न्यू मार्केट का दुर्गा पंडाल |
कल शाम को घूमने निकले। जहां ठहरे थे वहाँ से शाम को पूजा पंडाल देखने गए। पास में न्यू मार्केट में सजा था पांडाल। फुटपाथ के रास्ते गए। फुटपाथ की चौड़ाई में दोनों तरफ़ दुकानें लगी हुई थी। दुकानों के बीच की जगह पर लोगों की भीड़ ठहरते हुए टहल रही थी। जगह की कमी, गर्म हवा। ऐसा लगा फुटपाथ में ब्लोअर चल रहा हो।
रास्ते के एक पांडाल में दुर्गा जी |
न्यू मार्केट की तरफ गए। पूजा पांडाल सजा हुआ था। लोग आते। देवी मूर्ति को निहारते। निकल लेते। हम भी निहारते हुए निकल लिए।
मोहम्मद अली पार्क की महिषासुर मर्दनी |
सेन्ट्रल में उतरकर पूजा पांडाल देखने मोहम्मद अली पार्क की तरफ गए। रास्ते में और भी भव्य पांडाल दिखे। एक जगह आरती हो रही थी। महिषासुर मर्दिनी की मूर्ति ऊँचे स्टेज पर सजी हुई थी। गलियारे में कुछ कुर्सियां पड़ी हुई थी। लोग आते-जाते जा रहे थे। जगह-जगह व्यवस्था के लिए पुलिस तैनात थी। एक पूजा पंडाल के बाहर किताबें भी सजी हुई थीं। सब बांगला में। हिंदी की होती तो देखते भी।
फ्रूट कुल्फी और बायीं तरफ मुफ़्त में वितरित होती दवाएं |
मोहम्मद अली पार्क जाने के लिए सड़क पार करनी थी। जब तक ट्रैफिक लाइट हरी थी तब तक चौराहे पर कोलकता पुलिस वाले रस्सी लगाये लोगों को रोके हुए थे। बत्ती लाल होते ही गाड़ियां रुक गयीं। पुलिस वाले ने कमर की ऊंचाई तक पक़ड़ी हुई रस्सी जमीन पर लिटा दी। भीड़ चौराहा पार करने लगी।
सात रूपये का बस का टिकट |
मोहम्मद अली पार्क में पूजा पांडाल बड़ा भव्य था। लोग मूर्ति देखते जा रहे थे। कुछ लोग फोटो भी ले रहे थे। उद्घोषक तड़ातड़ी आगे बढ़ने का निर्देश दे रहा था। फोटो खींचने से मना कर था कहते हुए कि फोटो खींचने वाले का मोबाइल छीन लिया जायेगा। लेकिन लोग उसके सामने फोटो खींच रहे थे।
लोग अपने साथ वालों के साथ सेल्फिया रहे थे। मेरे सामने एक लड़के के अपना हाथ क़ानून के हाथों की तरह लंबा करते हुए अपने परिवार के साथ सेल्फी ली। एक जगह चाट खाते हुए कुछ नौजवान लड़के लड़कियां आपस में चुहल करते बतिया रहे थे। लड़के की किसी बात पर चहकते हुए एक लड़की ने हंसकर उसकी पीठ पर धौल जमाया। मल्लब मजे का इजहार किया। लड़के ने इस सर्जिकल धौल का आनन्द उठाते हुए बतियाना जारी रखा।
बातें तो हमारे पास भी बहुत थीं लेकिन अकेले थे। किसी धौल-धप्प की गुंजाईश नहीं होने के कारण बाहर आ गए। बाहर एक जगह फ्रूट कुल्फी बिक रही थी। एक लोहे के बेलनाकार बर्तन को दो लोग खड़े-खड़े बैल की तरह घुमा रहे थे। बर्तन में भरी बर्फ से कुल्फी ऊपर जम गयी थी। एक लड़का चाकू से कुल्फी खुर्चते हुए लोगों को देता जा रहा था। हमने भी खाई। 20 रूपये का पत्ता। मुंह में रखते ही घुल जा रही थी 'कुल्फी चूरा' घुल कर दांत ठंडा कर रही थी। पैसे देते ही बदनाम कुल्फी का पञ्च याद आया -'बदनाम कुल्फी, खाते ही जुबान और जेब की गर्मी गायब।
वहीं एक लड़का एक लड़की के साथ कुल्फी खाने रुका। लड़की ने चम्मच से लड़के को खिलाई कुल्फी। लड़के ने चिड़िया की चोंच की तरह मुंह खोला। लड़की ने उसके मुंह में कुल्फी धर दी।जब तक बालक ने आँख मूंदकर कुल्फी की ठंडक का एहसास किया होगा तब तक बालिका ने खुद भी दो चम्मच कुल्फी का चूरा मुंह में भर लिया।
बगल में ही निशुल्क दवाओं का वितरण हो रहा था। तृण मूल कांग्रेस की तरफ से। सामान्य दवाएं वितरण के लिए रखी थीं। पास ही मुफ़्त पानी भी पिलाया जा रहा था। प्लास्टिक के ग्लास में पानी पीने वालों का हुजूम जमा था। बगल में ही बोतल बंद पानी 20 रूपये बोतल बिक रहा था। मुफ़्त सेवा और भुगतान पर सेवा की साझा सरकार चल रही थी।
लौटते हुए उत्तर प्रदेश में एक जगह नवाजुद्दीन को रामलीला में मारीच का रोल अदा करने से रोकने की घटना याद आई। शुक्र मनाया कि यहां मोहम्मद अली पार्क में दुर्गा पूजा पंडाल लगाने पर किसी ने कोई बवाल नहीं काटा।
लौटते हुए बस से आये। किराया 7 रूपये। दो रूपये ट्राम के मुकाबले ज्यादा। कंडक्टर पतली-पतली टिकटें अंगुली के बीच दबाये सबको बाँटता जा रहा था।रेजगारी वापस करता जा रहा था। भरी भीड़ में यह सब करना अपने में कुशलता का काम है। वह आराम से करता जा रहा था।
रास्ते में एक जगह बस रुकी। एक सामान्य परिवार के लोग हँसते-बतियाते बस में चढ़े। उनमें से एक महिला हमारी बगल की सीट पर बैठकर आगे-पीछे बैठे परिवार वालों से बतियाती रही। हमने अपने स्टॉप के बारे में कंडक्टर से पूछा तो उस परिवार की एक बच्ची ने कहा -'हम भी वहीँ उतरेंगे। बता देंगे।' हम तसल्ली से बैठ गए।
आगे एक स्टॉप पर कुछ सवारियां उतरी। परिवार वालों के पास की सीट खाली हो गयी। हमको लगा कि वह महिला अपने परिवार के लोगों के और पास/साथ बैठने चली जायेगी। लेकिन वह वहीँ बैठी रही। वहीँ से बतियाती रही।
स्टॉप पर उतरे तो होटल का रास्ता पुछा। एक ने बताया -'पंद्रह मिनट लगेगा। और तेज जाओगे तो दस मिनट।'लेकिन हमको कोई जल्दी तो थी नहीं सो आराम से पहुंचे। अपने आसपास से गुजरते लोगों को देखते-निहारते। आगे का किस्सा अगली पोस्ट में।
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति डॉ. राम मनोहर लोहिया और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
ReplyDeleteबढ़िया पोस्ट ।
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