चौराहे के बाद अगल-बगल देखते हुए आगे बढ़े। एक जगह सड़क किनारे दो बच्चे साथ-साथ आते दिखे। बच्चे मतलब बच्ची-बच्चा। बच्ची बच्चे से कुछ बड़ी रही होगी। दोनों बहुत प्यार से बतियाते हुए आ रहे थे। बच्चा कुछ खा रहा था। मुझे लगा आइसक्रीम है। बच्चे जिस अंदाज में जा रहे थे वो बचपन की पक्की मोहब्बत वाली दोस्ती वाले दौर में लग रहे थे। बच्चा बेफिक्री से कुछ खाता हुआ, बच्ची तसल्ली से उसको देखते हुए, साथ जाती हुई।
उन बच्चों की फोटो लेने का मन हुआ। उनसे बतियाना शुरू किया। पूछा -'जगह कौन सी है? कहां जा रहे हो?' कहां जा रहे हो पूछते ही बच्चे थोड़ा असहज हो गए। लेकिन बच्ची ने मोर्चा संभाला। अनजाने बवाल का सामना करने के मामले में लड़कियां लड़कों से ज्यादा बहादुर होती हैं। बच्ची बोली-'स्कूल जा रहे हैं।' हमने पूछा -'इतवार है आज तो। आज कौन स्कूल खुला है?' बच्ची बोली-'खुला है स्कूल। अलिफ, बे पढ़ने जाते हैं।' हमने उनसे और बात करने और फोटो लेने की कोशिश की लेकिन वे भागकर एक बड़े अहाते में घुस गए। उनको लगा होगा ,-'ये बन्दा सही नहीं है।'
बच्चे के भागने से पहले पास से देखा तो पता चला नींबू चाट रहा था। जिसको हम आइसक्रीम समझे थे वह नींबू निकला। वो तो कहो पास से देख लिया वरना हम उसे आइसक्रीम ही समझते रहते।
समझने और देखने का यह फर्क होता है। अक्सर हम घटनाओं, लोगों, समाज के बारे में अपनी समझ से धारणाएं बनाते रहते हैं। जबकि असलियत हमारी समझ से अलग , बहुत अलग होती है।
आगे रोजा पावर प्लांट और उसकी कालोनी दिखी। थोड़ा और आगे जाकर फिर लौट लिए। शहर से करीब 13 किमी आ गये थे उस समय तक।
लौटते हुए एक चाय की दुकान पर चाय पी। राजू नाम है दुकान वाले का। ट्रक ड्राइवर थे। छह-सात साल पहले एक एक्सीडेंट में एक पैर कट गया था। तबसे चाय की गुमटी डाल ली। रिलायंस में सामान लाने वाले ट्रक ड्राइवर चाय पीते हैं। उनमें से ही एक ने ट्रक के एयरफिल्टर राजू को दे दिए जो दुकान पर लोगों के बैठने के लिए इस्तेमाल रखे हैं। राजू का नकली पैर वहीं बगल में रखा था। उन्होंने अपना कटा पैर , तहमद हटाकर दिखाया। कटे हुए पैर के निचले हिस्से को प्यार से सहलाया। फिर ढंक लिया।
अपनी दुकान के बारे में बताते हुए राजू ने कहा -'पैर कट जाने के बाद हमने सोचा यही अच्छा काम है। हमको कहीं बैठकर भीख मांगना अच्छा नहीं लगता। घटिया काम है वह। यहां तसल्ली से हैं।'
राजू की बेटी पढ़ाई करती है। हाईस्कूल में है।
राजू के साथ दुकान में बैठे अनिल ने तमाम किस्से सुनाए। पता चला उनके परिवार में खानदानी दुश्मनी के चक्कर में कई कत्ल और जेल के किस्से हुए। पड़ोस में बच्चों के कारण आपस में विवाद इतना बढ़ा कि पड़ोसी ने अनिल के घर के लोगों का कत्ल कर दिया। कुछ दिन बाद अनिल के चाचा ने बदले में पड़ोसियों के कत्ल किये। जेल रहे। उम्र कैद हुई। कुछ दिन पहले छूट के आये। 65 साल की उम्र में।
लड़ाई का कारण क्या था, जमीन-जायदाद या कोई और कारण। बताया कोई कारण नहीं। सिर्फ बच्चों की आपस की लड़ाई में बड़े भिड़ गए। कत्ल हो गये। फिर दुश्मनी खानदानी हो गयी। हमको आल्हा की लाइने याद आ गईं:
"बातन-बातन बतझड हुई गए
औ बातन में बाढ़ि गई रार। "
जरा-जरा सी बात पर खानदान तबाह हो जाते हैं। महाभारत हो जाता है।
दो चाय और एक बिस्कुट के पैसे हुए 25 रुपये। हमारे पास फुटकर सिर्फ 20 रुपये थे। बाकी 500 का नोट। राजू के पास फुटकर नहीं थे। लिहाजा 5 रुपये उधार करके आ गए।
लौटते में धूप तेज हो गयी थी। साइकिल चलाना भी मेहनती काम लगने लगा।
आसपास लोग अपने-अपने हिसाब से व्यस्त दिखे। एक मंदिर में लोग पूजा कर रहे थे। आरती हो रही थी। घण्टे-घड़ियाल बज रहे थे। कुछ महिलाएं , बच्चों के साथ थाली में पूजा , भोजन सामग्री लिए मंदिर की तरफ जाती दिखी।
वहीं पास ही एक गोबर के ढेर के पास दो महिलाएं कंडे पाथते दिखीं। आसपास से निर्लिप्त कंडे पाथती। आगे एक खूबसूरत लोहे के साइनबोर्ड के पिछवाड़े गोबर के कंडे सूखते दिखे। कंडे सूख रहे थे, साइनबोर्ड पता नहीं कैसा महसूस कर रहा हो।
जगह-जगह अरोरा जी से यौन रोगों से फौरन मुक्ति के विज्ञापन दीवारों की खूबसूरती बढ़ा रहे थे।
शहर पहुंचकर एक जगह चार-पाँच मजदूर एक मोटे प्लास्टिक के पाइप को सर पर लादे चले जा रहे थे -राम नाम सत्य है वाले अंदाज में। गोल घेरे वाले पाइप ने गली में घुसने से मना कर दिया। मजदूर लोग उसे नीचे रखकर खोलने लगे। अब सीधे होकर जाएगा पाइप।
वहीं बगल में कबाड़ी की दुकान पर एक मजदूर लोहे के एक ड्रम को पीट-पीटकर पिचका रहा था। बार-बार ड्रम पर चोट करते हुए उसे गोल से चपटा बना रहा था। हर चोट पर ड्रम पर लगी जंग ड्रम का साथ छोड़ती जा रही थी, जैसे चुनाव के समय कमजोर होती पार्टी से मतलबी नेता निकलकर दूसरी पार्टियों में चले जाते हैं। कठिन समय में साथ देने वाला ही सच्चा हितैषी होता है। जंग, पेंट और गन्दगी ड्रम के अस्थाई साथी थे। ड्रम पर पड़ी हर चोट के साथ विदा होते गए। ड्रम अपने लोहे के साथ पिचकता रहा।
मजदूर के हाथ में गड्ढे पड़ गए थे। बताया 300 रुपये रोज के मिलते हैं। न्यूनतम मजदूरी की बात क्या की जाए।
लौटते हुए कुछ बच्चे क्रिकेट खेलने जाते दिखे। जाते हुए, बतियाते, सेल्फ़ियाते, मस्तियाते।
बच्चों से बात की। बताया इतवार को खेलने जाते हैं। जीएफ कालेज में पढ़ते हैं।
हमने बच्चों की फोटो खींचने को कहा। खुशी-ख़ुशी तैयार हो गए। फोटो लेकर हम भी खुश हो गए। बच्चे देखकर खुश।
आप भी खुश हो जाइए। खुशी एक भाव है। मुफ्त है। कुछ लगता नहीं। महसूस करिये।
इस तरह इतवार की सैर पूरी हुई। साइकिलिंग हुई कुल जमा 26 किलोमीटर।
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