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ओबामा की खूबियां एक-एक करके सामने पेश की जाने लगीं हैं। उनकी पत्नी मिशेल की खूबियां बखान होने लगी हैं। बच्चियां किस पर पड़ी हैं इसकी चर्चा होने लगी हैं। मिशेल की पसंद की बात होने लगी है। उनके पसंद के रंग बताये जाने लगे हैं। मतलब कि अब ओबामा सबसे अधिक बिकाऊ मीडिया आईटम हो गये हैं।
अपने देश में भी लोग कहने लगे हैं यार एक ठो ओबामा इधर भी चाहिये। यहां भी आये तो कुछ काम बनें। ओबामा का मतलब अगर अल्पसंख्यक, अश्वेत, वंचित समुदाय से आने की बात है तो भारत में ऐसे कई ओबामा टुकड़ों-टुकड़ों में आये और कालांतर में अपनी गति को प्राप्त हुये। एक नहीं कई। इसका जिक्र रवीश कुमार ने अपनी पोस्ट में किया है।
ओबामा से अभी अमेरिका के लोगों को तमाम आशाये हैं। महाबली पस्त है। लेकिन उनके हाथ में कोई जादू की छड़ी तो है नहीं। वे जो भी निर्णय लेंगे उनसे पलक झपकाते उनके संकट तो खतम नहीं हो जायेंगे। फ़ुरसतिये-बतकटिये लोग लिये खुर्दबीन ओबामा की हरकतों पर निगाहें जमाये हैं ताकि मौका मिलते है उनकी खिंचाई या जयजयकार शुरू किया जाये।
यह संयोग है कि आज अमेरिका की हालत पतली सी है। सेनायें फ़ंसी हैं। बैंको को डुबा दिया मिलके उनके लालों नें। अमेरिका धिरा है तमाम बवालों में। सो उनको ऐसा आदमी चाहिये जो फ़ालतू की फ़ूं-फ़ां में टाइम वेस्ट की बजाय अपनी हालत ठीक कर दे। कल को संभव है कि अमेरिका की आर्थिक हालत अच्छी हो जाये। उसकी सेनायें अपने घर में आ जायें। फ़िर संभव है कोई देश उससे अकड़े और ओबामा उस पर हमला न करें तो वे शायद वहां अलोकप्रिय हो जायें। लोग कहें -यार, इत्ता मुलायम राष्ट्रपति कौन काम का? इससे अच्छा तो बुश था जो बरबाद कर गया लेकिन उनके यहां घुस के मारा तो।
अब आप देखिये कि भारत और अमेरिका में कित्ते भी अन्तर हों लेकिन एक मामले में हम और अमेरिकाजी एक जैसे हैं। हम भी इंतजार करते हैं कि कोई आये अभिमन्यु आये और समस्याओं के चक्रव्यूह से हमारा उद्धार करके चला जाये, उधर अमेरिकाजी भी इंतजार करते हैं कि कोई ओबामा आये और हमें संकट से उबारे।
जिसे देखो कहता है-
इस चक्रव्यूह को तोड़ने के लिये एक ठो अभिमन्यु चाहिये।
चक्रव्यूह में फ़ंसे कि अभिमन्यु याद आये।
चक्रव्यूह भी काहे का?
हरेक को अपना हर झमेला
चक्रव्यूह नजर आता है।
जरा सा फ़ंसा नहीं
अभिमन्यु को बुलाता है।
अब अभिमन्यु भी बेचारा क्या करे?
कहां-कहां जाये?
किसके-किसके चक्रव्यूह में घुस जाये?
उसकी तो हालत है यार
जिसे कहते हैं न,
एक अनार सौ बीमार!
लेकिन अभिमन्यु पैदा करने के भी
एक कायदे का बाप चाहिये।
ऐसा बाप जो कायदे से
उसकी मां को चक्रव्यूह भेदन की
कहानी सलीके से सुनाये।
ऐसे कि मां बोर न हो
जम्हुआकर सो न जाये।
सातों दरवाजे तोड़ने की कथा पूरी सुने फ़िर आराम से सो जाये
ताकि अभिमन्यु आये तो चक्रव्यूह के अंन्दर ही न मारा जाये।
हमें इंतजार है अभिमन्यु का
लेकिन अब अभिमन्यु भी समझदार हो गया है
वो भी अपने लिये अनुकूल माहौल का इंतजार कर रहा है।
वो आयेगा लेकिन आहिस्ते से
देख-दाख के आयेगा।
कोई भी अपनी जान फ़ालतू में
फ़ंसाना नहीं चाहता!
हमारे पास कोई चारा भी नहीं है जी
सिवाय इंतजार के।
हम तो अभिमन्यु बनने से रहे
हमारे अपने ही लफ़ड़े कम हैं क्या यार
जो फ़ालतू में अपनी जान फ़ंसाये यार
अभिमन्यु के लिये तो कर लेंगे जी हम इंतजार!
इंतजार का मजा ही कुछ और है।
एक ठो ओबामा इधर भी लाओ यार
By फ़ुरसतिया on January 22, 2009
बराक ओबामा
कल हम बराक ओबामा के
शपथ ग्रहण के बाद के कुछ किस्से देख रहे थे। शरमाते हुये से शपथ के लिये
आगे जाते ओबामा। बाइबल पर शपथ लेने के लिये रखे हाथ की अंगूठी। शपथ लेने
के बाद ओबामा की बच्ची का विजयी भाव में अंगूठे का विजयी निशान दिखाती उसकी
बच्ची। फ़िर पत्नी के साथ डांस करते , चूमते हुये हुये ओबामा। ओबामा की खूबियां एक-एक करके सामने पेश की जाने लगीं हैं। उनकी पत्नी मिशेल की खूबियां बखान होने लगी हैं। बच्चियां किस पर पड़ी हैं इसकी चर्चा होने लगी हैं। मिशेल की पसंद की बात होने लगी है। उनके पसंद के रंग बताये जाने लगे हैं। मतलब कि अब ओबामा सबसे अधिक बिकाऊ मीडिया आईटम हो गये हैं।
अपने देश में भी लोग कहने लगे हैं यार एक ठो ओबामा इधर भी चाहिये। यहां भी आये तो कुछ काम बनें। ओबामा का मतलब अगर अल्पसंख्यक, अश्वेत, वंचित समुदाय से आने की बात है तो भारत में ऐसे कई ओबामा टुकड़ों-टुकड़ों में आये और कालांतर में अपनी गति को प्राप्त हुये। एक नहीं कई। इसका जिक्र रवीश कुमार ने अपनी पोस्ट में किया है।
ओबामा से अभी अमेरिका के लोगों को तमाम आशाये हैं। महाबली पस्त है। लेकिन उनके हाथ में कोई जादू की छड़ी तो है नहीं। वे जो भी निर्णय लेंगे उनसे पलक झपकाते उनके संकट तो खतम नहीं हो जायेंगे। फ़ुरसतिये-बतकटिये लोग लिये खुर्दबीन ओबामा की हरकतों पर निगाहें जमाये हैं ताकि मौका मिलते है उनकी खिंचाई या जयजयकार शुरू किया जाये।
यह संयोग है कि आज अमेरिका की हालत पतली सी है। सेनायें फ़ंसी हैं। बैंको को डुबा दिया मिलके उनके लालों नें। अमेरिका धिरा है तमाम बवालों में। सो उनको ऐसा आदमी चाहिये जो फ़ालतू की फ़ूं-फ़ां में टाइम वेस्ट की बजाय अपनी हालत ठीक कर दे। कल को संभव है कि अमेरिका की आर्थिक हालत अच्छी हो जाये। उसकी सेनायें अपने घर में आ जायें। फ़िर संभव है कोई देश उससे अकड़े और ओबामा उस पर हमला न करें तो वे शायद वहां अलोकप्रिय हो जायें। लोग कहें -यार, इत्ता मुलायम राष्ट्रपति कौन काम का? इससे अच्छा तो बुश था जो बरबाद कर गया लेकिन उनके यहां घुस के मारा तो।
अब आप देखिये कि भारत और अमेरिका में कित्ते भी अन्तर हों लेकिन एक मामले में हम और अमेरिकाजी एक जैसे हैं। हम भी इंतजार करते हैं कि कोई आये अभिमन्यु आये और समस्याओं के चक्रव्यूह से हमारा उद्धार करके चला जाये, उधर अमेरिकाजी भी इंतजार करते हैं कि कोई ओबामा आये और हमें संकट से उबारे।
अभिमन्यु का इंतजार
अजीब हाल है यारजिसे देखो कहता है-
इस चक्रव्यूह को तोड़ने के लिये एक ठो अभिमन्यु चाहिये।
चक्रव्यूह में फ़ंसे कि अभिमन्यु याद आये।
चक्रव्यूह भी काहे का?
हरेक को अपना हर झमेला
चक्रव्यूह नजर आता है।
जरा सा फ़ंसा नहीं
अभिमन्यु को बुलाता है।
अब अभिमन्यु भी बेचारा क्या करे?
कहां-कहां जाये?
किसके-किसके चक्रव्यूह में घुस जाये?
उसकी तो हालत है यार
जिसे कहते हैं न,
एक अनार सौ बीमार!
लेकिन अभिमन्यु पैदा करने के भी
एक कायदे का बाप चाहिये।
ऐसा बाप जो कायदे से
उसकी मां को चक्रव्यूह भेदन की
कहानी सलीके से सुनाये।
ऐसे कि मां बोर न हो
जम्हुआकर सो न जाये।
सातों दरवाजे तोड़ने की कथा पूरी सुने फ़िर आराम से सो जाये
ताकि अभिमन्यु आये तो चक्रव्यूह के अंन्दर ही न मारा जाये।
हमें इंतजार है अभिमन्यु का
लेकिन अब अभिमन्यु भी समझदार हो गया है
वो भी अपने लिये अनुकूल माहौल का इंतजार कर रहा है।
वो आयेगा लेकिन आहिस्ते से
देख-दाख के आयेगा।
कोई भी अपनी जान फ़ालतू में
फ़ंसाना नहीं चाहता!
हमारे पास कोई चारा भी नहीं है जी
सिवाय इंतजार के।
हम तो अभिमन्यु बनने से रहे
हमारे अपने ही लफ़ड़े कम हैं क्या यार
जो फ़ालतू में अपनी जान फ़ंसाये यार
अभिमन्यु के लिये तो कर लेंगे जी हम इंतजार!
इंतजार का मजा ही कुछ और है।
लेकिन अब अभिमन्यु भी समझदार हो गया है
वो भी अपने लिये अनुकूल माहौल का इंतजार कर रहा है।
वो आयेगा लेकिन आहिस्ते से
देख-दाख के आयेगा।
कोई भी अपनी जान फ़ालतू में
फ़ंसाना नहीं चाहता!
“अभिमन्यु भी लगता है चिट्टा चर्चा पढ़ कर सीख रहा है हा हा हा कब कब क्या क्या करना बोले तो लिखना चाहिए …ओबामा का आँखों देखा हाल मजेदार रहा….”
Regards
बेहतरीन आलेख.
सिवाय इंतजार के।
हम तो अभिमन्यु बनने से रहे
हमारे अपने ही लफ़ड़े कम हैं क्या यार
जो फ़ालतू में अपनी जान फ़ंसाये यार
अभिमन्यु के लिये तो कर लेंगे जी हम इंतजार!
बहुत लाजवाब. अब तो सही मे ओबा-मामा क्या करेंगे? देखना दिल्चस्प होगा.
रामराम.
हमारे अपने ही लफ़ड़े कम हैं क्या यार
जो फ़ालतू में अपनी जान फ़ंसाये यार
अभिमन्यु के लिये तो कर लेंगे जी हम इंतजार…” बहुत खूब कही है…
भगतसिंह पैदा तो होना चाहिये, लेकिन पड़ोसी के घर पर… मेरा नौनिहाल तो सॉफ़्टवेयर इंजीनियर बने और अमेरिका जाये तो जीवन तर जाये…
One 0–MA was (/ is??) the one who has created certain hopelessness and the other O–MA is the one who came up with Hope for America!!
जरा को धीर धरो गुरु,
पंडिताइन ने अपुन के थोबड़े पर फ़ेयर एन लवली लगाने से
तत्काल प्रभावी पाबंदी लगा दी है । बड़ी कड़ाई से अपुन की निगरानी चल रैली है ।
कलमुँहीं गोरेपन की इस नामुराद क्रीम का इफ़ेक्ट उतरते ही,
जौन कहोगे तौन बन के हाज़िर होता हूँ ।
तब तक आप इसी तरियों की घणी ढिंचक पोस्ट लिखने में अपना मन लगाते रहो ।
तो फिर मिलता हूँ… आदाब अर्ज़ है !:)
खैर हमें क्या… जो मन में आया बक गए
अब आपसे क्या हिसाब किताब करना . अपने ही आदमी हैं . जितने ओबामा चाहिए रख लेना बाकी वापस भेज देना .या और जरूरत हो तो बता देना . शरमाने की क्या बात है !
- आपका विवेक
ekdam sadha hua vyangy…sadhuwaad.
अब हमे हिटलर चाहिये…..जेसे जर्मन सीधा हो गया, यहां के लोग सीधे हो गये वेसे ही हमे भी कोई सीधा सिरफ़ हिटलर जेसा ही कर सकता है, आम आदमी के हम बस के नही.
धन्यवाद
चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..इधर से गुजरा था सोचा सलाम करता चलूँ…