धूप सड़क , मैदान, छत, बरामदे में अलसाई सी लेटी है। उसको आज न दफ़्तर जाना है, न कचहरी न इस्कूल। ऊपर सूरज जी गर्म हो रहे हैं। लगता है धूप को डांट रहे हैं उसके आलस के लिये। शायद कह रहे हों -उठ जा बिटिया ब्रश करके नास्ता कर ले उसके बाद थोड़ा पढ़ ले। एक्जाम आने वाले हैं। धूप लाड़ली अपने पापा के गले में बांहे डालकर फ़िर कुनमुनाती हुई सो जाती है। सूरज उसको प्यार से निहारते हुये अपनी ड्यूटी बजाने निकल पड़ते हैं।
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