झूला झूलने आई कन्चनपुर की बच्चियां| |
अभी बच्चियों की फोटो देख रहे हैं। बच्चियों के पीछे पेड़ भी लगता है एक दूसरे के'डलबहियां' (डालबहियां/ गलबहियां) किये फोटो खिंचा रहे हैं। लगा कि फोटो कह रही है मानवता और धरती सुरक्षित बने रहने के लिए बच्चियों और पेड़ का बने रहना और पनपना बहुत जरूरी है।
आज देर हो गयी थी। सुबह की दोस्त Rohini अब लौटने वाली होगी। समय की पाबन्द है वह टहलने के मामले में। हमने अपनी साइकिल उधर घुमाई जहां तक पहुंचकर रोहिनी लौटती है। वीएफजे गेट नम्बर एक के चौराहे का चक्कर लगाकर लौटे तो रास्ते में मिली रोहिनी। बच्ची की तबियत पूछी तो पता चला बेहतर है।
और बात हुई तो पता चला कि रोहिनी के पापा पहले वीएफजे में काम थे। 2008 में रिटायर हुए। Vinod Kumar Singh साहब के साथ काम कर चुके हैं। बताया कि हमारी पोस्ट पढ़कर पापा को सुनाई थी तो बता रहे थे कि वो हमसे मिले हैं। लगा कि हम सभी आपस में किसी न किसी तरह जुड़े रहते हैं। बात करते हुए कोई न कोई सूत्र मिल ही जाता है।
लौटते हुए पुलिया पर राम निरंजन सिंह अपने साथियों के साथ मिले। एक जीसीएफ से और दूसरे वीएफ़जे से रिटायर्ड। हमने राम निरंजन को उनके बारे में लिखी पोस्ट पढ़ाई तो बोले -अरे वाह गुरूजी आप सब लिखि देहेव। एकाध जगह सुधार भी किया। यहां तो कल के बाद आज मिल गये राम निरंजन तो उनकी कही बात सुधार ली। लेकिन जिनसे दुबारा मिलना नहीं हो पाता उनके बताने और हमारे समझने और लिखने का अंतर कैसे दूर हो सकता है।
हमारा लिखना तो खैर रोजमर्रा की बात। लिखना शुरू करने के पहले इंसान में जब ज्ञान वाचिक परम्परा से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक स्थानांतरित होता होगा तो उसमें आये अंतर और टेढ़े-मेढ़े पन को कैसे बचाया जा सकता होगा। कुछ न कुछ विचलन अवश्य होता होगा।
राम निरंजन सिंह ( बीच में) जीसीएफ (बाएं) और वीएफजे( दायें) के रिटायर्ड साथियों के साथ |
ये अपनी ही तरफ वाला मामला मजेदार है। मध्यप्रदेश में उत्तर प्रदेश और बिहार वाले अपनी ही तरफ के हो जाते हैं। लन्दन और अमेरिका में हिंदुस्तान और पाकिस्तान वाले अपनी ही तरफ के हो जाते हैं। अमेरिका और यूरोप के लोगों के लिए बाकी दुनिया एक तरफ और वो अपनी तरफ के। क्या पता कल को धरती और वुध के लोग किसी दूसरे ग्रह मिलें तो कहें तुम तो अपनी ही तरफ के हो।
'अपनी ही तरफ' की तरह से भी मजबूत और तेजी से पनपने वाला सम्बन्ध 'अपनी ही तरह' वाला होता है।अपराधी और 420 लोग 'अपनी ही तरह' के लोगों से मिलकर अपना काम अंजाम देते हैं।
पुलिया के पास ही मिश्र जी मास्टर साहब से मुलाकात हुई। मिश्र जी ने बीएनएसडी से 1959 में हाईस्कूल किया जहां से मैंने 1981 से इंटर किया। उनके समय सद्गुरु शरण अवस्थी प्रिंसिपल थे जो कानपुर के मशहूर शिक्षाविद् रहे हैं।
मिश्र जी ने अपनी यादें साझा करते हुए बताया कि शारदा चरण बाजपेयी उनके गुरु जी थे। उन्होंने उनको पढ़ाया और कविता लिखना सिखाया। बाद में दोनों ने साथ अर्मापुर इंटर कालेज पढ़ाया भी। जब कभी मिश्र जी कविता सुनाते थे तो बाजपेयी जी पीठ ठोंककर उनकी तारीफ करते थे।
Vijyan Shankar जी ने उनको आदर सहित बुलाया था। 90 के करीब की उम्र के बाजपेयी जी ने बहुत ओजस्वी व्याख्यान दिया था।
शिक्षक हूँ भाई इसीलिए दूसरे को अपनी कटु वाणी से सता नहीं पाता हूँ मिश्र जी अपनी पत्नी से साथ |
आज उनके बारे में लिखते हुए और उनका भाषण याद करते हुए लग रहा है कि आजादी के समय पैदा हुई इस पीढ़ी के तमाम लोगों के आदर्श सादगी,समर्पण और ईमानदारी थे। अनगिनत लोग उनको याद करते हैं। उनसे प्रेरणा लेते हैं।उनके मुकाबले आज के गुरुओं को कल के लोग कैसे याद करेंगे? शायद अच्छे नोट्स देने वाले गुरु के रूप में। कम पैसे लेकर ट्यूशन पढ़ा देने वाले टीचर के रूप में। ज्ञान भले बढ़ा है लेकिन आचरण का क्षरण हुआ है।
संयोग से स्व. शारदा चरण बाजपेयी जी के सुपुत्र श्री सिंधुजा चरण बाजपेयी जी हमारे विभाग के वरिष्ठ अधिकारी हैं (आयुध निर्माणी चांदा में वरिष्ठ महाप्रबन्धक) एस.ए.ऍफ़ कानपुर में हम उनके साथ ही थे। वे वहां अपरमहाप्रन्धक थे। अनगिनत यादें हैं उनके साथ की।
मिश्र जी आशु कवि हैं । अनगिनत कविताएँ याद हैं। हमारे अनुरोध पर उन्होंने यह कविता सुनाई जो उनकी एक शिक्षक के रूप में कभी पीड़ा रही होगी:
है यह अभिलाषा नहीं पाऊं सन्मान
पर अपमान को भी मैं पचा नहीं पाता हूं
करता हूं कार्य नित निष्ठा और परिश्रम से
किन्तु स्वाभिमान फ़िर भी बचा नहीं पाता हूं
सोचता हूं कितना असहाय हो गया हूं आज
वेदना अपनी ही मैं बता नहीं पाता हूं
शिक्षक हूं भाई इसी लिये दूसरे को
अपनी कटु वाणी से सता नहीं पाता हूं।
मिश्र जी से और कविताएँ सुनने की बात तय हुई है। वे बता रहे थे कि हमारी और पोस्टें उनके लड़के ने पढ़वाई हैं उनको। मतलब लाइक और कमेंट के अलावा भी लोग हमारे लिखे को पढ़ते हैं। रघुवीर सहाय की प्रसिद्ध कविता की तर्ज पर कहें तो:
लिखो,लिखो तुम्हारे लिखे पर निगाह रखी जा रही है।
आज लम्बा जाने का प्लान था।लेकिन अपनी तरफ के इतने लोग मिल गए कि रांझी के पास के व्हीकल मोड़ से ही चाय पीकर लौट आये। अब दफ्तर जाने का समय हो गया।
चलिए आप भी मजे कीजिये। आपका दिन शुभ हो। मङ्गलमय हो। चकाचक हो।
फ़ेसबुकिया प्रतिक्रियायें
Nirmal Gupta दुनिया के बने रहने के लिए पेड़ और लड़कियों का होना जरूरी है ...सही ।
Saurabh Dwivedi अरे आप तो अपनी तरफ के हो ये तरीका कारगर प्रेम भरने के लिये। गजब
पंकज कुमार झा मानवता और धरती सुरक्षित बने रहने के लिए बच्चियों और पेड़ का बने रहना और पनपना बहुत जरूरी है।
बेचैन आत्मा दुनिया के बने रहने के लिए पेड़ और लड़कियों का होना जरूरी है ...सही ।
Samar Anarya गजब लिखे हैं सर बस अटल बिहारी वाजपेयी वाला हिस्सा छोड़ के. सगे बड़े भाई के खिलाफ अंग्रेजों को गवाही देने का इतिहास है उनका- और यह सिर्फ राजनैतिक विरोध में नहीं- संघ खेमे में भला आदमी भी था एक- दीनदयाल उपाध्याय. smile इमोटिकॉन
- अनूप शुक्ल मैंने अटल बिहारी बाजपेयी के बारे में जो लिखा वह सूचना है और सच भी। अटल जी भारत रत्न से नवाजे गए हैं। स्व. शारदा चरण बाजपेयी जी उनके सहपाठी थे। बाकी के बारे में हम कुछ न कहेंगे। smile इमोटिकॉन
हृदय नारा़यण शुक्ल दुनिया में दुनिया के लिए लडकियो और पेड का होना दुनिया का बचा रहना है।बहूत खूब । "अपनी तरफ*का मामला भी बहुत मौजू है।बधाई।बतकही की चाशनी में शब्दों के गुल्ले डुबोकर लिखते रहने के लिए प्रशंसा के शब्द कम पड रहे है।नजर न लगे।पुन:साधुवाद।
Virendra Bhatnagar बहुत रोचक, कितना कुछ समेट लेते हैं आप अपने एक आलेख में।सचमुच पढ़ने में आनन्द आ गया। लड़कियों और वृक्षों का संरक्षण मानवता और धरती के बचे रहने के लिए कितना ज़रूरी है, पुरानी पीढ़ी के लोगों के संस्मरण और मिश्र जी की लाजवाब कविता । इतने बढ़िया लेखन के लिए बधाई।
Mukesh Sharma घर गृहस्थी के झंझटो से फारिग हो जावें तो उसके बाद छोड़िये ये नौकरी फौकरी ।ईश्वर ने आपको लेखन कार्य के लिए धरा पर भेजा है न की कट्टे बन्दुक बनाने के लिए ।अप्रतिम शक्ति है आपकी लेखनी में ।साधुवाद ।
Shruti Thakur ये पोस्ट मुझे मेरी दादी की चिट्ठियों की याद दिलाता है.. ऐसे ही मोहल्ले भर की खबर देती थी वो मुझे, उन लोगो के बारे में जिन्हें मैं जानती भी नहीं थी.. मगर पढना अच्छा लगता था..
Sundar Lal Apne taraf ki baat bahut sukun deti hai jab apne taraf ke log mil jaye to aur meetha sukun milta hai
Chandra Mohan Jha अनूप शुक्ल जी आपका ये लेख न जाने कितनी पुरानी यादों को समेटते हुए उन स्कूल और O.F.Inter college की ओर ले गया ।कक्षा 1 से 12th तक आरमापुर
में बीता और बाजपेयी जी हिन्दी के अध्यापक की यादें ताजा हो गई।
में बीता और बाजपेयी जी हिन्दी के अध्यापक की यादें ताजा हो गई।
Dhananjay Singh वैसे तो आपकी पोस्ट मैं अक्सर ही पढ लेता हूं,किन्तु 'लाइक' तक ही सीमित रहा।अाज जब स्व शारदा चरण बाजपेयी जी का जिक्र आया तो रोक नहीं पाया।उनका व्यक्तित्व अद्भुत था।वह जब पढाते थे,तो हम सब मंत्र-मुग्ध हो जाते थे।उनकी पढानें की शैली बडी अनूठी अौर मौलिक थी।अापकी पोस्ट में हमारी स्मृतियों की भी झलक मिली,बहुत अच्छा लगा । सादर अाभार!
Rohini Singh With ur blogs/pics u make a common man so special. U definitely make all the people u meet so very happy by giving them importance and ur time. These days no one does.
Rajesh Kumar Suthar शुक्ल जी आपने सही नब्ज पकड़ ली है बुजुर्गों से जब कोई उनके पुराने समय की बात पूछता है तो उनकी आँखों में चमक आ जाती है
Amar Nath Dwivedi · 11 पारस्परिक मित्र
वाह सर सुन्दर चित्रण किया आपने। अपनी तरफ वाले की अद्भुत व्याख्या।
Krishn Adhar मुझे लगता है रोज झूलने के लिये दूसरे अंकलों से पूछा होगा,जव देखा कि अव विलकुल नये अंकल आ गयेऔर देखने मे सुदर्शन भी है इनसे भी....।
Ram Kumar Chaturvedi वे कचनपुर की कंचन है।
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