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दिल तो दिल है, दिल का ऐतबार क्या क्या कीजै
By फ़ुरसतिया on February 14, 2009
और देखते-देखते वेलेंटाईन दिवस आ गया। हम सोचते ही रह गये कुछ लिखा
जायेगा लेकिन न लिख पाये। सोचा दो साल पहले का लिखा हुआ दुबारा पढ़वाया
जाये। जो साथी इसे पहले ही पढ़ चुके हैं उनको झांसा देने के लिये ऊपर पोस्ट
का शीर्षक बदल दिया है लेकिन ईमानदारी के तकाजे के तहत बता रहे हैं कि पोस्ट दो साल पहले की पोस्ट की रिठेल है।
राजा दिल मांगे चवन्नी उछाल के”
देश एक बार फिर वेलेंटाइन दिवस के चपेटे में है!
वेलेंटाइन-बुखार में जकड़ गया है देशचारों तरफ़ वातावरण वेलेंटाइन मय हो रहा है। हवाऒं में सरसराहट बढ़ गयी है। स्पेशल आर्डर देकर देश में इंद्र भगवान से पानी का छिड़काव करवाया गया है। फसलें पानी में भीग-भीग कर इतनी इतनी खुश हो गयीं हैं कि खुशी के मारे जमीन में लोट-पोट हो रही हैं। वी आई पी इलाकों में ऒले भी गिरवाये गयें। चारों तरफ़ फूलों से हंसते रहने के लिये बोल दिया गया है। कलियां से मुस्कराने को कहा गया है। भौंरों से कहा गया है कि कलियों पर मंडरायें लेकिन जरा तमीज़ से! सारा तमाशा होगा लेकिन कायदे से। सारा काम प्रोटोकाल के हिसाब से होगा।
लैला सा पागलपना,मजनू जैसा भेस,
मजनू जैसा भेस कि सब बौराये हुये हैं
प्रेम,प्यार, स्नेह,खुमारी मे लिपटाये हुये हैं,
कह ‘अनूप’ सब मिलि चक्कर ऐसि चलाइन,
देश के सब प्रेमी भू्ल गये बस याद रहे वेलेंटाइन!
आनंद पर अनुशासन की निगाह रहेगी। ये नहीं कि भौंरा किसी झरते हुये फूल पर अलसाया सा बैठा है और उधर कोई कली अपने सौंन्दर्य पर खुद ही रीझते हुये खीझ रही है। हर एक से उसके पद की गरिमा के अनुरूप आचरण होगा। हां,तितलियों को आजादी है कि वे जिसके ऊपर चाहें -मंडरायें।आनंद पर अनुशासन की निगाह रहेगी। ये नहीं कि भौंरा किसी झरते हुये फूल पर अलसाया सा बैठा है और उधर कोई कली अपने सौंन्दर्य पर खुद ही रीझते हुये खीझ रही है। हर एक से उसके पद की गरिमा के अनुरूप आचरण होगा। हां,तितलियों को आजादी है कि वे जिसके ऊपर चाहें -मंडरायें। फूल, कली, भौंरा किसी के भी चारों तरफ़ चक्कर लगायें। तितलियां बगीचे की ‘बार- बालायें’ होती हैं वे कहीं भी आ-जा सकती हैं।
कहते हैं कि वेलेंटाइन दिवस संत वेलेंटाइन की याद में मनाया जाता है। उनके समय में सैनिकों के शादी करने पर रोक थी लेकिन संत वेलेंटाइन उनकी शादी चोरी-छिपे करा देते थे। एक बार शादी करवाते राजा ने उनको पकड़ लिया और उनकी बरबादी हो गयी। १४ फरवरी के ही दिन उनका फांसी पर लटकाया गया इसलिये यह दिन उनके नाम पर मनाया जाता है।
सन्त वेलेंटाइन मरे १४वीं सदी में और उनके नाम का दिन मनाना शुरू हुआ १७ वीं सदी से। भारत में तो पिछ्ले आठ-दस साल में शुरू हुआ। हाय, बताओ हमारे देश के लोग छह सौ साल गफलत में पड़े रहे। दुनिया से हम तीन सौ साल पीछे हो गये। तीन सौ साल दुनिया वालों ने ज्यादा प्रेम कर लिया और हम भुक्क बने ताकते रहे। लगता है प्रेम हो या तकनीक हर मामले में पिछड़ जाना हमारी नियति है।
लोग पूछते हैं प्रेम के लिये हम संत वेलेंटाइन का मुंह काहे ताकते हैं। वे खुद तो सीधे प्रेम करते नहीं थे। प्रेम करने वालों को मिलवाते थे। मध्यस्थ थे। इसके मुकाबले हम कॄष्ण को काहे नहीं पूजते हैं जो खुद प्रेम के प्रतीक थे। कृष्ण तो वेलेंटाइन से पहले की पैदाइश हैं, सीनियारिटी के लिहाज से भी उनका हक बनता है प्रेम दिवस पर। वे सौन्दर्य के भी प्रतीक हैं , प्रेम के भी, दोस्ती की मिसाल भी है उनकी, महाभारत के अप्रत्यक्ष सूत्रधार भी। जब-जब भारत में धर्म की जरा सी भी हानि हुयी, फट से आकर धर्म की स्थापना कर दी। हर मामले में वेलेंटाइन से बीस। फिर भी ये प्रेम दिवस उनके हाथ से फिसलकर वेलेंटाइन की गोद में कैसे जा गिरा। हम कैसे उनको छोड़कर वेलेंटाइन के खेमें में आ गये?
हम कहते हैं भैये ये ‘करनेवाले‘ और ‘करवाने वाले’ का अंतर है। कॄष्ण सारे काम खुद करते थे। जबकि वेलेंटाइनजी काम करवाते थे। कॄष्ण प्रेम करते थे, वेलेंटाइनजी प्रेम करवाते थे। कॄष्ण ने सोलह हजार शादियां खुद कीं जबकि वेलेंटाइनजी अपनी तो एक भी नहीं की और जो शादियां करायी उनकी संख्या कहो चार अंकों तक भी न पहुंची हो। इसके बावजूद हमारे यहां ‘प्रेम दिवस’ कॄष्णजी के नाम पर न रखकर वेलेंटाइन जी के नाम पर रखा जाता है तो इसका कारण सिर्फ और सिर्फ एक है वह यह कि अपने देश में करने वाले से करवाने वाला हमेशा बड़ा होता है।
चारों तरफ़ फूलों से हंसते रहने के लिये बोल दिया गया है। कलियां से मुस्कराने को कहा गया है। भौंरों से कहा गया है कि कलियों पर मंडरायें लेकिन जरा तमीज़ से!फिर जो ‘ग्रेस’ वेलेंटाइन की दुग्ध धवल दाढ़ी है वह भला कृष्ण की दुध मुंही तस्वीर में कहां। हम अपने नायकों को अपनी मर्जी के सांचे में ढाल कर पूजते रहने के आदी हैं। कॄष्ण को देश कभी घुट्नों से ऊपर उठने की नहीं देता। ‘किलकत कान्ह घुटुरुवन आवत’ और ‘मोर मुकुट, कटि काछनी,कर मुरली उर वैजंती माल’से ज्यादा जिम्मेदारी नहीं सौंपी जाती कॄष्णजी को। उनको चिर-नाबालिग या फिर सजावट का सामान बना रखा है उनके भक्तों ने!
यह दुनिया जानती है कि वेलेंटाइन दिवस का प्रेम से कोई लेना-देना नहीं है। यह वेलेंटाइन दिवस नहीं ‘उपहार दिवस’ है। ‘बाजार दिवस’ है। यह ‘वेलेंटाइन डे’ नहीं ‘मार्केट डे’ है। क्या बात है कि आप अपना प्रेम प्रदर्शित करने के लिये कार्डों के मोहताज हो जाते हैं! कार्ड नहीं तो प्रेम नहीं । ग्रीटिंग कार्ड वह सुरंग हो गयी है जिससे होकर ही दिल के किले पर फतह हासिल हो सकती है।
प्रेम के लिये केवल एक दिन रखना प्रेमियों के साथ निहायत नाइंसाफ़ी है। लेकिन लोग इसी में राजी हैं तो कोई क्या कर सकता है। लोग इसी दिन अपना प्रेम दिखा कर छुट्टी कर लेना चाहते हैं।
मैं कल्पना करता हूं कि देश में कैसे वेलेंटाइन दिवस मनाया जा सकता है।
मैं देख रहा हूं कि मेरे बगीचे में खिला हुआ एक झरता हुआ गुलाब बगल की कली से सट गया है। अपनी पत्ती को वो कली पर ग्रीटिंग कार्ड की तरह उसके ऊपर गिराता हुआ उसे हैप्पी वेलेंटाइन डे बोल रहा है। बगल के दूसरे फूल हिलते हुये ताली सी बजा कर इस प्रेमालाप का आनंद उठा रहे हैं।
अशिक्षा, बेरोजगारी के गले मिलकर उसे मुबारकबाद दे रही है, धार्मिक कट्टरता, सांप्रदायिकता के गले मिल रही है, काहिली, क्षेत्र वाद से नैन लड़ा रही है, हरामखोरी, लालफीताशाही पर डोरे डाल रही है, घपले-घोटाले ,गोपनीयता से लस्टम-पस्टम हो रहे हैं, नैतिकता अवसरवाद की गोद में पड़ी अठखेलियां कर रही है और बेईमानी, भाई-भतीजावाद की आंखों में आंखें डाले गाना गा रही है -हम बने तुम बने एक दूजे के लिये।उधर देखो अशिक्षा, बेरोजगारी के गले मिलकर उसे मुबारकबाद दे रही है, धार्मिक कट्टरता सांप्रदायिकता के गले मिल रही है, काहिली, क्षेत्र वाद से नैन लड़ा रही है, हरामखोरी, लालफीताशाही पर डोरे डाल रही है, घपले-घोटाले ,गोपनीयता से लस्टम-पस्टम हो रहे हैं, नैतिकता अवसरवाद की गोद में पड़ी अठखेलियां कर रही है और बेईमानी, भाई-भतीजावाद की आंखों में आंखें डाले गाना गा रही है -हम बने तुम बने एक दूजे के लिये। सब वेलेंटाइन डे मना रहे है। आपस में प्रेमप्रदर्शन कर रहे हैं। पूरा देश वेलेंटाइन-बुखार में जकड़ा है।
देखिये इस तरफ़ भ्रष्टाचार ने कर्तव्यपरायणता के गलबहियां डाल दी हैं, अज्ञानता , अंधविश्वास को अपनी गोद में उठाकर उसकी बलैया ले रही है, व्यक्तिगत स्वार्थ ने ईर्ष्या पर डोरे डालने शुरू कर दिये हैं,प्रशासनिक निरंकुशता ने सूचना के अधिकार को दबोचकर नीचे पटक दिया और और उसे गुदगुदी करते हुये उसे हैप्पी वेलेंटाइन डे बोल रहा है। सूचना के अधिकार का सांस रुकने के कारण चेहरा लाल हो रहा है। लोग यह सोचकर खुश हो रहे हैं कि सूचना का अधिकार निरंकुशता के प्रेम में अपने कपोल लाल कर रहा है।
एक तरफ़ जहां लोग वेलेंटाइन दिवस मनाने के लिये लोग उचक-फुदक रहे हैं वहीं दूसरी तरफ़ तमाम संस्कृति के रक्षक अपनी लाठियों में तेल पिला-पिलाकर
‘हैप्पी वेलेंटाइन डे’ बोलने वालों के मुंह में ठूंसने की तैयारी कर रहे हैं। चूंकि मुंह ज्यादा हैं इसलिये ज्यादा लाठियों का इंतजाम करना पड़ सकता है। एकाध कच्चे स्वयंसेवक अपनी-अपनी वेलंटाइनों को याद करते हुये सोच रहे हैं कि उनके पास काम के पहले जाना ठीक रहेगा या लाठी भांजने के बाद!
इसी सिलसिले में हमारे एक बेहद अजीज दोस्त आ गये और गद्दी झाड़कर हमारे धौल जमाते हुये बतियाने लगे। उनकी आदत है कि वे अपनी बात सवालों से कहते हैं। उनके सवाल ही उनका बयान होता है। जैसे कुछ लोग दुनिया को कोसने का काम अपने को कोसकर पूरा करते हैं। उन्होंने बिना शाहरुक खान की तरह ‘अ-आ-आआआ’ किये और बिना किसी चेतावनी के सवाल दागने शुरू कर दिये। जब वे सवाल पूछते हैं तो मजबूरन जवाब देने का काम हमें करना पड़ा!
सवाल: ये वेलेंटाइन दिवस काहे मनाते हैं लोग?
जवाब:वेलेंटाइन दिवस संत वेलेंटाइन की याद में मनाया जाता है। उनके समय में सैनिकों के शादी करने पर रोक थी लेकिन संत वेलेंटाइन उनकी शादी चोरी छिपे करा देते थे। एक बार शादी करवाते राजा ने उनको पकड़ लिया और उनकी बरबादी हो गयी। १४ फरवरी के ही दिन उनका फांसी पर लटकाया गया इसलिये यह दिन उनके नाम पर मनाया जाता है।
इस तरफ़ भ्रष्टाचार ने कर्तव्यपरायणता के गलबहियां डाल दी हैं, अज्ञानता , अंधविश्वास को अपनी गोद में उठाकर उसकी बलैया ले रही है, वयक्तिगत स्वार्थ ने स्वार्थ को ईर्ष्या पर डोरे डालने शुरू कर दिये हैं,प्रशासनिक निरंकुशता ने सूचना के अधिकार को दबोचकर नीचे पटक दिया और और उसे गुदगुदी करते हुये उसे हैप्पी वेलेंटाइन डे बोल रहा है।सवाल: संत वेलेंटाइन कब मरे? ये वेलेंटाइन दिवस कब से मनाया जा रहा है?
जवाब: वे मरे तो सन १४ वीं शताब्दी में थे लेकिन दिवस मनाना १७०० से शुरू हुआ। फिर १९वीं शताब्दी में इसने जोर पकड़ा। और अब तो क्रिसमस के बाद सबसे बड़ा त्योहार यही मनाया जाता है। भारत में पिछ्ले आठ-दस साल से यह बुखार कुछ जोर पकड़ा है।
सवाल: इसमें क्या-क्या किया जाता है? कैसे मनाया जाता है?
जवाब: इसमें मुख्य रूप से तो प्रेम प्रकट करना पड़ता है। आपके पास जितना प्रेम है किसी के लिये वो सब उड़ेल कर सौपं दो उसको जिसके लिये आपके मन में प्रेम हो। लोग अपने-अपने प्यार का सारा स्टाक क्लियर कर देते हैं। एकदम खलास हो जाते हैं साल भर के लिये। मनाने के तरीक के बारे में जैसा हमें पता है वह यह है कि
लोग सबेरे-सबेरे उठकर मुँह धोए बिना जान-पहचान के सब लोगों को ‘हैप्पी वैलेंटाइन डे’ बोलते हैं। हैप्पी तथा सेम टू यू की मारामारी मची रहती है। दोपहर होते-होते तुमने मुझे इतनी देर से क्यों किया। जाओ बात नहीं करती की शिकवा शिकायत शुरू हो जाती है। शाम को सारा देश थिरकने लगता है। नाचने में अपने शरीर के सारे अंगों को एक-दूसरे से दूर फेंकना होता है। स्प्रिंग एक्शन से फेंके गए अंग फिर वापस लौट आते हैं। दाँत में अगर अच्छी क्वालिटी का मंजन किया हो तो दाँत दिखाए जाते हैं या फिर मुस्कराया जाता है। दोनों में से एक का करना ज़रूरी है। केवल हाँफते समय, सर उठाकर कोकाकोला पीते समय या पसीना पोंछते समय छूट मिल सकती है।
सवाल: अच्छा ये बताऒ कि ये बजरंग दल वाले तथा कुछ और लोग इसका विरोध काहे करते हैं?
जवाब: ये तो सिद्धान्तों की लड़ाई है। जैसे कि बताया कि वेलेंटाइनजी शादी कराते थे जबकि हनुमान जी कुंवारे थे। हनुमान जी के जो सच्चे भक्त हैं जो इसका विरोध करते हैं वे भी कुंवारे ही होते हैं। उनको डर रहता है कि संत वेलेंटाइन की याद कोई उनका भी कुंवारापन न छीन ले इसीलिये वे इसका विरोध करते हैं।
वेलेंटाइनजी शादी कराते थे जबकि हनुमान जी कुंवारे थे। हनुमान जी के जो सच्चे भक्त हैं जो इसका विरोध करते हैं वे भी कुंवारे ही होते हैं। उनको डर रहता है कि संत वेलेंटाइन की याद कोई उनका भी कुंवारापन न छीन ले इसीलिये वे इसका विरोध करते हैं।सवाल: अच्छा ये अपने देश में प्रेम के तमाम प्रतीक हैं लेकिन ये संत वेलेंटाइन को ही काहे चुना गया इस प्रतीक के लिये?
जवाब: एक तो इसलिये कि इम्पोर्टेड आइटम की बात ही कुछ और होती है। दूसरी बात चूंकि संत वेलेंटाइन के लिये कार्ड दुनिया भर में छपते ही हैं इसीलिये इसीदिन सब निपटा देते हैं। अगर अपने यहां के किसी चरित्र पर मनाया जायेगा इसे तो फिर सब कुछ अपने यहां इंतजाम करना पड़ेगा। फिर अंग्रेजी में इतने कार्ड भी शायद न मिल पायें!
सवाल: इससे क्या फायदा मिलता है देश को?
जवाब: फायदा यही है कि कल तक किसी बांगडूं की तरह घूमते लोग भी झटके से किसी को ‘वेलेंटाइन डे’ पर अपने दिल की बात कह देने की हिम्मत आ जाती है। जो लड़के सारे साल लड़कियों को हेलो तक कहने में शरमाते रहते हैं वे तक अपने मुंह और मूंछ फैलाकर हैप्पी वेलेंटाइन डे कहते रहते हैं। जो ज्यादा हिसाबी होते हैं वे वेलेंटाइन के आड़ में ‘इलू-इलू’ भी करने लगते हैं। जैसे अमेरिका दूसरे देशों में लोकतंत्र की स्थापना की आड़ में वहां कब्जा कर लेता है वैसे ही तमाम लोग इस मौके का फायदा उठाकर लोगों के दिलों में अपने प्यार की पताका फहरा देते हैं। सारे देश के लोग अपने-अपने दिल उछालते रहते हैं इस इंतजार में कि कोई उसे लपक ले। लेकिन कहा गया है न:
कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता
कभी जमीं तो आसमां नहीं मिलता।
तो अक्सर लोगों को कोई ऐसा मिलता नहीं जिससे वे कह सकें और डरते-डरते कहते भी हैं तो उनके दिल पर पहले ही उनके किसी रकीब का झंडा फहरा रहा है।
इसीलिये लोग सबेरे-सबेरे जो मिलता है उसी को ‘हैप्पी वेलेंटाइन डे’ बोलकर दिन शुरु कर देते हैं। अपने दिल को अपने जेब में रखते हैं और जहां कोई दिखा अपना दिल उछालकर उसकी तरफ़ फ़ेंक दिया। अगर कैच हो गया तो ठीक वर्ना फिर नये सिरे से उछालते हैं। नये सिरे से ‘हैप्पी वेलेंटाइन डे’ बोलते हैं।
आप काहे गुमसुम बैठे हो। अभी भी दिल उछालने में झिझक हो रही है। चलिये आपका भी इंतजाम किये देते हैं। आप कुछ रुपयों की चवन्नियां ले आइये और उनको उछालते रहिये। ये चवन्नियां आपके दिल के इजहार हैं। पुराने जमाने में कहा भा गया है-राजा दिल मांगे चव्वनी उछाल के।
चलिये वेलेंटाइन दिवस पर अपना दिल उछालिये, न जाने कौन लपकने के लिये तैयार बैठा हो। दिल में गाने की चिप न लगाना भूलियेगा-
चलो दिलदार चलो, चांद के पार चलो, हम हैं तैयार चलो!
जिन लोगों को यह एतराज है कि वेलेंटाइन दिवस पर हमने केवल दिल की बात की और केवल दिल उछालने वाले प्रेम की बात की। यह प्रेम का संकुचित अर्थ है! सार्वभौमिक प्रेम जो इंसान और इंसान के बीच के होता है उसकी हमने अनदेखी की उनसे हमारा यही कहना है कि हमारा दिल सिर्फ़ यही कहने के लिये हो रहा था-दिल तो दिल है, दिल का ऐतबार क्या क्या कीजै!हमने दिल की बात कह ली अब आप सार्वभौमिकता की बात कर लीजिये!
मेरी पसंद
शाम- सुबह महकी हुई
देह बहुत बहकी हुई
ऐसा रूप कि बंजर-सा मन
चंदन-चंदन हो गया।
रोम-रोम सपना संवरा
पोर-पोर जीवन निखरा
अधरों की तृष्णा धोने
बूंद-बूंद जलधर बिखरा।
परिमल पल होने लगे
प्राण कहीं खोने लगे
ऐसा रूप कि
पतझर सा मन
सावन-सावन होने लगा।
दूर हुई तनहाइयां
गमक उठी अमराइयां
घाटी में झरने उतरे
गले मिली परछाइयां।
फूलों-सा खिलता हुआ
लहरों सा हिलता हुआ
ऐसा रूप कि
खण्डहर सा मन
मधुवन-मधुवन होने लगा।
डूबें भी , उतरायें भी
खिलें भी और कुम्हलायें भी
घुलें-मिलें तो कभी-कभी
मिलने मे शरमायें भी।
नील वरन गहराइयां
सासों में शहनाइयां
ऐसा रूप कि
सरवर सा मन
दर्पण-दर्पण हो गया।
विनोद श्रीवास्तव विनोद श्रीवास्तव हमारे कानपुर के प्रिय गीतकार हैं! उनकी और रचनायें आप
अभिव्यक्ति में पढ़ सकते हैं।
मेरी पसंद वाला कवितवा बहुते नीमन लगा..
-विजय
वाह, बहुत बढ़िया !
घुघूती बासूती
मस्त है..
आपको वैलेन्टाइन महायोद्धा घोषित किया जाता है ।
बहुत बढ़िया मजेदार . धन्यवाद.
प्रेम दिवस की शुभकामनाएं
—
गुलाबी कोंपलें
वैलेण्टाइन डे पर आप को भी बहुत बहुत बधाई जी।
अच्छा लिखा है।
चारों तरफ़ वातावरण वेलेंटाइन मय हो रहा है। …इ बात तो सच ही है……जहां देखो इ विषय पे चर्चा है….कहीं अच्छी तो कहीं खराब…..जो भी है आपके इस पुराने लेख ने कुछ ताजगी दी है…..ये दिन क्यूँ बनाया जाता है….इसका भी खुलासा हुआ इस लेख मे….कुछ दुःख जरुर हुआ पढ़कर….की किसी को फंसी हुई और …….जाने दीजिये चुप रहना बहतर है….”
डूबें भी , उतरायें भी
खिलें भी और कुम्हलायें भी
घुलें-मिलें तो कभी-कभी
मिलने मे शरमायें भी।
” कितने नाजुक से शब्द और भाव है…..पढ़कर सुखद लगा..”
वैलेण्टाइन डे पर आप को भी बहुत बहुत बधाई
Regard
मगर सच ये है कि ये लेख मैं पहली बार पढ़ा है
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‘युवा’ ब्लॉग पर आपकी अनुपम अभिव्यक्तियों का स्वागत है !!!
और लेखबा इतना लंबा{मगर दिल्चस्प} है कि फिर आवेंगे पढ़ने
भाई अब आप यही सब कहेंगे! आंय! जबकि मन इ मन सोचि रहे होंगे कि काश! अपन ज़माने में चलै होत इ रिवाज त मज़ा आ गै होत! है कि ना?
शुकूलजी का वेलेंटाईनी पोस्ट आबाद रहेगा!
मुम्बई हो या रतलाम
संत वेलेंटाईन हो या घनश्याम
राजा का दिल तो चवन्नी उछलबे करेगा
लैला सा पागलपना,मजनू जैसा भेस,
मजनू जैसा भेस कि सब बौराये हुये हैं
प्रेम,प्यार, स्नेह,खुमारी मे लिपटाये हुये हैं,
कह ‘अनूप’ सब मिलि चक्कर ऐसि चलाइन,
देश के सब प्रेमी भू्ल गये बस याद रहे वेलेंटाइन!