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हिम्मत है तो आ जा टीवी चैनल पर
By फ़ुरसतिया on April 24, 2012
दो
दिन पहले अन्ना कमेटी की मीटिंग के दौरान एक साहब मीटिंग की कार्यवाही
मोबाइल में नोट करते पकड़े गये। कमेटी के लोगों ने उनको मोबाइल पकड़कर बाहर
कर दिया।
बाहर होते ही वे साहबान अपना मुंह लेकर मीडिया चैनल की तरफ़ भागे। कैमरे के सामने जाकर बयान जारी कर दिया- कमेटी में भेदभाव है। तानाशाही है। मनमानी है। कमेटी छोड़ दी हमने।
कमेटी के लोग भी अपना-अपना मुंह बयानों से लैस कर चैनलों की तरफ़ भागे। चैनलों पर पहुंचकर बयान-गोले दागने लगे। जानकारी दी कि वे साहबान मीटिंग की गुप्त कार्यवाही लीक कर रहे थे। मना किया गया तो माने नहीं। निकाल दिया तो चैनल पर आकर बयान देने लगे।
चैनल-चौपाल पर बहस छिड़ गयी। साहबान कमेटी की एक महिला को सरे कैमरा हड़काते हुये कह रहे थे- तुम होती कौन हो ये सवाल करने वाली। [ हम सोचने लगे कि क्या यहां मैथिली दद्दा को याद करना ठीक होगा- हम कौन थे, क्या हो गये हैं और क्या होंगे अभी]
करप्शन कमेटी के प्रवक्ताजी, जो श्रंगार के भीषण कवि भी हैं , उन साहबान के लिये अंगार बरसा रहे थे- इन्होंने कमेटी का विश्वास भंग किया।
विश्वास जी लम्बे-लम्बे बयान ऐसे जारी करते हैं जैसे बच्चे लोग लम्बी-लम्बी कवितायें रटकर सुना देते हैं। श्रंगार का यह दुलारा कवि बयान जारी करते समय बेइंतहा अश्रंगारिक लगता है।
साहबजी कमेटी के लोगों के बारे में देश की जनता को बताने लगे- ये लोग मनमानी करते हैं। हम शुरु से कोर कमेटी में हैं फ़िर भी आजतक हमको कभी बयान जारी करने का मौका नहीं दिया।
क्लास गोल करके पिक्चर देखने वाली आदत की तरह करप्शन विरोधी कमेटी के लोग मीटिंग छोड़कर चैनल की तरफ़ भगे चले आये।
भ्रष्टाचारियो के खिलाफ़ मोर्चा खोलने वालों ने एक दूसरे के खिलाफ़ गले खोल दिये। चैनलों पर बयान युद्ध शुरु हो गया। एक-दूसरे पर वक्तव्य के गोले दगने लगे।
वक्तव्य वासना के वसीभूत होकर लोग अपने-अपने हिस्से की सदाचार तपस्या खर्च करने लगे। टीवी चैनल पर आकर बयान जारी करने की इच्छा बड़ी जालिम इच्छा होती है। यह मुई जो न कराये।
चैनल पर फ़ुर्ती से बयान जारी हो रहे थे। लोग एक-दूसरे का बयान नोच रहे थे।
चैनल पर दूरी के चलते लोग मारपीट करने में असमर्थ थे। लेकिन बयान हिंसा में कोई ऐसा कोई पत्थर नहीं छूटा जिसे पलटा न गया हो [left no stone unturned]
हमें लगा कि देश में भयंकर हिंसा के इस माहौल में भी चैनलों पर अहिंसा बची हुई है।
इस पवित्र टीम से जुड़े लोगों ने देश के लिये सूचना का अधिकार जैसा पवित्र अधिकार लागू करने में पसीना बहाया है। गुप्त से गुप्त दस्तावेज की फ़ोटोकापी दस रुपये का पोस्टल आर्डर में लेने का अधिकार। उसी टीम के लोगों में इस बात पर बयान-नुचव्वल हो रही है कि मीटिंग की सूचना लीक करने का प्रयास किया गया। कल शायद यह भी तय हुआ कि मीटिंग में शामिल लोगों की तलाशी ली जायेगी। मोबाइल की अनुमति न होगी।
अब इन तपस्वियों को कौन समझाये कि मोबाइल आये तो अभी कुछ साल हुये। आदमी अपना मन तो साथ लिये पैदा होता है। क्या उसकी भी तलाशी होगी। मीटिंग में शामिल होने वालों से कहा जायेगा- कृपया अपना दिल,दिमाग स्विच आफ़ करके मीटिंग में भाग लें।
जब जनता के लिये काम करने करने वालों की मीटिंगें भी गुप्त होने लगीं तब तो हो चुका। जनता के लिये लड़ाई के एजेंडे भी अगर स्विस बैंक के एकाउंट की तरह गुप्त रखे जायेंगे तो फ़िर क्या फ़ायदा। मजा नहीं आया भाई इस नाटक में।
जिस तेजी से इस घटना के मसले पर चैनलबाजी हुई उसका अगर नाट्य रूपान्तर किया जाये तो शायद इस तरह होगा:
भाई जान: ये भाईजी आप ये क्या टेप कर रहे हैं मोबाइल में। बंद करिये इसे। मीटिंग की कार्यवाही टेप मत करिये।
साहेबान: जनाब मैं तो बस ऐसे ही खेल रहा हूं मोबाइल से। मुझे तो इसे आपरेट करना नहीं आता।
भाईजान: मोबाइल आपरेट नहीं कर पाते तो एनजीओ कैसे चलायेंगे आगे चलकर?
साहेबान: अपन को एनजीओ की जरूरत नहीं। नेताजी ने अपन को पद देने का वायदा किया है।
भाईजान: तो फ़िर जाइये आप नेता जी के पास। यहां हमारा टाइम काहे को खोटा कर रहे हैं। चलिये निकलिये।
साहेबान: आप हमारी इस तरह बेइज्जती मत खराब करिये। मैंने शुरु से ये दुकान जमाने में पसीना बहाया है।
भाईजान: आप तो जनता की सेवा का सारा मौका हड़पना चाहते हैं। ऐसे नहीं चलेगा। अब आप निकलिये।
साहेबान: जा रहे हैं। मेरा भी परता नहीं पड़ता अब यहां। न कोई बयान न वक्तव्य। ऐसे कब तक कोई खटता रहेगा।
भाईजान: अरे जाइये, जाइये। बड़े आये बयान देने वाले। कोई चैनल वाला आपके सामने माइक तक नहीं डालेगा।
साहेबान: जा रहा हूं। और मैं भी देखता हूं कि कैसे चैनल वाले माइक नहीं लगाते मेरे सामने। मैं भी दिखा दूंगा कि कैसे बयान जारी किया है।
भाई जान: चलिये देखते हैं। हिम्मत है आ जा टीवी चैनल पर। सिट्टी-पिट्टी न गुम कर दी तो असल प्रवक्ता नहीं।
इसके बाद कमेटी के लोग मीटिंग समेटकर बाहर निकल लिये। बाहर ही चैनल वालों ने कमेटी वालों को उसई तरह घेर लिया जैसे रेलवे स्टेशन से निकलते यात्री को आटो वाले घेर लेते हैं।
इसके बाद टीवी चैनल वाले मीटिंग से निकले लोगों से सारे बयान चूस कर टीवी- थाली में रखकर हमारे सामने पेश करता है। हम चाय की चुस्की लेते हुये लोगों के बयान सुनते हैं। कल तक हाथों में हाथ लिये फोटो खिंचाते मुस्कराते लोग बयान जारी करते दीखते हैं- हिम्मत है तो आ जा टीवी चैनल पर। तुझे समाज सेवा का दूध न याद दिला तो नाम नहीं।
सूचना:फ़ोटो फ़्लिकर से साभार। ऊपर वाली फ़ोटों में हाथ ऊपर करके खड़े लोगों का हाथ नीचे करके खड़े साहब से बयानबाजी हो गयी।
बाहर होते ही वे साहबान अपना मुंह लेकर मीडिया चैनल की तरफ़ भागे। कैमरे के सामने जाकर बयान जारी कर दिया- कमेटी में भेदभाव है। तानाशाही है। मनमानी है। कमेटी छोड़ दी हमने।
कमेटी के लोग भी अपना-अपना मुंह बयानों से लैस कर चैनलों की तरफ़ भागे। चैनलों पर पहुंचकर बयान-गोले दागने लगे। जानकारी दी कि वे साहबान मीटिंग की गुप्त कार्यवाही लीक कर रहे थे। मना किया गया तो माने नहीं। निकाल दिया तो चैनल पर आकर बयान देने लगे।
चैनल-चौपाल पर बहस छिड़ गयी। साहबान कमेटी की एक महिला को सरे कैमरा हड़काते हुये कह रहे थे- तुम होती कौन हो ये सवाल करने वाली। [ हम सोचने लगे कि क्या यहां मैथिली दद्दा को याद करना ठीक होगा- हम कौन थे, क्या हो गये हैं और क्या होंगे अभी]
करप्शन कमेटी के प्रवक्ताजी, जो श्रंगार के भीषण कवि भी हैं , उन साहबान के लिये अंगार बरसा रहे थे- इन्होंने कमेटी का विश्वास भंग किया।
विश्वास जी लम्बे-लम्बे बयान ऐसे जारी करते हैं जैसे बच्चे लोग लम्बी-लम्बी कवितायें रटकर सुना देते हैं। श्रंगार का यह दुलारा कवि बयान जारी करते समय बेइंतहा अश्रंगारिक लगता है।
साहबजी कमेटी के लोगों के बारे में देश की जनता को बताने लगे- ये लोग मनमानी करते हैं। हम शुरु से कोर कमेटी में हैं फ़िर भी आजतक हमको कभी बयान जारी करने का मौका नहीं दिया।
क्लास गोल करके पिक्चर देखने वाली आदत की तरह करप्शन विरोधी कमेटी के लोग मीटिंग छोड़कर चैनल की तरफ़ भगे चले आये।
भ्रष्टाचारियो के खिलाफ़ मोर्चा खोलने वालों ने एक दूसरे के खिलाफ़ गले खोल दिये। चैनलों पर बयान युद्ध शुरु हो गया। एक-दूसरे पर वक्तव्य के गोले दगने लगे।
वक्तव्य वासना के वसीभूत होकर लोग अपने-अपने हिस्से की सदाचार तपस्या खर्च करने लगे। टीवी चैनल पर आकर बयान जारी करने की इच्छा बड़ी जालिम इच्छा होती है। यह मुई जो न कराये।
चैनल पर फ़ुर्ती से बयान जारी हो रहे थे। लोग एक-दूसरे का बयान नोच रहे थे।
चैनल पर दूरी के चलते लोग मारपीट करने में असमर्थ थे। लेकिन बयान हिंसा में कोई ऐसा कोई पत्थर नहीं छूटा जिसे पलटा न गया हो [left no stone unturned]
हमें लगा कि देश में भयंकर हिंसा के इस माहौल में भी चैनलों पर अहिंसा बची हुई है।
इस पवित्र टीम से जुड़े लोगों ने देश के लिये सूचना का अधिकार जैसा पवित्र अधिकार लागू करने में पसीना बहाया है। गुप्त से गुप्त दस्तावेज की फ़ोटोकापी दस रुपये का पोस्टल आर्डर में लेने का अधिकार। उसी टीम के लोगों में इस बात पर बयान-नुचव्वल हो रही है कि मीटिंग की सूचना लीक करने का प्रयास किया गया। कल शायद यह भी तय हुआ कि मीटिंग में शामिल लोगों की तलाशी ली जायेगी। मोबाइल की अनुमति न होगी।
अब इन तपस्वियों को कौन समझाये कि मोबाइल आये तो अभी कुछ साल हुये। आदमी अपना मन तो साथ लिये पैदा होता है। क्या उसकी भी तलाशी होगी। मीटिंग में शामिल होने वालों से कहा जायेगा- कृपया अपना दिल,दिमाग स्विच आफ़ करके मीटिंग में भाग लें।
जब जनता के लिये काम करने करने वालों की मीटिंगें भी गुप्त होने लगीं तब तो हो चुका। जनता के लिये लड़ाई के एजेंडे भी अगर स्विस बैंक के एकाउंट की तरह गुप्त रखे जायेंगे तो फ़िर क्या फ़ायदा। मजा नहीं आया भाई इस नाटक में।
जिस तेजी से इस घटना के मसले पर चैनलबाजी हुई उसका अगर नाट्य रूपान्तर किया जाये तो शायद इस तरह होगा:
भाई जान: ये भाईजी आप ये क्या टेप कर रहे हैं मोबाइल में। बंद करिये इसे। मीटिंग की कार्यवाही टेप मत करिये।
साहेबान: जनाब मैं तो बस ऐसे ही खेल रहा हूं मोबाइल से। मुझे तो इसे आपरेट करना नहीं आता।
भाईजान: मोबाइल आपरेट नहीं कर पाते तो एनजीओ कैसे चलायेंगे आगे चलकर?
साहेबान: अपन को एनजीओ की जरूरत नहीं। नेताजी ने अपन को पद देने का वायदा किया है।
भाईजान: तो फ़िर जाइये आप नेता जी के पास। यहां हमारा टाइम काहे को खोटा कर रहे हैं। चलिये निकलिये।
साहेबान: आप हमारी इस तरह बेइज्जती मत खराब करिये। मैंने शुरु से ये दुकान जमाने में पसीना बहाया है।
भाईजान: आप तो जनता की सेवा का सारा मौका हड़पना चाहते हैं। ऐसे नहीं चलेगा। अब आप निकलिये।
साहेबान: जा रहे हैं। मेरा भी परता नहीं पड़ता अब यहां। न कोई बयान न वक्तव्य। ऐसे कब तक कोई खटता रहेगा।
भाईजान: अरे जाइये, जाइये। बड़े आये बयान देने वाले। कोई चैनल वाला आपके सामने माइक तक नहीं डालेगा।
साहेबान: जा रहा हूं। और मैं भी देखता हूं कि कैसे चैनल वाले माइक नहीं लगाते मेरे सामने। मैं भी दिखा दूंगा कि कैसे बयान जारी किया है।
भाई जान: चलिये देखते हैं। हिम्मत है आ जा टीवी चैनल पर। सिट्टी-पिट्टी न गुम कर दी तो असल प्रवक्ता नहीं।
इसके बाद कमेटी के लोग मीटिंग समेटकर बाहर निकल लिये। बाहर ही चैनल वालों ने कमेटी वालों को उसई तरह घेर लिया जैसे रेलवे स्टेशन से निकलते यात्री को आटो वाले घेर लेते हैं।
इसके बाद टीवी चैनल वाले मीटिंग से निकले लोगों से सारे बयान चूस कर टीवी- थाली में रखकर हमारे सामने पेश करता है। हम चाय की चुस्की लेते हुये लोगों के बयान सुनते हैं। कल तक हाथों में हाथ लिये फोटो खिंचाते मुस्कराते लोग बयान जारी करते दीखते हैं- हिम्मत है तो आ जा टीवी चैनल पर। तुझे समाज सेवा का दूध न याद दिला तो नाम नहीं।
सूचना:फ़ोटो फ़्लिकर से साभार। ऊपर वाली फ़ोटों में हाथ ऊपर करके खड़े लोगों का हाथ नीचे करके खड़े साहब से बयानबाजी हो गयी।
Posted in बस यूं ही | 21 Responses
हम तो एक और बात पढ़े कि साहबान ने निकलते ही कह दिया कि समिति एक विशेष धर्म विरोधी है बताइए अभी तक समिति नहीं थी अब हो गयी |
सही कहा आपने यहाँ सबको टीवी पे आने कि जल्दी है, अन्ना को भूल गए
अंत की नाटिका मस्त लगी
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..सखी वे मुझसे लड़ के जाते…
अग्नि ५ ……….. की मारक क्षमता……………………
जय हो……..
प्रणाम.
गुरु,
हम तो आपकी कथा सुनते, कभी यह समझ नहीं पाए कि दिमाग स्विच ऑफ़ करके एक तरफ रखें,बिजली खर्च होने दें,
कई बार स्विच ऑन करना पड़ता है जब बात जमती सी नज़र आती है !
फिर दिमाग कहता है अनूप गुरु हैं यार…
काहे सीरयस लेते हो …
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..सब झूम उठे ….-सतीश सक्सेना
aradhana की हालिया प्रविष्टी..क्योंकि हर एक दोस्त – – – होता है
…अब भई जिसके इत्ता बूता हो वही भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़े का बीड़ा उठावे,हमरे बस की तो ना है !
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..बने रहना कठिन है !
और व्यंग्य भी कमाल का है
“उसी टीम के लोगों में इस बात पर बयान-नुचव्वल हो रही है कि मीटिंग की सूचना लीक करने का प्रयास किया गया।”
सारे महत्वाकांक्षी लोग इकट्ठे हो रहे है …… हर कोई टीवी चैनल पर आना चाहता है जिसे रोकोगे वह यही करेगा…
अब नीव का पत्थर कोई नहीं बनाना चाहता
आशीष श्रीवास्तव
–आशीष श्रीवास्तव
‘मुसलमानों के साथ भेदभाव’, ‘राजनीतिकरण’, ‘तुम हमें क्या निकालोगे, हमने ही छोड़ दी तुम्हारी कोर कमेटी’ ‘ये शाजिया है क्या?’ वगैरह जुमले ऐसे निकल रहे थे मुफ्ती साहब के मुंह से जैसे ममता दी की दुरंतो:)
sanjay aneja की हालिया प्रविष्टी..A syndrome that is called …..(ladies, excuse me please this time) बवाल-ए-बाल
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..एक लड़के की व्यथा
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..हेट स्टोरी -एक "पर्दाफाश" फिल्म!
यह अच्चा है सरजी
बहुत ही अच्छा व्यंग है ….या कहें की यथार्थ की चोट है ……कुछ लोगों को लोकप्रियता मिल गई और जो पहले से लोक प्रिय थे उन लोगों की लोकप्रियता बढ़ गई ….अगर ऐसा ही करते रे तो जल्दी ही अलोकप्रिय भी हो जायेंगे …..
satyavrat shukla की हालिया प्रविष्टी..सोसिअल नेटवोर्किंग और नेता- "करना पड़ता है ….."