http://web.archive.org/web/20140331063016/http://hindini.com/fursatiya/archives/571
बाद में ’मेरे समकालीन’ में परसाईजी के माध्यम से जबलपुर के तमाम चरित्रों के बारे में जाना। पंडित भवानी शंकर तिवारी, रामेश्वर गुरु, केशव पंडित, मनीषीजी, चिरऊ महाराज और न जाने कौन-कौन लोग। मेरा मन है कि कभी परसाईजी के साथ रहे लोगों से उनके बारे में बात करूं।
परसाईजी के तमाम लेख मैंने अपने ब्लाग में पोस्ट किया हैं। कुछ अपने मन से कुछ दोस्तों की मांग में। एक खुले पत्र में वे अपने मित्र मायाराम सुरजन को जबाब देते हुये लिखा था:
बहरहाल हम परसाई जी से जुड़े, उनके साथ रहे किसी व्यक्ति से मुलाकात का इरादा मन में लिये ही वापस चले आये। न ही अपने किसी दोस्त से वहां मिल पाये। जबलपुर में हमारी चार फ़ैक्ट्रियां हैं। तमाम दोस्तों से पारिवारिक संबंध हैं। लेकिन किसी के यहां जाना न हो सका।
बालक को फोन किया तो फोन बजता रहा, बजता रहा, बजता रहा और बजता रहा। पता था पास में तो जाकर कमरे में
जगाया गया। पता चला अपना मोबाइल अपने किसी दोस्त को दे दिया है जिसके फोन आने थे उसके भाई के यहां से। दोस्त भी लगता है खर्राटे ले रहा होगा। फ़िर अमल के साथ कुछ देर रहे, उसके इंस्टीटट्यूट गये। अभी उसका इंस्टीट्यूत उधार की बिल्डिंग में चलता है। हास्टल किराये के मकान में। अपनी बिल्डिंग और छात्रावास तीन साल से निर्माणाधीन है। एनआईटी के ये हाल हैं जहां पैसे की कोई किल्लत नहीं तो बाकी के इंजीनियरिंग कालेजों का क्या हाल होगा?
जब तक हम अमल को जगाने,बुलाने गये तब तक रचनाजी ने पास के कैफ़े से अपनी कविता के प्रिंट आउट निकाले जिसे उन्होंने दो दिन पहले पढ़ा था और जिसकी बड़ी मांग थी।
अमल से मिलने के बाद हम लोग रानी दुर्गावती संग्रहालय देखने गये। वहां आजादी के जमाने के तमाम दस्तावेज देखे। तमाम हिदी के दस्तावेज भी ऐसे कि पढ़ने में नहीं आ रहे थे। अक्षर ऐसे एक दूसरे में गड्ड-मड्ड कि लगता था कि उस समय लोग कोडवर्ड में ही लिखते थे।
संग्रहालय से लौटकर हम लोग खाये-पिये सोये और शाम को जाने के लिये तैयार हो गये। सबसे विदा लेकर हम वापस चल दिये।
जबलपुर जाने का एक खास आकर्षण वहां इकट्ठा होने वाले तमाम ब्लागरों से मिलने का था। रचनाजी के परिवार को छोड़कर और कोई बाहर से आने वाले ब्लागर न आ पाये। रचनाजी के परिवार से मेरी यह दूसरी मुलाकात थी। पिछली बार गये थे तो उनके परिवार के सदस्यों द्वारा गाये जाने वाले सम्मिलित भजन की याद मुझे थी। मैंने एक बार फ़िर वे भजन सुने। केवल भजन ही नहीं हमने दीपक के द्वारा गाया उनके कालेज के जमाने का एकल गायन भी सुना जिसमें किसी स्वस्थ सहेली का जिक्र करते कहा गया है:
चिट्ठाचर्चा के सौजन्य से
पता चला था कि जिस दिन समीरलाल जी के बेटे की शादी होनी थी उसी दिन कविता
जी की शादी की वर्षगांठ थी। वर्षगांठ भी ऐसी-वैसी नहीं रजत जयंती बोले तो
सिल्वर जुबली! संयोग यह भी जब हम कानपुर से जबलपुर के लिये गाड़ी में बैठे
उसी समय वे हैदराबाद से इलाहाबाद की यात्रा के लिये जबलपुर गुजर रहीं थीं।
उनसे हुई बातचीत के अनुसार स्टेशन पर उनसे मिलने समीरलालजी की होने वाली
बहू के मामा/मौसा मिलने आये थे। अच्छा हुआ समीरलालजी को इसका पता नहीं चला
वर्ना शायद कविताजी की यात्रा स्थगित करा के लिवा लाते।
बहरहाल जब हमको पता चल ही गया था तो शादी की पूर्वसंध्या पर और बाद में अगले दिन गजरदम भोर कविताजी को उनकी शादी की सालगिरह के मौके पर अनेकानेक बधाईयां दीं गयीं। एक बार फ़िर से उनको बधाई और शुक्रिया कि इस बात की तरफ़ ध्यान दिलाया और हमने समय रहते पोस्ट में अपना हाथ जगन्नाथ की तर्ज पर संसोधन कर लिया। इसे कहते हैं देर से आये लेकिन ठीये पर तो आये।
बहरहाल, जबलपुर यात्रा की तमाम उपलब्धियां रहीं। समीरलालजी के परिवार के सभी लोगों से मिले। जबलपुर के ब्लागर बन्धुओं से मिलना हुआ। रचना बजाज-दीपक बजाज से सपरिवार फ़िर मुलाकात हुई। भेड़ाघाट , धुंआधार देखने का मौका मिला और अंत में इल्म के बादशाह बबाल भाई के सौजन्य से एक कहावत की जानकारी हुई- ’दीर्घ दन्ता क्वचित मूर्खा’!
आज सोलह जनवरी है। आज मानसी
का जन्मदिन पड़ता है। मानसी से हमारा परिचय उनके ब्लागिंग शुरू करने से ही
है। पहली बार विस्तार से मानसी के बारे में किसी पोस्ट में पढ़ा था। हमने
सोचा ऐसा कौन सा सुर्खाब का पर लगा है इन टीचरजी में जिसकी इत्ती घणी तारीफ़
हो रही है। लेकिन फ़िर बाद में पता लगा कि सब कुछ भले न हो लेकिन काफ़ी कुछ
सही ही लिखा था उस बहुत लम्बी पोस्ट में मानसी के बारे में। अब तारीफ़ में
कुछ तो अतिशयोक्ति चलती है भाई!
कविता, गीत, लेखन और अन्य तमाम विधाओं में उनका दखल है। मुझे मानसी की सबसे अच्छी पोस्टें वे लगती हैं जिनमें उनके स्कूल के वे अनुभव होते हैं जो उन बच्चों से जुड़े होते हैं जिनको वे पढ़ाती हैं। ऐसे समय मानसी शिक्षा-मनोवैज्ञानिक सी समझदारी की बातें बताती हैं। परीकथाओं वाली सीरीज भी उनकी अच्छी है लेकिन अनियमित। आजकल गजल में बहर वगैरह सीखने और हाथ आजमाने में लगी हैं जो ,सुकून की बात है, कि हमारी समझ से बाहर की बात है।
मानसी की आवाज बहुत अच्छी है। कुछ लोग तो कहते हैं कि उनकी आवाज तो इत्ती अच्छी है कि वे अगर समाचार भी पढ़ें तो मधुर कविता से लगें। हमारे और दूसरे मित्रों के बहुत कहने-समझाने के बावजूद वे अपनी गजलों को अपनी आवाज में नही पोस्ट करतीं। कहती हैं मुझे लगता है कि यह आत्मप्रचार सा लगता है। लेकिन मुझे अभी भी लगता है जिसकी आवाज अच्छी है उसको अपनी आवाज में रचनायें(कवितायें) पाडकास्ट करना चाहिए।
इन अच्छी आवाजों वाले लोगों में समीरलाल तक की आवाज के स्तर के ब्लागर लोग शामिल हैं। उसके बाद के लोगों में हम जैसे लोग आते हैं जिनके और दूसरों के हित में यही है कि वे पाडकास्टिंग को उसके रहमो करम पर छोड़ दें।
मानसी हमारे लेखन की फ़ैन तो नहीं लेकिन लगभग नियमित पाठक हैं। उनकी सबसे बड़ी बुराई यह है वे हमारी लम्बी पोस्टों से बहुत बहुत चिढ़ती हैं। और हमें छोटा लिखने में मजा नहीं आता। लेकिन कभी-कभी, शायद मन रखने के लिये,हमारे लिखे की तारीफ़ भी कर देती हैं और हम उसे सच मान लेते हैं। वैसे वो तारीफ़ करने के मामले बहुत कंजूस तो नहीं लेकिन सबप्राइम लोन बांटने की तरह उदार भी नहीं हैं कि दिमाग का बैंक फ़ेल कर जाये। मेरी जिन पोस्टों पर ढेर तारीफ़ी कमेंट आते हैं उन पर अक्सर उनका कहना होता है- ठीक है। बस ब्लागर टाइप पोस्ट!
बहरहाल आज मानसी को आज उनके जन्मदिन के मौके पर तमाम शुभकामनायें देते हुये अपनी बात खतम करते हैं।
जबलपुर , कानपुर , शादी की सालगिरह और जन्मदिन
By फ़ुरसतिया on January 16, 2009
जबलपुर और परसाईजी
हरिशंकर परसाई
जबलपुर मैं पहली बार सन १९९२ में आया था। उन दिनों आर्डनेन्स फ़ैक्ट्री
बोलनगीर, उड़ीसा में तैनात था। फ़ैक्ट्री नयी बन रही थी। जबलपुर की आर्डनेन्स
फ़ैक्ट्री खमरिया किसी काम से आया था। उन दिनों परसाई जी को नया-नया पढ़ना
शुरू किया था। उनसे मिलने का मन था। बस ये पता था कि परसाईजी नेपियर टाउन
में रहते हैं। मिलने का मन लिये खोजते-खोजते उनके घर पहुंच गया। वे बरामदे
में लेटे थे। लेटे-लेटे ही बात करते रहे। बाद में पता चला कि परसाईजी अपनी
चोट के कारण लेटे रहने के लिये मजबूर थे। चाय पिलाई। रायपुर, जबलपुर, उड़ीसा
के लोगों के रहन-सहन पर बात करते रहे। कुछ जानकारियां भी दीं। उस समय मुझे
अन्दाजा न था कि ये हमको बाद में इत्ता पसंद आयेंगे कि उनका लिखा हुआ सारा
खोज-खोज के पढ़ेंगे। बाद में ’मेरे समकालीन’ में परसाईजी के माध्यम से जबलपुर के तमाम चरित्रों के बारे में जाना। पंडित भवानी शंकर तिवारी, रामेश्वर गुरु, केशव पंडित, मनीषीजी, चिरऊ महाराज और न जाने कौन-कौन लोग। मेरा मन है कि कभी परसाईजी के साथ रहे लोगों से उनके बारे में बात करूं।
परसाईजी के तमाम लेख मैंने अपने ब्लाग में पोस्ट किया हैं। कुछ अपने मन से कुछ दोस्तों की मांग में। एक खुले पत्र में वे अपने मित्र मायाराम सुरजन को जबाब देते हुये लिखा था:
तुम अपनी परम्परा से हट गये। तुमने १४-१५ संस्मरण लेख लिखे हैं, उन लोगों पर जो मृत हो गये हैं। इस बार तुमने ऐसे मित्र पर लिखा जो मारा नहीं पीटा गया है। याने तुम्हारी लेखन प्रतिभा तभी जाग्रत होती है जब कोई अपना मरे या पीटा जाये।
मैं जानता हूँ तुम अत्यन्त भावुक हो। मैंने तुम्हारी आँखों में आँसू देखे हैं। बन पड़ा तो पोंछे भी हैं। तुमने भी मेरे आँसू पोंछे हैं। पर हम लोग सब विभाजित व्यक्तित्व (स्पिलिट पर्सनालिटी) के हैं। हम कहीं करुण होते हैं और कहीं क्रूर होते हैं। इस तथ्य को स्वीकारना चाहिये।
बहरहाल हम परसाई जी से जुड़े, उनके साथ रहे किसी व्यक्ति से मुलाकात का इरादा मन में लिये ही वापस चले आये। न ही अपने किसी दोस्त से वहां मिल पाये। जबलपुर में हमारी चार फ़ैक्ट्रियां हैं। तमाम दोस्तों से पारिवारिक संबंध हैं। लेकिन किसी के यहां जाना न हो सका।
और फोन बजता रहा
लेकिन अमल से मिलने हम गये। अमल हमारे पारिवारिक मित्र प्रशान्त चतुर्वेदीजी के पुत्र हैं। चतुर्वेदी के बारे में फ़िर कभी लिखा जायेगा। अमल अभी जबलपुर एनआईटी से इंजीनियरिंग कर रहे हैं। अमल जैसे बच्चे कम होते हैं। पढ़ाई, खेलकूद, मेल-मिलाप व्यवहार सबमें अव्वल! अमल से मिलना बहुत दिन से उधार था। इस बार सोचा जबलपुर आये तो सोचा ये उधार तो चुका ही दिया जाये।बालक को फोन किया तो फोन बजता रहा, बजता रहा, बजता रहा और बजता रहा। पता था पास में तो जाकर कमरे में
जगाया गया। पता चला अपना मोबाइल अपने किसी दोस्त को दे दिया है जिसके फोन आने थे उसके भाई के यहां से। दोस्त भी लगता है खर्राटे ले रहा होगा। फ़िर अमल के साथ कुछ देर रहे, उसके इंस्टीटट्यूट गये। अभी उसका इंस्टीट्यूत उधार की बिल्डिंग में चलता है। हास्टल किराये के मकान में। अपनी बिल्डिंग और छात्रावास तीन साल से निर्माणाधीन है। एनआईटी के ये हाल हैं जहां पैसे की कोई किल्लत नहीं तो बाकी के इंजीनियरिंग कालेजों का क्या हाल होगा?
जब तक हम अमल को जगाने,बुलाने गये तब तक रचनाजी ने पास के कैफ़े से अपनी कविता के प्रिंट आउट निकाले जिसे उन्होंने दो दिन पहले पढ़ा था और जिसकी बड़ी मांग थी।
अमल से मिलने के बाद हम लोग रानी दुर्गावती संग्रहालय देखने गये। वहां आजादी के जमाने के तमाम दस्तावेज देखे। तमाम हिदी के दस्तावेज भी ऐसे कि पढ़ने में नहीं आ रहे थे। अक्षर ऐसे एक दूसरे में गड्ड-मड्ड कि लगता था कि उस समय लोग कोडवर्ड में ही लिखते थे।
संग्रहालय से लौटकर हम लोग खाये-पिये सोये और शाम को जाने के लिये तैयार हो गये। सबसे विदा लेकर हम वापस चल दिये।
घर वापसी
न, न करके भी हम आखिर समीरलालजी के आग्रह को ठुकरा न सके। ऐसा हमेशा होता है कि यात्रा शुरू करना बड़ा जालिम काम होता है लेकिन एक बार शुरू हो लिये तो फ़िर मजा आता है। पिछली सारी यात्राओं के मेरे यही अनुभव रहे हैं।जबलपुर जाने का एक खास आकर्षण वहां इकट्ठा होने वाले तमाम ब्लागरों से मिलने का था। रचनाजी के परिवार को छोड़कर और कोई बाहर से आने वाले ब्लागर न आ पाये। रचनाजी के परिवार से मेरी यह दूसरी मुलाकात थी। पिछली बार गये थे तो उनके परिवार के सदस्यों द्वारा गाये जाने वाले सम्मिलित भजन की याद मुझे थी। मैंने एक बार फ़िर वे भजन सुने। केवल भजन ही नहीं हमने दीपक के द्वारा गाया उनके कालेज के जमाने का एकल गायन भी सुना जिसमें किसी स्वस्थ सहेली का जिक्र करते कहा गया है:
किसी और को शायद कम होगी,लौटते समय मुझे बजाज परिवार स्टेशन पर छोड़कर वापस समीरलाल के यहां चला गया। उनकी ट्रेन रात में देर से थी अत: उनके पास सत्संगति का सुअवसर था। सत्संगति के मौके वैसे भी चूकने नहीं चाहिये! कहा भी गया है:
तेरी सड़कों को बहुत जरूरत है।
एक घड़ी, आधी घड़ी आधी में पुनि आधि
तुलसी संगति साधु की हरै कोटि अपराध।
आखिर पकड़ ही गये:
जिस बात का डर था और जिसका मलाल था वो दोनों होकर ही रहे। जबलपुर में अपने तमाम दोस्तों से मिले बिना वापस जाना बड़ा अटपटा सा लग रहा था। यह भी सोच रहे थे कि पता चलेगा तो कोसने का नाटक भी होगा। और वह हुआ भी। जैसे ही गाड़ी पर चढ़े कि देखा हमारे मित्र आलोक किसी को छोड़ने ऐन उसी डिब्बे में मौजूद थे जिसमें हम थे। डर सच हुआ लेकिन अमिलन-मलाल खत्म हो गया। थोड़ा डायलागबाजी के बाद थोड़ी ही देर में ढेर बतिया लिये। गाड़ी जब चल पड़ी लगी तभैहैं बातें बातों का मंझा लपेट के यादों की लटाई में रखा गया।कविताजी की शादी की सालगिरह
बहरहाल जब हमको पता चल ही गया था तो शादी की पूर्वसंध्या पर और बाद में अगले दिन गजरदम भोर कविताजी को उनकी शादी की सालगिरह के मौके पर अनेकानेक बधाईयां दीं गयीं। एक बार फ़िर से उनको बधाई और शुक्रिया कि इस बात की तरफ़ ध्यान दिलाया और हमने समय रहते पोस्ट में अपना हाथ जगन्नाथ की तर्ज पर संसोधन कर लिया। इसे कहते हैं देर से आये लेकिन ठीये पर तो आये।
कानपुर में फ़िर से
सबेरे कानपुर पहुंचे तो सवारी का पता किये। गाड़ी आई न थी। फोनियाये तो दोस्त बोले अभी आती है तब तक तुम चाय-साय पियो। हम वहीं स्टेशन के प्लेटफ़ार्म नम्बर एक बाहर खड़े-बैठे बच्चों को काफ़ी देर तक ताकते रहे। हमसे बेखबर वे बच्चे कूड़े से तमाम काम की चीजें बीन रहे थे। उनमें से कुछ खाने की चीजें भी पा जा रहे थे। हम चुपचाप गाड़ी का इंतजार करते रहे। घर आकर खा-पीकर सो गये।बहरहाल, जबलपुर यात्रा की तमाम उपलब्धियां रहीं। समीरलालजी के परिवार के सभी लोगों से मिले। जबलपुर के ब्लागर बन्धुओं से मिलना हुआ। रचना बजाज-दीपक बजाज से सपरिवार फ़िर मुलाकात हुई। भेड़ाघाट , धुंआधार देखने का मौका मिला और अंत में इल्म के बादशाह बबाल भाई के सौजन्य से एक कहावत की जानकारी हुई- ’दीर्घ दन्ता क्वचित मूर्खा’!
मानसी जन्मदिन मुबारक
कविता, गीत, लेखन और अन्य तमाम विधाओं में उनका दखल है। मुझे मानसी की सबसे अच्छी पोस्टें वे लगती हैं जिनमें उनके स्कूल के वे अनुभव होते हैं जो उन बच्चों से जुड़े होते हैं जिनको वे पढ़ाती हैं। ऐसे समय मानसी शिक्षा-मनोवैज्ञानिक सी समझदारी की बातें बताती हैं। परीकथाओं वाली सीरीज भी उनकी अच्छी है लेकिन अनियमित। आजकल गजल में बहर वगैरह सीखने और हाथ आजमाने में लगी हैं जो ,सुकून की बात है, कि हमारी समझ से बाहर की बात है।
मानसी की आवाज बहुत अच्छी है। कुछ लोग तो कहते हैं कि उनकी आवाज तो इत्ती अच्छी है कि वे अगर समाचार भी पढ़ें तो मधुर कविता से लगें। हमारे और दूसरे मित्रों के बहुत कहने-समझाने के बावजूद वे अपनी गजलों को अपनी आवाज में नही पोस्ट करतीं। कहती हैं मुझे लगता है कि यह आत्मप्रचार सा लगता है। लेकिन मुझे अभी भी लगता है जिसकी आवाज अच्छी है उसको अपनी आवाज में रचनायें(कवितायें) पाडकास्ट करना चाहिए।
इन अच्छी आवाजों वाले लोगों में समीरलाल तक की आवाज के स्तर के ब्लागर लोग शामिल हैं। उसके बाद के लोगों में हम जैसे लोग आते हैं जिनके और दूसरों के हित में यही है कि वे पाडकास्टिंग को उसके रहमो करम पर छोड़ दें।
मानसी हमारे लेखन की फ़ैन तो नहीं लेकिन लगभग नियमित पाठक हैं। उनकी सबसे बड़ी बुराई यह है वे हमारी लम्बी पोस्टों से बहुत बहुत चिढ़ती हैं। और हमें छोटा लिखने में मजा नहीं आता। लेकिन कभी-कभी, शायद मन रखने के लिये,हमारे लिखे की तारीफ़ भी कर देती हैं और हम उसे सच मान लेते हैं। वैसे वो तारीफ़ करने के मामले बहुत कंजूस तो नहीं लेकिन सबप्राइम लोन बांटने की तरह उदार भी नहीं हैं कि दिमाग का बैंक फ़ेल कर जाये। मेरी जिन पोस्टों पर ढेर तारीफ़ी कमेंट आते हैं उन पर अक्सर उनका कहना होता है- ठीक है। बस ब्लागर टाइप पोस्ट!
बहरहाल आज मानसी को आज उनके जन्मदिन के मौके पर तमाम शुभकामनायें देते हुये अपनी बात खतम करते हैं।
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Regards
मानसी जी को जन्मदिवस की बधाई..
आना-जाना, खिलाना-खाना
मिलना-मिलाना, दोस्ती बचाना
मानसी जी को जन्मदिवस की बधाई!
परसाई गुरू तौ बहुतै जमताऊ व्यंग्यकार हइयैं.
“हमें शिकायत है”
में दर्ज किया जाए कि
जबलपुर यात्रा आरम्भ करने पर आपने हमें पूर्व सन्ध्या की बधाई दी थी और फिर २५ को तड़के भी जबलपुर से। अब जबकि यह कानपुर की धरती से नहीं हुआ तो जबलपुर-वृत्तन्त में तो आना चाहिए न!
आज आपने टुन्नू जी और पिंटू जी का जिक्र ज्यादा नही किया तो क्या इसे जबलपुर यात्रा वृतांत की समापन किस्त माना जाये.
रामराम.
महेंद्र मिश्रा
जबलपुर.
मानसीजी को जन्मदिन की शुभकामनाएं
नीरज
आपका आना आनन्दकारी था, आपका लिखना उस आनन्द को कई गुणित कर गया. वाह!!
अच्छे गाने वालों की लिस्ट हम पर आकर बन्द..हा हा!! उससे अच्छा तो खराब वालों में टॉप कराये देते, प्रभु!!
मानसी के जन्म दिन की सूचना देने के लिए आभार. मानसी को जन्म दिन की बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं.
कविता जी ऐसे विष्शिट मौके पर यहाँ से निकल गईं और हमारे समधियाने के लोग उनसे मिले भी-हमें खबर तक न हो पाई, बहुत बुरी बात. उन्हें शादी की रजत जयंति वर्षगांठ की हृदय से बधाईयाँ एवं शुभकामनाऐं. कविता जी का जबलपुर आना अब ओवर ड्यू माना जायेगा.
एक बार पुनः, इस सुन्दर निराली श्रृंखला के लिए समस्त लाल परिवार आपका आभारी है. सभी परिजनों को लिंक भेजे जा चुके है.
—मेरा पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें
————————-
—मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम
ऊपर के परिहा्सात्मक आभार के बाद अब एक सीरियस-सा बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद कि अभी आपने हमारी चुहल को इतना सीरियसली लिया। … और उस दिन तड़के हमें अपनी स्नेह-आत्मीयतापूर्ण शुभकामनाओं से विभोर किया।
और हाँ, समीर जी को तो किसी दिन शायद हम टोरंटो की धरती पर ही सरप्राईज़ देने पहुँच जाएँ…. वरना जबलपुर के लिए तो अग्रिम आभार है ही।
अब इन्तजार रहेगा.
सादर
समीर लाल
चलिए मानसी की जन्मदिन पर बधाई दे देते हैं -और जबलपुर संस्मरण के समापन पर शुक्रिया ! परसाई जी छूट रहे हैं उसके जिम्मेदार आप ही हैं !
कभी हमारे ब्लॉग पर भी आइयेगा।
२५ साल की बहुत बहुत बधाई ~~
सौ. मानसी को जन्म दिन मुबारक !
बजाज परिवार से मिलना सुखद रहा और
यह यात्रा वृताँत बढिया रहा
- लावण्या
सुंदर संस्मरण है.
कविता जी को शादी की सालगिरह और मानसी जी को जन्मदिन मुबारक।
आप से शिकायत पुरुष ब्लागरों के जन्मदिन भी याद कर लिया करें।
बाकी ज्ञान जी की टिप्पणी को हमारी भी समझा जाए
और मनोशी जी को हम पहले ही विशिया आये थे
सीमा जी, शुएब जी, कुश जी, अभिषेक जी, अनुराग जी, प्रियंकर जी, कविता जी, ताऊ रामपुरिया जी, भुवनेश जी, महेन्द्र जी, समीर, अरविंद जी, लावण्य दी आप सभी को शुक्रिया। अनूप इस बात को ब्लाग पर डाल देंगे पता नहीं था।
घुघूती बासूती
मानसी जी को जन्मदिन की विलंबित बधाई!
जबलपुर यात्रा के बारे में सारी पोस्ट शानदार! सवाल वही है, जो पहले से पूछा जाता रहा है. कैसे लिख लेते हैं ऐसा?
मानसी जी को जन्मदिन की शुभकानाएं.
कभी मेरे ब्लॉग पर भी पधारें. पता है;
http://www.shiv-gyan.blogspot.com
पधारने के लिए अग्रिम धन्यवाद…..:-)
mujhe Deepak, Rachana,aur Nishi se unka yatra anubhav sunsne ko mila.josame aap bhi shamil the.usi ki badolat pahali bar aapki post padi.bahut achcha lagi.Rachana ka dhanyawad is rachanatmak pariwar se jodne ke liye.
आपके आने से पहले की शाम बवाल जी ने हिन्दी ब्लॊगिंग का झंडा मेरे हाथो थमा दिया था! क्यो कि समीर जी तो होस्ट थे और बवाल जी को-होस्ट) भगवान की दया से सबकुछ ठीक ही रहा..
समीर जी के यहां की व्यवस्था, स्नेह और आपसे भेंट ( दोनो अर्थों मे ) सबकुछ बहुत अच्छा रहा…
कविता जी और मानसी जी, नमस्ते! अब बहुत ज्यादा लेट हो चुकी हूं.. फ़िर भी शुभकामनाएं तो दे ही सकती हूं
रचना.
बधाई
- विजय
और रही एन.आई.टी. की दुर्दशा का प्रश्न तो हम भी वही भुगत रहे हैं , बसा हम जबलपुर में नहीं तो दुर्गापुर में सही |
सादर
AKASH की हालिया प्रविष्टी..तुम कुछ-कुछ मेरे जैसे हो