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Browse: Home / पुरालेख / मृत्य जिजीविषा से बहुत डरती है
मरने में
मरने वाला ही नहीं मरता
उसके साथ मरते हैं
बहुत सारे लोग
थोड़ा-थोड़ा!
जैसे रोशनी के साथ
मरता है थोड़ा अंधेरा।
जैसे बादल के साथ
मरता है थोड़ा आकाश।
जैसे जल के साथ
मरती है थोड़ी सी प्यास।
जैसे आंसुओं के साथ
मरती है थोड़ी से आग भी।
जैसे समुद्र के साथ
मरती है थोड़ी धरती।
जैसे शून्य के साथ
मरती है थोड़ी सी हवा।
उसी तरह
जीवन के साथ
थोड़ा-बहुत मृत्यु भी
मरती है।
इसीलिये मृत्य
जिजीविषा से
बहुत डरती है।
डा.कन्हैयालाल नंदन
जीवन के साथ
थोड़ा-बहुत मृत्यु भी
मरती है।
‘निशब्द….”
regards
सच है, मैंने अपने कैरियर में ऎसे जीवंत मिसाल देखे हैं !
इतनी बढ़िया कविता भी मुझे जोड़ बाकी का हिसाब करने को प्रवृत्त कर देती है।
झूठ कहते है आप कि मौत जिन्दगी से डरने लगी है,
सच तो यही है कि मौत, जिन्दगी की सगी है…..
aapne mrutuyu par itni achai kavita padwayi ,iske liye dhanyawad.
kavita ka ek ek lafz sahi hai ..
maine kuch nai nazme likhi hai ,dekhiyenga jarur.
vijay
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थोड़ा-बहुत मृत्यु भी
मरती है।
इसीलिये मृत्य
जिजीविषा से
बहुत डरती है।
रामराम.
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कविता दुबारा पढ़ता हूं और सोचता हूँ ’क्या सचमुच मृत्यु जिजीविषा से डरती है’….सहज ही कुछ कह नहीं सकता.कहने को कितनी बातें.मगर बहस से डरता हूं.फिर कभी मृत्यु के इस डरने वाली बात पर आपसे बहस करूंगा…
अब कन्हैयालाल नंदनजी से तो कर नहीं सकता
पढ़वाने के लिए आभार।
Mia dewedi ji se puri tarah sahamat hai….yah mrittu par jeevan ka geet hai…
Great poem….
Regards
अगर स्वयं भगवान नही मरता ( राम,श्याम,)
ये तो म्रुत्यु लोक है (शिव )
यहा जो भी आया हे उसे जाना हे (गीता)
जो दुनिया हे वो भी नशवर हे (गीता)
समुद्र है उसे भी एक दिन सुखना है (रामायण)
जो धरती हे उसको धुल बनकर खो जाना है ( ब्र्म्हा)
जिसको हम जानते हे वो थोडे समय बाद हमे नही जाने गा (मानव)
हम जिस शक्ति को याद करते हे वो हमारे सामने आयेगी (गुरु)
जो हमने किया उसको पुरा भोगना होगा (गरुड पुरान)
एक छोटा ओर अज्ञान प्राणी
सुमीत व्यास
new2@in.com
उसके साथ मरते हैं
बहुत सारे लोग
थोड़ा-थोड़ा!
जैसे रोशनी के साथ
मरता है थोड़ा अंधेरा।
जैसे बादल के साथ
मरता है थोड़ा आकाश।
जैसे जल के साथ
मरती है थोड़ी सी प्यास।
जैसे आंसुओं के साथ
मरती है थोड़ी से आग भी।
जैसे समुद्र के साथ
मरती है थोड़ी धरती।
जैसे शून्य के साथ
मरती है थोड़ी सी हवा।
उसी तरह
जीवन के साथ
थोड़ा-बहुत मृत्यु भी
मरती है।
इसीलिये मृत्य
जिजीविषा से
बहुत डरती है।
डा.कन्हैयालाल नंदन