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ये क्या हो रहा है
By फ़ुरसतिया on July 19, 2013
बिहार में दोपहर का भोजन खाने से 23 बच्चों की मौत हो गयी।
बच्चों की मौत की खबर आते ही मीडिया के संवाददाता ’मिड डे मील’ वाले स्कूलों की तरफ़ उसी तरह लपक लिये जैसे कांजी हाउस की दीवार टूटने पर जैसे मवेशी अदबदा के बाहर भागते हैं। कैमरा लिये वे बच्चों के स्कूलों के दोपहर के भोजन पर टूट पड़े। जैसे इनकमटैक्स वाले छापा मारते हैं तो घर के गद्दे,तकिया तक उधेड़ के देखते हैं वैसे ही मीडिया वाले स्कूलों में बंटने वाले सब्जी, दाल, चावल, राजमा को चीर-फ़ाड़ के देखने लगे। खाने में गंदगी, कीड़े, सड़न, गलन को कैमरे से जूम करके दिखाने लगे। जनता का सच जनता को चिल्ला-चिल्ला के दिखाने लगे।
स्कूल को निपटाने के बाद मीडिया ने अस्पताल की तरफ़ मुंह किया। वहां की दुर्दशा पर हमला बोल दिया। अस्पताल की गंदगी, थूक, पीक, कूड़ा-करकट और दुर्व्यवस्था को कैमरे की तलवार से टुकड़े-टुकड़े करके जनता के सामने पेश कर दिया। ’मिड डे मील’ और सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा कैमरे पर दिखाते हुये मीडिया को देखकर पुराने जमाने के राजा-महाराजा लोग याद आ गये जो किसी मरे हुये शेर के ऊपर लात और बंदूक टिकाकर शिकारी होने का गर्व चेहरे पर धारण करते थे।
दुर्घटना जिस राज्य में हुई उस राज्य के हाकिम के सुशासन के मंगलगीत मीडिया सालों से गाता आ रहा था। मीडिया को अचानक हुई इस दुर्घटना के बाद ही पता चला कि राज्य के सब स्कूलों में ऐसे ही ’मिड डे मील’ लापरवाही होती है। खाना खराब मिलता है। अस्पताल में कोई व्यवस्था नहीं है। सब गड़बड़ है। देश के नौनिहालों के भविष्य और जान से खिलवाड़ हो रहा है। अगर यह दुर्घटना न होती तो शायद मीडिया को पता ही न चल पाता कि दोपहर के भोजन में इत्ते लफ़ड़े हैं। अस्पतालों में इत्ती बदइंतजामी है।
अपने देश के मीडिया की इन मीडिया सुलभ अदाओं को देखकर महाभारत के धृतराष्ट्रजी याद आते हैं। किसी भी घटना के घट जाने का आभास होने पर वे मुंह ऊपर उचकाकर, अपनी दृष्टिवंचित आंखे मिचमिचाते हुये पूछते रहते थे- ये क्या हो रहा है, ये क्या हो रहा है।
मीडिया को सब पता है कि मिड डे मील में खाना कैसा बनता है, सरकारी अस्पतालों में गन्दगी रहती है। लेकिन वह उसको तबतक नहीं देखती जब तक वहां कोई दुर्घटना नहीं होती, उससे कोई सनसनी नहीं निकलती। वह गड़बड़ी के पास से गुजरती भी है तो गांधारी की तरह आंख में पट्टी बांधकर ताकि उसको वह सब न दिखे जो राजा धृतराष्ट्र को नहीं दिखता। गड़बड़ी की जगह कोई बड़ी दुर्घटना होते ही वही उसे वह दुर्योधन की तरह प्रिय हो जाती है। उसके प्रति उसके मन में वात्सल्य छलकता है। वह अपनी आंख की पट्टी उतार उतारकर उसे स्नेह से निहारती है ताकि वह दुर्घटना/सनसनी अजर अमर हो सके।
’मिड डे मील’ दुर्घटना के बाद मीडिया कैमरा खाने पर चमकाते धृतराष्ट्र की तरह आंख मिचमिचाते पूछ रहा है -ये क्या हो रहा है, ये क्या हो रहा है।
आजकल दिल्ली में श्यामरुद्र पाठक ऊंची अदातलों की कार्यवाही भारतीय भाषाओं में किये जाने की मांग को लेकर नियमित अनशन पर रहते हैं। रोज गिरफ़्तार किये जाते हैं, छोड़े जाते हैं। फ़िर पकड़े जाते हैं , फ़िर छोड़े जाते हैं। मीडिया उनको देख नहीं पा रहा है। उसके कैमरे की नजर उन तक पहुंच नहीं पा रही है। वह इस इंतजार में है कि इस संबंध में कोई सनसनीपूर्ण दुर्घटना हो तो वह धृतराष्ट्रजी की तरह आंख मिचमिचाते हुये कैमरा चमकाते हुये तेज आवाज में चिल्लाते हुये पूछे -ये क्या हो रहा है, ये क्या हो रहा है।
बच्चों की मौत की खबर आते ही मीडिया के संवाददाता ’मिड डे मील’ वाले स्कूलों की तरफ़ उसी तरह लपक लिये जैसे कांजी हाउस की दीवार टूटने पर जैसे मवेशी अदबदा के बाहर भागते हैं। कैमरा लिये वे बच्चों के स्कूलों के दोपहर के भोजन पर टूट पड़े। जैसे इनकमटैक्स वाले छापा मारते हैं तो घर के गद्दे,तकिया तक उधेड़ के देखते हैं वैसे ही मीडिया वाले स्कूलों में बंटने वाले सब्जी, दाल, चावल, राजमा को चीर-फ़ाड़ के देखने लगे। खाने में गंदगी, कीड़े, सड़न, गलन को कैमरे से जूम करके दिखाने लगे। जनता का सच जनता को चिल्ला-चिल्ला के दिखाने लगे।
स्कूल को निपटाने के बाद मीडिया ने अस्पताल की तरफ़ मुंह किया। वहां की दुर्दशा पर हमला बोल दिया। अस्पताल की गंदगी, थूक, पीक, कूड़ा-करकट और दुर्व्यवस्था को कैमरे की तलवार से टुकड़े-टुकड़े करके जनता के सामने पेश कर दिया। ’मिड डे मील’ और सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा कैमरे पर दिखाते हुये मीडिया को देखकर पुराने जमाने के राजा-महाराजा लोग याद आ गये जो किसी मरे हुये शेर के ऊपर लात और बंदूक टिकाकर शिकारी होने का गर्व चेहरे पर धारण करते थे।
दुर्घटना जिस राज्य में हुई उस राज्य के हाकिम के सुशासन के मंगलगीत मीडिया सालों से गाता आ रहा था। मीडिया को अचानक हुई इस दुर्घटना के बाद ही पता चला कि राज्य के सब स्कूलों में ऐसे ही ’मिड डे मील’ लापरवाही होती है। खाना खराब मिलता है। अस्पताल में कोई व्यवस्था नहीं है। सब गड़बड़ है। देश के नौनिहालों के भविष्य और जान से खिलवाड़ हो रहा है। अगर यह दुर्घटना न होती तो शायद मीडिया को पता ही न चल पाता कि दोपहर के भोजन में इत्ते लफ़ड़े हैं। अस्पतालों में इत्ती बदइंतजामी है।
अपने देश के मीडिया की इन मीडिया सुलभ अदाओं को देखकर महाभारत के धृतराष्ट्रजी याद आते हैं। किसी भी घटना के घट जाने का आभास होने पर वे मुंह ऊपर उचकाकर, अपनी दृष्टिवंचित आंखे मिचमिचाते हुये पूछते रहते थे- ये क्या हो रहा है, ये क्या हो रहा है।
मीडिया को सब पता है कि मिड डे मील में खाना कैसा बनता है, सरकारी अस्पतालों में गन्दगी रहती है। लेकिन वह उसको तबतक नहीं देखती जब तक वहां कोई दुर्घटना नहीं होती, उससे कोई सनसनी नहीं निकलती। वह गड़बड़ी के पास से गुजरती भी है तो गांधारी की तरह आंख में पट्टी बांधकर ताकि उसको वह सब न दिखे जो राजा धृतराष्ट्र को नहीं दिखता। गड़बड़ी की जगह कोई बड़ी दुर्घटना होते ही वही उसे वह दुर्योधन की तरह प्रिय हो जाती है। उसके प्रति उसके मन में वात्सल्य छलकता है। वह अपनी आंख की पट्टी उतार उतारकर उसे स्नेह से निहारती है ताकि वह दुर्घटना/सनसनी अजर अमर हो सके।
’मिड डे मील’ दुर्घटना के बाद मीडिया कैमरा खाने पर चमकाते धृतराष्ट्र की तरह आंख मिचमिचाते पूछ रहा है -ये क्या हो रहा है, ये क्या हो रहा है।
आजकल दिल्ली में श्यामरुद्र पाठक ऊंची अदातलों की कार्यवाही भारतीय भाषाओं में किये जाने की मांग को लेकर नियमित अनशन पर रहते हैं। रोज गिरफ़्तार किये जाते हैं, छोड़े जाते हैं। फ़िर पकड़े जाते हैं , फ़िर छोड़े जाते हैं। मीडिया उनको देख नहीं पा रहा है। उसके कैमरे की नजर उन तक पहुंच नहीं पा रही है। वह इस इंतजार में है कि इस संबंध में कोई सनसनीपूर्ण दुर्घटना हो तो वह धृतराष्ट्रजी की तरह आंख मिचमिचाते हुये कैमरा चमकाते हुये तेज आवाज में चिल्लाते हुये पूछे -ये क्या हो रहा है, ये क्या हो रहा है।
Posted in बस यूं ही | 12 Responses
ऐसा ही चित्रण फेसबुकियों का भी होना मांगता है।
कैसे-कैसे लोमहर्षक स्टेटस आ रहे हैं।
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..वैज्ञानिक चेतना के प्रसार के लिए ब्लॉग बनाएँ
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..उथल पुथल में क्रम
वैसे बिहार में हुए इस काण्ड से ये भी पता चलता है की वहां खाना दिया जा तो रहा है कमसकम , अपने यहाँ तो महीने के राशन की तरह बाँट देते हैं , महीने की शुरुआत में आओ, ५-७ रुपये जो फीस है वो भरो, और राशन उठा कर चले जाओ |
कितने ही स्कूलों में ऐसे बच्चे पढ़ रहे हैं जो इस दुनिया में अपना वजूद नहीं रखते , उनका नाम है रजिस्टर में , मास्टर साहब फीस भर देते हैं , फीस से ज्यादा का राशन मिल जाता है |
पर ये सब मीडिया को तब दिखेगा जब इस टाइप का कोई घोटाला-फोटाला खुल के आएगा !!!!
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..डीज़ल-पेट्रोल
अब नेताओं की नौकरी भी तो बजानी है . कि यही देखते रहें .
Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..मन्दाकिनी नदी पर रोप-वे बनाने में सफल रही शैलेश की टीम
प्रणाम.
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..कुछ छुट्टा तूफानी विचार -फेसबुक से संकलन!