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घूस देने वाले की उलझनें
By फ़ुरसतिया on May 4, 2012
दुनिया में करप्शन का चलन शुरु से रहा है।
अगर सृष्टि की शुरुआत के लिये बड़े धमाके वाले सिद्धांत को ही सही मान लिये जाये तो देखिये कि जरा सी जगह से निकला हुआ मसाला पूरी दुनिया में फ़ैलता जा रहा है। बिना रजिस्ट्री कराये सितारे, आकाशगंगायें, ब्लैकहोल, धूमकेतु, अलाय-बलाय बनते चले गये। जहां जगह मिली अपना तम्बू तान दिया। न किसी रजिस्ट्रार के यहां रजिस्ट्री कराई। न स्टैम्प ड्यूटी जमा की। ये करप्शन नहीं तो और क्या?
कभी-कभी तो यह भी लगता है कि ये जो प्रकाश की गति से सितारे, आकाशगंगायें, ग्रह-नक्षत्र, हेन-तेन एक दूसरे से दूर भाग रहे हैं प्रकाश की गति से वो अपराधियों की ’घपला करके फ़ूट लो’ के सिद्धांत के अनुसार है। घपले की जगह टिके तो पकड़े जाओगे।
जिस किसी दिन भी ये घपला किसी की निगाह में आ गया तो दुनिया भर के सारे घपले-घोटाले इसके सामने बौने हो जायेंगे। लेकिन किसको पड़ी है इन सबकी जांच करने की।
करप्शन में घूस का भी चलन भी शुरु से ही रहा है। तमाम तरह के करप्शनों में घूस को वही प्रतिष्ठा प्राप्त है जैसे सौंन्दर्य में गोरेपन का। अगर गोरापन है तो सौंन्दर्य है। उसई तरह लोग मानते हैं कि अगर घूस का लेन-देन हुआ तो भ्रष्टाचार हुआ। बाकी तरह के भ्रष्टाचार को लोग शिष्टाचार, भाई-भतीजावाद कहकर टरका देते हैं।
हमारे समाज में घूस लेने वालों की तो बड़ी चर्चायें होती हैं। उनकी हरकतों का विस्तार से सौंन्दर्य वर्णन होता है। लेकिन बेचारे घूस देने वाले को वो प्रतिष्ठा नहीं प्राप्त है जिसका वो हकदार है। घूस देने वाले को घूस देने में बहुत पापड़ क्या रोटी, सब्जी तक बेलनी पड़ती है। न जाने कित्ती मेहनत करता है फ़िर भी उसके कारनामें उजागर नहीं हो पाते। भ्रष्टाचार के महल की नींव की ईंट बनकर रह जाता है घूस देने वाला।
घूस देने वाले को हजार बवाल झेलने पड़ते हैं।
शुरुआत तो इस बात से करनी पड़ती है कि काम घूस से होगा या चापलूसी से ही बात बन जायेगी। कई बार वह सोचता है चापलूसी से बात बन जायेगी और बाद में पता चलता है कि उसका रकीब घूस देकर काम करवा ले गया। उसकी चापलूसी ईमानदारी की तरह उपेक्षित रह गयी।
कई बार उलटा भी होता है। वो समझता है कि खाली घूस से काम चल जायेगा। लेकिन बाद में असलियत खुलती है कि उस काम के लिये घूस के साथ-साथ थोड़ी चापलूसी की भी जरूरत थी जैसे कि कभी-कभी जनप्रतिनिधि के लिये जनता की भलाई के जज्बे के साथ-साथ गुंडागीरी का फ़्लेवर भी जरूरी होता है।
जहां घूस का चलन है वहां तो मामला ठीक रहता है। रेट खुले हैं। पेमेन्ट किया काम हुआ। साल-दो साल में डी.ए. की तरह रेट बढ़ा। उसका भी भुगतान किया फ़िर काम हो गया।
समस्या वहां होती है जहां घूस का चलन नहीं होता। चलन नहीं होता मतलब रेट फ़िक्स नहीं होते। घूस देने वाले की एड़ियां घिस जाती हैं पता करने में कि काम पैसे से होगा, चापलूसी से या पक्की ईमानदारी से।
बेचारी घूस देने वाला नगरी-नगरी, द्वारे-द्वारे पता करता रहता है- काम कौन करेगा, किसको साधने से सब सधेंगे, कितना साधना पड़ेगा। मामला साहब तय करेंगे कि उसका बाबू कि उनकी बीबी या कि उनकी वो। उनकी वो वाली बात भी अनिश्चित रहती है। किसी की कई ’वो’ होती हैं। तब बवाल कि कौन ’वो’ सबसे पक्की ’वो’ हैं। (जिनका यह मत है कि मैडमें इस मामले में पीछे नहीं होती हैं वे साहब की जगह या साथ में मैडम भी पढ़ लें।)
घूस का आंकलन भी बड़ा ऊंचे दर्जे का काम होता है। कित्ते में काम होगा यह अनुमान लगाना बड़ी कलाकारी का काम है। कभी लगता है कि सस्ते में निपट गये। कभी पता चलता है कि ज्यादा दे आये। सस्ते में निपटने का सुख और चपत लगने की चोट कभी एक साथ ही पड़ती है। पता चला कि एक काम सस्ते में निपटा पर तीन काम में ज्यादा दे आये। इससे कभी-कभी जी धक्क से रह जाता है। एक दिन की बात हो तो कोई झेल भी। जब अक्सर इस तरह होने लगता है तो घूस देने वाला सदमें में आ जाता है।
इस समस्या से निपटने के लोग तरह-तरह के उपाय सोचते हैं। कुछ लोगों का तो मानना है कि बैंक में लोन देने के पहले जिस तरह रिस्क आंकलन करने के लिये गणित के जानकार ड्यूटी बजाते हैं वैसे ही घूस देने में रिस्क का आंकलन करने वाले भी होने चाहिये। पैसे डूबेगा कि काम हो जायेगा। बाजिब घूस कितनी होगी। इस सबके आंकलन की भी व्यवस्था होनी चाहिये।
घूस काम होने के पहले दी जाये या बाद में लफ़ड़ा दोनों में होता है। एडवांस देने में पैसा फ़ंसता है। बाद में देने का मन नहीं करता। जहां रेट बंधा होता है वहां कोई खतरा नहीं होता। ऐसे लेने वाले ईमानदार टाइप के होते हैं। मान लो खर्चा भी हो गये पैसे तो कहते हैं- अगली घूस मिलते ही आपने पैसे वापस कर देंगे।
घूसवालों के सामने सबसे ज्यादा चुनौती का काम होता है ईमानदार माने जाने वाले को घूस का प्रस्ताव देना। सर्टिफ़ाइड ईमानदार माना जाने वाला व्यक्ति भी यह इच्छा रखता है कि उसको कोई घूस का आफ़र दे और वह उसे मना कर सके। ईमानदार माने जाने वाले व्यक्ति की खुशी इसी भावना में होती है कि वह बिका नहीं। उसने घूस का प्रस्ताव ठुकरा दिया। घूस का प्रस्ताव को नकारना उसकी ईमानदारी की बिल्डिंग पर रंग रोगन की तरह होता है। वह चमकने लगता है कि उसे कोई खरीद नहीं सका।
ईमानदार माने जाने वाले को घूस का प्रस्ताव देना बड़ा बवालिया काम होता है। कुछ लोग मुस्कराकर मना करते हैं। कुछ गुस्से में। कुछ लोगों की कामना होती है कि उनको अकेले में आफ़र किया जाये ताकि वे विनम्रता किन्तु दृढ़ता से मना कर सकें और बाद में अपने संस्मरणों में लिख सकें। कुछ लोग सरे आम मना करने के इच्छुक होते हैं। अलग-अलग तरह के ईमानदार होते हैं। घूस देने वाला कितना जी अनुभवी क्यों न हो लेकिन किसी ईमानदार माने जाने को घूस देने में हिचकता है यह सोचकर कि न जाने क्या हरकत कर बैठे अगला।
ईमानदार व्यक्ति को घूस देने का प्रस्ताव देना किसी उम्रदराज व्यक्ति से प्रेम प्रस्ताव रखना सरीखा होता है- कहीं अगला उखड़ न जाये।
कहां तक गिनायें घूस देने वालों की उलझने। एक सोचो हजार होती हैं। लेकिन क्या करे बेचारा वो भी। काम कराने के लिये जमाने का चलन तो नहीं बदल सकता है।
अगर सृष्टि की शुरुआत के लिये बड़े धमाके वाले सिद्धांत को ही सही मान लिये जाये तो देखिये कि जरा सी जगह से निकला हुआ मसाला पूरी दुनिया में फ़ैलता जा रहा है। बिना रजिस्ट्री कराये सितारे, आकाशगंगायें, ब्लैकहोल, धूमकेतु, अलाय-बलाय बनते चले गये। जहां जगह मिली अपना तम्बू तान दिया। न किसी रजिस्ट्रार के यहां रजिस्ट्री कराई। न स्टैम्प ड्यूटी जमा की। ये करप्शन नहीं तो और क्या?
कभी-कभी तो यह भी लगता है कि ये जो प्रकाश की गति से सितारे, आकाशगंगायें, ग्रह-नक्षत्र, हेन-तेन एक दूसरे से दूर भाग रहे हैं प्रकाश की गति से वो अपराधियों की ’घपला करके फ़ूट लो’ के सिद्धांत के अनुसार है। घपले की जगह टिके तो पकड़े जाओगे।
जिस किसी दिन भी ये घपला किसी की निगाह में आ गया तो दुनिया भर के सारे घपले-घोटाले इसके सामने बौने हो जायेंगे। लेकिन किसको पड़ी है इन सबकी जांच करने की।
करप्शन में घूस का भी चलन भी शुरु से ही रहा है। तमाम तरह के करप्शनों में घूस को वही प्रतिष्ठा प्राप्त है जैसे सौंन्दर्य में गोरेपन का। अगर गोरापन है तो सौंन्दर्य है। उसई तरह लोग मानते हैं कि अगर घूस का लेन-देन हुआ तो भ्रष्टाचार हुआ। बाकी तरह के भ्रष्टाचार को लोग शिष्टाचार, भाई-भतीजावाद कहकर टरका देते हैं।
हमारे समाज में घूस लेने वालों की तो बड़ी चर्चायें होती हैं। उनकी हरकतों का विस्तार से सौंन्दर्य वर्णन होता है। लेकिन बेचारे घूस देने वाले को वो प्रतिष्ठा नहीं प्राप्त है जिसका वो हकदार है। घूस देने वाले को घूस देने में बहुत पापड़ क्या रोटी, सब्जी तक बेलनी पड़ती है। न जाने कित्ती मेहनत करता है फ़िर भी उसके कारनामें उजागर नहीं हो पाते। भ्रष्टाचार के महल की नींव की ईंट बनकर रह जाता है घूस देने वाला।
घूस देने वाले को हजार बवाल झेलने पड़ते हैं।
शुरुआत तो इस बात से करनी पड़ती है कि काम घूस से होगा या चापलूसी से ही बात बन जायेगी। कई बार वह सोचता है चापलूसी से बात बन जायेगी और बाद में पता चलता है कि उसका रकीब घूस देकर काम करवा ले गया। उसकी चापलूसी ईमानदारी की तरह उपेक्षित रह गयी।
कई बार उलटा भी होता है। वो समझता है कि खाली घूस से काम चल जायेगा। लेकिन बाद में असलियत खुलती है कि उस काम के लिये घूस के साथ-साथ थोड़ी चापलूसी की भी जरूरत थी जैसे कि कभी-कभी जनप्रतिनिधि के लिये जनता की भलाई के जज्बे के साथ-साथ गुंडागीरी का फ़्लेवर भी जरूरी होता है।
जहां घूस का चलन है वहां तो मामला ठीक रहता है। रेट खुले हैं। पेमेन्ट किया काम हुआ। साल-दो साल में डी.ए. की तरह रेट बढ़ा। उसका भी भुगतान किया फ़िर काम हो गया।
समस्या वहां होती है जहां घूस का चलन नहीं होता। चलन नहीं होता मतलब रेट फ़िक्स नहीं होते। घूस देने वाले की एड़ियां घिस जाती हैं पता करने में कि काम पैसे से होगा, चापलूसी से या पक्की ईमानदारी से।
बेचारी घूस देने वाला नगरी-नगरी, द्वारे-द्वारे पता करता रहता है- काम कौन करेगा, किसको साधने से सब सधेंगे, कितना साधना पड़ेगा। मामला साहब तय करेंगे कि उसका बाबू कि उनकी बीबी या कि उनकी वो। उनकी वो वाली बात भी अनिश्चित रहती है। किसी की कई ’वो’ होती हैं। तब बवाल कि कौन ’वो’ सबसे पक्की ’वो’ हैं। (जिनका यह मत है कि मैडमें इस मामले में पीछे नहीं होती हैं वे साहब की जगह या साथ में मैडम भी पढ़ लें।)
घूस का आंकलन भी बड़ा ऊंचे दर्जे का काम होता है। कित्ते में काम होगा यह अनुमान लगाना बड़ी कलाकारी का काम है। कभी लगता है कि सस्ते में निपट गये। कभी पता चलता है कि ज्यादा दे आये। सस्ते में निपटने का सुख और चपत लगने की चोट कभी एक साथ ही पड़ती है। पता चला कि एक काम सस्ते में निपटा पर तीन काम में ज्यादा दे आये। इससे कभी-कभी जी धक्क से रह जाता है। एक दिन की बात हो तो कोई झेल भी। जब अक्सर इस तरह होने लगता है तो घूस देने वाला सदमें में आ जाता है।
इस समस्या से निपटने के लोग तरह-तरह के उपाय सोचते हैं। कुछ लोगों का तो मानना है कि बैंक में लोन देने के पहले जिस तरह रिस्क आंकलन करने के लिये गणित के जानकार ड्यूटी बजाते हैं वैसे ही घूस देने में रिस्क का आंकलन करने वाले भी होने चाहिये। पैसे डूबेगा कि काम हो जायेगा। बाजिब घूस कितनी होगी। इस सबके आंकलन की भी व्यवस्था होनी चाहिये।
घूस काम होने के पहले दी जाये या बाद में लफ़ड़ा दोनों में होता है। एडवांस देने में पैसा फ़ंसता है। बाद में देने का मन नहीं करता। जहां रेट बंधा होता है वहां कोई खतरा नहीं होता। ऐसे लेने वाले ईमानदार टाइप के होते हैं। मान लो खर्चा भी हो गये पैसे तो कहते हैं- अगली घूस मिलते ही आपने पैसे वापस कर देंगे।
घूसवालों के सामने सबसे ज्यादा चुनौती का काम होता है ईमानदार माने जाने वाले को घूस का प्रस्ताव देना। सर्टिफ़ाइड ईमानदार माना जाने वाला व्यक्ति भी यह इच्छा रखता है कि उसको कोई घूस का आफ़र दे और वह उसे मना कर सके। ईमानदार माने जाने वाले व्यक्ति की खुशी इसी भावना में होती है कि वह बिका नहीं। उसने घूस का प्रस्ताव ठुकरा दिया। घूस का प्रस्ताव को नकारना उसकी ईमानदारी की बिल्डिंग पर रंग रोगन की तरह होता है। वह चमकने लगता है कि उसे कोई खरीद नहीं सका।
ईमानदार माने जाने वाले को घूस का प्रस्ताव देना बड़ा बवालिया काम होता है। कुछ लोग मुस्कराकर मना करते हैं। कुछ गुस्से में। कुछ लोगों की कामना होती है कि उनको अकेले में आफ़र किया जाये ताकि वे विनम्रता किन्तु दृढ़ता से मना कर सकें और बाद में अपने संस्मरणों में लिख सकें। कुछ लोग सरे आम मना करने के इच्छुक होते हैं। अलग-अलग तरह के ईमानदार होते हैं। घूस देने वाला कितना जी अनुभवी क्यों न हो लेकिन किसी ईमानदार माने जाने को घूस देने में हिचकता है यह सोचकर कि न जाने क्या हरकत कर बैठे अगला।
ईमानदार व्यक्ति को घूस देने का प्रस्ताव देना किसी उम्रदराज व्यक्ति से प्रेम प्रस्ताव रखना सरीखा होता है- कहीं अगला उखड़ न जाये।
कहां तक गिनायें घूस देने वालों की उलझने। एक सोचो हजार होती हैं। लेकिन क्या करे बेचारा वो भी। काम कराने के लिये जमाने का चलन तो नहीं बदल सकता है।
Posted in बस यूं ही | 44 Responses
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अच्छा, किसी ने होली पर टाइटल दिया था – बचपन से बुढ़ापे में कदम रखा, जवानी किसके नाम कर दी?!
किसी बेचारे मूलभूत ईमानदार को दिया गया होगा यह टाइटल!
Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..लिमिटेड हाइट सब वे (Limited Height Sub Way)
Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..लिमिटेड हाइट सब वे (Limited Height Sub Way)
पब्लिक जवाब चाहती है
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..आओ बच्चो मिल कर के ये कसम उठानी है – सतीश सक्सेना
सतीश जी: जबाब दे दिया गया। पब्लिक खुश?
आपबीती है अथ्वा empirical है?
….वाह! क्या बात है!!
…उस मसले पर भी आप कितना दिमाग चला सकते हैं जो कमेंट करने से भी आसान हो!
रवि की हालिया प्रविष्टी..इन सलमान खान की तारीफ तो अपने बिल गेट्स भी कर रहे हैं!
amit srivastava की हालिया प्रविष्टी.." स्मृति की एक बूंद मेरे काँधे पे……."
अजय कुमार झा की हालिया प्रविष्टी..कोल्ड-बोल्ड ब्लॉगिंग और फ़ास्ट फ़्युरियस फ़ेसबुक
आजकल तो ऑनलाइन टिकट बुक कराने पर कन्विनियेंस चार्ज लगता है , हिंदी में इसे ही सुविधा शुल्क कहते हैं | अब सब ओफिसिअल मामला हो गया है |
घूस की महत्ता का वर्णन काका हाथरसी ने भी किया है :
कूटनीत मंथन करी , प्राप्त हुआ ये ज्ञान |
लोहे से लोहा कटे, यह सिद्धांत प्रमान |
ये सिद्धांत प्रमान , ज़हर से ज़हर मारिये |
काँटा लग जाये कांटे से ही निकालिए |
कह काका कवि काप रहा क्यूँ रिश्वत लेकर |
रिश्वत पकड़ी जाए छूट जा रिश्वत देकर |
रिश्वत की महिमा अपरमपार है |
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..ए ट्रेन टू पाकिस्तान!!!
सुना है कुछ होशियार लोग इस कला में पारखी होते हैं।
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..बच्चों के लिए खुद को बदलना होगा…
इस कला में बहुत लोग पारखी होते हैं। वैसे लिखेंगे कभी इस बारे में भी।
aradhana की हालिया प्रविष्टी..बाऊजी की बातें
क्या पकड़ा और रगड़ा है ? यह सब पढ़कर लगता है कि घूस देने वाले से बेहतर है कि लेने वाले बनते….कोई धरम-संकट नहीं !
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..जुगनू बन जलता हूँ !
प्रणाम.
चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..भारत में बौद्ध धर्म की क्षय – दामोदर धर्मानंद कोसांबी
दिल्ली के किसी बिल्डर से ईमानदार अफसर के बारे में बात कीजिए “साला क्या उखाड लेगा” ये उसका उत्तर होगा है….
हैं न गज़ब.
उसकी चापलूसी ईमानदारी की तरह उपेक्षित रह गयी।
जनता की भलाई के जज्बे के साथ-साथ गुंडागीरी का फ़्लेवर
किसको साधने से सब सधेंगे
एडवांस देने में पैसा फ़ंसता है। बाद में देने का मन नहीं करता।
सर्टिफ़ाइड ईमानदार माना जाने वाला व्यक्ति भी यह इच्छा रखता है कि उसको कोई घूस का आफ़र दे और वह उसे मना कर सके।
ईमानदार व्यक्ति को घूस देने का प्रस्ताव देना किसी उम्रदराज व्यक्ति से प्रेम प्रस्ताव रखना सरीखा होता है- कहीं अगला उखड़ न जाये।
आ गए गुरु अपने रंग में…..:)
चरण कहाँ हैं आपके? प्रणाम करने का मन है
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..बिग बैंग के प्रश्न
‘ईमानदार व्यक्ति को घूस देने का प्रस्ताव देना किसी उम्रदराज व्यक्ति से प्रेम प्रस्ताव रखना सरीखा होता है- कहीं अगला उखड़ न जाये। ‘
आज एकदम फुर्सत में हम भी इधर चिपके हैं…बहुत सब बांच के जाएंगे…लेकिन आप आजकल जो लिखना कम कर दिए हैं, कौन चीज़ में बीजी हैं?
बासी माल परोस रहे , फ़ुरसतिया जी !
कारतूस सब ख़तम, रिटायर हो जाओ
खाली पीली हांक रहे, फुरसतिया जी !
दावत दे दे बुलवाते, सब यारों को
सड़ी मिठाई खिलवाते फ़ुरसतिया जी !
असली कट्टा कानपुरी अब केस करें
सम्मन भेज बुलायेंगे, फ़ुरसतिया जी !
कट्टा कानपुरी असली वाले की हालिया प्रविष्टी..घर से माल कमाने निकले, रंग बदलते गंदे लोग -सतीश सक्सेना