Wednesday, August 31, 2022

रोज दो क्वार्टर चाहिए इनको



घूमते हुए तमाम लोगों से मुलाकात होती है। बातचीत होती है। कई बार उसके बारे में लिख देते हैं। कभी-कभी रह भी जाता है। एक बार रह जाता है तो अक्सर रह ही जाता है।
इतवार को गंगाघाट पर मुलाकात हुई थी कार्तिक से। बाल भूरे और थोड़े सफेद। घाट की सीढ़ियों के पास बैठे गंगा को निहार रहा था बालक।
"बाल बड़े स्टाइलिश हैं। क्या डाई कराए?"- बात शुरू करने के लिए हमने पूछा।
'नहीं। इत्ता पैसा कहां बाल रंगवाने के लिए। गंगा के पानी से ऐसे हो गए।' -बालक ने जबाब दिया।
लोग मजे लेने लगे। एक ने कहा -'हीरो बनने के लिए बाल रँगवाये हैं।'
बालक मुस्कराते हुए पैर हिलाते, गंगा के पानी को निहारते चुप रहा।
बातचीत के बाद पता चला कि रात भर मछली पकड़ने के लिए निकले थे। रात दस बजे से सुबह चार बजे तक। करीब दस किलो मिली मछली। 200 रुपये किलो के हिसाब से बिकती है। पांच लोग थे। 2000 रुपये का बंटवारा होगा पांच लोगों में। रात भर की कमाई 400 रुपये हुए।
बालक कक्षा आठ तक पढ़ा। सरकारी स्कूल में। आगे पढ़ाई बन्द हो गयी क्योंकि स्कूल कक्षा आठ तक ही था। लॉक डाउन में बन्द हो गया था स्कूल। तब से आठ पढ़कर पढ़ाई बन्द हो गयी। अब आगे की कक्षा भी लगने लगी है। लेकिन कार्तिक को अब पढ़ना नहीं है। मछली पकड़ने, नाव चलाने का ही काम करना है। पिता भी यही काम करते हैं।
बालक के आगे के कुछ दांत टूटे हैं। फोटो लेते हैं तो मुंह बंद कर लेता है। दांत छिप जाते हैं। मुंह पर जैसे कर्फ्यू लगा दिया गया हो। हम मुस्कराने को कहते हैं तो थोड़ा होंठ को ढील देते हुए सा मुस्कराया बालक। तीसरे फोटो में दांत कुछ खुलते हैं। खिड़की से जैसे कोई सुंदरता झांके। फ़ोटो अच्छा आता है। देखकर खुश हो जाता है बालक भी।
वहीं एक आदमी पान मसाला खाता हुआ घाट पर बार-बार थूकता है। उसके पैर की खाल बदरंग और उबड़-खाबड़ है। पता चलता है गरम पानी के भगौने में पैर पड़ गया था। इलाज में लापरवाही हुई तो खाल इधर-उधर हो गयी।
'इलाज में लापरवाही क्यों हुई ?'-हमने पूछा।
"इनको दारू पीने से फुरसत हो तब न इलाज कराएं। रोज दो क्वार्टर चाहिए कम से कम। कहां से ठीक होंगे।"- कार्तिक ने कहा।
जिसके बारे में कहा जा रहा था वह निर्लिप्त मसाले की पीक गंगा किनारे थूकता चुपचाप सुनता रहा। एक क्वार्टर मतलब करीब 75 रुपये। डेढ़ और रुपये की दारू पी जाता है फटीचर सा दिखता आदमी। जाने क्यों लोग बदनाम करते हैं देश को गरीबी के नाम से।
'अब कब जाओगे मछली पकड़ने ?'- हमने पूछा।
अब दिन में आराम करेंगे। आज छुट्टी। रात को नहीं जाएंगे आज। जिनकी नाव है उनके यहाँ गमी हो गयी। वो खड़े हैं जहां आप खड़े थे अभी। जहाँ लड़के फुटबाल खेल रहे थे।
100 मीटर पीछे करीब बच्चे रेत में फुटबॉल खेल रहे थे। नंगे पैर। फुटबाल में हवा कम थी या शायद क्या पता पानी भर गया हो, ढब-ढब आवाज कर रही थी। हर शॉट में कुछ कदम लुढक कर रह जाती। एक बार किक जरा तेज लग गयी। फुटबाल हवा में उछलकर गंगा के पानी में चली गयी। हमें लगा अब गई फुटबाल। लेकिन खेल रहे बच्चों में से एक पास की झोपड़ी से एक बांस लेकर आया। नदी में बहती गेंद को बांस के सहारे किनारे करके उठा लिया। इसके बाद खेल बन्द हो गया। फुटबाल झोपड़ी में एक किनारे जमा हो गयी।
नदी किनारे तमाम बांस लगे हुए थे। टेंट लगाने वाले त्रिभुज के आकार में। नदी किनारे कपड़े धोने वाले लोग यहां कपड़े सुखाते हैं।
कार्तिक ने बताया कि नाव और जाल उनकी है जिनके घर आज गमी हो गयी। इसलिए आज मछली पकड़ने नहीं जायेंगें । नाव और जाल दस बारह हजार रुपये करीब के आते हैं। आगे कभी लेकर अपना काम शुरु करेंगे।
कार्तिक से मिलकर आगे वापस लौटे। रास्ते में एक बुढ़िया बाल्टी में पानी भरकर लौट रही थी। बाल्टी के पानी को बड़ी प्लेट/थाली से ढंके थी कि कहीं कोई गंदगी न गिर जाए। दो बाल्टी पानी लिए, झुकी कमर जाते थककर बीच सड़क पर बैठ गयी। कुछ देर सुस्ताकर आगे बढ़ी। तमाम लोग बुजुर्गों की सहूलियत के चर्चे करते हैं। इन चर्चो से बहुत दूर ऐसे बुजुर्ग जब तक जीते हैं, जो बन सकता है, काम करते रहते हैं।
हमको हमारी अम्मा की याद आ गयी जो बहुत बुजुर्गियत और बीमारी के बावजूद आखिर तक किसी न किसी काम में लगी रहती थीं। खाली बैठना उनको खराब लगता था।
लौटते में एक ठेलिया पर एक बच्ची पढ़ती दिखी। कक्षा चार में पढ़ती है। पायल नाम। वह उसी स्कूल में पढ़ती हैं जहां कार्तिक पढ़ता था। पायल गणित के सवाल लगा रही थी। बगल में उसका भाई शिवा भी था। कक्षा एक में पढ़ता है। उसको गिनती केवल दस तक आती है। हमने कहा पायल से - "तुम आगे सिखाती क्यों नहीं? "
इस पर वह बोली -"सीखता ही नहीं। सिखाओ तो मारता है मुझे।"
हमने गिनती सुनाने को कहा शिवा से तो दस तक सुनाई उसने। इसके बाद डब्बा गोल। एक और भाई है उसका शिवा से बड़ा। वह भी कक्षा एक में पढ़ता है। पास में स्कूल है, मुफ्त शिक्षा है इसलिए पढ़ रहे हैं। स्कूल बंद तो पढ़ाई बन्द।
उनके पास ही उनका पिता सोया था। टेनरी में काम करता है। उसके हाथ-पांव का चमड़ा बता रहा था कि वह मजदूरी करता होगा।
पायल से बात करते हुए कुछ देर खड़े रहे वहीं। हमारी उपस्थिति में हो शायद दिखाने के लिए वह फुर्ती से अपना काम करने लगी।
"पायल नाम है तुम्हारा और पैर में पायल नहीं पहने"- हमने बिना कुछ सोचे कहा।
कुछ बोली नहीं पायल। मुस्कराती हुई पढ़ती रही। उसकी मुस्कान का कोई अनुवाद कर सकता तो लगता कि वह कह रही हो -"अब इस बेवकूफी की बात का क्या जबाब दिया जाय।"
हम वापस हो लिए।

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