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…धरती को ठंडा रखने के कुछ अटपटे सुझाव
By फ़ुरसतिया on June 8, 2010
…धरती लगातार गर्म हो रही है।
कुछ लोग ठंडे में बैठे धरती की गरमाहट कम करने के उपाय सोच रहे हैं। सोचने से मन भटकता है तो विचार करने लगते हैं। विचार से थके तो फ़िर सोचने लगे। सोच और विचार की एकरसता से बचने के लिये बीच-बीच में बहस भी करते जा रहे हैं। आप भी देखिये सोच, विचार और बहस के कुछ सीन।
इस पर लोग उपाय बताने में जुट गये। तमाम लोगों ने मौलिक चिंतन तक कर डाला। और करके डाल दिया।
- मैं सोचता हूं कि किसी भरोसेमन्द कम्पनी को धरती की एयरकंडीशनिग करने का ठेका दे दिया जाये। कम्पनी धरती की सतह पर डम्पलाट एसी लगवा देगी। धरती की सारी गर्मी खैंचकर बाहर कर देगी।
- एसी लगवाने से अच्छा है कि बड़े-बड़े गर्मी निकासी पम्प लगवा दिये जायें। सारी गर्मी पम्प करके अंतरिक्ष में ठेल देंगे जैसे बारिश में सड़क का पानी तालाब में उलीचते हैं। या फ़िर जैसे अपने यहां का दो नम्बरी पैसा स्विस बैंक में जाता है।
-इत्ते बड़े पम्प आयेंगे कहां से? जो इत्ती सारी गर्मी हैंडल कर सकें? – मीटिंग में सोचने और मौलिक सवाल उठाने वाले भी मौजूद थे।
-अरे शुरुआत छोटे पम्पों से करेंगे। चार हमारे पास हैं। कम किराये पर लगा देंगे। अलावा इसके हमारे साढू की पम्प बनाने की फ़ैक्ट्री है। बहुत होशियार हैं वे। कुछ न कुछ कर ही देंगे इस सामाजिक काम के लिये।
-देख लीजिये। अगर पम्प न काम करें तो जगह-जगह गर्मी इकट्ठा करने के लिये सेप्टिक टैंक की तर्ज पर गर्मी टैंक बनवा सकते हैं। सारी गर्मी फ़्लस करके बहा देंगे अंतरिक्ष में। वैसे ही जैसे कि ट्वायलेट में करते हैं। हमारे दूर के रिश्तेदार की सीवर पाइप लाइन बनाने का बहुत बड़ा कारखाना है। वे जरूर कुछ सहायता देंगे। हमारी बात नहीं टालेंगे। लागत दाम पर काम हो जायेगा। जब घर में सुविधा है तो बाहर पैसा काहे को बरबाद किया जाये!!!
-एक ने सुझाव दिया इधर धरती गर्मा रही है उधर सूरज ठंडा रहा है। कोई ऐसा समझौता किया जाये दोनों के बीच ताकि दोनों के ताममान ठहर जायें। हाईकोर्ट के स्टे की तरह स्थिति जस की तस बनी रहे सदियों।
-कोर्ट की बात सुनते ही एक सदस्य ने उचक कर सलाह दी कि धरती का तापमान बढ़ाना उसकी मानहानि जैसा है। हम सब इसके लिये दोषी हैं। इसलिये दुनिया में सबको धरती की मानहानि का नोटिस भेज दिया जाये। जहां जाना सम्भव न हो वहां हवाई जहाज से नोटिस-वर्षा करवा दी जाये। दुनिया के चप्पे-चप्पे में नोटिस भेज दिये जायें। नोटिस टाइप करने के लिये उसने खुद को स्वयंसेवक के रूप में पेश करते हुये बाजार से दोगुनी दर से टाइपिंग का बिल सबसे पहले टाइप करके पेश कर दिया।
-दूसरा बोला -ऐसा भी हो सकता है कि जिन ग्रहों के ताममान सूरज से दूर रहने के कारण बहुत कम हैं उनसे धरती का गर्मी-ठंडक एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट पैक्ट कर लिया जाये। वे अपनी ठंडक हमें भेज दें। हम उनको अपनी गर्मी भेज देंगे। दोनों का काम चल जायेगा। सह अस्तित्व वाली बात भी एक बार फ़िर से साबित हो जायेगी। जब अपराधी, राजनेता और नौकरशाह में गठजोड़ हो सकता है ग्रहों में क्यों नहीं!!!
-एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट की बात चलते हुये लोगों ने अपने-अपने पसंदीदा ग्रह से समझौते के लिये कयास भिड़ाना शुरू कर दिया। अपने-अपने राशि स्वामी के अनुसार किसी ने कहा शुक्र, कोई बोला मंगल, कोई वृहस्पति कोई शुक्र।
-एक भाईसाहब बोले -मेरे विचार से तो अपने पड़ोसी ग्रह बुध से गर्मी-सर्दी आदान-प्रदान कार्यक्रम पर सोचना चाहिये। बुध पड़ोसी है, कद में छोटुआ टाइप है आसान शर्तों पर मान जायेगा। जैसे हम लोग विकसित देशों से कोई भी समझौता अदबदा के उसकी शर्तों पर कर लेते हैं वैसे ही बुध भी बड़ी खुशी से समझौता करेगा हमारी शर्तों पर। एहसान अलग मानेगा कि हमने उसको बराबरी का समझा।
-बाद में बुध ग्रह से समझौते पर किसी ने यह कहकर एतराज किया कि वहां का तापमान तो यहां से भी अधिक है। उससे समझौता करना तो किसी विकसित देश से पुरानी तकनीक लेने से भी ज्यादा गड़बड़ काम है।
-इस बात से नाराज होकर माननीय सदस्य बैठक का बहिष्कार करने के लिये उठने लगे लेकिन गठिया के दर्द के चलते उठ न पाये और जहां से उठे थे करवट बदलकर वहीं बैठ गये। इसके बाद पूरी मीटिंग में बैठे-बैठे अपना डाक्टर बदलने का प्लान बनाने रहे। मीटिंग से उनका मन उसी तरह उचट गया जिस तरह चुनाव में हारा हुआ नेता देश सेवा के काम से अनमना हो जाता है।
-बाद में पता चला कि वे भाईसाहब स्वभाव से बहिष्कार प्रेमी धे। सोते जागते जब मन आते बहिष्कार कर डालते। बहिष्कार प्रेम के चलते ही उन्होंने अपने घर की दीवारों में दरवाजे ही दरवाजे बनवा रखे थे। घर में चलते-फ़िरते बहिष्कार का अभ्यास करते रहते। एक दरवाजे से निकलते, दूसरे से घुसते। दो बहिष्कार गिन डालते। घर से बाहर निकलते-निकलते सैकड़ों बहिष्कार कर डालते। लोग तो यहां तक बताते हैं अपने विवाह के सात फ़ेरे भी उन्होंने चौदह बहिष्कार के बाद पूरे किये। लेकिन इधर गठिया के चलते वे बहिष्कार करने में असमर्थ हो गये थे और लोग उनको शांतिप्रिय और समझदार कहने लगे थे। वे सुनते रहते और कुढ़ते रहते। जिंदगी भर की क्रांतिकारिता को बुढौती में उनकी गठिया ने पटकनी दे दी थी।
-इस बीच एक मार्डन सोच वाले ने सुझाया कि सारी गर्मी टुकड़ों -टुकड़ों में विनजिप करके किसी ठंडे ग्रह के लोगों को ईमेल कर देंगे। जिसको भेंजेंगे वो धन्यवाद देते हुये मेल लिखेगा जो कि किसी दूसरे ग्रह से आयी दुनिया की पहली ई-मेल होगी। इसके बाद इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर के नाम पर भी काफ़ी देर चकचक होती रही। बाद में तय हुआ कि सेवा प्रदाता का चुनाव तकनीकी विशेषज्ञ रामशलाका प्रश्नावली की सहायता से करेंगे।
-एक आध्यात्मिक और सामाजिक चेतना संपन्न सदस्य ने सुझाया कि क्यों न हम अपनी सारी गर्मी सूरज को ही भेज दें। त्वदीयं वस्तु गोविन्दम तुभ्यमेव समर्पयामि की तर्ज पर।
-अपनी योजना का खुलासा करते हुये उन्होंने बताया कि उनका परिचय एक ऐसे योगी से है जिनका आध्यात्म ,संस्कृति, विश्वबंधुत्व जैसे विषयों पर धांस के दखल है। सोने में सुहागा यह कि उनका गुस्से का पारा जरा-जरा सी बात पर सातवें आसमान तक पहुंच जाता है। अगर एक आसमान तक गुस्सा पहुंचने को एक लाख डिग्री तापमान बढ़ना माना जाये तो ये समझ लीजिये कि उनके गुस्से में सात लाख डिग्री तक पहुंचने की क्षमता है। अब यह बात सबको पता है कि ऊर्जा का स्थानान्तरण उच्च ताप से निम्न ताप की तरफ़ होता है। धरती की सारी गर्मी एक जगह इकट्ठा करके उसके ढेर पर गुरुजी को खड़ा करके कोई मजाक की बात कर देंगे। मजाक गुरुजी को बिल्कुल पसन्द नहीं है। लिहाजा मजाक की बात पर गुरू का तापमान तड़ से बढ़ जायेगा और और धरती की सारी की सारी गर्मी भड़ से एक झटके में सूरज में समा जायेगी जैसे नदियां समुन्दर में समा जाती हैं। गर्मी का रिटर्न गिफ़्ट पाकर सूरजजी खुश हो जायेंगे। इधर हमारी सारी धरती स्विटजरलैंड सरीखी हो जायेगी।
-लेकिन यार ये बताओ सूरज की सतह का ताममान 6000 डिग्री होता है। लाखों डिग्री पर जब गर्मी जायेगी उनके पास तो छाला-वाला नहीं पड़ जायेगा उनको? कहीं बुरा न मान जाये भाईसाहब। एक ने अपने मौलिक ज्ञान का थान फ़ैला दिया।
-अरे जब भेजेंगे तो शुरू में एक्क्यूज मी कहेंगे और बाद में जब गर्मी भेज देंगे तो सॉरी बोल देंगे। दुनिया भर के बड़े-बड़े देशों ने न जाने कित्ती चिरकुटैयां सॉरी बोल के बराबर कर दीं। सूरजजी बुरा नहीं मानेगें। अंग्रेजी में सॉरी सुनने के बाद वे इट्स ओके कहकर मुस्करा देंगे। मुझे पता है। अंग्रेजी में बड़ी जान है।
-लेकिन यार ये कार्बन डाई आक्साइड को कहां लेकर जायें? सारा लफ़ड़ा इसके कारण है। ये मुई कार्बन हमारी आक्सीजन को फ़ुसलाकर उससे सट जाती है और दुनिया भर को अपने गठबंधन से हलकान किये रहती है। इनका गढजोढ़ तो हरामखोरी और भ्रष्टाचार के गठजोड़ से भी ज्यादा तगड़ा है।
-उसके लिये अपने तोड़-फ़ोड़ करने वालों से बात करते हैं। जहां कार्बनडाईआक्साइड दिखे उसकी खुपड़िया तोड़ के आक्सीजन अलग कर दी जाये कार्बन अलग। खाप पंचायतों की तर्ज पर दोनों को भाई-बहन बना दिया जाये। आक्सीजन से कार्बन को राखी बंधवा दी जाये। जुर्माना अलग से।
-एक ने सुझाया कि कार्बन डाई आक्साइड को पकड़-पकड़कर बांस में टांग देंगे। आक्सीजन भारी होने के चलते लटके-लटके चू जायेगी। कार्बन बांस में लटका रह जायेगा। रात भर में दोनों झगड़ालू दम्पतियों की तरह अलग हो जायेंगे। सुबह दोनों को अलग-अलग इकट्ठा करके भर लेंगे।
-ये सही है ! आक्सीजन को सिलिंडर में भरवाकर अस्पताल वालों को बेंच देंगे। कार्बन की ट्रेडिंग कर लेंगे। जो पैसे मिलेंगे उससे एडस विरोधी अभियान चलाया जायेगा। अमेरिका वाले यही करते हैं। जहां फ़्री का पैसा मिलता है, एडस विरोधी अभियान में ठेल देते हैं।
-इसके बाद कार्बनडाईआक्साइड को अलग करने के बारे में बहुत बाते हुईं। कुछ लोगों ने कहा कि ये बहुत मुश्किल काम है। लेकिन कोई काम नहीं है मुश्किल जब किया इरादा पक्का समुदाय के विचारक ने उनको टोंक दिया और पूरी मीटिंग में धनात्मक चिंतन बिखेर दिया यह कहते हुये- अरे भाई जब परिवार टूट सकते हैं, हिन्दुस्तान-पाकिस्तान अलग हो सकते हैं , सोवियत रूस के टुकड़े-टुकड़े हो सकते हैं तो ई ससुर कार्बन-आक्सीजन को अलग करना कौन मुश्किल काम है।
-इस धनात्मक चिंतन का ही जलवा था कि इसके तुरंत बाद नाश्ता लग गया और सारे विचारक अपने-अपने विचार किनारे धरकर नाश्ते पर टूट पड़े। एयरकंडीशनर की हवा नाश्ता करते विचारकों को सुखद आनन्द प्रदान कर रही थी। एयरकंडीशनर अपनी गर्म हवा बाहर फ़ेंकते हुये धरती को बता रहा था कि अंदर तुमको ही ठंडा करने की बात चल रही है। बहस हो रही है। उपाय सोचे जा रहे हैं।
-इसी तरह दुनिया भर में धरती को ठंडा रखने की गर्मागर्म बहसें चल रही हैं। धरती को एहसास ही नहीं कि लोग उसके लिये कितना चिंतित हो रहे हैं। वह सारी बहसों से बेखबर अपनी धुरी पर घूम रही है। धरती लगातार गर्म हो रही है।
कैसे-कैसे दिन देखे।
आधे जीते, आधे हारे,
आधी उमर उधार जिए।
आधे तेवर बेचैनी के देखे,
आधे दिखे बीमार के।
प्रश्न नहीं था तो बस अपना,
चाहत कभी नहीं पूजे।
हमने अपने प्रश्नों के उत्तर,
बस, राम-शलाका में ढंूढ़े।
कैसे-कैसे नगरों घूमे,
कैसे-कैसे रोज़ जिए।
प्रतिबंधों की प्रतिध्वनि थी,
या प्रतिदिन की प्रतिद्वंद्विता रही।
मंदिर, मस्जिद, चौराहों पर,
धक्का-मुक्की लगी रही।
कैसी-कैसी रीति निभाई,
कैसे-कैसे काव्य कहे!
राजेश कुमार सिंह
कुछ लोग ठंडे में बैठे धरती की गरमाहट कम करने के उपाय सोच रहे हैं। सोचने से मन भटकता है तो विचार करने लगते हैं। विचार से थके तो फ़िर सोचने लगे। सोच और विचार की एकरसता से बचने के लिये बीच-बीच में बहस भी करते जा रहे हैं। आप भी देखिये सोच, विचार और बहस के कुछ सीन।
- अगर ऐसे ही चलता रहा तो आगे आने वाले कुछ सालों में समुद्र के किनारे के शहर पानी में पानी में डूब जायेगे। पानी के लिये त्राहि-त्राहि मच जायेगी। हमें कुछ करना होगा, कुछ सोचना होगा।
- धरती का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है। अगर हम चेते नहीं तो आने वाली पीढियां हमें कभी माफ़ नहीं करेंगे।
- अगला विश्वयुद्द पानी के लिये होगा।
- हमें अपनी आवश्यकतायें सीमित करनी होंगी। भोगवादी प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना होगा।
इस पर लोग उपाय बताने में जुट गये। तमाम लोगों ने मौलिक चिंतन तक कर डाला। और करके डाल दिया।
- मैं सोचता हूं कि किसी भरोसेमन्द कम्पनी को धरती की एयरकंडीशनिग करने का ठेका दे दिया जाये। कम्पनी धरती की सतह पर डम्पलाट एसी लगवा देगी। धरती की सारी गर्मी खैंचकर बाहर कर देगी।
- एसी लगवाने से अच्छा है कि बड़े-बड़े गर्मी निकासी पम्प लगवा दिये जायें। सारी गर्मी पम्प करके अंतरिक्ष में ठेल देंगे जैसे बारिश में सड़क का पानी तालाब में उलीचते हैं। या फ़िर जैसे अपने यहां का दो नम्बरी पैसा स्विस बैंक में जाता है।
-इत्ते बड़े पम्प आयेंगे कहां से? जो इत्ती सारी गर्मी हैंडल कर सकें? – मीटिंग में सोचने और मौलिक सवाल उठाने वाले भी मौजूद थे।
-अरे शुरुआत छोटे पम्पों से करेंगे। चार हमारे पास हैं। कम किराये पर लगा देंगे। अलावा इसके हमारे साढू की पम्प बनाने की फ़ैक्ट्री है। बहुत होशियार हैं वे। कुछ न कुछ कर ही देंगे इस सामाजिक काम के लिये।
-देख लीजिये। अगर पम्प न काम करें तो जगह-जगह गर्मी इकट्ठा करने के लिये सेप्टिक टैंक की तर्ज पर गर्मी टैंक बनवा सकते हैं। सारी गर्मी फ़्लस करके बहा देंगे अंतरिक्ष में। वैसे ही जैसे कि ट्वायलेट में करते हैं। हमारे दूर के रिश्तेदार की सीवर पाइप लाइन बनाने का बहुत बड़ा कारखाना है। वे जरूर कुछ सहायता देंगे। हमारी बात नहीं टालेंगे। लागत दाम पर काम हो जायेगा। जब घर में सुविधा है तो बाहर पैसा काहे को बरबाद किया जाये!!!
-एक ने सुझाव दिया इधर धरती गर्मा रही है उधर सूरज ठंडा रहा है। कोई ऐसा समझौता किया जाये दोनों के बीच ताकि दोनों के ताममान ठहर जायें। हाईकोर्ट के स्टे की तरह स्थिति जस की तस बनी रहे सदियों।
-कोर्ट की बात सुनते ही एक सदस्य ने उचक कर सलाह दी कि धरती का तापमान बढ़ाना उसकी मानहानि जैसा है। हम सब इसके लिये दोषी हैं। इसलिये दुनिया में सबको धरती की मानहानि का नोटिस भेज दिया जाये। जहां जाना सम्भव न हो वहां हवाई जहाज से नोटिस-वर्षा करवा दी जाये। दुनिया के चप्पे-चप्पे में नोटिस भेज दिये जायें। नोटिस टाइप करने के लिये उसने खुद को स्वयंसेवक के रूप में पेश करते हुये बाजार से दोगुनी दर से टाइपिंग का बिल सबसे पहले टाइप करके पेश कर दिया।
-दूसरा बोला -ऐसा भी हो सकता है कि जिन ग्रहों के ताममान सूरज से दूर रहने के कारण बहुत कम हैं उनसे धरती का गर्मी-ठंडक एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट पैक्ट कर लिया जाये। वे अपनी ठंडक हमें भेज दें। हम उनको अपनी गर्मी भेज देंगे। दोनों का काम चल जायेगा। सह अस्तित्व वाली बात भी एक बार फ़िर से साबित हो जायेगी। जब अपराधी, राजनेता और नौकरशाह में गठजोड़ हो सकता है ग्रहों में क्यों नहीं!!!
-एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट की बात चलते हुये लोगों ने अपने-अपने पसंदीदा ग्रह से समझौते के लिये कयास भिड़ाना शुरू कर दिया। अपने-अपने राशि स्वामी के अनुसार किसी ने कहा शुक्र, कोई बोला मंगल, कोई वृहस्पति कोई शुक्र।
-एक भाईसाहब बोले -मेरे विचार से तो अपने पड़ोसी ग्रह बुध से गर्मी-सर्दी आदान-प्रदान कार्यक्रम पर सोचना चाहिये। बुध पड़ोसी है, कद में छोटुआ टाइप है आसान शर्तों पर मान जायेगा। जैसे हम लोग विकसित देशों से कोई भी समझौता अदबदा के उसकी शर्तों पर कर लेते हैं वैसे ही बुध भी बड़ी खुशी से समझौता करेगा हमारी शर्तों पर। एहसान अलग मानेगा कि हमने उसको बराबरी का समझा।
-बाद में बुध ग्रह से समझौते पर किसी ने यह कहकर एतराज किया कि वहां का तापमान तो यहां से भी अधिक है। उससे समझौता करना तो किसी विकसित देश से पुरानी तकनीक लेने से भी ज्यादा गड़बड़ काम है।
-इस बात से नाराज होकर माननीय सदस्य बैठक का बहिष्कार करने के लिये उठने लगे लेकिन गठिया के दर्द के चलते उठ न पाये और जहां से उठे थे करवट बदलकर वहीं बैठ गये। इसके बाद पूरी मीटिंग में बैठे-बैठे अपना डाक्टर बदलने का प्लान बनाने रहे। मीटिंग से उनका मन उसी तरह उचट गया जिस तरह चुनाव में हारा हुआ नेता देश सेवा के काम से अनमना हो जाता है।
-बाद में पता चला कि वे भाईसाहब स्वभाव से बहिष्कार प्रेमी धे। सोते जागते जब मन आते बहिष्कार कर डालते। बहिष्कार प्रेम के चलते ही उन्होंने अपने घर की दीवारों में दरवाजे ही दरवाजे बनवा रखे थे। घर में चलते-फ़िरते बहिष्कार का अभ्यास करते रहते। एक दरवाजे से निकलते, दूसरे से घुसते। दो बहिष्कार गिन डालते। घर से बाहर निकलते-निकलते सैकड़ों बहिष्कार कर डालते। लोग तो यहां तक बताते हैं अपने विवाह के सात फ़ेरे भी उन्होंने चौदह बहिष्कार के बाद पूरे किये। लेकिन इधर गठिया के चलते वे बहिष्कार करने में असमर्थ हो गये थे और लोग उनको शांतिप्रिय और समझदार कहने लगे थे। वे सुनते रहते और कुढ़ते रहते। जिंदगी भर की क्रांतिकारिता को बुढौती में उनकी गठिया ने पटकनी दे दी थी।
-इस बीच एक मार्डन सोच वाले ने सुझाया कि सारी गर्मी टुकड़ों -टुकड़ों में विनजिप करके किसी ठंडे ग्रह के लोगों को ईमेल कर देंगे। जिसको भेंजेंगे वो धन्यवाद देते हुये मेल लिखेगा जो कि किसी दूसरे ग्रह से आयी दुनिया की पहली ई-मेल होगी। इसके बाद इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर के नाम पर भी काफ़ी देर चकचक होती रही। बाद में तय हुआ कि सेवा प्रदाता का चुनाव तकनीकी विशेषज्ञ रामशलाका प्रश्नावली की सहायता से करेंगे।
-एक आध्यात्मिक और सामाजिक चेतना संपन्न सदस्य ने सुझाया कि क्यों न हम अपनी सारी गर्मी सूरज को ही भेज दें। त्वदीयं वस्तु गोविन्दम तुभ्यमेव समर्पयामि की तर्ज पर।
-अपनी योजना का खुलासा करते हुये उन्होंने बताया कि उनका परिचय एक ऐसे योगी से है जिनका आध्यात्म ,संस्कृति, विश्वबंधुत्व जैसे विषयों पर धांस के दखल है। सोने में सुहागा यह कि उनका गुस्से का पारा जरा-जरा सी बात पर सातवें आसमान तक पहुंच जाता है। अगर एक आसमान तक गुस्सा पहुंचने को एक लाख डिग्री तापमान बढ़ना माना जाये तो ये समझ लीजिये कि उनके गुस्से में सात लाख डिग्री तक पहुंचने की क्षमता है। अब यह बात सबको पता है कि ऊर्जा का स्थानान्तरण उच्च ताप से निम्न ताप की तरफ़ होता है। धरती की सारी गर्मी एक जगह इकट्ठा करके उसके ढेर पर गुरुजी को खड़ा करके कोई मजाक की बात कर देंगे। मजाक गुरुजी को बिल्कुल पसन्द नहीं है। लिहाजा मजाक की बात पर गुरू का तापमान तड़ से बढ़ जायेगा और और धरती की सारी की सारी गर्मी भड़ से एक झटके में सूरज में समा जायेगी जैसे नदियां समुन्दर में समा जाती हैं। गर्मी का रिटर्न गिफ़्ट पाकर सूरजजी खुश हो जायेंगे। इधर हमारी सारी धरती स्विटजरलैंड सरीखी हो जायेगी।
-लेकिन यार ये बताओ सूरज की सतह का ताममान 6000 डिग्री होता है। लाखों डिग्री पर जब गर्मी जायेगी उनके पास तो छाला-वाला नहीं पड़ जायेगा उनको? कहीं बुरा न मान जाये भाईसाहब। एक ने अपने मौलिक ज्ञान का थान फ़ैला दिया।
-अरे जब भेजेंगे तो शुरू में एक्क्यूज मी कहेंगे और बाद में जब गर्मी भेज देंगे तो सॉरी बोल देंगे। दुनिया भर के बड़े-बड़े देशों ने न जाने कित्ती चिरकुटैयां सॉरी बोल के बराबर कर दीं। सूरजजी बुरा नहीं मानेगें। अंग्रेजी में सॉरी सुनने के बाद वे इट्स ओके कहकर मुस्करा देंगे। मुझे पता है। अंग्रेजी में बड़ी जान है।
-लेकिन यार ये कार्बन डाई आक्साइड को कहां लेकर जायें? सारा लफ़ड़ा इसके कारण है। ये मुई कार्बन हमारी आक्सीजन को फ़ुसलाकर उससे सट जाती है और दुनिया भर को अपने गठबंधन से हलकान किये रहती है। इनका गढजोढ़ तो हरामखोरी और भ्रष्टाचार के गठजोड़ से भी ज्यादा तगड़ा है।
-उसके लिये अपने तोड़-फ़ोड़ करने वालों से बात करते हैं। जहां कार्बनडाईआक्साइड दिखे उसकी खुपड़िया तोड़ के आक्सीजन अलग कर दी जाये कार्बन अलग। खाप पंचायतों की तर्ज पर दोनों को भाई-बहन बना दिया जाये। आक्सीजन से कार्बन को राखी बंधवा दी जाये। जुर्माना अलग से।
-एक ने सुझाया कि कार्बन डाई आक्साइड को पकड़-पकड़कर बांस में टांग देंगे। आक्सीजन भारी होने के चलते लटके-लटके चू जायेगी। कार्बन बांस में लटका रह जायेगा। रात भर में दोनों झगड़ालू दम्पतियों की तरह अलग हो जायेंगे। सुबह दोनों को अलग-अलग इकट्ठा करके भर लेंगे।
-ये सही है ! आक्सीजन को सिलिंडर में भरवाकर अस्पताल वालों को बेंच देंगे। कार्बन की ट्रेडिंग कर लेंगे। जो पैसे मिलेंगे उससे एडस विरोधी अभियान चलाया जायेगा। अमेरिका वाले यही करते हैं। जहां फ़्री का पैसा मिलता है, एडस विरोधी अभियान में ठेल देते हैं।
-इसके बाद कार्बनडाईआक्साइड को अलग करने के बारे में बहुत बाते हुईं। कुछ लोगों ने कहा कि ये बहुत मुश्किल काम है। लेकिन कोई काम नहीं है मुश्किल जब किया इरादा पक्का समुदाय के विचारक ने उनको टोंक दिया और पूरी मीटिंग में धनात्मक चिंतन बिखेर दिया यह कहते हुये- अरे भाई जब परिवार टूट सकते हैं, हिन्दुस्तान-पाकिस्तान अलग हो सकते हैं , सोवियत रूस के टुकड़े-टुकड़े हो सकते हैं तो ई ससुर कार्बन-आक्सीजन को अलग करना कौन मुश्किल काम है।
-इस धनात्मक चिंतन का ही जलवा था कि इसके तुरंत बाद नाश्ता लग गया और सारे विचारक अपने-अपने विचार किनारे धरकर नाश्ते पर टूट पड़े। एयरकंडीशनर की हवा नाश्ता करते विचारकों को सुखद आनन्द प्रदान कर रही थी। एयरकंडीशनर अपनी गर्म हवा बाहर फ़ेंकते हुये धरती को बता रहा था कि अंदर तुमको ही ठंडा करने की बात चल रही है। बहस हो रही है। उपाय सोचे जा रहे हैं।
-इसी तरह दुनिया भर में धरती को ठंडा रखने की गर्मागर्म बहसें चल रही हैं। धरती को एहसास ही नहीं कि लोग उसके लिये कितना चिंतित हो रहे हैं। वह सारी बहसों से बेखबर अपनी धुरी पर घूम रही है। धरती लगातार गर्म हो रही है।
मेरी पसंद
कैसे-कैसे समय गुज़ारे,कैसे-कैसे दिन देखे।
आधे जीते, आधे हारे,
आधी उमर उधार जिए।
आधे तेवर बेचैनी के देखे,
आधे दिखे बीमार के।
प्रश्न नहीं था तो बस अपना,
चाहत कभी नहीं पूजे।
हमने अपने प्रश्नों के उत्तर,
बस, राम-शलाका में ढंूढ़े।
कैसे-कैसे नगरों घूमे,
कैसे-कैसे रोज़ जिए।
प्रतिबंधों की प्रतिध्वनि थी,
या प्रतिदिन की प्रतिद्वंद्विता रही।
मंदिर, मस्जिद, चौराहों पर,
धक्का-मुक्की लगी रही।
कैसी-कैसी रीति निभाई,
कैसे-कैसे काव्य कहे!
राजेश कुमार सिंह
Posted in बस यूं ही | 24 Responses
‘ग्लोबल वार्मिंग के खतरे’ अब व्यवसायिक रूप ले चुके हैं। जल्द ही वेतन के कैफेटेरिया अप्रोच में ‘ऑफिस के भीतर की शुद्ध(?) शीतित वायु’ भी एक पर्क के रूप में गिनी जाएगी। आयकर विभाग उस पर टैक्स की बात भी सोचेगा।… ऐब्सर्डिटी की ओर ध्यान दिलाते, गुदगुदाते और सोचवाते लेख के लिए आभार।
एक दरवाजे से जाते दूसरे से निकलते दो बहिष्कार गिन डालते…..आक्सीजन-कार्बन की खाप पंचायत,…..कार्बन डाय आक्साईड को बाँस पर लटकना…….वाह….वाह….एकदम धाँसू।
अनूप जी, लगता है कौनो बहुतै अदभुतावस्था में थे आप जो यह अदभूत लेखन किए
शब्द कम पड़ रहे हैं ऐसे रापचीक लेखन की प्रशंसा में।
बहूत शानदार।
मुझे भी आइडिये आने हैं…
सारी गर्मी यूं ही अंतरिक्ष में ठेल देने से अच्छा है कि रास्ते में उस गर्मी की ठीक वैसे ही चोरी कर ली जाए जैसे कंटिया डालने का रिवाज़ है…जेम्स वाट के भाप के इंजिन की भांति, उसने भी भाप को दुहा हम इसे … सांप भी जाता रहेगा लाठी भी ठोक बजा ली जाएगी…
इस धनात्मक चिंतन का ही जलवा था कि इसके तुरंत बाद नाश्ता लग गया और सारे विचारक अपने-अपने विचार किनारे धरकर नाश्ते पर टूट पड़े।
बहुत बढ़िया
ज़नाब मैंने इस बैठक में एक नायाब कयास लगाया था, उसे आपने बड़ी खूबसूरती से दरकिनार कर दिया, आख़िरकार ब्लॉगर ही तो ठहरे !
ज़नाब ज़माना रिसाइकिलिंग का है, कुछ ऎसा तज़वीज़ करिये कि गरमी और सरदी बादशाह की बेगमों की तरह रिसाइकिल होती रहें ।
बादशाह पर याद आया कि शाहज़हाँ ग़ुज़रे ज़माने में खच्चरों पर काश्मीर की बर्फ़ मँगवा लिया करते थे, तो जहाँपनाह फुरसतिया जी अन्टार्टिका से बरफ़ ढोकर लाने की निविदा क्यों नहीं आमँत्रित करते ? इसे विकसित और विकासशील देश अपनी अपनी ज़रूरत के हिसाब से बाँट कर धरती पर बिखरा दें ।
यू नो, देयर इज लॉट आफ़ आइस, मेल्टिंग टू वेस्ट इन दैट ज़ीरो पापुलेशन ऍरिया.. वी शुड एक्सप्लोर इट लाइक वी एक्सप्लोर्ड / यूज़्ड कोल एन्ड पेट्रोलियम रीजर्व ! यू नो, दिस वार्मिंग लफ़ड़ा इज़ टोट्टली ड्यू टू अन-इक्वल एन्ड अन-इवेन डिस्ट्रीब्यूशन आफ़ गॉड गिफ़्टेड आइस !
आचार्य जी
ग्लोबल वार्मिग फ्लोबल वार्निग सब बकवास…. ये जो गर्मी पैदा हुई है… ये दिमाग कि है… सो सभी लोग हर समय एक गीला टावल अपने सर पर रखे… दिमाग ठंडा रहेगा….. तो दुनिया ठंडी रहेगी…. सोचो… बुश भाईसाहेब ने दिमाग ठंडा रखा होता तो ईराक में जाते.. नहीं न? हो गया न समाधान….
जय हो..
इतना प्रेमपगा न्यौता बिरलों को ही मिला करता है !
सफ़लता का मूल मंत्र जान लिया हो तो इस पर एक्ठो लँतरानी ठेल दीजिये ।
वइसे एडिया तो बहुतै जबर-जबर दिए ये मीटिंग वाले … बहिष्कार गुरु सबसे अच्छे लगे, उनको हमारा दो वोट… बाकी बांस वाले एडिया, बाबा वाले एडिया और ज़िप फ़ाइल वाले एडिया को एक-एक वोट… ज्यादा हँसेंगे नहीं, नहीं तो ज्यादा कार्बन-डाई-आक्साइड निकलेगी और धरती और गर्म हो जायेगी… आपके हिसाब से. हमारे हिसाब से तो ये एक षड्यंत्र है…
बोलती सुनती सोचती….सब सुन्न कर दिया आपकी इस आलेख ने….
लाजवाब…लाजवाब…लाजवाब !!!!
ग्लोबल वार्मिंग से बचाने की ‘ए. सी’ सोच की खटिया खड़ी कर दी आपने.
…वाह! उम्दा पोस्ट.
इस डम्प्लाट पोस्ट की मेरी पसन्द की कुछ डम्प्लाट पन्क्तिया –
- तमाम लोगों ने मौलिक चिंतन तक कर डाला। और करके डाल दिया।
- इसलिये दुनिया में सबको धरती की मानहानि का नोटिस भेज दिया जाये। जहां जाना सम्भव न हो वहां हवाई जहाज से नोटिस-वर्षा करवा दी जाये।
- उससे समझौता करना तो किसी विकसित देश से पुरानी तकनीक लेने से भी ज्यादा गड़बड़ काम है।
- एक ने अपने मौलिक ज्ञान का थान फ़ैला दिया।
- मीटिंग से उनका मन उसी तरह उचट गया जिस तरह चुनाव में हारा हुआ नेता देश सेवा के काम से अनमना हो जाता है।
- एयरकंडीशनर अपनी गर्म हवा बाहर फ़ेंकते हुये धरती को बता रहा था कि अंदर तुमको ही ठंडा करने की बात चल रही है।
चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..इधर से गुजरा था सोचा सलाम करता चलूँ…