आज
टहलने नहीं गये। देर तक सोये। कई दिन की नींद इकट्ठा थी। तबियत से खर्च
की। चाय मंगाई और गोदी में लैपटाप धरे खटर-पटर कर रहे हैं। एक मिनट जरा
रुकिये। चाय थरमस से ग्लास में डाल लें जरा। हां अब ठीक आधा कप चाय थरमस से
कप में उडेल लिये हैं।
जब हम थरमस में चाय डालने के लिये उठाये थे उसी समय याद आया कि Shubham का जन्मदिन है आज। सो कप में चाय डालने के पहले उसको जन्मदिन की बधाई देने के लिये फोन किया। घंटी बजी लेकिन फ़ोन उठा नहीं। चाय का पहला घूंट लेते ही फोन आया उसका। बात की। बधाई दी। शुभम के बारे में बता चुके हैं। डुमना पार्क में मिले थे एक दिन। फोटोग्राफ़ी करते हुये। हमारा साइकिलिंग करते हुये बढिया फ़ोटो खैंचा था। शुभम इंजीनियरिंग किये हैं। नाटक और फ़िल्म का शौक है। फ़िल्म इंस्टीट्यूट जाने की तैयारी कर रहे हैं। जुलाई में ’आषाढ का एक दिन’ नाटक में भाग लेने के लिये अपना बाल बढ़ा रहे हैं।
ये जो ऊपर के पैरा में चाय का पहला घूंट लेने की बात लिखी न उसके पहले हमें याद कि थरमस के सालों पुराना है। दो प्लास्टिक के कप और एक छुटकी ट्रे के साथ आया था। न्यूक्लियर फ़ेमिली की तरह। थरमस को पुरुष पात्र और कप को बच्चे समझा जाये तो ट्रे थरमस की घरवाली हुई। पूरे घर को सहेजती/संभालती हुई। कप और थरमस मिलकर ट्रे में बैठकर सुन्दर दिखते थे। इतने दिनों में कप इधर-उधर हो गये। थरमस मैं जबलपुर ले आया। ट्रे कानपुर में है। लग रहा कि हमारे परिवार का बिम्ब बन रहा है। हम यहां जबलपुर, पत्नी कानपुर बच्चे नौकरी और पढाई के लिये बाहर। थरमस पुराना होने के चलते इधर-उधर से लीक करता है ( शायद ट्रे और कप की याद करते हुए भावुक होते हुये) लेकिन चल रहा है। भले ही एक चाय मंगायें लेकिन मंगाते इसी में हैं। फ़िर दो तीन बार में पीते हैं। इसको देखकर वह समय याद आता है जब हम साथ थे और इस थरमस में चाय पीते थे।
ये जो शुभम पाठक के डुमना में मिलने की बात लिखी न उसी समय हमें याद आया कि उस दिन हम डुमना के पहले आईआईआई टी डुमना भी गये थे। वहां के चौकीदार चाचा-भतीजे से मिले थे। चाचा ने खुशी से बताया था कि भतीजे की शादी होने वाली है। उन्होंने यह भी बताया था कि जिस कम्पनी के माध्यम से चौकीदारी का काम करते हैं वह अब उनको पैसे पूरे देती है। पहले वाली पैसा देने में देरी करती थी।
आज ही अखबार में खबर आई थी कि आईआईआईटी में सड़क बनाने वाले ठेकेदार से दो लाख रुपये लेते हुये सीपीडी ड्ब्ल्यू का सहायक अभियन्ता गिरफ़्तार हुआ।जेल गया। अब जिन्दगी भर का काम मिल गया उसको। लगा तो यह भी कि देखा-जाये (मेरी समझ के हिसाब से) तो सबसे ज्यादा लेन-देन का काम थानों और कचहरियों में होता होगा। यहां के लोगों को पकड़ने के किस्से कभी सुनने में नहीं आते। पकड़े वही लोग जाते हैं जहां लोग अकेले लेन-देन करते हैं। व्यवस्थागत तरीके से लेन-देन करने वाले कम पकड़े जाते हैं। एक बार फ़िर एहसास हुआ -संगठन में शक्ति होती है। मिलकर खाने वाले बचे रहते हैं।
अब लैपटाप को मेज पर धर लिये हैं। टेबल टाप हो गया है लैपटाप । सर झुकाकर टाइप कर रहे हैं। सामने सड़क दिख रही है। साफ़ देखने के लिये चश्मा लगा लगाये। सड़क गुलजार है। एक मोटरसाइकिल वाला चढ़ाई चढ़ता हुआ दिखा। दूसरी तरफ़ से एक लाल कार उतरती दिखी। देखने के बाद टाइप करने के लिये चश्मा उतार दिया था। नजर हमारी पास की चकाचक है। चश्मा सिर्फ़ दूर की चीज साफ़ देखने के लिये लगाते हैं। फ़िर से देखा तो दो महिलायें खरामा-खरामा सड़क चढ़ते हुये जा रही हैं। एक ने सर पर सफ़ेद कपड़ा धारण कर रखा है। उससे चेहरा भी पोंछती जा रही है। दूसरी महिला का विवरण देखने के लिये नजर उठाये तबतक दोनों नजर ओझल चुकीं थी।
टीवी पर खबरें शांत कर दी हैं। आवाज बन्द है।अभिव्यक्ति टेटुआ दबा दिया है। हर आवाज के साथ यही हो रहा है। हम लिख रहे हैं सो टीवी की आवाज हमको हल्ला लगती है। कोई नवनिर्माण कर रहा होगा तो उसको हर वह आवाज खराब लगेगी जो उसके मनमाफ़िक नहीं होगी। बड़े हित में वह उसको दबा देना चाहेगा। अरे बाप रे ये आवाज दबा देने वाली बात लिखते ही स्व. वली असी का शेर उछलकर सामने आ गया:
अरे बाप रे। कहां-कहां टहल लिये सुबह-सुबह चाय के थरमस के बहाने। चलते हैं हम दफ़्तर। आप मजे से रहिये। ये जो फ़ोटो देख रहे हैं न नीचे यह तब खींचे थे जब चाय थरमस से कप में पहली बार डाले थे। उस समय मन किया था कि थरमस टेढा करते समय जो बल आघूर्ण लगता है थरमस में उसके बारे में बतियायेंगे। लेकिन कहीं और बहक गये।
आपका दिन मंगलमय हो। शुभ हो।
जब हम थरमस में चाय डालने के लिये उठाये थे उसी समय याद आया कि Shubham का जन्मदिन है आज। सो कप में चाय डालने के पहले उसको जन्मदिन की बधाई देने के लिये फोन किया। घंटी बजी लेकिन फ़ोन उठा नहीं। चाय का पहला घूंट लेते ही फोन आया उसका। बात की। बधाई दी। शुभम के बारे में बता चुके हैं। डुमना पार्क में मिले थे एक दिन। फोटोग्राफ़ी करते हुये। हमारा साइकिलिंग करते हुये बढिया फ़ोटो खैंचा था। शुभम इंजीनियरिंग किये हैं। नाटक और फ़िल्म का शौक है। फ़िल्म इंस्टीट्यूट जाने की तैयारी कर रहे हैं। जुलाई में ’आषाढ का एक दिन’ नाटक में भाग लेने के लिये अपना बाल बढ़ा रहे हैं।
ये जो ऊपर के पैरा में चाय का पहला घूंट लेने की बात लिखी न उसके पहले हमें याद कि थरमस के सालों पुराना है। दो प्लास्टिक के कप और एक छुटकी ट्रे के साथ आया था। न्यूक्लियर फ़ेमिली की तरह। थरमस को पुरुष पात्र और कप को बच्चे समझा जाये तो ट्रे थरमस की घरवाली हुई। पूरे घर को सहेजती/संभालती हुई। कप और थरमस मिलकर ट्रे में बैठकर सुन्दर दिखते थे। इतने दिनों में कप इधर-उधर हो गये। थरमस मैं जबलपुर ले आया। ट्रे कानपुर में है। लग रहा कि हमारे परिवार का बिम्ब बन रहा है। हम यहां जबलपुर, पत्नी कानपुर बच्चे नौकरी और पढाई के लिये बाहर। थरमस पुराना होने के चलते इधर-उधर से लीक करता है ( शायद ट्रे और कप की याद करते हुए भावुक होते हुये) लेकिन चल रहा है। भले ही एक चाय मंगायें लेकिन मंगाते इसी में हैं। फ़िर दो तीन बार में पीते हैं। इसको देखकर वह समय याद आता है जब हम साथ थे और इस थरमस में चाय पीते थे।
ये जो शुभम पाठक के डुमना में मिलने की बात लिखी न उसी समय हमें याद आया कि उस दिन हम डुमना के पहले आईआईआई टी डुमना भी गये थे। वहां के चौकीदार चाचा-भतीजे से मिले थे। चाचा ने खुशी से बताया था कि भतीजे की शादी होने वाली है। उन्होंने यह भी बताया था कि जिस कम्पनी के माध्यम से चौकीदारी का काम करते हैं वह अब उनको पैसे पूरे देती है। पहले वाली पैसा देने में देरी करती थी।
आज ही अखबार में खबर आई थी कि आईआईआईटी में सड़क बनाने वाले ठेकेदार से दो लाख रुपये लेते हुये सीपीडी ड्ब्ल्यू का सहायक अभियन्ता गिरफ़्तार हुआ।जेल गया। अब जिन्दगी भर का काम मिल गया उसको। लगा तो यह भी कि देखा-जाये (मेरी समझ के हिसाब से) तो सबसे ज्यादा लेन-देन का काम थानों और कचहरियों में होता होगा। यहां के लोगों को पकड़ने के किस्से कभी सुनने में नहीं आते। पकड़े वही लोग जाते हैं जहां लोग अकेले लेन-देन करते हैं। व्यवस्थागत तरीके से लेन-देन करने वाले कम पकड़े जाते हैं। एक बार फ़िर एहसास हुआ -संगठन में शक्ति होती है। मिलकर खाने वाले बचे रहते हैं।
अब लैपटाप को मेज पर धर लिये हैं। टेबल टाप हो गया है लैपटाप । सर झुकाकर टाइप कर रहे हैं। सामने सड़क दिख रही है। साफ़ देखने के लिये चश्मा लगा लगाये। सड़क गुलजार है। एक मोटरसाइकिल वाला चढ़ाई चढ़ता हुआ दिखा। दूसरी तरफ़ से एक लाल कार उतरती दिखी। देखने के बाद टाइप करने के लिये चश्मा उतार दिया था। नजर हमारी पास की चकाचक है। चश्मा सिर्फ़ दूर की चीज साफ़ देखने के लिये लगाते हैं। फ़िर से देखा तो दो महिलायें खरामा-खरामा सड़क चढ़ते हुये जा रही हैं। एक ने सर पर सफ़ेद कपड़ा धारण कर रखा है। उससे चेहरा भी पोंछती जा रही है। दूसरी महिला का विवरण देखने के लिये नजर उठाये तबतक दोनों नजर ओझल चुकीं थी।
टीवी पर खबरें शांत कर दी हैं। आवाज बन्द है।अभिव्यक्ति टेटुआ दबा दिया है। हर आवाज के साथ यही हो रहा है। हम लिख रहे हैं सो टीवी की आवाज हमको हल्ला लगती है। कोई नवनिर्माण कर रहा होगा तो उसको हर वह आवाज खराब लगेगी जो उसके मनमाफ़िक नहीं होगी। बड़े हित में वह उसको दबा देना चाहेगा। अरे बाप रे ये आवाज दबा देने वाली बात लिखते ही स्व. वली असी का शेर उछलकर सामने आ गया:
मुमकिन है मेरी आवाज दबा दी जाये लेकिनएकदम झक्क सफेद वालों वाले मरहूम वली असी को हमने पहली और आखिरी बार शाहजहांपुर में सुना था। उनका यह शेर भी याद आया:
मेरा लहजा कभी फ़रियाद नहीं हो सकता।
अगर तू इश्क में बरबाद नहीं हो सकताशाहजहांपुर शहीदों की नगरी कहलाती है। रामप्रसाद ’बिस्मिल’, रोशन सिंह, अशफ़ाक उल्ला की नगरी। स्व. विकल जी कहते थे:
जा तुझे कोई सबक याद नहीं हो सकता।
पांव के बल मत चलो अपमान होगा,उसी शहीद नगरी में हाल ही में एक पत्रकार को जलाकर मार दिया गया। कुछ पुलिस वाले निलम्बित हुये। न्याय अंगडाइयां लेते हुये आगे की कार्रवाई के लिये विचार मग्न हुआ सोच रहा होगा। किधर से शुरु करें?
सर शहीदों के यहां बोये हुये हैं।
अरे बाप रे। कहां-कहां टहल लिये सुबह-सुबह चाय के थरमस के बहाने। चलते हैं हम दफ़्तर। आप मजे से रहिये। ये जो फ़ोटो देख रहे हैं न नीचे यह तब खींचे थे जब चाय थरमस से कप में पहली बार डाले थे। उस समय मन किया था कि थरमस टेढा करते समय जो बल आघूर्ण लगता है थरमस में उसके बारे में बतियायेंगे। लेकिन कहीं और बहक गये।
आपका दिन मंगलमय हो। शुभ हो।
बढ़िया
ReplyDeletebehad rochak,padhna achha lagta hai...
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