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ब्लागिंग मस्ती की पाठशाला है -आलोक पुराणिक
By फ़ुरसतिया on September 30, 2008
[आलोक पुराणिक
हिंदी व्यंग्य के जाने माने युवा लेखक थे। थे इसलिये क्योंकि पिछले दो साल
से ब्लागर भी हो लिये हैं। गत दस-बारह वर्षों से व्यंग्य लेखन में सक्रिय
आलोक पुराणिक से जब व्यंग्य लेखन के पहले के कामकाज के बारे में पूछा गया
तो जवाब मिला-'इससे पहले जो करते थे,उसे बताने में शर्म आती है, वैसे पत्रकारिता करते थे,अब भी करते हैं।'३०
सितम्बर,१९६६ को आगरा में जन्मे आलोक पुराणिक एम काम,पीएच.डी पिछले बारह
सालों से दिल्ली विश्वविद्यालय में कामर्स के रीडर हैं। आर्थिक विषयों के
लिए अमर उजाला, दैनिक हिंदुस्तान समेत देश के तमाम अखबारों में लेखन,
बीबीसी लंदन रेडियो और बीबीसीहिंदी आनलाइन के लिए बतौर आर्थिक विशेषज्ञ काम
किया है ।फिलहाल आजादी के बाद के हिंदी अखबारों की आर्थिक पत्रकारिता
परियोजना पर काम। हिंदी के तमाम पत्र-पत्रिकाओं में व्यंग्य लेखन, जिनमें
अमर उजाला, दैनिक जागरण, राष्ट्रीय सहारा, जनसत्ता, राष्ट्रीय
सहारा,जनसत्ता, नवभारत टाइम्स, दैनिक हिंदुस्तान, लोकमत,दि सेंटिनल, राज
एक्सप्रेस, दैनिक भास्कर, कादिम्बिनी आदि प्रमुख हैं। करीब एक हजार व्यंग्य
लेख प्रकाशित। एक व्यंग्य संग्रह नेकी कर अखबार में डाल-2004 में प्रकाशित,जिसके चार-पांच संस्करण पेपर बैक समेत प्रकाशित हो चुके हैं। इसी साल एक और किताब आई है- लव पर डिस्काऊंट। इसके अलावा तीन व्यंग्य संग्रह शीघ्र प्रकाश्य। आज तक टीवी चैनल के चुनावी कार्यक्रम-चुनावी कव्वालियां और हैरी वोटर बना रिपोर्टर का स्क्रिप्ट लेखन। सहारा समय टीवी चैनल के कार्यक्रम चुनावी चकल्लस, स्टार न्यूज टीवी चैनल और सब टीवी में कई बार व्यंग्य पाठ कर चुके आलोक पुराणिक पुरस्कारों के बारे में बताते हैं- चूंकि
अभी तक कोई पुरस्कार या सम्मान नहीं जुगाड़ पाये हैं,इसलिए अभी तक यह बयान
देते हैं कि पुरस्कारों या सम्मान के प्रलोभन से मुक्त होकर लिखा
है,पुरस्कार मिलने के बाद कहूंगा कि लेखन की स्तरीयता का अंदाज को पुरस्कार
से ही हो सकता है ना।पहले आलोक पुराणिक ने अपना चिट्ठा प्रपंचतंत्र शुरू किया था। लेकिन प्रपंच बहुत दिन तक जारी न रह सका। मजबूरन अपने नाम आलोक पुराणिक से लिखना शुरू किया लेकिन मुफ़्त का चंदन बहुत दिन तक न घिस पाये और अब आजकल अपनी दुकान जमा ली। तब से वे वहीं जमें हुये हैं।
पन्द्रह साल की उमर से लिखना शुरू करने वाले आलोक पुराणिक को लिखते-लिखते २७ साल हो लिये। इस लिहाज से उनका लेखन अब बालिग हो चुका है। वे जित्ते अच्छे लेख लिखते हैं टिप्पणी उससे कहीं अधिक मनभावन करते हैं। बल्कि सच तो यह है कि वे टिप्पणी अपने लेखन से बेहतर करते हैं। कुछ लोग कभी-कभी तो तो कहते हैं कि आलोक पुराणिक को ब्लाग लेखन के मुकाबले टिप्पणी लेखन पर ध्यान देना चाहिये। इस बारे में उनका कहना है कि धांसू टिप्पणी लेखन के लिये पोस्ट भी तो धांसू लिखी होनी चाहिये। वो ब्लाग जगत में दिखती नहीं। और जो दिखती हैं उस पर टिपियाते हुये संकोच होता है । लगता है कि अपने ही लेखन पर क्या वाह-वाही टिप्पणी करें? संस्कार रोकता है उनको।
संस्कार की बात चली तो बताते चलें कि आलोक पुराणिक आदमी चाहे जैसे हों लेकिन ब्लागर संस्कारी हैं। सीनियरिटी का फ़ुल लिहाज रखते हैं। दुनिया में हमसे तीन साल बाद आये तो ब्लागिंग में भी वरिष्ठता का लिहाज रखते हुये बाद में ही घुसे। राखी सावंत, मल्लिका सेहरावत और विपाशा वसु इनसे दोस्ती के लिये बेकरार रहती हैं लेकिन ये चाहते हैं कि पहले इनसे वरिष्ठ ज्ञानजी से उनकी दोस्ती हो तब ये उनसे हाथ मिलायें।
उनके मेसेंजर पर अक्सर मैंने अलग टाइप के संदेश देखे। एक दिन लिखा देखा- बुश को हड़का रहा हूं। पता चला वो बुश को अमेरिका की आर्थिक बदहाली के लिये साल भर से हड़काये जा रहे थे कि लापरवाही ठीक नहीं लेकिन उनकी समझ में न आया और आज पूरा अमेरिका आर्थिक मंदी झेल रहा है। एक दिन संदेश देखा -शर्म से मर गये। कारण पता चला कि इत्ता अच्छा लिखते हैं यह पढ़-पढ़ के हम शर्म से मरे जा रहे हैं।
महान लेखक की खासियत होती है कि उसके ऊपर आरोप लगे कि उसकी रचनायें चोरी की हैं। आलोक पुराणिक को भरोसा नहीं है कि दूसरे लोग उन पर आरोप लगायेंगे इसलिये वे इस मामले में बोल्ड एंड ब्यूटीफ़ुल अंदाज में खुद ही बताते रहते हैं कि उन्होंने अपनी रचनायें स्कूली बच्चों की कापियों से उड़ाई हैं।
व्यंग्य लेखन को अपनी गर्लफ़्रेंड तथा अर्थशास्त्र अध्यापन को अपनी घरैतिन मानने वाले आलोक पुराणिक का पूरा हफ़्ता अपनी गर्ल फ़्रेंड के साथ बीतता है। वे केवल इतवार के दिन सद्ग्रहस्थ की तरह अपने अध्यापन के विषय अर्थशास्त्र के साथ रहते हैं और पूरे मन के साथ रहते हैं।
आलोक पुराणिक कहते हैं कि’कम शब्दों में बड़ी बात कह पाये, वह व्यंग्य सटीक है’ । शायद इसीलिये वे हमको लगातार एकलाइना लिखने के लिये उकसाते रहते हैं। चिट्ठाचर्चा को दुबारा शुरू करने और उसे जारी रखने के लिये लगातार उकसाते रहने की साजिश में आलोक पुराणिक का फ़ुल हाथ है। जहां कुछ दिन बंद हुये ये कहते हैं- वन लाइनर किधर गये जी?
ग्राहक, मौत और आइडियों का कोई भरोसा नहीं होता, कहां और कब आ जायें मानने वाले आलोक रात में भी डायरी लेकर सोते हैं ताकि जैसे ही कोई आइडिया आये उसे फ़ौरन गिरफ़्तार करके डायरी-हवालात में ठेल दिया जाये और बाद में कायदे से उसका ट्रायल हो सके।
दो साल पहले आलोक पुराणिक से हुयी बातचीत मेंतमाम बातों का खुलासा हुआ था। इसके बाद जैसे-जैसे नियमित ब्लागर बनते गये उनसे बातचीत बढ़ी तो उनकी और पोलें खुलीं।
भारत में माइक्रो फ़ाइनेंसिंग की विकट संभावनायें हैं मानने वाले आलोक जल्दी ही माइक्रोफ़ाइनेंसिंग के मैदान में उतरने वाले हैं इसीलिये शायद देश की पदयात्रा उनके ड्रीम-एजेंडे में शामिल है।
आज आलोक पुराणिक का जन्मदिन है। इस अवसर पर उनसे कुछ सवाल पूछे गये। उन्होंने जो जबाब दिये वो मय सवालों के पेश हैं। आलोक पुराणिक को उनके जन्मदिन की अनेकानेक मंगलकामनायें देते हुये हम कामना करते हैं कि वे अपने लेखन में नित नये आयाम छुयें और मौका पाते ही तड़ से महान लेखक के पद पर कब्जा कर लें।]
जवाब-इतनी तरक्की हुई है कि कुछ विषय नये हाथ लग गये हैं। शिवराज पाटिल, आईपीएल वगैरह, वगैरह। दरअसल यह व्यंग्यकार औऱ कार्टूनिस्ट की तरक्की का दौर है। पूरी क्रिकेट टीम, पूरी भारत सरकार मेरे लिए ही काम करती है। वैसे अभी बहुत कुछ पढ़ना बाकी है, सीखना बाकी है। अभी नेट प्रेक्टिस चल रही है, लिखने की। लिखना अभी शुरु हुआ नहीं है।
२. ढाई साल में आप नामी ब्लागर हो लिये! कैसे रहे आपके ब्लागिंग के अनुभव?
जवाब-ये फर्जी सवाल है। नामी इस मुल्क में सिर्फ वो है, जो टीवी या फिल्म के परदे पर आता है। बोले तो खली, राखी सावंत और एक हसीना के साथ नाचते क्रिकेटर। नामी होने की गलतलफहमी नहीं है। हां ब्लागिंग के तजुरबे बेहतरीन रहे। आनलाइन चौपाल है यह। तरह तरह के लोग आते हैं। गरियाते हैं. बतियाते हैं। ब्रह्मांड के हर विषय पर राय रखते हैं। मस्ती की पाठशाला है। हर वैराइटी के लोग मिले हैं। ज्ञानजी हैं, तरह तरह का ज्ञान देते हैं। आपके वन लाइनर है। अजितजी शब्दों के बारे में बताते हैं। मैथिलीजी, सिरिलजी यूं ब्लागिंग नहीं करते, पर ये भी ब्लागिंग के जरिये मिले। और अब मेरे लिए बहुत बहुत कीमती सलाहकार हैं। ये मेरे बिल गेट्स हैं। कंप्यूटर प्राबलम निकट नहीं आवै, मैथिली-सिरिल जब नाम सुनावै, टाइप मामला हो लिया है। मसिजीवीजी मिले। अविनाशजी का मोहल्ला मिला। अनामदासजी मिले। सुजाताजी, नीलिमाजी मिलीं। मुंबई के युनुसजी मिले। पंगेबाजजी मिले। विनीत, साहित्यशिल्पी, लंबी लिस्ट है। एक नयी दुनिया मिली। फिर तरह के चाऊँ चाऊँ खाऊँ खाऊं है। फुल मौज है, चौराहा टाइप मामला है। जब मौज लेनी हो, निकल लो। आनलाइन चौराहा टाइप कुछ है ब्लागिंग। ब्लागिंग न होती, तो बहुत कुछ मिस कर रहा होता।
३. आप ब्लागिंग में अखबार में छपे हुये लेख ही पोस्ट करते हैं। कभी खास ब्लाग के लिये लिखने का मन नहीं होता? मतलब ऐसा कचरा जिसे अखबार में छापने से लोग इंकार कर दें और ब्लाग पर पोस्ट करना ही आपका अंतिम सहारा
हो?
जवाब-संडे को लिखे गये कई लेख सिर्फ और सिर्फ ब्लाग के लिए लिखे हैं। कचरे का विकट बाजार है, अपन को खतरा नहीं है।
४. ब्लाग जगत में आपके तमाम शब्द लोगों ने अपना लिये धांसू च फ़ांसू, घणा, हो लिए, आदि। कभी लोगों पर दावा ठोकने का मन करता है कि बिना अनुमति के ऐसा कैसे किया उन्होंने?
जवाब-पब्लिक स्पेस में कोई चीज आ गयी, तो वह सिर्फ लेखक की नहीं रहती। बल्कि कई बार खुशी होती है कि कुछ अपनी कलम से ऐसा हो गया है, जो लोगों को पसंद आ रहा है, इतना कि लोग अपना रहे हैं। सच कहूं तो खुशी ही होती है।
५. कुछ दिन पहले आपके मेसेंजर पर लिखा था- बुश को हड़का रहा हूं! किस बात पर हड़का रहे थे? वो माने कि नहीं? क्या उसका अमेरिका की मंदी से कुछ लेना-देना था?
जवाब-बुश को हड़काना छोड़ दिया, रोज ऐसे काम कर रहे हैं, कि हडकाना पडता था। फिर कह दिया कि भई अमेरिका को चौपट करने में आप आत्मनिर्भर हो ही लिये हैं, सो हमारे सहारे ना रहें। तब से उनके फोन नहीं ना आते।
६. आप मल्लिका सहरावत, राखी सावंत, हेलन के कुछ ज्यादा ही फ़ैन हैं। खुद भी फ़ैन हैं दूसरों को भी बना रहे हैं ऐसा क्यों है? क्या कारण इस फ़ैन बाजी का?
जवाब-मल्लिकाजी और राखीजी अपने आप में पूरी परिघटना हैं कई नयी ट्रेंड्स की। इनमें अपने वक्त की तस्वीर का एक हिस्सा झांकता है। हेलेनजी का अपना जमाना था। मैं फिल्में बहुत देखता हूं। उनसे बहुत कुछ सीखता हूं। राखीजी और मल्लिकाजी से बहुत कुछ सीखा है। वैसे अब तो ज्ञानदत्तजी भी मल्लिकाजी के फैन हो गये हैं। उन्होने भी प्रोग्रेस कर ली है।
७. दो साल पहले आप ब्लाग जगत में नये आये थे पसंदीदा ब्लाग बता न पाये थे। अब बतायें कौन हैं पसंदीदा ब्लाग( जिनको आप पढ़ते भी हैं)
जवाब-आपके वन लाइनर, जो बहुत अनियमित हैं। ज्ञानजी का ब्लाग। शिवजी का व्यंग्य वाला ब्लाग। मसिजीवीजी को पढ़ता हूं। अविनाशजी के मोहल्ले पर रोजाना एक दो चक्कर तो लगाता हूं। बल्कि सबसे पहले उन्ही का ब्लाग देखना शुरु किया था। कमल शर्माजी का ब्लाग, अनिताजी का ब्लाग। हालांकि ये नियमित नहीं हैं। चवन्नी चैप नियमित देखता हूं। कबाड़खाने में विकट कीमती माल है और सस्ते शेर का तो क्या ही कहना। दीप्ति दुबेजी का ब्लाग अपनी तरह का अलग ब्लाग है। चंद्रभूषणजी अरसे से गायब हैं, उनका इंतजार रहता है। बोधिसत्वजी का भी इंतजार है। और भी बहुत ब्लाग हैं, अभी एक झटके में याद नहीं आ रहे हैं। पंगेबाजजी भी बहुत दिनों से गायब हैं, किसी बड़े पंगे की तैयारी में हैं।
८. इत्ते दिन हो गये ब्लागिंग करते अभी तक आपका किसी से लफ़ड़ा नहीं हुआ।ऐसा कैसे हुआ? आपको इसका दुख नहीं होता? हीनभावना नहीं जागती।
जवाब-लफड़ात्मक मसलों के लिए आम तौर पर टाइम नहीं है। टाइम कम है, या तो एक्शन में लगा दो, या रियेक्शन में। लफड़े मूलत रियेक्शन में होते हैं। काम में लगे रहिये, कुछ होगा, तो काम रहेगा, नहीं होगा, तो लफड़े कितने भी कर लीजिये, काम नहीं रहेगा। लफड़ों में रस नहीं है, ना अपनों में ना दूसरों के। व्यंग्यकार अपने आप में भीषण लफड़ा होता है। उससे ही पार पाना मुश्किल है।
९. माइक्रो फ़ाइनेंन्सिंग के आपके ड्रीम प्रोजेक्ट का क्या हुआ?
जवाब-बहुत जल्दी 2009 में आपको इस पर कुछ गंभीर देखने को मिलेगा।
१०. देश में इस समय कौन से व्यंग्य लेखक हैं जिनको आप लोगों को पढ़ने की सलाह देते हैं?
जवाब-श्रीलाल शुक्लजी तो व्यंग्य के पितामह है, राग दरबारी पढ़ना हर व्यंग्यकार का धार्मिक, नैतिक कर्तव्य है। ज्ञान चतुर्वेदीजी, हरीश नवलजी के लिखे को पढ़ने की सलाह दूंगा। सुभाष चंदरजी को इसलिए पढ़ा जाना चाहिए कि उनसे पता चलता है कि बिना हास्य के व्यंग्य कैसे लिखा जाता है। शिवजी ने विकट वैराइटी पैदा की है, उनका अध्ययन बहुत जरुरी है। अंगरेजी में आर्ट बचवाल्ड अब नहीं रहे, पर उन्हे पढ़ने की सलाह दूंगा। मुश्ताक अहमद युसूफीजी को यूं मूलत उर्दू के हैं, पर उनका अनुवाद अब हिंदी में उपलब्ध है।
११. पदयात्रा वाले ड्रीम कब पूरे होंगे?
जवाब-एक लंबी छुट्टी के गुंताड़े में हूं., फिर चलेंगे। आप भी चलियेगा।
१२. दिल्ली ब्लागर मीट के बाद आपने कसम खाई थी कि अब किसी ब्लागर मीट में नहीं जायेंगे। उस कसम का क्या हुआ? अभी कायम है या भूल गये?
जवाब-उसके बाद किसी भी ब्लागर मीट में मैं नहीं गया।
१३. पहले आप अपने ब्लागपोस्ट पर खूब फ़ोटो लगाते थे। अब नहीं लगाते। क्यों?
जवाब-फोटो तलाशना, फिर लगाना, खासा टाइम खेंचू काम है। नयी दुलहन मेकअप में टाइम ज्यादा लगाती है, सो पहले बहुत लगाता था। अब खूसटत्व सा आण लाग रा है, सो फोटू ओटू का मेकअप कम ही होता है।
१४. आपकी नजर में आपकी गर्लफ़्रेन्ड (आपके व्यंग्य लेखन)के क्या हाल हैं? इसे कित्ता क्यूट और बनाने का मन है जब कह सकें तुमसा नहिं देखा?
जवाब-चल रहा है। रोज कुछ नया करने को मिल रहा है। अखबारों की कृपा है। अब कुछ काम टीवी के लिए नियमित करने का मन है। देखिये मौका कब मिलता है। व्यंग्य लेखन में पूरी जिंदगी लगाने के बाद भी शायद यह कहना मुश्किल होगा कि क्यूटत्व का एक स्तर हासिल कर लिया है। लगे रहे मुन्नाभाई की राह पर लगे रहना ही एकमात्र विकल्प है।
१५. सबसे पसंदीदा काम कौन सा लगता है आपको?
जवाब-पढ़ाना, पढ़ना और लिखना और आवारागर्दी। चारों को समान स्तर पर माना जा सकता है। हर लेखक को चारों काम जरुर करने चाहिए।
१६. अमेरिकन मंदी का भारत पर क्या असर पड़ सकता है?
जवाब-पड़ गया है। साफ्टवेयर उद्योग पर हार्ड मार पड़ गयी है। शेयर बाजार ठंड़े हैं। अमेरिकन मंदी लंबा समय लेगी। भारत की अर्थव्यवस्था हालांकि अमेरिकन अर्थव्यवस्था की तरह तो संकट में नही पड़ेगी, पर अमेरिका के डूबने से भारतीय अर्थव्यवस्था की तेजी तो थमेगी ही।
(आलोक पुराणिक से इसके पहले हुयी विस्तृत बातचीते के लिये देखिये- मस्त रहिये, अच्छी बातों में व्यस्त रहिये)
व्यंग्य संग्रह
प्रकाशक: राधाकृण प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड
7/31, अंसारी मार्ग, दरियागंज
नई दिल्ली-110 002
कीमत – 50 रुपये (2006 में)
२.लव पर डिस्काऊंट
व्यंग्य संग्रह
प्रकाशक-भावना प्रकाशन,
109-ए, पटपड़गंज, दिल्ली 110091
फोन-011-22756734
कीमत है 150 रुपये।
पन्द्रह साल की उमर से लिखना शुरू करने वाले आलोक पुराणिक को लिखते-लिखते २७ साल हो लिये। इस लिहाज से उनका लेखन अब बालिग हो चुका है। वे जित्ते अच्छे लेख लिखते हैं टिप्पणी उससे कहीं अधिक मनभावन करते हैं। बल्कि सच तो यह है कि वे टिप्पणी अपने लेखन से बेहतर करते हैं। कुछ लोग कभी-कभी तो तो कहते हैं कि आलोक पुराणिक को ब्लाग लेखन के मुकाबले टिप्पणी लेखन पर ध्यान देना चाहिये। इस बारे में उनका कहना है कि धांसू टिप्पणी लेखन के लिये पोस्ट भी तो धांसू लिखी होनी चाहिये। वो ब्लाग जगत में दिखती नहीं। और जो दिखती हैं उस पर टिपियाते हुये संकोच होता है । लगता है कि अपने ही लेखन पर क्या वाह-वाही टिप्पणी करें? संस्कार रोकता है उनको।
संस्कार की बात चली तो बताते चलें कि आलोक पुराणिक आदमी चाहे जैसे हों लेकिन ब्लागर संस्कारी हैं। सीनियरिटी का फ़ुल लिहाज रखते हैं। दुनिया में हमसे तीन साल बाद आये तो ब्लागिंग में भी वरिष्ठता का लिहाज रखते हुये बाद में ही घुसे। राखी सावंत, मल्लिका सेहरावत और विपाशा वसु इनसे दोस्ती के लिये बेकरार रहती हैं लेकिन ये चाहते हैं कि पहले इनसे वरिष्ठ ज्ञानजी से उनकी दोस्ती हो तब ये उनसे हाथ मिलायें।
उनके मेसेंजर पर अक्सर मैंने अलग टाइप के संदेश देखे। एक दिन लिखा देखा- बुश को हड़का रहा हूं। पता चला वो बुश को अमेरिका की आर्थिक बदहाली के लिये साल भर से हड़काये जा रहे थे कि लापरवाही ठीक नहीं लेकिन उनकी समझ में न आया और आज पूरा अमेरिका आर्थिक मंदी झेल रहा है। एक दिन संदेश देखा -शर्म से मर गये। कारण पता चला कि इत्ता अच्छा लिखते हैं यह पढ़-पढ़ के हम शर्म से मरे जा रहे हैं।
महान लेखक की खासियत होती है कि उसके ऊपर आरोप लगे कि उसकी रचनायें चोरी की हैं। आलोक पुराणिक को भरोसा नहीं है कि दूसरे लोग उन पर आरोप लगायेंगे इसलिये वे इस मामले में बोल्ड एंड ब्यूटीफ़ुल अंदाज में खुद ही बताते रहते हैं कि उन्होंने अपनी रचनायें स्कूली बच्चों की कापियों से उड़ाई हैं।
व्यंग्य लेखन को अपनी गर्लफ़्रेंड तथा अर्थशास्त्र अध्यापन को अपनी घरैतिन मानने वाले आलोक पुराणिक का पूरा हफ़्ता अपनी गर्ल फ़्रेंड के साथ बीतता है। वे केवल इतवार के दिन सद्ग्रहस्थ की तरह अपने अध्यापन के विषय अर्थशास्त्र के साथ रहते हैं और पूरे मन के साथ रहते हैं।
आलोक पुराणिक कहते हैं कि’कम शब्दों में बड़ी बात कह पाये, वह व्यंग्य सटीक है’ । शायद इसीलिये वे हमको लगातार एकलाइना लिखने के लिये उकसाते रहते हैं। चिट्ठाचर्चा को दुबारा शुरू करने और उसे जारी रखने के लिये लगातार उकसाते रहने की साजिश में आलोक पुराणिक का फ़ुल हाथ है। जहां कुछ दिन बंद हुये ये कहते हैं- वन लाइनर किधर गये जी?
ग्राहक, मौत और आइडियों का कोई भरोसा नहीं होता, कहां और कब आ जायें मानने वाले आलोक रात में भी डायरी लेकर सोते हैं ताकि जैसे ही कोई आइडिया आये उसे फ़ौरन गिरफ़्तार करके डायरी-हवालात में ठेल दिया जाये और बाद में कायदे से उसका ट्रायल हो सके।
दो साल पहले आलोक पुराणिक से हुयी बातचीत मेंतमाम बातों का खुलासा हुआ था। इसके बाद जैसे-जैसे नियमित ब्लागर बनते गये उनसे बातचीत बढ़ी तो उनकी और पोलें खुलीं।
भारत में माइक्रो फ़ाइनेंसिंग की विकट संभावनायें हैं मानने वाले आलोक जल्दी ही माइक्रोफ़ाइनेंसिंग के मैदान में उतरने वाले हैं इसीलिये शायद देश की पदयात्रा उनके ड्रीम-एजेंडे में शामिल है।
आज आलोक पुराणिक का जन्मदिन है। इस अवसर पर उनसे कुछ सवाल पूछे गये। उन्होंने जो जबाब दिये वो मय सवालों के पेश हैं। आलोक पुराणिक को उनके जन्मदिन की अनेकानेक मंगलकामनायें देते हुये हम कामना करते हैं कि वे अपने लेखन में नित नये आयाम छुयें और मौका पाते ही तड़ से महान लेखक के पद पर कब्जा कर लें।]
ब्लागिंग मस्ती की पाठशाला है
१.पिछली बार हुई थी तो आप कह रहे थे कि व्यंग्यकार बनने के प्रयास में हैं? इन ढाई सालों में क्या तरक्की हुई?जवाब-इतनी तरक्की हुई है कि कुछ विषय नये हाथ लग गये हैं। शिवराज पाटिल, आईपीएल वगैरह, वगैरह। दरअसल यह व्यंग्यकार औऱ कार्टूनिस्ट की तरक्की का दौर है। पूरी क्रिकेट टीम, पूरी भारत सरकार मेरे लिए ही काम करती है। वैसे अभी बहुत कुछ पढ़ना बाकी है, सीखना बाकी है। अभी नेट प्रेक्टिस चल रही है, लिखने की। लिखना अभी शुरु हुआ नहीं है।
ब्लागिंग
के तजुरबे बेहतरीन रहे। आनलाइन चौपाल है यह। तरह तरह के लोग आते हैं।
गरियाते हैं. बतियाते हैं। ब्रह्मांड के हर विषय पर राय रखते हैं। मस्ती की
पाठशाला है। हर वैराइटी के लोग मिले हैं।
२. ढाई साल में आप नामी ब्लागर हो लिये! कैसे रहे आपके ब्लागिंग के अनुभव?
जवाब-ये फर्जी सवाल है। नामी इस मुल्क में सिर्फ वो है, जो टीवी या फिल्म के परदे पर आता है। बोले तो खली, राखी सावंत और एक हसीना के साथ नाचते क्रिकेटर। नामी होने की गलतलफहमी नहीं है। हां ब्लागिंग के तजुरबे बेहतरीन रहे। आनलाइन चौपाल है यह। तरह तरह के लोग आते हैं। गरियाते हैं. बतियाते हैं। ब्रह्मांड के हर विषय पर राय रखते हैं। मस्ती की पाठशाला है। हर वैराइटी के लोग मिले हैं। ज्ञानजी हैं, तरह तरह का ज्ञान देते हैं। आपके वन लाइनर है। अजितजी शब्दों के बारे में बताते हैं। मैथिलीजी, सिरिलजी यूं ब्लागिंग नहीं करते, पर ये भी ब्लागिंग के जरिये मिले। और अब मेरे लिए बहुत बहुत कीमती सलाहकार हैं। ये मेरे बिल गेट्स हैं। कंप्यूटर प्राबलम निकट नहीं आवै, मैथिली-सिरिल जब नाम सुनावै, टाइप मामला हो लिया है। मसिजीवीजी मिले। अविनाशजी का मोहल्ला मिला। अनामदासजी मिले। सुजाताजी, नीलिमाजी मिलीं। मुंबई के युनुसजी मिले। पंगेबाजजी मिले। विनीत, साहित्यशिल्पी, लंबी लिस्ट है। एक नयी दुनिया मिली। फिर तरह के चाऊँ चाऊँ खाऊँ खाऊं है। फुल मौज है, चौराहा टाइप मामला है। जब मौज लेनी हो, निकल लो। आनलाइन चौराहा टाइप कुछ है ब्लागिंग। ब्लागिंग न होती, तो बहुत कुछ मिस कर रहा होता।
३. आप ब्लागिंग में अखबार में छपे हुये लेख ही पोस्ट करते हैं। कभी खास ब्लाग के लिये लिखने का मन नहीं होता? मतलब ऐसा कचरा जिसे अखबार में छापने से लोग इंकार कर दें और ब्लाग पर पोस्ट करना ही आपका अंतिम सहारा
हो?
जवाब-संडे को लिखे गये कई लेख सिर्फ और सिर्फ ब्लाग के लिए लिखे हैं। कचरे का विकट बाजार है, अपन को खतरा नहीं है।
४. ब्लाग जगत में आपके तमाम शब्द लोगों ने अपना लिये धांसू च फ़ांसू, घणा, हो लिए, आदि। कभी लोगों पर दावा ठोकने का मन करता है कि बिना अनुमति के ऐसा कैसे किया उन्होंने?
जवाब-पब्लिक स्पेस में कोई चीज आ गयी, तो वह सिर्फ लेखक की नहीं रहती। बल्कि कई बार खुशी होती है कि कुछ अपनी कलम से ऐसा हो गया है, जो लोगों को पसंद आ रहा है, इतना कि लोग अपना रहे हैं। सच कहूं तो खुशी ही होती है।
५. कुछ दिन पहले आपके मेसेंजर पर लिखा था- बुश को हड़का रहा हूं! किस बात पर हड़का रहे थे? वो माने कि नहीं? क्या उसका अमेरिका की मंदी से कुछ लेना-देना था?
जवाब-बुश को हड़काना छोड़ दिया, रोज ऐसे काम कर रहे हैं, कि हडकाना पडता था। फिर कह दिया कि भई अमेरिका को चौपट करने में आप आत्मनिर्भर हो ही लिये हैं, सो हमारे सहारे ना रहें। तब से उनके फोन नहीं ना आते।
६. आप मल्लिका सहरावत, राखी सावंत, हेलन के कुछ ज्यादा ही फ़ैन हैं। खुद भी फ़ैन हैं दूसरों को भी बना रहे हैं ऐसा क्यों है? क्या कारण इस फ़ैन बाजी का?
जवाब-मल्लिकाजी और राखीजी अपने आप में पूरी परिघटना हैं कई नयी ट्रेंड्स की। इनमें अपने वक्त की तस्वीर का एक हिस्सा झांकता है। हेलेनजी का अपना जमाना था। मैं फिल्में बहुत देखता हूं। उनसे बहुत कुछ सीखता हूं। राखीजी और मल्लिकाजी से बहुत कुछ सीखा है। वैसे अब तो ज्ञानदत्तजी भी मल्लिकाजी के फैन हो गये हैं। उन्होने भी प्रोग्रेस कर ली है।
मल्लिकाजी और राखीजी अपने आप में पूरी परिघटना हैं कई नयी ट्रेंड्स की। इनमें अपने वक्त की तस्वीर का एक हिस्सा झांकता है।
७. दो साल पहले आप ब्लाग जगत में नये आये थे पसंदीदा ब्लाग बता न पाये थे। अब बतायें कौन हैं पसंदीदा ब्लाग( जिनको आप पढ़ते भी हैं)
जवाब-आपके वन लाइनर, जो बहुत अनियमित हैं। ज्ञानजी का ब्लाग। शिवजी का व्यंग्य वाला ब्लाग। मसिजीवीजी को पढ़ता हूं। अविनाशजी के मोहल्ले पर रोजाना एक दो चक्कर तो लगाता हूं। बल्कि सबसे पहले उन्ही का ब्लाग देखना शुरु किया था। कमल शर्माजी का ब्लाग, अनिताजी का ब्लाग। हालांकि ये नियमित नहीं हैं। चवन्नी चैप नियमित देखता हूं। कबाड़खाने में विकट कीमती माल है और सस्ते शेर का तो क्या ही कहना। दीप्ति दुबेजी का ब्लाग अपनी तरह का अलग ब्लाग है। चंद्रभूषणजी अरसे से गायब हैं, उनका इंतजार रहता है। बोधिसत्वजी का भी इंतजार है। और भी बहुत ब्लाग हैं, अभी एक झटके में याद नहीं आ रहे हैं। पंगेबाजजी भी बहुत दिनों से गायब हैं, किसी बड़े पंगे की तैयारी में हैं।
८. इत्ते दिन हो गये ब्लागिंग करते अभी तक आपका किसी से लफ़ड़ा नहीं हुआ।ऐसा कैसे हुआ? आपको इसका दुख नहीं होता? हीनभावना नहीं जागती।
जवाब-लफड़ात्मक मसलों के लिए आम तौर पर टाइम नहीं है। टाइम कम है, या तो एक्शन में लगा दो, या रियेक्शन में। लफड़े मूलत रियेक्शन में होते हैं। काम में लगे रहिये, कुछ होगा, तो काम रहेगा, नहीं होगा, तो लफड़े कितने भी कर लीजिये, काम नहीं रहेगा। लफड़ों में रस नहीं है, ना अपनों में ना दूसरों के। व्यंग्यकार अपने आप में भीषण लफड़ा होता है। उससे ही पार पाना मुश्किल है।
९. माइक्रो फ़ाइनेंन्सिंग के आपके ड्रीम प्रोजेक्ट का क्या हुआ?
जवाब-बहुत जल्दी 2009 में आपको इस पर कुछ गंभीर देखने को मिलेगा।
१०. देश में इस समय कौन से व्यंग्य लेखक हैं जिनको आप लोगों को पढ़ने की सलाह देते हैं?
जवाब-श्रीलाल शुक्लजी तो व्यंग्य के पितामह है, राग दरबारी पढ़ना हर व्यंग्यकार का धार्मिक, नैतिक कर्तव्य है। ज्ञान चतुर्वेदीजी, हरीश नवलजी के लिखे को पढ़ने की सलाह दूंगा। सुभाष चंदरजी को इसलिए पढ़ा जाना चाहिए कि उनसे पता चलता है कि बिना हास्य के व्यंग्य कैसे लिखा जाता है। शिवजी ने विकट वैराइटी पैदा की है, उनका अध्ययन बहुत जरुरी है। अंगरेजी में आर्ट बचवाल्ड अब नहीं रहे, पर उन्हे पढ़ने की सलाह दूंगा। मुश्ताक अहमद युसूफीजी को यूं मूलत उर्दू के हैं, पर उनका अनुवाद अब हिंदी में उपलब्ध है।
११. पदयात्रा वाले ड्रीम कब पूरे होंगे?
जवाब-एक लंबी छुट्टी के गुंताड़े में हूं., फिर चलेंगे। आप भी चलियेगा।
१२. दिल्ली ब्लागर मीट के बाद आपने कसम खाई थी कि अब किसी ब्लागर मीट में नहीं जायेंगे। उस कसम का क्या हुआ? अभी कायम है या भूल गये?
जवाब-उसके बाद किसी भी ब्लागर मीट में मैं नहीं गया।
१३. पहले आप अपने ब्लागपोस्ट पर खूब फ़ोटो लगाते थे। अब नहीं लगाते। क्यों?
जवाब-फोटो तलाशना, फिर लगाना, खासा टाइम खेंचू काम है। नयी दुलहन मेकअप में टाइम ज्यादा लगाती है, सो पहले बहुत लगाता था। अब खूसटत्व सा आण लाग रा है, सो फोटू ओटू का मेकअप कम ही होता है।
व्यंग्य
लेखन में पूरी जिंदगी लगाने के बाद भी शायद यह कहना मुश्किल होगा कि
क्यूटत्व का एक स्तर हासिल कर लिया है। लगे रहे मुन्नाभाई की राह पर लगे
रहना ही एकमात्र विकल्प है।
१४. आपकी नजर में आपकी गर्लफ़्रेन्ड (आपके व्यंग्य लेखन)के क्या हाल हैं? इसे कित्ता क्यूट और बनाने का मन है जब कह सकें तुमसा नहिं देखा?
जवाब-चल रहा है। रोज कुछ नया करने को मिल रहा है। अखबारों की कृपा है। अब कुछ काम टीवी के लिए नियमित करने का मन है। देखिये मौका कब मिलता है। व्यंग्य लेखन में पूरी जिंदगी लगाने के बाद भी शायद यह कहना मुश्किल होगा कि क्यूटत्व का एक स्तर हासिल कर लिया है। लगे रहे मुन्नाभाई की राह पर लगे रहना ही एकमात्र विकल्प है।
१५. सबसे पसंदीदा काम कौन सा लगता है आपको?
जवाब-पढ़ाना, पढ़ना और लिखना और आवारागर्दी। चारों को समान स्तर पर माना जा सकता है। हर लेखक को चारों काम जरुर करने चाहिए।
१६. अमेरिकन मंदी का भारत पर क्या असर पड़ सकता है?
जवाब-पड़ गया है। साफ्टवेयर उद्योग पर हार्ड मार पड़ गयी है। शेयर बाजार ठंड़े हैं। अमेरिकन मंदी लंबा समय लेगी। भारत की अर्थव्यवस्था हालांकि अमेरिकन अर्थव्यवस्था की तरह तो संकट में नही पड़ेगी, पर अमेरिका के डूबने से भारतीय अर्थव्यवस्था की तेजी तो थमेगी ही।
(आलोक पुराणिक से इसके पहले हुयी विस्तृत बातचीते के लिये देखिये- मस्त रहिये, अच्छी बातों में व्यस्त रहिये)
आलोक पुराणिक की किताबें:
१.नेकी कर अखबार में डालव्यंग्य संग्रह
प्रकाशक: राधाकृण प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड
7/31, अंसारी मार्ग, दरियागंज
नई दिल्ली-110 002
कीमत – 50 रुपये (2006 में)
२.लव पर डिस्काऊंट
व्यंग्य संग्रह
प्रकाशक-भावना प्रकाशन,
109-ए, पटपड़गंज, दिल्ली 110091
फोन-011-22756734
कीमत है 150 रुपये।
कुछ पंक्तियों की व्याख्या संदर्भित कर दीजिये,
हमने मोस्ट इम्पार्टेन्ट का गोलंडा लगा रखा है
….तो बताते चलें कि आलोक पुराणिक आदमी चाहे जैसे हों
क्या उनकी आदमियत पर शक किया जाने की संभावना भी है ?
….राखीजी और मल्लिकाजी से बहुत कुछ सीखा है
का सीखिन हैं भईय्या, हमहूँ का सिखावें तो जानी कि उनसे कछु सीख लायें हैं
… पहले इनसे वरिष्ठ ज्ञानजी से उनकी दोस्ती हो
ज्ञानजी का गरिष्ठ वर्ग से वरिष्ठ वर्ग में डिमोशन कब और कैसे हो गया ?
वह तो नियमित लदान की तरह पोस्ट भी लादे जा रहे हैं,
किसी वरिष्ठ ब्लागर को ऎसा करना भला शोभा देता है ?
…मौका पाते ही तड़ से महान लेखक के पद पर कब्जा कर लें।
यह कैसी दुआ है भाई, सीधे सीधे चुक जाने का संदेश ?
पुराणिक जी को हमारी बासी शुभकामना पुष्प अग्रसारित करते हुये,
कृपा कर दास को शंकानिवृत होने में सहायता करें…
parichaye karane ke liye dhanayavad
साक्षात्कार पढ़ना अच्छा लगा, अब उनकी किताबें भी पढ़ना है. अगली यात्रा में जुगाडे़गे.
पुराणिक जी को बहुत अगड़मी-बगड़मी मुबारक! वैसे वे तो हास्य-व्यंग से रोज जन्मदीमीय वातावरण बनाये रखते हैं। उनके नियमित ब्लॉग से हमें प्रसन्नता से दिन प्रारम्भ करने का बहुत सुन्दर उपाय मिलता है।
बहुत मुबारक।
एक दिन मैने ईनके मैसेन्जर पर देखा – लिखा था – अभी मर गये हैं……। अब शायद लिखा मिले – नही मरे तो अब मरेंगे शिवराज जी की कृपा से
जन्म दिन की बधाई आलोकजी।
वे इसी तरह लिखते रहें और हम उन्हें पढ़ते रहें।
खूब व्यंग्य लिखें और जन्मदिन मनायें।
केक की जगह व्यंग्य पढ़ायें।
31 सितम्बर 1966 है जन्म दिवस
पर मना एक दिन पहले लेते हैं
आप कल भी शुभकामनायें दे सकते हैं
वे भी स्वीकार की जायेंगी।
जो जो भी यहां टिप्पणी करेंगे
निश्चिंत रहें वे सब इनके अगले
व्यंग्यों के शिकार बनेंगे
पर ये न कलम से करेंगे
सिर्फ कीबोर्ड से शिकार करेंगे।
आलोक जी की ही कृपा है
जो आप देख रहे हैं
शेयर बाजार भी व्यंग्य बन गया है।
इंटरव्यू बहुत शानदार रहा. वे ऐसे ही लिखते रहें. हम उन्हें पढ़ते रहें. और मस्ती की पाठशाला कभी बंद न हो.
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सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणी नमोस्तुते॥
शारदीय नवरात्रारम्भ पर हार्दिक शुभकामनाएं!
(सत्यार्थमित्र)
साक्षात्कार घांसू च फांसू रहा..
आपकी इन पोस्ट को पढ़ कर सीनियर ( सिटिजन नही )
ब्लागर्स के बारे में हम बच्चों को अच्छी जानकारी मिल
जाती है ! कृपया यह इसी तरह जारी रखे , यह अनुरोध है !
सवाल दिलचस्प अंदाज में है ओर जवाब भी……परिचय भी देने का एक खास अंदाज है.
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सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणी नमोस्तुते॥
शारदीय नवरात्र में माँ दुर्गा की कृपा से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों। हार्दिक शुभकामना!
(हिन्दुस्तानी एकेडेमी)
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जब हम ने आगरा छोड तब यह साहिब आगरा मे पधारे(१९६६) थोडा पहले आते तो मिल लेते, आप के दुवारा इन के बारे जान कर अच्छा लगा. आप को नब रात्रो कॊ शुभकामाऎं.
धन्यवाद
आलोक जी के बारे में बहुत सुन चुका हूँ।
आज उनके बारे में इतना सब जानकर बहुत अच्छा लगा।
उनकी किताबें अवश्य खरीदकर पढ़ना चाहूँगा।
क्या ई मेल द्वारा इन किताबों के लिए ऑर्डर भेज सकता हूँ?
प्रकाशक का ई मेल आई डी जानना चाहता हूँ।
जन्म दिन पर आलोकजी को हार्दिक बधाई और हमारी शुभकामनाएं।