Sunday, October 05, 2008

मनुष्य खत्म हो रहे हैं, वस्तुयें खिली हुई हैं (१)- अखिलेश

http://web.archive.org/web/20140419214700/http://hindini.com/fursatiya/archives/535

17 responses to “मनुष्य खत्म हो रहे हैं, वस्तुयें खिली हुई हैं (१)- अखिलेश”

  1. दिनेशराय द्विवेदी
    शानदार निबंध है। प्रस्तुत करने के लिए बहुत बहुत आभार। आप के कारण ही इसे पढ़ सका हूँ।
    जीवन पीछे नहीं जाता, वह आगे जा रहा है। आज का समय इतिहास का सब से अच्छा समय है। आने वाला उस से अच्छा होगा। जरूर और जरूर। आगे जाने वाला पीछे मुड़ कर नहीं देखता।
  2. manvinder bhimber
    kathaakaar akhilesh ji ka saargarbhit lekh padwaane ke liye sadhuwaad……wo fectors bhi kabilegor hain jinhone aapko is lekh ko yaha dene ke liye vivash kiya…..
    fir se shershth karya ke liye badhaaee
  3. ताऊ रामपुरिया
    इस बेमिसाल रचना को पढ़वाने के लिए आभार आपका ! इतना सशक्त लेखन ! बहुत 2 धन्यवाद !
  4. समीर लाल ’उड़न तश्तरी वाले’
    बहुत आभार इसे यहाँ प्रस्तुत करने का. लम्बाई, इस रोचकता के सामने, ज्यादा तो कतई नहीं लगी.
  5. राज भाटिया
    आप का बहुत बहुत धन्यवाद एक सुन्दर रचना हम तक पहुचाई, ओर अखिलेश जी का धन्यवाद इस सुन्दर रचना के लिये
  6. ज्ञानदत्त पाण्डेय
    पता नहीं, मैं जो कह रहा हूं वह इस लेख से डायरेक्ट रिलेशन में है या नहीं:
    साहित्य (या किसी अन्य कृतित्व की सार्थकता; वह हमारे जीवन के बाद कितने साल और चलता है – इसपर निर्भर करती है।
    अगर एक साहित्यकार रिलेटिव अभाव में जी कर मरने के बाद डबल जिन्दगी जी सकता है अपनी रचनाओं में; तो उसको मैं अपनी अफसरी जिन्दगी से कहीं अधिक सफल मानूंगा। Provided, he does not compromise on Good Character of his own.
  7. Shiv Kumar Mishra
    बहुत बढ़िया लेख है.
  8. भूतनाथ
    अत्यन्त बेमिसाल रचना ! धन्यवाद !
  9. दीपक
    अत्यंत सुंदर रचना !! लेखन एक तपस्या ही है!!आभार
  10. kanchan
    Anoop Ji Batana chahu.ngi ki Akhiles Ji mere 3 ghar chhod kar ho rahate hai.n aate jaate iunka ghar mandir ki tarah dekhatai hu.n … kabhi kabhi apane ghar ke darwaje par kahde bhi dikh jate hai lekin bas man hi man naman kar ke chal deti hu.n..!
  11. Dr .Anurag
    काफ़ी कुछ समझा गए ओर कही एक लेखक के मन की भी थाह मिली इस लेख से …ऐसे व्यक्तितिव से परिचय का आभार
  12. डा. अमर कुमार
    इतनी अच्छी रचना कि..
    अब क्या लिखूँ ? ऎसी कालजयी क्रूतियाँ, टिप्पणी के दो शब्दों की मोहताज़ नहीं हुआ करतीं !
    अभी दुबारा तिबारा भी पढ़ूँगा, अभी से बताये जा रहा हूँ !
  13. Zakir Ali ‘Rajneesh’
    अखिलेख जी हमार शहर लखनऊ में ही रहते हैं, अक्‍सर उनसे मुलाकात भी होती रहती है। अभी बी0एन0 राय, जोकि महात्‍मा गांधी अर्न्‍ताष्‍ट्रीय विश्‍वविद्यालय के कुलपति नियुक्‍त हुए हैं, के पैतृक गांव जोकहरा, आजमगढ में हुई साहित्यिक संगोष्‍ठी में भी उनसे मुलाकात हुई। उनका यह लेख पढ कर अच्‍छा लगा। आशा है आगे इस क्रम में अन्‍य रचनाकारों की रचनाएं भी पढने को मिलेंगीं।
  14. वन्दना अवस्थी दुबे
    अखिलेश जी की कहनियां पढती रही हूं. उनके सार्थक लेखन की कायल भी हूं. शानदार लेख पढवाने के लिये धन्यवाद. सच है से आम आदमी अब हर जगह से गायब होता जा रहा है. साहित्य में तो फिर भी कभी-कभार मिल ही जाता है, टी.वी कार्यक्रमों से तो बिलकुल ही गायब हो गया है. और यथार्थ के नाम पर केवल फ़रेब.
    एक बार फिर धन्यवाद अनूप जी.
  15. गौतम राजरिशी
    इस पृष्ठ के लिये शुक्रिया देव….अखिलेश जी का जबरदस्त फैन हूं। सेव कर लिया है इस पन्ने को फेवरिट में फुरसत से पढ़ने के लिये। और इसी दौरान आपकी “कहानी” लेबल वाले कुछ शानदार पोस्टों पर भी नजर चली गयी…..खजाना है तो ये। विशेष कर प्रत्यक्षा की “हनिमून” के संदर्भ की कबसे तलाश थी…..
    नवाजिश करम शुक्रिया मेहरबानी
  16. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] [...]
  17. saagar
    आपका बहुत बहुत शुक्रिया सर जी… बहुत बहुत आभार…
    saagar की हालिया प्रविष्टी..कुछ तो नाज़ुक मिजाज़ हम भी, और ये चोट नई है अभी

Leave a Reply

No comments:

Post a Comment