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हादसे राह भूल जायेंगे
By फ़ुरसतिया on January 8, 2009
पिछली पोस्ट पिछले साल लिखी थी। १९ दिसम्बर को।
इस बीच साल निकल गया। न जाने कित्ते शुभकामना सन्देशों का आदान-प्रदान हो गया। कई उधारी में पड़े हैं। सबके जबाब देने हैं। रोज सोचते हैं आज लिखेंगे, कल लिखेंगे। लिख नहीं पाते। कोई नाराज होगा तो मना ही लेंगे। यही विश्वास आलस्य को बढ़ावा देता है।
साल खतम होने के पहले जबलपुर जाना हुआ। समीरलाल समधी बन गये। अब उनके ब्लाग के पाठक और बढ़ गये। सुना है समीरलाल जी ने यह करार किया है कि समधियाने वाले लगातार उनके ब्लाग पर टिपियाते रहेंगे। बहरहाल, जबलपुर कथा फ़िर कभी।
पुराना साल जब बीत रहा था तब आखिरी दिन ऐसा लगा कि जित्ता काम बाकी है सब इसी साल निपटा लिया जाये। काफ़ी देर तक दफ़्तर में रहे भी। साल बाय-बाय करने को उतावला सा हो रहा था। हमने सोचा उसको गाना-ऊना सुनाया जाये। दो ठो सोचे भी-एक तो सोचा कि सुनाया जाये – हम तुमको चाहते हैं अईसे/मरने वाला जिंदगी चाहता हो जईसे।
लेकिन सोचा कि इसमें पोयटिक लोचा न हो जाये। जा तो ससुर वो रहा है और मरने की बात हम अपने लिये करें। और यह भी हो सकता है वो पलट के डांट दे, प्रमोदजी की तरह- अरे हम त खाली जा रहे हैं, मर कौन ससुर रहा है। हम तो धांस के रहेंगे यादों में, ख्बाबों में, किताबों में और न जाने किधर-किधर। तो ई सब रोना-गाना बन्द करो। आई से -जस्ट स्टाप। कहौ वो और अंग्रेजी छौंकने के मूड में हो तो डैम इट भी कह दे।
लिहाजा गाना स्थगित हो गया। गले की मौज। लेकिन कहां का आराम। खाली दिमाग शैतान का धर। फ़िर दूसरा गाना उचका दिमाग में। सोचा गाया जाये- अभी न जाओ छोड़ के कि दिल अभी भरा नहीं। लेकिन पुराने साल ने इसको भी भाव नहीं दिया। बोला साल भर इधर-उधर फ़ुट्ट-फ़ैरी करते रहे और अब आये हो नाटक करने। हमको कोई निर्दलीय विधायक समझ लिया है जो सरकार बनाने के गठबंधन में शामिल हो जायें। हम जा रहे हैं। अलविदा बोले तो कुश की दस्विदानिया।
और साल चला गया- मुझसे पहले सी मोहब्बत मेरे महबूब न मांग को मुझसे भी बेसुरी आवाज में गाते हुये। हमें फ़िर लगा कि हमसे बेसुरा गाना वाले अकेले समीरलाल ही नहीं हैं और लोग भी हैं दुनिया में। और भी गवैये हैं मुझसे बेसुरे ज्यादा!
हम भी पुराने साल को विदा कर दिये। पहिले तो कि सोचा गुस्से में कहें- चल। जा। भाग। बड़ा आया महबूब कहीं का। लेकिन फ़िर सोचा गुस्साने से कौन जाड़ा कम हो जायेगा। और फ़िर झटके में माई फ़ुट टाइप की अंग्रेजी गाली भी टपक पड़ेगी और कोई ब्लागर रोमन में टिपियाते हुये कहेगा- आपको शरम नहीं आती हिंदी के ब्लागर होते हुये भी अंग्रेजी में गाली देते हैं। अपनी भाषा को इत्ता कमजोर समझते हैं। जबकि आपको अच्छी तरह पता है कि गिनती, गाली और गन्दा लतीफ़ा अपनी मादरी जबान में ही मजा देता है।
हम यह भी विचार किये कि गाली-गलौज का काफ़ी रियाज साल के आखिरी में हो ही चुका है ब्लागजगत में तो अब इस पर क्या सर खपाया जाये। सो हम छोड़े दिये।
इसीलिये हम कुच्छ नहीं बोले पुराने साल से। जाने दिये। वह चला गया। हम मुंह ढंक के सो गये। सोचते हुये- जो आया है सो जायेगा, राजा , रंक , फ़कीर!
नया साल शुरू हुआ। हम मुंह ढंक के सोते रहे। अब नया साल कोई ब्लागर तो है नहीं कि झट से उसके आते ही उसके ब्लाग पर पहुंचे और स्वागत टिपियायी करते हुये कहें- कृपया अपने ब्लाग वर्ड वेरीफ़िकेशन हटा लें। इसमें भी गलती हो सकती है और लिख सकते हैं- कृपया अपना ब्लाग हटा लें। फ़िर तो जो होगा सो आप भी समझ सकते हैं।
नये साल में दफ़्तर ले दनादन, दे देनादन वाले अंदाज में नये साल को मुबारक किया गया। पिछले साल का आखिरी दिन और नये साल का पहिला दिन ऐसे ही चला जाता है। अच्छा किये कि ये शेर नये साल के पहिले नहीं पढ़ा गया-
उम्रे दराज मांग कर लाये थ चार दिन,
दो आरजू में कट गये, दो इंतजार में।
अगर नये साल के मौके पर पढ़ा जाता तो आरजू और इंतजार के हिस्से का एक-एक दिन नये और पुराने साल का गठबंधन फ़िरौती के रूप में वसूल के अपने कब्जे में कर लेते।
नये साल में तमाम लोग तमाम वायदे करते हैं अपने से। इस साल ये करेंगे , वो करेंगे। कोई बोला बेहतर मनुष्य बनेंगे। अब बताओ कैसे हम ये कहें। जिस रास्ते जाना नहीं उसके कोस गिनने का क्या फ़ायदा? हम जैसे हैं वैसे ही नहीं रह पा रहे हैं, बेहतरी कहां से लायेंगे।
पिछले साल के सारे वायदे इधर-उधर हो गये। कोई पूरा नहीं हो पाया। सब मुंह बिराते हैं। इसलिये कोई वायदा नहीं किया हमने। कोई का कल्लेगा? छठे वेतन आयोग में वैसे भी वायदे करने पर कोई अलाउन्स नहीं मिलना है। वहां कहा गया है- वायदा नहीं काम चाहिये।
हमारे लिये पिछला साल बड़ा दुखद और दुर्घटना प्रधान सा रहा। हमारे बड़े भाई साथ छोड़ गये। याद आती है तो आंसू पहले आते हैं। अभी भी लगता है कि वे कहीं गये नहीं हैं। आयेंगे लौट के। सच तो यह है कि पिछले कई दिन उनकी याद में ही मन भारी रहा। मन नहीं किया कुछ करने का।
और भी तमाम कष्ट रहे लेकिन सब ठिकाने लग गये धीरे-धीरे। जो नहीं लगे हैं लग जायेंगे।
ब्लागिंग की दुनिया में तमाम अनुभव रहे। मजेदार ही रहे मेरे लिये तो। खराब कोई नहीं रहा। लेकिन मुझे कुल मिलाकर ऐसा ही लगा कि यह अभिव्यक्ति का माध्यम है और जित्ती बुराइयों की बात लोग कहते हैं उससे कहीं अधिक अच्छाइयां हैं इसमें। अब यह इसका प्रयोग करने वाले पर निर्भर है कि कैसे इसे लेता है।
शाहजहांपुर में हमारे एक कर्मचारी टेलर का काम करते थे। वजीर अंजुम। फ़ैक्ट्री में थे। डायबिटीज के मरीज थे। धांस के शक्कर डाल के चाय पीते थे। एक बार हमारे घर में जमावड़ा हुआ तो उन्हॊंने बड़े तरन्नुम में सुनाया-
मैं अपना सब गम भुला तो दूं ,
कोई अपना मुझे कहे तो सही
हादसे राह भूल जायेंगे,
कोई मेरे साथ चले तो सही।
जब उनसे पहली और आखिरी बार सुना था उसके कुछ समय बाद वे हमेशा के लिये चले गये। लेकिन उनकी हौसला देती आवाज अब भी सुनाई देती है।
हमारे मामाजी एक शेर पढ़ते हैं:
जब मुसीबत पड़े और भारी पड़े,
तो कोई तो एक चश्मेतर चाहिये।
नये साल में आपके और आपके साथ जुड़े लोगों के दिन खुशनुमा बीतें। आपका अपने पर विश्वास बना रहे यही कामना है।
इस बीच साल निकल गया। न जाने कित्ते शुभकामना सन्देशों का आदान-प्रदान हो गया। कई उधारी में पड़े हैं। सबके जबाब देने हैं। रोज सोचते हैं आज लिखेंगे, कल लिखेंगे। लिख नहीं पाते। कोई नाराज होगा तो मना ही लेंगे। यही विश्वास आलस्य को बढ़ावा देता है।
साल खतम होने के पहले जबलपुर जाना हुआ। समीरलाल समधी बन गये। अब उनके ब्लाग के पाठक और बढ़ गये। सुना है समीरलाल जी ने यह करार किया है कि समधियाने वाले लगातार उनके ब्लाग पर टिपियाते रहेंगे। बहरहाल, जबलपुर कथा फ़िर कभी।
पुराना साल जब बीत रहा था तब आखिरी दिन ऐसा लगा कि जित्ता काम बाकी है सब इसी साल निपटा लिया जाये। काफ़ी देर तक दफ़्तर में रहे भी। साल बाय-बाय करने को उतावला सा हो रहा था। हमने सोचा उसको गाना-ऊना सुनाया जाये। दो ठो सोचे भी-एक तो सोचा कि सुनाया जाये – हम तुमको चाहते हैं अईसे/मरने वाला जिंदगी चाहता हो जईसे।
लेकिन सोचा कि इसमें पोयटिक लोचा न हो जाये। जा तो ससुर वो रहा है और मरने की बात हम अपने लिये करें। और यह भी हो सकता है वो पलट के डांट दे, प्रमोदजी की तरह- अरे हम त खाली जा रहे हैं, मर कौन ससुर रहा है। हम तो धांस के रहेंगे यादों में, ख्बाबों में, किताबों में और न जाने किधर-किधर। तो ई सब रोना-गाना बन्द करो। आई से -जस्ट स्टाप। कहौ वो और अंग्रेजी छौंकने के मूड में हो तो डैम इट भी कह दे।
लिहाजा गाना स्थगित हो गया। गले की मौज। लेकिन कहां का आराम। खाली दिमाग शैतान का धर। फ़िर दूसरा गाना उचका दिमाग में। सोचा गाया जाये- अभी न जाओ छोड़ के कि दिल अभी भरा नहीं। लेकिन पुराने साल ने इसको भी भाव नहीं दिया। बोला साल भर इधर-उधर फ़ुट्ट-फ़ैरी करते रहे और अब आये हो नाटक करने। हमको कोई निर्दलीय विधायक समझ लिया है जो सरकार बनाने के गठबंधन में शामिल हो जायें। हम जा रहे हैं। अलविदा बोले तो कुश की दस्विदानिया।
और साल चला गया- मुझसे पहले सी मोहब्बत मेरे महबूब न मांग को मुझसे भी बेसुरी आवाज में गाते हुये। हमें फ़िर लगा कि हमसे बेसुरा गाना वाले अकेले समीरलाल ही नहीं हैं और लोग भी हैं दुनिया में। और भी गवैये हैं मुझसे बेसुरे ज्यादा!
हम भी पुराने साल को विदा कर दिये। पहिले तो कि सोचा गुस्से में कहें- चल। जा। भाग। बड़ा आया महबूब कहीं का। लेकिन फ़िर सोचा गुस्साने से कौन जाड़ा कम हो जायेगा। और फ़िर झटके में माई फ़ुट टाइप की अंग्रेजी गाली भी टपक पड़ेगी और कोई ब्लागर रोमन में टिपियाते हुये कहेगा- आपको शरम नहीं आती हिंदी के ब्लागर होते हुये भी अंग्रेजी में गाली देते हैं। अपनी भाषा को इत्ता कमजोर समझते हैं। जबकि आपको अच्छी तरह पता है कि गिनती, गाली और गन्दा लतीफ़ा अपनी मादरी जबान में ही मजा देता है।
हम यह भी विचार किये कि गाली-गलौज का काफ़ी रियाज साल के आखिरी में हो ही चुका है ब्लागजगत में तो अब इस पर क्या सर खपाया जाये। सो हम छोड़े दिये।
इसीलिये हम कुच्छ नहीं बोले पुराने साल से। जाने दिये। वह चला गया। हम मुंह ढंक के सो गये। सोचते हुये- जो आया है सो जायेगा, राजा , रंक , फ़कीर!
नया साल शुरू हुआ। हम मुंह ढंक के सोते रहे। अब नया साल कोई ब्लागर तो है नहीं कि झट से उसके आते ही उसके ब्लाग पर पहुंचे और स्वागत टिपियायी करते हुये कहें- कृपया अपने ब्लाग वर्ड वेरीफ़िकेशन हटा लें। इसमें भी गलती हो सकती है और लिख सकते हैं- कृपया अपना ब्लाग हटा लें। फ़िर तो जो होगा सो आप भी समझ सकते हैं।
नये साल में दफ़्तर ले दनादन, दे देनादन वाले अंदाज में नये साल को मुबारक किया गया। पिछले साल का आखिरी दिन और नये साल का पहिला दिन ऐसे ही चला जाता है। अच्छा किये कि ये शेर नये साल के पहिले नहीं पढ़ा गया-
उम्रे दराज मांग कर लाये थ चार दिन,
दो आरजू में कट गये, दो इंतजार में।
अगर नये साल के मौके पर पढ़ा जाता तो आरजू और इंतजार के हिस्से का एक-एक दिन नये और पुराने साल का गठबंधन फ़िरौती के रूप में वसूल के अपने कब्जे में कर लेते।
नये साल में तमाम लोग तमाम वायदे करते हैं अपने से। इस साल ये करेंगे , वो करेंगे। कोई बोला बेहतर मनुष्य बनेंगे। अब बताओ कैसे हम ये कहें। जिस रास्ते जाना नहीं उसके कोस गिनने का क्या फ़ायदा? हम जैसे हैं वैसे ही नहीं रह पा रहे हैं, बेहतरी कहां से लायेंगे।
पिछले साल के सारे वायदे इधर-उधर हो गये। कोई पूरा नहीं हो पाया। सब मुंह बिराते हैं। इसलिये कोई वायदा नहीं किया हमने। कोई का कल्लेगा? छठे वेतन आयोग में वैसे भी वायदे करने पर कोई अलाउन्स नहीं मिलना है। वहां कहा गया है- वायदा नहीं काम चाहिये।
हमारे लिये पिछला साल बड़ा दुखद और दुर्घटना प्रधान सा रहा। हमारे बड़े भाई साथ छोड़ गये। याद आती है तो आंसू पहले आते हैं। अभी भी लगता है कि वे कहीं गये नहीं हैं। आयेंगे लौट के। सच तो यह है कि पिछले कई दिन उनकी याद में ही मन भारी रहा। मन नहीं किया कुछ करने का।
और भी तमाम कष्ट रहे लेकिन सब ठिकाने लग गये धीरे-धीरे। जो नहीं लगे हैं लग जायेंगे।
ब्लागिंग की दुनिया में तमाम अनुभव रहे। मजेदार ही रहे मेरे लिये तो। खराब कोई नहीं रहा। लेकिन मुझे कुल मिलाकर ऐसा ही लगा कि यह अभिव्यक्ति का माध्यम है और जित्ती बुराइयों की बात लोग कहते हैं उससे कहीं अधिक अच्छाइयां हैं इसमें। अब यह इसका प्रयोग करने वाले पर निर्भर है कि कैसे इसे लेता है।
शाहजहांपुर में हमारे एक कर्मचारी टेलर का काम करते थे। वजीर अंजुम। फ़ैक्ट्री में थे। डायबिटीज के मरीज थे। धांस के शक्कर डाल के चाय पीते थे। एक बार हमारे घर में जमावड़ा हुआ तो उन्हॊंने बड़े तरन्नुम में सुनाया-
मैं अपना सब गम भुला तो दूं ,
कोई अपना मुझे कहे तो सही
हादसे राह भूल जायेंगे,
कोई मेरे साथ चले तो सही।
जब उनसे पहली और आखिरी बार सुना था उसके कुछ समय बाद वे हमेशा के लिये चले गये। लेकिन उनकी हौसला देती आवाज अब भी सुनाई देती है।
हमारे मामाजी एक शेर पढ़ते हैं:
जब मुसीबत पड़े और भारी पड़े,
तो कोई तो एक चश्मेतर चाहिये।
नये साल में आपके और आपके साथ जुड़े लोगों के दिन खुशनुमा बीतें। आपका अपने पर विश्वास बना रहे यही कामना है।
इससे बढिया भी कुछ मिला?
पहले तो ठण्ड छूटने की बधाई स्वीकारें .
अब पढते हैं .
कमियाँ निकालकर पुन:
छींटाकशी करेंगे .
ब्लाग के पाठक बढ़ने का नया तरीका!!!!
बहरहाल नया साल आपको भी मुबारक!!!
कोई अपना मुझे कहे तो सही
हादसे राह भूल जायेंगे,
कोई मेरे साथ चले तो सही।”
बहुत खूब।
पिछले साल आपने जो खोया उसकी भरपाई तो नहीं हो सकती..लेकिन नए साल पर ईश्वर से प्रार्थना है कि असमय ऐसा किसी के साथ न हो। पूरा जीवन जिए बिना अपनों से बिछुडना तमाम उम्र सालता रहता है।
रुलाई आगई पढते पढते . कल ही 9 जनवरी है . आपके परिवार को ईश्वर शक्ति दे . और भाई की सीख भी याद रहे : दम बनी रहे घर चूता है तो चूने दो !
आप ने नब्ज पकड़ ली भाईजान। दुनिया यहीं से शुरू होती है।
खैर अब आ ही गए हो तो लिखे बिना तो मानोगे नही, इसलिए लिखो धुंआधार, बाकी तारीफ़ के लिए हम है ना!
फुरसतिया को परिवार सहित नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं। ईश्वर करे फुरसतिया ऐसे ही लिखते रहे और हिन्दी चिट्ठा जगत की शान बने रहे।
जरुरी बात :अगली बार जबलपुर जैसे रिस्की दौरे के पहले इंश्यूरेंस प्रीमियम जरुर भरें।
इन दो लाइनो के लिए 100 नंबर..
जीवन है चलने का नाम.. फिर आपने इतने लफडो टन्टो में भी एक साल गुजार लिया.. सरकार फालतू में खड्डे में फँसे लोगो को बाहर निकालने वालो को बहादुरी पुरस्कार देती है.. यहा हमारे जैसे लोग “खड्ड ओ” में पड़े पड़े ज़िंदगी गुजार देते है.. साला हमे कोई पुरस्कार नही..
हम अभी चलते है.. ढूँदने कोई ऐसे समधी मिल जाए जो इस तरह क़ी संधि हमसे भी कर ले.. अभी दसविदानिया कहकर निकल लेते है हम..
सामने बैठे होते तो मंगल गीत गाकर सुनाते आपको पूरे सुर में.
कोई अपना मुझे कहे तो सही
हादसे राह भूल जायेंगे,
कोई मेरे साथ चले तो सही।
” वाह क्या बात कही है, चलिए जाने वाला साल तो चला ही गया , अब नये साल की शुरुआत नये नये गानों के साथ कीजिये …. आयेगा आयेगा …आयेगा आने वाला आयेगा हा हा हा हा , आपको भी नव वर्ष की शुभकामनाये ”
Regards
बाकी, नया साल रहा कहां – आते ही हमारे लिये चौपट हो गया। अभी तक अपने को घायल की तरह सहला रहे हैं!
आपको नव वर्ष मन्गलमय हो।
“जब मुसीबत पड़े और भारी पड़े,
तो कोई तो एक चश्मेतर चाहिये।”
लाजवाब रहा. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
यहाँ मेरा नाम पता वेबएड्रेस पहले से ही कैसे भरा है, जी ?
टिप्पणी कुछ ठहर कर करूँगा..
इंतेज़ार के बाकी दो दिनों में भी आरज़ू है, कि..
….कोई अपना मुझे कहे तो सही !
इरशाद
और क्षणांश के लिये आकर मेरे चंद अदने से शेरों पर आपका यूं अदा से “सुंदर” बोल कर जाना वाकईए सुंदर लगा…
कुछ आडियो लिंक-विंक डाल कर ये तमाम गाने गुनगुना ही डालते तो मजा आ जाता
पूरी पोस्ट शानदार है. मेरे पास जो नंबर हैं उन्हें मैं आपको नहीं दूँगा. फिर आप कहेंगे कि कुश से पूरे ९९ नंबर कम हैं.
कोई मेरे साथ चले तो सही।
जी बिल्कुल ! नया वर्ष आपको मंगलमय हो !
बस,
सभी वर्ष मंगल दायी हों।
नव वर्ष की शुभकामनाएं।
समीर जी का ‘सुर’ में गाया हुआ मंगल गीत हमें भी सुनवाइएगा लेकिन इस तुफ़ानी झरने के पास बैठ कर सुनेगें क्या?…॥:) इरशाद की बातों से हम भी सहमत्…।:)
आप की इन लाईनो को पढ कर मुझे भी अपना वादा याद आ गया, मेने बीबी से वादा किया था कि…. अगले साल यह मुई ब्लागिंग छोड दुगां, सभी ठीक बारह बजे एक दुसरे को बधाई दे रहे थे नये साल की ओर बीबी हमे बधाई दे रही की की ब्लागिंग छूट गई,तो हमने अपना वादा दोहराया हा जी क्यो नही अगले साल…..
आप के भाई का पढ कर बहुत दूख हुया,भगवान उन्हे अपने चरणो मै जगह दे.
धन्यवाद
वैसे आप पुराने गाने गाते रहे इसलिए वह न माना, कुछ नया ओरिजिनल गाते तो कदाचित् मान भी जाता!
तमाम लेख पढा़ आपका और लिंक पर जाकर तो हम भी रो दिए गुरुजी. बड़े भाई बवाली के बारे जो आप कह रहे थे कि साल गया बवाल गया. अजब इत्तेफ़ाक देखिए कि उसी साल के अन्त २५ दिसम्बर को लाल साहब के यहाँ आपको मैं मिला. याने बवाल से बवाल तक. बड़े भाई के खोने का दर्द बहुत कम लोग समझते हैं. वाक़ई उनका दर्जा बाप के बराबर सही ही कहा गया है. मैंने भी इसी साल अपने बड़े फ़ुफ़ेरे भाई साहब को खो दिया और उनका स्नेह मुझ पर ठीक वैसा ही था जैसा आप पर आपके भाई साहब का था.
हमारे प्यारे धूँआधार जलप्रपात का चित्र सुन्दर लग रहा है. हम तो कभी भी दर्शन कर ही लेते है माँ नर्मदा के इस प्रपात पर मगर काश सभी लोग ऐसा कर पाते.
सही फरमाते हैं आप।
सुना हे की “क्विलपॅड “, गूगलेस भी अच्छी टाइपिंग टूल हे ? इसमे तो 9 इंडियन भाषा और रिच टेक्स्ट एडिटर भी हे / क्या मूज़े ये बताएँगे की इन दोनो मे कौनसी हे यूज़र फ्रेंड्ली….?
कोई अपना मुझे कहे तो सही
हादसे राह भूल जायेंगे,
कोई मेरे साथ चले तो सही।
kya baat hai rachna ke saath judi hui beech beech me in chhoti chhoti panktiyon ki ,char chand lag gaye yahan to aur padhne ka ek alag aanand bhi mila ,
रचना त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..हिन्दी पर शरमाते भारतवासी