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फोटो बायें से: 1. कुश-सैयद 2.कुश-अनूप 3. अनूप,कुश और सैयद 4.अनूप,कुश और सैयद 5. सैयद-अनूप 6. कुश-अनूप
वैसे यह बात तो लिखने की है। हमारे कानपुर की बोली बानी के गुरु शब्द के इतने मतलब हैं कि सिर्फ कहने और सुनने वाले का संबंध ही इसके मायने तय कर सकता है। जब गुरू में इत्ता लफ़ड़ा तो महागुरू के हाल न ही पूछिये।
खुशदीप से मिलने के बाद फ़िर जे.एन.यू. जाना हुआ। वहां श्रीश ’प्रखर ’ से मिलना हुआ। सागर को उन्होंने वहीं बुला लिया था। अमरेन्द्र सर घर गये थे। जाहिर है कि उनकी चर्चा काफ़ी हुई। उनसे फ़ोनालाप भी हुआ।
श्रीश हालांकि जे.एन.यू. में रिसर्च रत हैं लेकिन वे मॉडलिग में भी कैरियर आजमा सकते हैं। चाय शानदार बनाते हैं। उस दिन वहां का ऐतिहासिक गंगा ढाबा बंद था। पता चला कि बाहर के कुछ लड़के जे.एन.यू. की लड़कियों को छेड़कर चले गये थे। इसके चलते वहां का ढाबा बन्द हो गया था। ताज्जुब कि वहां की छात्राओं को बाहर के लोग छेड़कर चले जायें! सागर हड़बड़ाते हुये आये। सर्दी थी। दिल्ली में काम के चक्कर में चप्पल चटकाते हुये उनके बाल काफ़ी कम हो गये हैं। उनका खुद का मानना है कि वे धुंआधार सोचते हैं गजलों के बारे में इसीलिये उनके बालों ने समर्थन वापस ले लिया। कुश ने आज लिखा भी है उनकी पोस्ट में– कविताये लिखते हो या खौलते हुए तेल में तलते हो.. ? अब जहां से निकली कवितायें खौलती हुई लगें वहां बालों का टिकना कितना मुमकिन होगा?
ढेर सारा बतियाने के बाद जब हम लोगों श्रीश को छोड़ा इसके बाद सागर ने मुझे मेट्रो स्टेशन में विदा किया तो रात के साढ़े नौ बजे थे करीब। सर्द शाम की एक गर्मजोशी भरी मुलाकात अभी भी याद आ रही है।
फोटो बायें से 1. खुशदीप-अनूप 2. अनूप-सागर 3. अनूप-श्रीश प्रखर 4.सागर-श्रीश प्रखर
शेफ़ाली को जब हमने फोन किया तो पता चला कि वे उस समय पास रेव मोती से अपने घर के लिये निकल रहीं थीं। उनको भी हम वहीं ले आये और दो अध्यापिका ब्लागरों का मिलन हुआ। हम आपस में पहली बार मिले। पहले तो चाय की दुकान पर चाय-सत्रों के दौरान बातें हुईं। इसके बाद और गपशप हुई वहीं पर। फ़िर वन्दनाजी को ट्रेन पकड़ने जाना था सो हम लोग शेफ़ालीजी के यहां गये। रास्ते में उनकी बिटिया नव्या ने एक कविता सुनायी। कविता के बाद नव्या ने जो सुनाया वह आपने शायद पहले कभी न सुना हो। कैपिटल, स्माल और कर्सिव ए.बी.सी.डी. पड़ रखी होगी, लिखी भी होगी लेकिन सुनी नहीं होगी कभी आपने। लेकिन नव्या ने हमको तीनों तरह की अंग्रेजी वर्णमाला सुनाई। आप भी सुनिये नव्या की कविता और अंग्रेजी की वर्णमाला।
शेफ़ाली जी के घर में उनके पति श्री पांडेजी से मिलना हुआ। उन्होंने बताया कि शेफ़ाली का आत्मविश्वास ब्लॉगिंग शुरू करने के बाद बढ़ा है।शेफ़ाली ने अपनी माताजी की कविताओं की किताब भी हमको भेंट की। उन्होंने अपनी पोस्टों के ड्राफ़्ट भी दिखाये। वे पोस्ट लिखने के पहले उसको अपनी कापियों में लिखती हैं तब पोस्ट करती हैं।
साल की शुरुआत अपने पसंदीदा ब्लॉगर साथियों से सपरिवार मुलाकात एक खुशनुमा अनुभव है।
फ़ोटो: 1.सुनील,अनूप, विधु, वंदना,शेफ़ाली और नव्या 2.सुनील,अनूप, विधु, वंदना,शेफ़ाली और नव्या 3.वंदना-शेफ़ाली 4..नव्या अपनी मम्मी के साथ 5.शेफ़ाली और उनके पति 6. शेफ़ाली के पोस्ट ड्राफ़्ट
मैं पेड़ हूं तो पेड़ को फ़ल जाना चाहिये!
रिश्तों को क्यूं उठाये कोई बोझ की तरह
अब उसकी जिन्दगी से निकल जाना चाहिये।
जब दोस्ती भी फ़ूंक के रखने लगे कदम
फ़िर दुश्मनी तुझे भी संभल जाना चाहिये।
मेहमान अपनी मर्जी से जाते नहीं कभी
तुम को मेरे ख्याल से कल जाना चाहिये।
नौटंकी बन गया हो जहां पर मुशायरा
ऐसी जगह सुनाने ग़ज़ल जाना चाहिये।
इस घर को अब हमारी जरूरत नहीं रही
अब आफ़ताबे-उम्र को ढ़ल जाना चाहिये।
-मुनव्वर राना
नये साल में और गये साल में कुछ मुलाकातें
By फ़ुरसतिया on January 8, 2010
गुलाबी शहर में मिलना कुश से और लविजा के पापा से
बीता साल मजेदार बीता। तमाम अच्छे अनुभव जुड़े। उनके बारे में फ़िर कभी विस्तार से लिखेंगे। फ़िलहाल आप गये साल और नये साल के कुछ फ़ोटो देखिये। गये साल के आखिरी दिनों में राजस्थान में जयपुर, जोधपुर, अजमेर ,पुष्कर जाना हुआ। जयपुर में कुश और लविजा के पापा सैयद भाई से मिले। काफ़ी विद कुश में कुश ने कई साथियों को वर्चुअल काफ़ी पिलाई है। हम जयपुर गये तो एकसाथ तीन रियल कॉफ़ी पी के आये। कॉफ़ी के साथ ब्लॉगजगत के न जाने कित्ते किस्से घुले-मिले थे। और तो सब ठीक रहा लेकिन कुश जिस तरह मोटर साइकिल चलाते हैं उससे लगता है कि जयपुर के ट्रैफ़िक आफ़ीसर ने उनको चेतावनी दे रखी होगी कि बेटा जिस दिन कायदे से गाड़ी चलाते पकड़े गये उसी दिन चालान हो जायेगा। जयपुर में मौसम खुशनुमा और कुछ हल्का गुनगुना था। हमारे लौटते ही वहां शीत लहर चलने लगी।फोटो बायें से: 1. कुश-सैयद 2.कुश-अनूप 3. अनूप,कुश और सैयद 4.अनूप,कुश और सैयद 5. सैयद-अनूप 6. कुश-अनूप
दिल्ली में खुशदीप, श्रीश प्रखर और सागर से मुलाकात
जयपुर से लौटे तो साल का आखिरी दिन था। जहां रुके थे वहां से पास ही खुशदीप का घर था। उनसे मिलने गये। खुशदीप के परिवार वाले बरेली गये थे। खुशदीप पोस्ट बढ़िया लिखने के साथ चाय भी शानदार बनाते हैं। यह इसलिये बता रहे हैं कि अभी तक किसी ने शायद उनके इस हुनर की तारीफ़ नहीं की। खुशदीप ने ब्लॉग जगत में अपने आगमन के किस्से सुनाये। खुशदीप हमको ’महागुरूदेव ’ की उपाधि से विभूषित कर रखा है। हमने उनसे कहा –भैये, ब्लॉगजगत के हमारे लेख कोई सुधी पाठक पढ़ता होगा तो सोचता होगा कि ये ’महागुरुदेव’ लोग ऐसा चिरकुट लेखन करते हैं। लेकिन खुशदीप के अपने तर्क हैं लेकिन मुझे लगता है कि इस तरह की अतिशयोक्ति पूर्ण आभासी उपधियां हमारे दिमाग में हवा भर देती हैं और दिमाग को हवा में उड़ा देती हैं, हवा-हवाई बना देती हैं।वैसे यह बात तो लिखने की है। हमारे कानपुर की बोली बानी के गुरु शब्द के इतने मतलब हैं कि सिर्फ कहने और सुनने वाले का संबंध ही इसके मायने तय कर सकता है। जब गुरू में इत्ता लफ़ड़ा तो महागुरू के हाल न ही पूछिये।
खुशदीप से मिलने के बाद फ़िर जे.एन.यू. जाना हुआ। वहां श्रीश ’प्रखर ’ से मिलना हुआ। सागर को उन्होंने वहीं बुला लिया था। अमरेन्द्र सर घर गये थे। जाहिर है कि उनकी चर्चा काफ़ी हुई। उनसे फ़ोनालाप भी हुआ।
श्रीश हालांकि जे.एन.यू. में रिसर्च रत हैं लेकिन वे मॉडलिग में भी कैरियर आजमा सकते हैं। चाय शानदार बनाते हैं। उस दिन वहां का ऐतिहासिक गंगा ढाबा बंद था। पता चला कि बाहर के कुछ लड़के जे.एन.यू. की लड़कियों को छेड़कर चले गये थे। इसके चलते वहां का ढाबा बन्द हो गया था। ताज्जुब कि वहां की छात्राओं को बाहर के लोग छेड़कर चले जायें! सागर हड़बड़ाते हुये आये। सर्दी थी। दिल्ली में काम के चक्कर में चप्पल चटकाते हुये उनके बाल काफ़ी कम हो गये हैं। उनका खुद का मानना है कि वे धुंआधार सोचते हैं गजलों के बारे में इसीलिये उनके बालों ने समर्थन वापस ले लिया। कुश ने आज लिखा भी है उनकी पोस्ट में– कविताये लिखते हो या खौलते हुए तेल में तलते हो.. ? अब जहां से निकली कवितायें खौलती हुई लगें वहां बालों का टिकना कितना मुमकिन होगा?
ढेर सारा बतियाने के बाद जब हम लोगों श्रीश को छोड़ा इसके बाद सागर ने मुझे मेट्रो स्टेशन में विदा किया तो रात के साढ़े नौ बजे थे करीब। सर्द शाम की एक गर्मजोशी भरी मुलाकात अभी भी याद आ रही है।
फोटो बायें से 1. खुशदीप-अनूप 2. अनूप-सागर 3. अनूप-श्रीश प्रखर 4.सागर-श्रीश प्रखर
और कानपुर में मुलाकात मास्टरनी जी से
नये साल के शुरू में कानपुर में हमारी मुलाकात वंदनाजी और शेफ़ाली पांडेय से हुई। दोनों पेशे से अध्यापिका हैं। वंदना जी ने तो लिखा था कि कानपुर में हम लोगों की मुलाकात न हो सकेगी लेकिन मुझे लगता था कि मिलना होगा। संयोग कि उस दिन उनकी गाड़ी 13-14 घंटे लेट हो गयी और उनको हमसे मिलने के लिये स्टेशन से वापस आना पड़ा। मुलाकात एक नर्सिंग होम में हुई जहां उनकी बहन इलाज के लिये भर्ती थीं। उनके बहनोई सुनील तिवारी को हम कमाल कानपुरी के नाम से जानते थे। लेकिन मिलना-जुलना कभी नहीं हुआ था। मिले तो उन्होंने बताया कि उन्होंने मुझे तीन बार फ़ोन भी किये थे लेकिन रास्ते में होने के कारण बात न हो सकी थी। शायद उनके पैसे बचने थे और मुलाकात का श्रेय वंदनाजी को ही मिलना था।वंदनाजी के साथ उनकी बिटिया विधु भी आई थी। बीच-बीच में विधु से भी काफ़ी बातें हुईं।शेफ़ाली को जब हमने फोन किया तो पता चला कि वे उस समय पास रेव मोती से अपने घर के लिये निकल रहीं थीं। उनको भी हम वहीं ले आये और दो अध्यापिका ब्लागरों का मिलन हुआ। हम आपस में पहली बार मिले। पहले तो चाय की दुकान पर चाय-सत्रों के दौरान बातें हुईं। इसके बाद और गपशप हुई वहीं पर। फ़िर वन्दनाजी को ट्रेन पकड़ने जाना था सो हम लोग शेफ़ालीजी के यहां गये। रास्ते में उनकी बिटिया नव्या ने एक कविता सुनायी। कविता के बाद नव्या ने जो सुनाया वह आपने शायद पहले कभी न सुना हो। कैपिटल, स्माल और कर्सिव ए.बी.सी.डी. पड़ रखी होगी, लिखी भी होगी लेकिन सुनी नहीं होगी कभी आपने। लेकिन नव्या ने हमको तीनों तरह की अंग्रेजी वर्णमाला सुनाई। आप भी सुनिये नव्या की कविता और अंग्रेजी की वर्णमाला।
शेफ़ाली जी के घर में उनके पति श्री पांडेजी से मिलना हुआ। उन्होंने बताया कि शेफ़ाली का आत्मविश्वास ब्लॉगिंग शुरू करने के बाद बढ़ा है।शेफ़ाली ने अपनी माताजी की कविताओं की किताब भी हमको भेंट की। उन्होंने अपनी पोस्टों के ड्राफ़्ट भी दिखाये। वे पोस्ट लिखने के पहले उसको अपनी कापियों में लिखती हैं तब पोस्ट करती हैं।
साल की शुरुआत अपने पसंदीदा ब्लॉगर साथियों से सपरिवार मुलाकात एक खुशनुमा अनुभव है।
फ़ोटो: 1.सुनील,अनूप, विधु, वंदना,शेफ़ाली और नव्या 2.सुनील,अनूप, विधु, वंदना,शेफ़ाली और नव्या 3.वंदना-शेफ़ाली 4..नव्या अपनी मम्मी के साथ 5.शेफ़ाली और उनके पति 6. शेफ़ाली के पोस्ट ड्राफ़्ट
नव्या की तीन तरह की एबीसीडी
मेरी पसंन्द
मैं हूं अग़र चराग़ तो जल जाना चाहियेमैं पेड़ हूं तो पेड़ को फ़ल जाना चाहिये!
रिश्तों को क्यूं उठाये कोई बोझ की तरह
अब उसकी जिन्दगी से निकल जाना चाहिये।
जब दोस्ती भी फ़ूंक के रखने लगे कदम
फ़िर दुश्मनी तुझे भी संभल जाना चाहिये।
मेहमान अपनी मर्जी से जाते नहीं कभी
तुम को मेरे ख्याल से कल जाना चाहिये।
नौटंकी बन गया हो जहां पर मुशायरा
ऐसी जगह सुनाने ग़ज़ल जाना चाहिये।
इस घर को अब हमारी जरूरत नहीं रही
अब आफ़ताबे-उम्र को ढ़ल जाना चाहिये।
-मुनव्वर राना
Posted in संस्मरण | 38 Responses
फ़ोनालाप? पहली बार ये शब्द सुन रहे हैं।…:)
हा हा हा …नव्या की तीन तरह की ए बी सी डी इस पोस्ट की सबसे बड़िया हाई लाइट है, वैरी क्युट्…
इस घर को अब हमारी जरूरत नहीं रही
अब आफ़ताबे-उम्र को ढ़ल जाना चाहिये।
बहुत खूब
@अनीताजी, शुक्रिया। आपकी प्रतिक्रिया आने के पहले ही मैं इसे देख चुका था और जयपुर वाला शीर्षक सही कर चुका था।
हर साल ऐसे नयापन लिए आये ,,,
चाय की दुकान नोएडा में ही खोलूं या कानपुर में ग्रीन पार्क के पास कोई अच्छा सा खोखा दिलवा देंगे…
खैर छुटकी सी मौज एक तरफ़…इकत्तीस दिसंबर का दिन मेरे लिए यादगार रहा…ड्यूटी जाने से पहले आपके दर्शन हो गए…पंद्रह-बीस मिनट का साथ ही रहा लेकिन मेरे लिए यादगार बन गए…दूसरे उसी दिन मैंने पहली बार फोन पर डॉ टी एस दराल की आवाज़ सुनी…नववर्ष की शुभकामनाएं देती हुईं…मेरे लिए वो टू इन वन खुशी वाला दिन बन गया…
बाकी आपकी इस पोस्ट के ज़रिए कुश, सागर, श्रीश के साथ-साथ वंदना जी और शेफाली बहना के परिवार से भी मुलाकात हो गई…
जय हिंद..
खुशनुमा मुलाकातों की बढ़िया तस्वीरें और मीठे संस्मरण
बी एस पाबला
अब उसकी जिन्दगी से निकल जाना चाहिये।
” सुन्दर वर्णन सबसे मुलाकातों का…, ये सफ़र यूँही चलता रहे..”
regards
शेफाली कागज पर लिखती हैं ड्राफ्ट – रोचक!
महागुरुदेव, आप यूँ क्यों नहीं कहते कि जाते हुये वर्ष 2009 को दौड़ा कर आपने एक सद्भावना यात्रा कड्डाली !
औअर सागर मियां अपने प्रोफाइल वाली तस्वीर से यहां तो बिल्कुल अलग से दिख रहे हैं…
खूब मजेदार पोस्ट, देव।
तीन तरह की एबीसीडी और मुनव्वर राना की गजल के लिए शुक्रिया ।
MUNNVVAR RANA JEE KI RACHNA TO LAJAWAAB HAI…..
ताऊ पापा के बडे भाई होते हैं पापा नही.
रामराम.
श्रीश जी के चिट्ठे से सीधे आप तक आया । वहाँ भी कह चुका हूँ, यहाँ भी कह रहा हूँ – सम्मोहन अजब है आपका । कुछ कुछ आप-सी तबियत बनाने लगे हैं श्रीश !
पूरी यात्रा में सबसे मिलना और फिर हम सबसे मिला देना सजीवतः – यह एक मूल्यवान बात लगती है मुझे !
इतने तफसील से लिखना भी कलाकारी है ! शेफाली जी के ड्राफ्ट नहीं चौंकाते मुझे ! अध्यापक-स्वभाव है यह ! ब्लॉगरी छुड़ा नहीं देगी !
मुझ-सा केवल कविताएं और अनुवाद ठेलने वाला पहले कागज पर ही लिखता है इधर-उधर !