http://web.archive.org/web/20140419215957/http://hindini.com/fursatiya/archives/533
दफ़्तर में हमारे एक सहकर्मी हैं।
एक ही दफ़्तर में होने के बावजूद वे हमारे मित्र हैं।
बगल के कमरे में ही बैठते हैं इसलिये बहुत दिन से उनसे ’बातचीत’ नहीं हो पायी। आते-जाते कभी ’बात’ हुयी तो ’चीत’ रह गयी। ’चीत’ हुई तो ’बात’के लिये मौका नहीं मिला। आज सोचा उनके दफ़्तर में ही चल के’बातचीत’ की जाये।
गये तो देखा बैठे हैं। गुमसुम। चुप्प। फ़ाइलों ने मेज पर कब्जा कर रखा था। मेज मित्र की तरह असहाय सी पड़ी थी। मित्र चुप्पी का बोझ चेहरे पर लादे थे। मेज फ़ाइलें लादे थी।
पूछा -क्या हो रहा है गुरु! आज चिंतन मुद्रा में!! बड़े स्मार्ट दिख रहे हो!!! कोई खास बात!
बोले- कुछ नहीं- जरा बोर रहा था।
हम बोले- कोई काम नहीं है क्या जो बोर हो रहे हो?
वो बोले- काम तो बहुत है। ससुरे काम से ही तो बोर रहे हैं। इत्ता काम पड़ा है। करते-करते बोर हो रहे थे। काम करने से बोरियत में बाधा पड़ रही थी तो सोचा थोड़ा कायदे से बोर हो लें। काम तो होता ही रहता है। बोरियत के क्षण दुर्लभ होते हैं।
हमने पूछा- मुझे तो कभी बोरियत नहीं होती यार! तुम कैसे बोर हो लेते हो?
वो बोले- जैसे तुम बिना काम के व्यस्त रह लेते हो वैसे ही हम बोर लेते हैं। तुम्हें याद है न जब हम तुमसे मिलते थे तो पूछते थे- क्या बात है बहुत बिजी दिख रहे हो, कोई काम-धाम नहीं है क्या? तुमने व्यस्तता को पकड़ लिया हमने बोरियत को थाम लिया।
वो बोले- बोरियत भी तो हरेक पर मेहरबान नहीं होती। सुपात्र के पास जाती है। हर ऐरे-गैरे के पास जाने लगे तो उसका ’स्टेट्स’ क्या रह जायेगा? हम और तुम अगर दोनों ही बोर होने लगें तो फ़िर हमारे और तुम्हारे में अंतर क्या रह जायेगा?
हमें तड़ से बोर न हो पाने का हीनता बोध होना चाहिये था। लेकिन उनके दीन चेहरे को देखकर हमने अपने हीनता बोध को दबा दिया। उत्सुक मुद्रा में ही बने रहे। उत्सुक मुद्रा और हीनता बोध में अगर चुनाव की सुविधा हो तो मैं हमेशा उत्सुकता ही चुनता हूं। थोड़ी बेवकूफ़ी मिलाकर चेहरे पर उत्सुकता का लेप किया जाये तो चेहरा ऐसा चमकता है कि उसका वर्णन बड़े-बड़े कवि तक नहीं कर पाते। शोभा वरनि न जाय कह के पीछा छुड़ा लेते हैं।
’हीनता मोड’ में चेहरा लटक जाता है ’बेवकूफ़ी वाली उत्सुकता’ में उछलता सा रहता है। कभी-कभी तो इत्ता उछलता है कि अगर कंधे से जुड़ा न हो तो उछल के चांद पर पहुंच जाये।
बहरहाल, बात बोरियत की हो रही थी।
सो मित्र से वार्तालाप के बाद बोरियत के नये-नये आयाम खुले मेरे सामने।
बोरियत एक मानसिक स्थिति है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि जिसका मन हुआ वह बोर हो ले। कुछ खास मानसिक स्थिति वाले लोगों को ही बोरियत की सुविधा हासिल होती है।
इस तरह से दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं। बोरियत रेखा के नीचे वाले और बोरियत रेखा के ऊपर वाले। बोले तो बीबीएल( बिलो बोरियत लाइन) और एबीएल( एवव बोरियत लाइन)।
बीबीएल और एबीएल दूसरे के लिये उत्प्रेरक का काम करते हैं। बोर लोग बेबोर लोगों को देख के बोर हो लेते हैं। बेबोर लोग बोर लोगों को देख के कट लेते हैं(बोर नहीं होते जी, कट लेते हैं)।
जिनको लगता है कि बोर व्यक्ति दुखी प्राणी होता है वे नादान हैं। बोर व्यक्ति न दुखी होता है न सुखी होता है। बस होता है। होता है और धांस के होता है। बल्कि सच कहा जाये तो सुख-दुख के माया संसार से ऊपर उठ जाना ही बोर होना है।
दुनिया में जित्ते भी परिवर्तन हुये सब बोरियत के चलते हुये।
भगवान जब इकल्ले भगवानगिरी करते-करते बोर हो गये तो दुनिया बना डाली। चांद-सितारे। ग्रह-नक्षत्र। नदी -तालाब ।समुद्र -फ़मुद्र। अल्लम-गल्लम। अगड़म-बगडम। अटरम-सटरम। न जाने क्या-क्या बना डाले। कौन उनके टेंट का पैसा लगता है। उससे भी बोर हो गये तो जानवर -फ़ानवर बना दिये। उनसे ऊब गये तो इंसान बना दिया। इन्सान से बोर हुये तो शैतान बना दिये। सब कुछ बोरियत से बचने के लिये किया।
दुनिया में जो भी होता है सब बोरियत से बचने के लिये होता है।
आदमी बचपने से बोर होकर जवान हो जाता है, जवानी से बोर होता है तो बुढा जाता है, बुढापे से ऊबता है तो निपट लेता है।
कुंवारेपन से बोर होकर आदमी प्रेम करने लगता है। प्रेम गली में पड़े-पड़े बोर होता है तो शादी कर लेता है। शादी से ऊबता है तो लड़ने लगता है। लड़ने से ऊबता है तो भिड़ जाता है। लड़ने-भिड़ने से बोर होकर तलाक ले लेता है। तलाक लेकर फ़िर बोर होक्रर शादी के बारे में सोचने लगता है। सोचते-सोचते बोर होता है तो कर भी लेता है।
समाज लोगों से मिल कर बना है सो लोगों की बोरियत का असर समाज पर भी पड़ता है। आदमी आपस में प्यार से रहते-रहते बोर हो जाता है तो लड़ने लगता है। लड़ने से ऊबता है दंगा करने लगता है। दंगे से ऊबता है तो शांति अपना लेता है। शांति से बोर हुआ तो आतंकवाद अपना लिया। आतंकवाद से जी भरता है तो सुरक्षा के चक्कर में पड़ जाता है। हरेक की जांच, रोक-टोक। तमाम तरह की चिंतायें। अपने भाई से भी आदमी मिलने जाता है तो सोचता है बुलेट-फ़्रूफ़ जैकेट पहन ले। बोरियत जो न कराये।
दुनिया के सारे समीकरण के बोरियत के चलते बदलते हैं। अमेरिका दूसरे विश्वयुद्द में लड़ते-लड़ते बोर हो गया तो जापान में बम गिरा दिया। ७१ में पाकिस्तान लड़ते-लड़ते बोर हो गया तो हथियार डाल दिया। चीन/रूस समाजवाद लादे-लादे बोर हो गये तो पूंजीवादी हो लिये। आतंकवादी हवा में जहाज उड़ाते-उड़ाते बोर हो गये तो ट्विन-टावर में ठेल दिया। सेन्सेक्स उछलते-उछलते बोर होता है तो डूब जाता है। बैंके मुनाफ़ा कमाते-कमाते बोर होकर दीवालिया हो जाती हैं।
देश में सरकारें अकेले-अकेले चलते हुये बोर हो गयीं तो साझे में चलने लगीं। गठबंधन से बोर हुये तो समर्थन वापस ले लिया। वापसी से बोर हुये तो फ़िर समर्थन दे दिया। संसद में बहस से बोर हुये तो कहा-सुनी करने लगे। कहा-सुनी से मन ऊबा तो गाली-गलौज करने लगे। गाली-गलौज से बोर हुये तो जूतालात पर उतर आये। जूतालात से बोर हुये तो खरीद-बिक्री पर आ गये। यह सब किसी सिद्धांत और लालच के चलते नहीं हो रहा है! सिर्फ़ और सिर्फ़ बोरियत से बचने के प्रयास हैं।
बोरियत का सिद्धांत ब्लागिंग में भी लागू होता है। और बलभर लागू होता है। लोग दूसरों का ब्लाग पढ़ते-पढ़ते बोर हो जाते हैं तो खुद अपना ब्लाग खोल लेते हैं। अपना लिखते-पढ़ते बोर हो जाते हैं तो बंद कर देते हैं। बंदी से बोर होते हैं तो फ़िर लिखने लगते हैं। बड़ी पोस्ट से बोर होते हैं तो छोटी पर आ जाते हैं। छोटी से बोर होते हैं बड़ी ठेल देते हैं। नया लिखने से बोर होते हैं तो पुराना ठेल देते हैं। अकेले लिखते-लिखते बोर होते हैं तो समूह में लिखने लगते हैं। समूह से बोर हुये तो फ़िर अकेले हो गये। तारीफ़ करते-करत्ते बोर हुये तो बुराई करने लगे। बुराई से बोर हुये लड़ाई कर ली। लड़ाई से ऊबे फ़िर गल्ले लग गये। संकोच से ऊबे तो आत्मविज्ञापन करने लगे। फ़ुरसत से बोर हुये तो व्यस्त हो लिये। व्यस्तता से बोर हुये तो फ़िर फ़ुरसतिये हो लिये।
यह सब लिखते-लिखते हम बोर हो गये। इसलिये इसे पोस्ट कर दे रहे हैं।
आप भी पढ़ते-पढ़ते बोर हो गये होंगे सो टिपियाने लगिये।
लेकिन बोर होने से पहले आप यह देख लीजियेगा कि आप बोरियत की रेखा के ऊपर हैं कि नहीं। बिलो बोरियत लाइन के नीचे वालों के लिये इस पोस्ट से बोर होने का अधिकार नहीं है। उनको पहले बोरियत की रेखा के ऊपर आना होगा।
बोरियत जो न कराये
By फ़ुरसतिया on October 2, 2008
एक ही दफ़्तर में होने के बावजूद वे हमारे मित्र हैं।
बगल के कमरे में ही बैठते हैं इसलिये बहुत दिन से उनसे ’बातचीत’ नहीं हो पायी। आते-जाते कभी ’बात’ हुयी तो ’चीत’ रह गयी। ’चीत’ हुई तो ’बात’के लिये मौका नहीं मिला। आज सोचा उनके दफ़्तर में ही चल के’बातचीत’ की जाये।
गये तो देखा बैठे हैं। गुमसुम। चुप्प। फ़ाइलों ने मेज पर कब्जा कर रखा था। मेज मित्र की तरह असहाय सी पड़ी थी। मित्र चुप्पी का बोझ चेहरे पर लादे थे। मेज फ़ाइलें लादे थी।
पूछा -क्या हो रहा है गुरु! आज चिंतन मुद्रा में!! बड़े स्मार्ट दिख रहे हो!!! कोई खास बात!
बोले- कुछ नहीं- जरा बोर रहा था।
हम बोले- कोई काम नहीं है क्या जो बोर हो रहे हो?
वो बोले- काम तो बहुत है। ससुरे काम से ही तो बोर रहे हैं। इत्ता काम पड़ा है। करते-करते बोर हो रहे थे। काम करने से बोरियत में बाधा पड़ रही थी तो सोचा थोड़ा कायदे से बोर हो लें। काम तो होता ही रहता है। बोरियत के क्षण दुर्लभ होते हैं।
हमने पूछा- मुझे तो कभी बोरियत नहीं होती यार! तुम कैसे बोर हो लेते हो?
वो बोले- जैसे तुम बिना काम के व्यस्त रह लेते हो वैसे ही हम बोर लेते हैं। तुम्हें याद है न जब हम तुमसे मिलते थे तो पूछते थे- क्या बात है बहुत बिजी दिख रहे हो, कोई काम-धाम नहीं है क्या? तुमने व्यस्तता को पकड़ लिया हमने बोरियत को थाम लिया।
हर
तरफ़ बोरियत की पूछ है। देखो अखबार में, टीवी में , सिनेमा में सब तरफ़
बोरियत का ही बोलबाला है। जो जित्ता बड़ा बोर, उसका उत्ता बड़ा शोर!
हम बोले- यार व्यस्त आदमी की अजकल वकत कहां? हर तरफ़ बोरियत की पूछ है।
देखो अखबार में, टीवी में , सिनेमा में सब तरफ़ बोरियत का ही बोलबाला है। जो
जित्ता बड़ा बोर, उसका उत्ता बड़ा शोर! लेकिन तुम बताओ! तुमको कैसे मिली ये
बोरियत की नियामत?वो बोले- बोरियत भी तो हरेक पर मेहरबान नहीं होती। सुपात्र के पास जाती है। हर ऐरे-गैरे के पास जाने लगे तो उसका ’स्टेट्स’ क्या रह जायेगा? हम और तुम अगर दोनों ही बोर होने लगें तो फ़िर हमारे और तुम्हारे में अंतर क्या रह जायेगा?
हमें तड़ से बोर न हो पाने का हीनता बोध होना चाहिये था। लेकिन उनके दीन चेहरे को देखकर हमने अपने हीनता बोध को दबा दिया। उत्सुक मुद्रा में ही बने रहे। उत्सुक मुद्रा और हीनता बोध में अगर चुनाव की सुविधा हो तो मैं हमेशा उत्सुकता ही चुनता हूं। थोड़ी बेवकूफ़ी मिलाकर चेहरे पर उत्सुकता का लेप किया जाये तो चेहरा ऐसा चमकता है कि उसका वर्णन बड़े-बड़े कवि तक नहीं कर पाते। शोभा वरनि न जाय कह के पीछा छुड़ा लेते हैं।
’हीनता मोड’ में चेहरा लटक जाता है ’बेवकूफ़ी वाली उत्सुकता’ में उछलता सा रहता है। कभी-कभी तो इत्ता उछलता है कि अगर कंधे से जुड़ा न हो तो उछल के चांद पर पहुंच जाये।
बहरहाल, बात बोरियत की हो रही थी।
सो मित्र से वार्तालाप के बाद बोरियत के नये-नये आयाम खुले मेरे सामने।
बोरियत एक मानसिक स्थिति है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि जिसका मन हुआ वह बोर हो ले। कुछ खास मानसिक स्थिति वाले लोगों को ही बोरियत की सुविधा हासिल होती है।
इस तरह से दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं। बोरियत रेखा के नीचे वाले और बोरियत रेखा के ऊपर वाले। बोले तो बीबीएल( बिलो बोरियत लाइन) और एबीएल( एवव बोरियत लाइन)।
बीबीएल और एबीएल दूसरे के लिये उत्प्रेरक का काम करते हैं। बोर लोग बेबोर लोगों को देख के बोर हो लेते हैं। बेबोर लोग बोर लोगों को देख के कट लेते हैं(बोर नहीं होते जी, कट लेते हैं)।
बोर
व्यक्ति दुनिया का सबसे निष्क्रिय प्राणी होता है। वह न्यूटन के पहले नियम
का भक्त होता है। जैसा होता है, वैसा बना रहना चाहता है। न ऊधौ से लेना न
माधौ को देना। बस केवल और केवल बोर होना।
बोर होने के लिये आपको कुछ करना नहीं पड़ता है। न सुखी , न दुखी। न
परेशान न उदास। न हड़बड़ न बहदवास। न हैरान न हलकान। न सींकिया न पहलवान। बस
केवल आपको होना होता है। बोर व्यक्ति दुनिया का सबसे निष्क्रिय प्राणी होता
है। वह न्यूटन के पहले नियम का भक्त होता है। जैसा होता है, वैसा बना रहना
चाहता है। न ऊधौ से लेना न माधौ को देना। बस केवल और केवल बोर होना।जिनको लगता है कि बोर व्यक्ति दुखी प्राणी होता है वे नादान हैं। बोर व्यक्ति न दुखी होता है न सुखी होता है। बस होता है। होता है और धांस के होता है। बल्कि सच कहा जाये तो सुख-दुख के माया संसार से ऊपर उठ जाना ही बोर होना है।
मिशनरी बोरियत वाले लोग अपने लिये हर जगह से बोरियत निचोड़ लेते हैं।
सच्चे बोर लोग हर जगह बोर होने की वजह तलाश लेते हैं। काम करते हैं तो
काम से बोर हो जाते हैं। आरामतलब हैं तो आराम से बोर जाते हैं। सुखी हैं तो
सुख से बोर हो लिये। दुखी हैं तो दुख से बोर गये। देश प्रेमी हैं तो देश
की दशा देखकर बोर लिये। भक्त हैं तो समाज के अधर्म और पाप से बोर हो लिये।
नास्तिक हैं तो धर्म के धंधे को देख के बोर लिये। मिशनरी बोरियत वाले लोग अपने लिये हर जगह से बोरियत निचोड़ लेते हैं। दुनिया में जित्ते भी परिवर्तन हुये सब बोरियत के चलते हुये।
भगवान जब इकल्ले भगवानगिरी करते-करते बोर हो गये तो दुनिया बना डाली। चांद-सितारे। ग्रह-नक्षत्र। नदी -तालाब ।समुद्र -फ़मुद्र। अल्लम-गल्लम। अगड़म-बगडम। अटरम-सटरम। न जाने क्या-क्या बना डाले। कौन उनके टेंट का पैसा लगता है। उससे भी बोर हो गये तो जानवर -फ़ानवर बना दिये। उनसे ऊब गये तो इंसान बना दिया। इन्सान से बोर हुये तो शैतान बना दिये। सब कुछ बोरियत से बचने के लिये किया।
दुनिया में जो भी होता है सब बोरियत से बचने के लिये होता है।
आदमी बचपने से बोर होकर जवान हो जाता है, जवानी से बोर होता है तो बुढा जाता है, बुढापे से ऊबता है तो निपट लेता है।
कुंवारेपन से बोर होकर आदमी प्रेम करने लगता है। प्रेम गली में पड़े-पड़े बोर होता है तो शादी कर लेता है। शादी से ऊबता है तो लड़ने लगता है। लड़ने से ऊबता है तो भिड़ जाता है। लड़ने-भिड़ने से बोर होकर तलाक ले लेता है। तलाक लेकर फ़िर बोर होक्रर शादी के बारे में सोचने लगता है। सोचते-सोचते बोर होता है तो कर भी लेता है।
चोर
चोरी से ऊबता है, डाका डालने लगता है। डकैती से ऊबता है माफ़िया बन जाता
है। माफ़ियागीरी से ऊबता है तो नेतागीरी करता है। नेतागीरी से बोर होकर
मंत्रीगीरी करने लगता है। फ़िर ज्यादा ही बोर होता है तो महापुरुष बन लेता
है।
चोर चोरी से ऊबता है, डाका डालने लगता है। डकैती से ऊबता है माफ़िया बन
जाता है। माफ़ियागीरी से ऊबता है तो नेतागीरी करता है। नेतागीरी से बोर होकर
मंत्रीगीरी करने लगता है। फ़िर ज्यादा ही बोर होता है तो महापुरुष बन लेता
है।समाज लोगों से मिल कर बना है सो लोगों की बोरियत का असर समाज पर भी पड़ता है। आदमी आपस में प्यार से रहते-रहते बोर हो जाता है तो लड़ने लगता है। लड़ने से ऊबता है दंगा करने लगता है। दंगे से ऊबता है तो शांति अपना लेता है। शांति से बोर हुआ तो आतंकवाद अपना लिया। आतंकवाद से जी भरता है तो सुरक्षा के चक्कर में पड़ जाता है। हरेक की जांच, रोक-टोक। तमाम तरह की चिंतायें। अपने भाई से भी आदमी मिलने जाता है तो सोचता है बुलेट-फ़्रूफ़ जैकेट पहन ले। बोरियत जो न कराये।
दुनिया के सारे समीकरण के बोरियत के चलते बदलते हैं। अमेरिका दूसरे विश्वयुद्द में लड़ते-लड़ते बोर हो गया तो जापान में बम गिरा दिया। ७१ में पाकिस्तान लड़ते-लड़ते बोर हो गया तो हथियार डाल दिया। चीन/रूस समाजवाद लादे-लादे बोर हो गये तो पूंजीवादी हो लिये। आतंकवादी हवा में जहाज उड़ाते-उड़ाते बोर हो गये तो ट्विन-टावर में ठेल दिया। सेन्सेक्स उछलते-उछलते बोर होता है तो डूब जाता है। बैंके मुनाफ़ा कमाते-कमाते बोर होकर दीवालिया हो जाती हैं।
देश में सरकारें अकेले-अकेले चलते हुये बोर हो गयीं तो साझे में चलने लगीं। गठबंधन से बोर हुये तो समर्थन वापस ले लिया। वापसी से बोर हुये तो फ़िर समर्थन दे दिया। संसद में बहस से बोर हुये तो कहा-सुनी करने लगे। कहा-सुनी से मन ऊबा तो गाली-गलौज करने लगे। गाली-गलौज से बोर हुये तो जूतालात पर उतर आये। जूतालात से बोर हुये तो खरीद-बिक्री पर आ गये। यह सब किसी सिद्धांत और लालच के चलते नहीं हो रहा है! सिर्फ़ और सिर्फ़ बोरियत से बचने के प्रयास हैं।
बोरियत का सिद्धांत ब्लागिंग में भी लागू होता है। और बलभर लागू होता है। लोग दूसरों का ब्लाग पढ़ते-पढ़ते बोर हो जाते हैं तो खुद अपना ब्लाग खोल लेते हैं। अपना लिखते-पढ़ते बोर हो जाते हैं तो बंद कर देते हैं। बंदी से बोर होते हैं तो फ़िर लिखने लगते हैं। बड़ी पोस्ट से बोर होते हैं तो छोटी पर आ जाते हैं। छोटी से बोर होते हैं बड़ी ठेल देते हैं। नया लिखने से बोर होते हैं तो पुराना ठेल देते हैं। अकेले लिखते-लिखते बोर होते हैं तो समूह में लिखने लगते हैं। समूह से बोर हुये तो फ़िर अकेले हो गये। तारीफ़ करते-करत्ते बोर हुये तो बुराई करने लगे। बुराई से बोर हुये लड़ाई कर ली। लड़ाई से ऊबे फ़िर गल्ले लग गये। संकोच से ऊबे तो आत्मविज्ञापन करने लगे। फ़ुरसत से बोर हुये तो व्यस्त हो लिये। व्यस्तता से बोर हुये तो फ़िर फ़ुरसतिये हो लिये।
यह सब लिखते-लिखते हम बोर हो गये। इसलिये इसे पोस्ट कर दे रहे हैं।
आप भी पढ़ते-पढ़ते बोर हो गये होंगे सो टिपियाने लगिये।
लेकिन बोर होने से पहले आप यह देख लीजियेगा कि आप बोरियत की रेखा के ऊपर हैं कि नहीं। बिलो बोरियत लाइन के नीचे वालों के लिये इस पोस्ट से बोर होने का अधिकार नहीं है। उनको पहले बोरियत की रेखा के ऊपर आना होगा।
- लावण्या
जबरदस्त…. बेहतरीन .. ! मजा आगया !
आप भी पढ़ते-पढ़ते बोर हो गये होंगे सो टिपियाने लगिये।”
सही कही आपने अब लंबा टिपीया कर हम भी आपको बोर नही करेंगे!!
बोरियत से लोगों को चिंता करते देखा है. लेकिन बोरियत पर चिंतन! अहा..वो तो आप ही कर सकते हैं. और ऐसे धाँसू अंदाज़ में कर सकते हैं कि एबीएल वाला बीबीएल हो ले.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
लो आप यहाँ तक आ गये… और बोर नही हूए… फिर तो आप बी बी एल हैं
आप बोरियत परोस कर पता नहीं कहाँ सेंवईं उड़ा रहे हैं ?
संदेश छोड़ जा रहा हूँ, कब कहाँ कैसे और किस हालत में मिलूँ,
यह ब्यौरा मुझे मेल कर देंगे तो, अतिशय दया होगी !
फ़ार्म में फोटो मेरा ही लगेगा न, किस पोज़ में ?
धन्य हैं माई बाप !!
इस लिए टिप्पदी नही कर रहे है
वीनस केसरी
धन्यवाद
ऐसा ही पढ़वाते रहे समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दें आपका स्वागत है उम्मीद है आप भी आनादित होंगे http://manoria.blogspot.com
बाकी आपके मित्र की बात से अपने को भी सहमति है, बोरियत हर किसी के पास नहीं जाती, कोई-२ ही दुखियारा….. मेरा मतबल कोई-२ ही सुपात्र होता है!!
चकाचक पोस्ट है भई ,,मज़ा आ गया ,,
Devanshu Nigam की हालिया प्रविष्टी..कुछ याद आया है…
चंद्र मौलेश्वर की हालिया प्रविष्टी..स्त्री विमर्श
फिर से कब बोरोगे ? जल्दी बताना इसके पहले कि हम बोर हो लें !
चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..इधर से गुजरा था सोचा सलाम करता चलूँ…
shefali की हालिया प्रविष्टी..महिला दिवस बीत गया क्या ?
Rekha Srivastava की हालिया प्रविष्टी..क्या फेसबुक से ब्लॉग पर सक्रियता कम हो रही है ? (4)
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..दशहरे के दिशाशूल