http://web.archive.org/web/20140420082620/http://hindini.com/fursatiya/archives/4469
गदर मची है टमाटर पर,
पहुंचेगा क्या ये सौ पर। हर स्टेटस पर दिखता है,
चहक रहा FB,ट्विटर पर।
मंहगा है, छोड़ो मत खाओ,
काहे को जान दें टमाटर पर।
-कट्टा कानपुरी
टमाटर पर गदर मची है। जिसे देखो इस सब्जी पर बयान जारी किये जा रहा है। लाल टमाटर के बहाने गाल टमाटर के किस्से सुनाये जा रहा है। बवाल है टमाटर भी। टमाटर सब्जी, सलाद और सॉस में लगता है। सड़ जाने पर फ़ेंक के मारा जाने के किस्से भी सुने हैं। जाने कौन सी फ़िल्म थी जिसमें टमाटर से सब कीचड़ की तरह नहाते हैं, उबटन की तरह मसलते हैं। बजरिये सिद्धेश्वर – नरुदा लिखते हैं:
The street
filled with tomatoes..
_______Neruda
टमाटर भरी गलियों के लिये तो अच्छा है। रास्ता साफ़ होगा। लेकिन उनका क्या जो पाव,आध पाव के हिसाब से टमाटर से जुड़ते हैं।
टमाटर आम तौर पर घरों में पाव-आधा किलो ही लिया जाता है। आम तौर पर फ़्रिज में ही धरा जाता है। फ़्रिज में धरा टमाटर कहां सड़ता है। सड़े तो जाना चाहिये न कन्ज्यूमर फ़ोरम में फ़्रिज की शिकायत के लिये। अरे लेकिन हम यह तो भूल ही गये कि फ़्रिज बिजली से चलती है। बिजली गायब तो सड़ सकता है भाई। कन्ज्यूमर फ़ोरम वाली बात कैसल।
फ़्रिज में टमाटर धर सकने वाले लोग आम तौर पर नौकरी/पेशा वाले ही होते हैं। वे कहां जायेंगे किसी पर टमाटर फ़ेंकने। वैसे भी आजकल सारा विरोध तो सोशल मीडिया पर होने लगा है। टमाटर, सब्जी फ़ेंकने की कोई जरुरत नहीं। स्टेटस से हमला किया जा सकता है। सस्ता, तुरंता, बहुहंता। बिनु कट्टा, चाकू बिना, करे कत्ल ये यार।
टमाटर के अभी भाव बढ रहे हैं। रुपया डॉलर के मुकाबले गिर रहा है। दुख है। लेकिन यह खुशी की बात है कि टमाटर के मुकाबले ज्यादा तेजी से गिर रहा है। टमाटर ने डॉलर को पटक दिया मंहगाई के मामले में।
बढ़ते टमाटर के दाम का एक मुफ़ीद इलाज तो यही है कि टमाटर खाना छोड़ दिया जाये। कुछ दिन न खायेंगे तो क्या जी न पायेंगे।
टमाटर के दाम बढ़ने का फ़ायदा व्यंग्यकारों, कार्टूनिस्टों, हास्य/हास्यास्पद कवियों को हुआ है। ये बिरादरी किसी भी मुद्दे को ऐसे लपकती है जैसे ट्रेन से उतरते यात्रियों को ऑटो, टैक्सी वाले कब्जे में करते हैं। हुनर वाले लोग दस-बारह आइटम निकाल लेता है किसी भी मुद्दे पर। ताज्जुब हो रहा है कि अभी तक किसी चैनल ने इस मुद्दे पर अभी तक कोई स्टोरी क्यों नहीं की- सब्जी मंडी से कैमरा मैन अलाने के साथ मैं फ़लाना। लगता है कि अमेरिका का हाथ है इसमें। वह नहीं चाहता होगा कि डॉलर के मंहगे होने के मुकाबले टमाटर की मंहगाई के चर्चे हों। बहुत छुई-मुई और डरपोंक है अमेरिका। जलता है दूसरे का जलवा देखकर।
देखते हैं कि टमाटर के जलवे कित्ते दिन बरकरार रहते हैं। अभी तो दफ़्तर निकलें वर्ना देरी होने पर लोग टमाटर की लालिमा लोगों आंखों में दिखेगी।
तबतक आप कट्टाकानपुरी के टमाटर स्टेटस पर अब तक आयी टिप्पणियां देखिये:
और टोकरी हिलने लगती है
मुझे लगता है बुढिया टोकरी से
अपनी जगह बदल रही है
मैं कांपने लगता हूँ यह देखकर
कि टमाटर इस काम में
बुढ़िया की मदद कर रहे हैं
अब बुढ़िया के हाथ
टमाटरों से खेल रहे हैं
वह एक भूरे टमाटर को धीरे से उठाती है
और हरी पत्तियों के नीचे
छिपा देती है माँ की तरह
__________’टमाटर बेचने वाली बुढिया’ कविता का एक अंश / केदारनाथ सिंह
सिद्धेश्वर सिंह के फ़ेसबुक स्टेटस से आभार सहित
टमाटर पर गदर
By फ़ुरसतिया on July 6, 2013
पहुंचेगा क्या ये सौ पर। हर स्टेटस पर दिखता है,
चहक रहा FB,ट्विटर पर।
मंहगा है, छोड़ो मत खाओ,
काहे को जान दें टमाटर पर।
-कट्टा कानपुरी
टमाटर पर गदर मची है। जिसे देखो इस सब्जी पर बयान जारी किये जा रहा है। लाल टमाटर के बहाने गाल टमाटर के किस्से सुनाये जा रहा है। बवाल है टमाटर भी। टमाटर सब्जी, सलाद और सॉस में लगता है। सड़ जाने पर फ़ेंक के मारा जाने के किस्से भी सुने हैं। जाने कौन सी फ़िल्म थी जिसमें टमाटर से सब कीचड़ की तरह नहाते हैं, उबटन की तरह मसलते हैं। बजरिये सिद्धेश्वर – नरुदा लिखते हैं:
The street
filled with tomatoes..
_______Neruda
टमाटर भरी गलियों के लिये तो अच्छा है। रास्ता साफ़ होगा। लेकिन उनका क्या जो पाव,आध पाव के हिसाब से टमाटर से जुड़ते हैं।
टमाटर आम तौर पर घरों में पाव-आधा किलो ही लिया जाता है। आम तौर पर फ़्रिज में ही धरा जाता है। फ़्रिज में धरा टमाटर कहां सड़ता है। सड़े तो जाना चाहिये न कन्ज्यूमर फ़ोरम में फ़्रिज की शिकायत के लिये। अरे लेकिन हम यह तो भूल ही गये कि फ़्रिज बिजली से चलती है। बिजली गायब तो सड़ सकता है भाई। कन्ज्यूमर फ़ोरम वाली बात कैसल।
फ़्रिज में टमाटर धर सकने वाले लोग आम तौर पर नौकरी/पेशा वाले ही होते हैं। वे कहां जायेंगे किसी पर टमाटर फ़ेंकने। वैसे भी आजकल सारा विरोध तो सोशल मीडिया पर होने लगा है। टमाटर, सब्जी फ़ेंकने की कोई जरुरत नहीं। स्टेटस से हमला किया जा सकता है। सस्ता, तुरंता, बहुहंता। बिनु कट्टा, चाकू बिना, करे कत्ल ये यार।
टमाटर के अभी भाव बढ रहे हैं। रुपया डॉलर के मुकाबले गिर रहा है। दुख है। लेकिन यह खुशी की बात है कि टमाटर के मुकाबले ज्यादा तेजी से गिर रहा है। टमाटर ने डॉलर को पटक दिया मंहगाई के मामले में।
बढ़ते टमाटर के दाम का एक मुफ़ीद इलाज तो यही है कि टमाटर खाना छोड़ दिया जाये। कुछ दिन न खायेंगे तो क्या जी न पायेंगे।
टमाटर के दाम बढ़ने का फ़ायदा व्यंग्यकारों, कार्टूनिस्टों, हास्य/हास्यास्पद कवियों को हुआ है। ये बिरादरी किसी भी मुद्दे को ऐसे लपकती है जैसे ट्रेन से उतरते यात्रियों को ऑटो, टैक्सी वाले कब्जे में करते हैं। हुनर वाले लोग दस-बारह आइटम निकाल लेता है किसी भी मुद्दे पर। ताज्जुब हो रहा है कि अभी तक किसी चैनल ने इस मुद्दे पर अभी तक कोई स्टोरी क्यों नहीं की- सब्जी मंडी से कैमरा मैन अलाने के साथ मैं फ़लाना। लगता है कि अमेरिका का हाथ है इसमें। वह नहीं चाहता होगा कि डॉलर के मंहगे होने के मुकाबले टमाटर की मंहगाई के चर्चे हों। बहुत छुई-मुई और डरपोंक है अमेरिका। जलता है दूसरे का जलवा देखकर।
देखते हैं कि टमाटर के जलवे कित्ते दिन बरकरार रहते हैं। अभी तो दफ़्तर निकलें वर्ना देरी होने पर लोग टमाटर की लालिमा लोगों आंखों में दिखेगी।
तबतक आप कट्टाकानपुरी के टमाटर स्टेटस पर अब तक आयी टिप्पणियां देखिये:
Niroj Kumar टोमाटो सौस और हमने खाना सिख लिया है………… जो खरीद और स्टॉक फ्रिज में कर लिया है………..
50 मिनट पहले · पसंद
Acharya Sushil Awasthi Prabhakar ट्माटर की सुर्खियत बढ गई है, कांग्रेस को निजात मिली , उसकी बहुत किरकिरी हो रही थी , उत्तराखंड आपदा पर…..सरकार कह रही है, ” वाह टमाटर तुमने मेरी जान बचाई, तुम आए तो राहत पाई”
46 मिनट पहले · पसंद
Dhiru Singh अगर हम तय कर ले कि एक सप्ताह टमाटर नहीं खायंगे तो यही टमाटर दो रुपये किलो मारा मारा फिरेगा ।
42 मिनट पहले mobile के द्वारा · पसंद · 1
Kajal Kumar टोमैटो चिंतन
35 मिनट पहले · पसंद · 1
Siddheshwar Singh The street
filled with tomatoes..
_______Neruda
12 मिनट पहले · नापसंद · 1
Shivang Tripathi Pyaz le dooba tha b.j.p ko
To kya tamatar le doobega congress ko???
Lagta to nahi hai….bade makkar hai yeh congresi
मेरी पसंद
एक ग्राहक आता हैऔर टोकरी हिलने लगती है
मुझे लगता है बुढिया टोकरी से
अपनी जगह बदल रही है
मैं कांपने लगता हूँ यह देखकर
कि टमाटर इस काम में
बुढ़िया की मदद कर रहे हैं
अब बुढ़िया के हाथ
टमाटरों से खेल रहे हैं
वह एक भूरे टमाटर को धीरे से उठाती है
और हरी पत्तियों के नीचे
छिपा देती है माँ की तरह
__________’टमाटर बेचने वाली बुढिया’ कविता का एक अंश / केदारनाथ सिंह
सिद्धेश्वर सिंह के फ़ेसबुक स्टेटस से आभार सहित
Posted in बस यूं ही | 10 Responses
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..मिथक का मतलब
लग रहा बहुत जल्द यह पंहुच जाए सौ पर
जहाँ देखो वहीँ यह आजकल चहकता है !
मेरे तो फेस बुक पे भी और तेरे ट्वीटर पर !
अगर महंगा लगे तो चीख क्यों रहे यारो
कहे को जान दे रहे हो,. इस टमाटर पर !
अनूप शुक्ल को देखो, जो सरे आम इधर
कट्टा के शेर खूब छापते हैं , ब्लोगर पर !
कट्टा कानपुरी असली वाले की हालिया प्रविष्टी..अपनी गलियों में,अक्सर ही,हमने गौतम लुटते देखे !- सतीश सक्सेना
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..दृष्टिक्षेत्रे
ज्योतिष गण बताएँ कि टमाटर के कौन से ग्रह बदल गए जो इतना भाव खा रहा है.अचानक!
सरकार को अपने खेवनहार को ही चुनाव चिन्ह रख लेना चाहिए.आखिर इस आपदा की घडी में इसी ने जान बचाई !
Alpana की हालिया प्रविष्टी..खुद को छलते रहना..