किताब पर कीड़ा
Tuesday, September 29, 2020
किताब पर कीड़ा
Monday, September 28, 2020
परसाई के पंच-52
1. जिन मनीषियों ने संसार को दुखमय कहा है, उन्होंने यह तब कहा होगा, जब उनके घर आटा नहीं रहा होगा !
सुनने की कला
आजकल कोरोना का हल्ला मचा हुआ है। आना-जाना सीमित। लोगों से मिलना-जुलना स्थगित। कभी अजनबियों से भी बतियाने का हिसाब बनता रहता था। आज हाल यह है रोजमर्रा के काम से जुड़े लोगों से भी बातचीत फोन तक सिमट गई है। मीटिंग भी वीडियो कांफ्रेंस में बदल गई हैं।
परसाई के पंच-51
1. अनाज की दुकानों के सामने थैला हाथ में लिये कतार में खड़ा आदमी सूख रहा है। जब तक उसका नम्बर आता है, दाम बढ जाते हैं और घर से लाये पैसे कम पड़ जाते हैं।
Sunday, September 27, 2020
परसाई के पंच-50
1. सारे मूल्यों में क्रांति हो गयी। पहले समारोहों में फ़ूलमाला पहनते खुशी होती थी। अब वह गर्दन में लटका फ़ालतू बोझ मालूम होती है। सांस्कृतिक क्रांति ने फ़ूलों की सुगन्ध छीन ली है और मैं माला पहनते हुये हिसाब लगाता रहता हूं कि अगर फ़ूल की जगह नोट होता तो इस वक्त कितने रुपये मेरे गले में लिपटे होते।
परसाई के पंच-49
1. जो दिशा पा लेता है, वह घटिया लेखक होता है। सही लेखक दिशाहीन होता है। ऊंचा लेखक वह जो नहीं जानता कि कहां जाना है, पर चला जा रहा है।
Saturday, September 26, 2020
परसाई के पंच-48
1. बीमारी बरदाश्त करना अलग बात है, उसे उपलब्धि मानना दूसरी बात। जो बीमारी को उपलब्धि मानने लगते हैं, उनकी बीमारी उनको कभी नहीं छोड़ती। सदियों से अपना यह समाज बीमारियों को उपलब्धि मानता आया है और नतीजा यह हुआ है कि यह भीतर से जर्जर हो गया है, मगर बाहर से स्वस्थ होने का अहंकार बताता है।
परसाई के पंच-47
1. मूर्खता के सिवाय कोई भी मान्यता शाश्वत नहीं है। मूर्खता अमर है। वह बार-बार मरकर फ़िर जीवित हो जाती है।
2. अनुभव से ज्यादा इसका महत्व है कि किसी ने अनुभव से क्या सीखा। अगर किसी ने 50-60 साल के अनुभव से सिर्फ़ यह सीखा हो कि सबसे दबना चाहिये तो अनुभव के इस निष्कर्ष की कीमत में शक हो सकता है। किसी दूसरे ने इतने ही सालों में शायद यह सीखा हो कि किसी से नहीं डरना चाहिये।
3. केचुये ने लाखों सालों के अनुभव से कुल यह सीखा है कि रीढ की हड्डी नहीं होनी चाहिये।
4. बाजार बढ रहा है। इस सड़क पर किताबों की एक नयी दुकान खुली है और दवाओं की दो। ज्ञान और बीमारी का यही अनुपात है अपने शहर में। ज्ञान की चाह जितनी बढी है उससे दुगुनी दवा की चाह बढी है। यों ज्ञान खुद एक बीमारी है।
5. बेकार आदमी हैजा रोकते हैं, क्योंकि वे शहर की मक्खियां मार डालते हैं।
6. यह बीमारी प्रेमी देश है। तू अगर खुजली का मलहम ही बेचता तो ज्यादा कमा लेता। इस देश को खुजली बहुत होती है। जब खुजली का दौर आता है, तो दंगा कर बैठता है या हरिजनों को जला देता है। तब कुछ सयानों को खुजली उठती है और वे प्रस्ताव का मलहम लगाकर सो जाते हैं। खुजली सबको उठती है – कोई खुजाकर खुजास मिटाता है, कोई शब्दों का मलहम लगाकर।
7. सामने के हिस्से में जहां परिवार रहते थे वहां दुकानें खुलती जा रही हैं। परिवार इमारत में पीछे चले गये हैं। दुकान लगातार आदमी को पीछे ढकेलती चली जा रही है। दुकान आदमी को ढांपती जा रही है।
8. मैंने बहुत से क्राण्तिवीरों को बाद में भ्रांतिवीर होते देखा है। अच्छे-अच्छे स्वातन्त्र्य शूरों को दूकानों के पीछे छिपते देखा है।
9. दवायें सस्ती हो जायें, तो हर किसी की हिम्मत बीमार पड़ने की हो जायेगी। जो दवा में मुनाफ़ाखोरी करते हैं वे देशवासियों को स्वस्थ रहना सिखा रहे हैं। मगर यह कृतघ्न समाज उनकी निन्दा करता है।
10. बीमार पड़े , इसका मतलब है, स्वास्थ्य अच्छा है। स्वस्थ आदमी ही बीमार पड़ता है। बीमार क्या बीमार होगा। जो कभी बीमार नहीं पड़ते, वे अस्वस्थ हैं।
11. पूरा समाज बीमारी को स्वास्थ्य मान लेता है। जाति-भेद एक बीमारी ही है। मगर हमारे यहां कितने लोग हैं जो इसे समाज के स्वास्थ्य की निशानी समझते हैं। गोरों का रंग-दम्भ एक बीमारी है। मगर अफ़्रीका के गोरे इसे स्वास्थ्य का लक्षण मानते हैं। गोरों का रंग-दम्भ एक बीमारी है। मगर अफ़्रीका के गोरे इसे स्वास्थ्य का लक्षण मानते हैं और बीमारी को गर्व से ढो रहे हैं। ऐसे में बीमारी से प्यार हो जाता है। बीमारी गौरव के साथ भोगी जाती है।
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Friday, September 25, 2020
परसाई के पंच-46
1. संस्कृति की हड्डी को अब कुत्ते चबाते घूम रहे हैं। संस्कृति की हड्डी कुत्ते का जबड़ा फ़ोडकर उसके खून को उसी को स्वाद से चटवा रही है। हां, हम विश्वबन्धुत्व भी मानते हैं, यानी अपने भाई के सिवा बाकी दुनिया-भर को भाई मानते हैं।
झूठ बोलने का मन
आज थोड़ा झूठ लिखने का मन हुआ। एक से बढ़कर एक झूठ हल्ला मचाने लगे- 'हम पर लिखो, हम पर कहो।'
Thursday, September 24, 2020
परसाई के पंच-45
1. विनय के रेशमी पर्दे के पीछे अहं की क्रूरता छिपी नहीं रह सकती। अहं की प्रकृति ही प्रदर्शन की है, वह नकटे की तरह आईना देखने को उत्सुक रहता है।
Tuesday, September 22, 2020
परसाई के पंच-44
1. दो-चार निन्दकों को एक जगह बैठकर निन्दा में निमग्न देखिये और तुलना कीजिये दो-चार ईश्वर भक्तों से, जो रामधुन लगा रहे हैं। निन्दकों की सी एकाग्रता , परस्पर आत्मीयता , निमग्नता भक्तों में दुर्लभ है।