़ों पर आते थे.
  15. mamta
    घर की छत पर कौवे के बोलने का मतलब की कोई मेहमान आएगा । और अगर कौवा किसे के सर पर बैठ जाए तो ये कहा जाता है की कुछ बुरा समाचार आएगा । खैर जो भी हो आपकी पोस्ट पसंद आई ।
    बाकी गीत पहले नही सुना ।
  16. anitakumar
    कौआ आ गया तो कोयल भी पीछे पीछे आती होगी, वो जिन्दा रहती है कि मरती है पहले वो देख लें फ़िर कुछ बोलेगें। वैसे एक बात ख्याल में आ रही है कि इस गीत में दुल्हिन और कौए के मरने की बात, प्रेमचंद जी की एक कहानी में भी बहू के हाथों बिल्ली मरने की बात थी। ये लड़कियां बहू बनते ही पशु पक्षियों के पीछे क्युं पड़ जाती है जी
  17. parul
    तुलसीदास का भजन है -
    बैठी सगुन मानवती माता
    कब अययही मोरे बाल कुसल घर
    कहहु काग फुरी बाता …
    लेख सुन्दर लगा !!!!
  18. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    घोस्ट बस्टर जी, पूरा गीत यहीं दे देते तो अच्छा होता। एक पोस्ट ही ठेल दीजिए।
    यह सास-बहू के बीच की नोंक-झोंक का गीत है।
    अनूप जी, आपको लोकसाहित्य का जो-जो याद आता जाय,उसे यहाँ ताजा कर डालिए। आगे की पीढ़ी आपको याद करेगी और धन्यवाद भी देगी।
    अच्छी पोस्ट।
  19. Dr .Anurag
    संजय जी ने सही कहा है अब काला मोबाइल कौवे का स्थान ले चुका है….वैसे भी कौवे अब इतने दिखते नही है…
  20. ज्ञानदत्त पाण्डेय
    अच्छा है, आप तो सास की इमेज सुधार कर्यक्रम में सन्नध प्रतीत होते हैं।
    मैं तो अवधी का एक लोक गीत याद करता हूं – हन्नी-हन्ना (तारामण्डल जो काफी रात गये दीखता है) उग आये हैं, कचपचिया (तारामण्डल) दूर जा चुका है। सास जी अब क्या मेरे लिये हांड़ी हिला कर देख रही हो। उसमें तो जो कुछ था, उसे कुत्ता खा कर जा चुका है। :-(
    :-)
  21. अशोक पाण्‍डेय
    ** इस बीच कौवे ने क्या अपनी इमेज सुधार ली है? **
    इस कहावत से तो यही लगता है- कौवा चले हंस की चाल :)
  22. राज भाटिया
    बहुत ही सुन्दर लिखा हे आप ने , साथ मे उस बात का अर्थ भी समझा दिया, आप का लेख समय के साथ हे, पहले लम्बा घुघंट होता था, आज की लडकिया बस उस घुंघट जितने कपडे को ही पहन कर खुश हे, जिसे पहले बुरा कहते थे आज वही इज्जत कहलाती हे, अच्छा कहलाता हे,पहले लडकी को हाथ लगाते ही सर फ़ोड दिये जाते थे, आज लडकी खुद ही हाथ लगवाती हे, आज कोवे हंस बन गये हे.
    धन्यवाद
  23. समीर लाल 'उड़न तश्तरी वाले'
    अगर सच में ऐसा हो जाये तो सारे हिन्दुस्तान की बहूऐं खुशी खुशी रोने को तैय्यार है उन ५४२ कव्वों को मारने जो संसद में बैठे कांव कांव कर देश की नीलामी लगवा रहे हैँ.
    यह आलेख साईज परफेक्ट है A4 टाइप. :)
    बहुत बेहतरीन लिखा है. बधाई.
  24. Raj Sinh (rajsinhasan vale)
    guru,
    aapka lekh padh hamesa kee hee tarah khush huye par lagata hai aap kauve ka sandarbh galat deyi baithe. kaua bolne se koyee aata hai ! dulhin ko chup karane me ek botal ghaslet hee kafee hai sas ke liye. vaise hamar confoosan to door karo.
    bachpan me suraiya se sune the…….
    MOREE ANTARIYA PE KAGA BOLE MORA JIYAA DOLE…….KOYEE Aa RaHaa HAI ……..aage tha…..
    more joban pe chayee umang re,mora tadpat hai bayan ang re…..
    par chodiye is umar me shringar ras se jyada hasya ras me maja aata hai……..CHILLAI RAHEE DULHIN MAR JAI KAUA??
  25. फ़ुरसतिया-पुराने लेख

1 comment:

  1. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी की कविता है

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