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Friday, August 20, 2010
Thursday, August 19, 2010
…एक बेमतलब की पोस्ट
http://web.archive.org/web/20140419212535/http://hindini.com/fursatiya/archives/1647
…एक बेमतलब की पोस्ट
By फ़ुरसतिया on August 19, 2010
1.अगर आप इस भ्रम का शिकार हैं कि दुनिया का खाना आपका
ब्लाग पढ़े बिना हजम नहीं होगा तो आप अगली सांस लेने के पहले ब्लाग लिखना
बंद कर दें। दिमाग खराब होने से बचाने का इसके अलावा कोई उपाय नहीं है।
2.जब आप अपने किसी विचार को बेवकूफी की बात समझकर लिखने से बचते हैं तो अगली पोस्ट तभी लिख पायेंगे जब आप उससे बड़ी बेवकूफी की बात को लिखने की हिम्मत जुटा सकेंगे। : ब्लागिंग के सूत्र
बहुत दिन हो गये ब्लॉगर की डायरी लिखे हुये।
ब्लॉगजगत अद्भुत है। भांति-भांति के लोग यहां मिल जाते हैं। बस नेट के सामने बैठ जाइये। फ़िर तो मजे ही मजे। हर मिजाज का सामान मिल जायेगा आपको यहां। फ़्री फ़ंड में। हर्र लगे न फ़िटकरी रंग चोखा टाइप।
कोई भी एग्रीगेटर खोलकर कुछ भी पढ़ना शुरू कर दीजिये। मजे की फ़ुल गारंटी। सीरियस पोस्ट के नीचे जीनियस पोस्ट! जीनियस पोस्ट से सटी हुई कोई फ़ड़कती पोस्ट। फ़ड़कती पोस्ट के बगल में कोई अकड़ती पोस्ट। अकड़ती पोस्ट के ठीक नीचे कोई भावुक सी गीली-गीली पोस्ट! साथ में कई सारी सीली-सीली सी पोस्ट! उसके ठीक ऊपर एकाध दियासलाई की तीली सी पोस्ट। कुल मिलाकर मामला गठबंधन सरकार सा लगता है। जिसके हरेक घटक का आपस में छत्तीस का आंकड़ा गठबंधन की पहली शर्त है।
कोई क्रांति फ़ैला रहा है, कोई भ्रांति। किसी ने जरा सा हल्ला मचाया नहीं कि दस लोग चिल्लाते हुये शांति पाठ करने लगते हैं। मन लगाकर लड़ने भी नहीं देते। जहां घाव दिखा मरहम लगा दिया। जहां घाव नहीं हुआ बना दिया-आखिर मरहम तो लगाना ही है।
आज ही किसी ने एक एस.एम.एस. पढ़वाया। उसमें किसी ने अपने दोस्त को पीट दिया। दोस्त ने पूछा-मैंने क्या गलती की जो मुझे पीटा तुमने। उसको जबाब मिला- साले हम तुम्हारी गलती का इंतजार करने लगे पीटने के लिये तब तो हो चुका।
कुछ लोगों का लेखन तो इतना बहुरंगी , इंद्रधनुषी सा लगता है कि सुबह जो लेख फ़ड़कता हुआ दीखता है, वही शाम तक सीरियस हो जाता है। भावुक लेख दयनीय सा लगने लगता है। गीले में और गीलापन पाठक लोग जोड़ देते हैं। बजबजा जाता है मामला कभी-कभी तो। इसका उलट भी होता है, पुलट भी होता है। उलट-पुलट तो खैर होता ही रहता है-हमेशा।
ओह! भूल गये न! यह तो बताया ही नहीं कि ब्लॉगिंग क्या है! ब्लॉगिंग की परिभाषा हर ब्लॉगर अपने मन से तय करता है। समय-समय पर जाहिर भी कर देता है। कई बार तो लोग ब्लॉगिंग बाद में शुरू करते हैं इसके बारे में व्याख्या /राय पहले जारी करते हैं। लोग कहते हैं- ब्लॉगिंग साहित्य नहीं हैं। साहित्य नहीं है तो वाहित्य भी नहीं है। पत्रकारिता वाले भी इसे अपनी तरफ़ खींचते हैं। कविता-कहानी-लेख-नाटक-गीत-संगीत-फ़ंगीत-तकनीक-फ़कनीक-खेल-वेल सबसे जुड़े लोग इसे अपने हिसाब से परिभाषित करते हैं।
जैसा लोग कहते हैं कुछ उसी तरह बातें बाग कहते हैं। अब जब लोग-बाग कुछ कहेंगे तो वन,वाटिका,कूप,तड़ाग का मुंह कौन बंद कर सकता है। उनका भी जो मन आता है कहते हैं। कहते रहेंगे, कहने दिया जाये।
जैसे ग्राम समाज की जमीन पर दबंग लोग कब्जा करने की कोशिश करते हैं जनहित में वैसे ही जो जिस रंग का होता है उस रंग का झंडा फ़हरा लेता है ब्लॉग के लिये। वैसे मेरे हिसाब से तो ब्लॉग अभिव्यक्ति का माध्यम है। रसोई गैस की तरह है जिसमें आप हर वह व्यंजन बना सकते हैं जिसका सामान आपके पास है। एक तुक्कड़ कवि ने कहा भी है:
कोई अच्छा लिखे तो आफ़त। खराब लिखे तो डबल आफ़त।
अच्छा लिखे तो कहा जाता है- तारीफ़ के लिये शब्द नहीं हैं।
खराब लिखे तो- वाह, बहुत खूब! लिखते रहिये। साधुवाद!
मरन है लिखने वाले की। समझ ही नहीं पाता कि लोग कह क्या रहे हैं। वो तो भला हो अनामी-सनामी भाइयों का जो मुंह दबाकर सच बयान कर जाते हैं। कुछ सच का पता चलता है वर्ना तो पता ही न चले।
जिसे देखो वह कालजयी लेखन कर रहा है। कालजयी लेखन के चलते अकालजयी च बवालजयी लेखन दब जाता है। जैसे कालाधन सफ़ेदधन को साइडलाइन कर देता है वैसे ही कालजयी लेखन अकालजयी लेखन का टेटुआ दबा देता है।
इतना अच्छापन और भलापन पसरा है यहां पर कि चलते हुये डर लगता है। कहीं किसी अच्छाई को टक्कर न लग जाये। कोई भलमनसाहत आहत न हो जाये। जिसे देखो वह भला दिखता है। जिसे देखो वह अच्छा। भलमनसाहत और अच्छाई के मारे नाक में दम है। स्व.राजबहादुर विकल जी शाहजहांपुर के बारे में बताते हुये कविता पढ़ते थे:
कविता से लगता है कि बड़े सलीके से शहीदों के सर देख-देखकर मार्गों पर बोये गये होंगे ताकि आने वाली पीढियां पांव के बल चलने में शरमायें।
ब्लॉगिग के बारे में एक अच्छी बात है कि लोग इसके स्तर के प्रति काफ़ी चिंतित रहते हैं। इसका स्तर गिरने न पाये। स्तर ऊंचा होता रहे इसके लिये लोग बहुत पसीना बहाते हैं। परेशान रहते हैं। अब यह बात अलग है कि जैसे-जैसे इसके स्तर की चिंता करने वाले बढ़ रहे हैं लोगों में इसके गिरते स्तर के प्रति बेचैनी बढ़ती जा रही है। कोई तो बता रहा था कि किसी डाक्टर ने अपने मरीज को वजन कम करने की सलाह देते हुये बताया- ब्लॉगिंग के स्तर के बारे में चिंता करते रहो, दुबले हो जाओगे। हर जिम्मेदार ब्लॉगर स्टुअर्ट लिटिल की तरह ब्लॉग की नैया को बचाने में पिला पड़ा है।
कुछ दोस्त भी गजब के होते हैं। एक ने मेरे लेख का एक हिस्सा अपने नाम से कहीं पेश किया। मैंने उससे बाद में धमकाते हुये अकेले में कहा- वाह बेटा, मेरा लेख मय कामा-फ़ुल स्टॉप के अपने नाम से छाप दिया। कम से क्रेडिट तो दे देते मुझे।
उसने फ़ौरन पलटवार किया- तुम क्या कामा, फ़ुल स्टॉप विरासत में लेकर पैदा हुये थे। और वो लेख तुमने कहां से टोपा बतायें क्या! उसको क्रेडिट दिया जहां से टीपा?
हम चुप हो गये। जरा सी बात पर दोस्त से क्या बहस करें। बह्स की एक बड़ी आफ़त तो यह कि जहां शुरू करो लोग टोंकने लगते हैं स्वस्थ बहस करो। इतना तो ट्रैफ़िक वाले गाड़ी का प्रदूषण प्रमाण पत्र नहीं मांगते जितना बहस के गवाह बहस का स्वास्थ्य प्रमाणपत्र मांगते हैं। कोई-कोई तो बिना बहस अपने पास से दे देता है प्रमाण पत्र-स्वस्थ बहस देखकर अच्छा लगा।
बहस का तो ऐसा है कि बहस में लोग तर्क,विषय, तथ्य के चक्कर में नहीं पड़ते। बात चाहे ईरान की हो चाहे तूरान की। तर्क अगर अफ़गानिस्तान के हैं तो वही पेश किये जायेंगे। न हुआ तो राजस्थान के तो हैं ही इफ़रात में। आपको मानना हो तो मानो न मानना हो तो भी मानना तो पड़ेगा ही। आखिर स्वस्थ बहस जो हो रही है। बहस में वही तो कहेंगे जो पता है। सही-गलत की चिंता करें तब तो हो चुकी बहस।
दो दिन पहले कुछ कवितायें अदबदाकर निकल पड़ीं। मैंने उनको पोस्ट कर दिया। भाई लोगों ने खूब मजे लिये। कोई कहता है बहुत खूब लिखते रहें, कोई कहता मौज लेना सामाजिक अपराध है। हालत ऐसे हो गये हमारे जैसे भीड़ में कोई उचक्का फ़ंस जाये। कोई उसे इधर घसीटता है कोई उधर। कोई कहता है मारो साले को । कोई कहता है छोड़ दो बेचारे को।
कवितायें जब भी सोचता हूं खुराफ़ात ही सूझती है। खुराफ़ाती मुखड़े आकर खड़े हो जाते हैं सामने फ़ट से। जैसे … अब जैसे के आगे क्या कहें। अपने आप समझ जाइये।
जैसे आज ही सोचना शुरू किया तो फ़ट से एक मुखड़ा सामने आ गया रूपा फ़्रंट लाइन पहनकर-
जिंदगी एक झाम है
कलट्टरगंज का जाम है
निकल गये तो सुकून है
फ़ंस गये तो हराम है।
अब देखिये डायरी से शुरू हुये थे। कविता तक आ पहुंचे- बेमतलब की बातें करते-करते।
अच्छा ही हुआ। खराब लिखने के यही फ़ायदेतो देख ही चुके हैं। अब बेमतलब लिखने के भी देख लिये जायें।
नाम लेकर इनका ही चलती हैं कितनी ही दुकान है।
मीर थे, ग़ालिब थे, चाहे दाग थे तो इसमें क्या
लिख दिया ब्लॉगर कवि ने एक मोटा सा दीवान है।
मीर-गालिब ब्लॉग पर लिखते गजल की पोस्ट औ
गर न मिलती टिपण्णी तो लुट गया होता जहान है।
है सदा रोशन तुम्हीं से बुद्धि का दीपक यहाँ
और ऐसे दीपकों से जगमगाता है मकान है।
कह दिया इक ब्लॉगर ने भी बात जो मन में रही
और कहकर दे गया अपना भी छोटा सा निशान है।
सच तो ये है ब्लॉग पर भी कितने गालिब-मीर हैं
सब मिले तो उठ गया है, ब्लॉग का ऊंचा मचान है।
आप से हमारी ए विनती ऐड कर अशआर एक
और घर पर पंहुच कर डिनर में लें सब्जी औ नान है।
शिवकुमार मिश्र की बज में बिना मतलब का सुधार करने के बाद
2.जब आप अपने किसी विचार को बेवकूफी की बात समझकर लिखने से बचते हैं तो अगली पोस्ट तभी लिख पायेंगे जब आप उससे बड़ी बेवकूफी की बात को लिखने की हिम्मत जुटा सकेंगे। : ब्लागिंग के सूत्र
बहुत दिन हो गये ब्लॉगर की डायरी लिखे हुये।
ब्लॉगजगत अद्भुत है। भांति-भांति के लोग यहां मिल जाते हैं। बस नेट के सामने बैठ जाइये। फ़िर तो मजे ही मजे। हर मिजाज का सामान मिल जायेगा आपको यहां। फ़्री फ़ंड में। हर्र लगे न फ़िटकरी रंग चोखा टाइप।
कोई भी एग्रीगेटर खोलकर कुछ भी पढ़ना शुरू कर दीजिये। मजे की फ़ुल गारंटी। सीरियस पोस्ट के नीचे जीनियस पोस्ट! जीनियस पोस्ट से सटी हुई कोई फ़ड़कती पोस्ट। फ़ड़कती पोस्ट के बगल में कोई अकड़ती पोस्ट। अकड़ती पोस्ट के ठीक नीचे कोई भावुक सी गीली-गीली पोस्ट! साथ में कई सारी सीली-सीली सी पोस्ट! उसके ठीक ऊपर एकाध दियासलाई की तीली सी पोस्ट। कुल मिलाकर मामला गठबंधन सरकार सा लगता है। जिसके हरेक घटक का आपस में छत्तीस का आंकड़ा गठबंधन की पहली शर्त है।
कोई क्रांति फ़ैला रहा है, कोई भ्रांति। किसी ने जरा सा हल्ला मचाया नहीं कि दस लोग चिल्लाते हुये शांति पाठ करने लगते हैं। मन लगाकर लड़ने भी नहीं देते। जहां घाव दिखा मरहम लगा दिया। जहां घाव नहीं हुआ बना दिया-आखिर मरहम तो लगाना ही है।
आज ही किसी ने एक एस.एम.एस. पढ़वाया। उसमें किसी ने अपने दोस्त को पीट दिया। दोस्त ने पूछा-मैंने क्या गलती की जो मुझे पीटा तुमने। उसको जबाब मिला- साले हम तुम्हारी गलती का इंतजार करने लगे पीटने के लिये तब तो हो चुका।
कुछ लोगों का लेखन तो इतना बहुरंगी , इंद्रधनुषी सा लगता है कि सुबह जो लेख फ़ड़कता हुआ दीखता है, वही शाम तक सीरियस हो जाता है। भावुक लेख दयनीय सा लगने लगता है। गीले में और गीलापन पाठक लोग जोड़ देते हैं। बजबजा जाता है मामला कभी-कभी तो। इसका उलट भी होता है, पुलट भी होता है। उलट-पुलट तो खैर होता ही रहता है-हमेशा।
ओह! भूल गये न! यह तो बताया ही नहीं कि ब्लॉगिंग क्या है! ब्लॉगिंग की परिभाषा हर ब्लॉगर अपने मन से तय करता है। समय-समय पर जाहिर भी कर देता है। कई बार तो लोग ब्लॉगिंग बाद में शुरू करते हैं इसके बारे में व्याख्या /राय पहले जारी करते हैं। लोग कहते हैं- ब्लॉगिंग साहित्य नहीं हैं। साहित्य नहीं है तो वाहित्य भी नहीं है। पत्रकारिता वाले भी इसे अपनी तरफ़ खींचते हैं। कविता-कहानी-लेख-नाटक-गीत-संगीत-फ़ंगीत-तकनीक-फ़कनीक-खेल-वेल सबसे जुड़े लोग इसे अपने हिसाब से परिभाषित करते हैं।
जैसा लोग कहते हैं कुछ उसी तरह बातें बाग कहते हैं। अब जब लोग-बाग कुछ कहेंगे तो वन,वाटिका,कूप,तड़ाग का मुंह कौन बंद कर सकता है। उनका भी जो मन आता है कहते हैं। कहते रहेंगे, कहने दिया जाये।
जैसे ग्राम समाज की जमीन पर दबंग लोग कब्जा करने की कोशिश करते हैं जनहित में वैसे ही जो जिस रंग का होता है उस रंग का झंडा फ़हरा लेता है ब्लॉग के लिये। वैसे मेरे हिसाब से तो ब्लॉग अभिव्यक्ति का माध्यम है। रसोई गैस की तरह है जिसमें आप हर वह व्यंजन बना सकते हैं जिसका सामान आपके पास है। एक तुक्कड़ कवि ने कहा भी है:
ब्लॉग लेखन भी अलग-अलग क्वालिटी का है। सब मिलकर दो भागों में बंटी है-अच्छा और खराब!
ब्लॉगिंग किसी का टाइम पास है।
किसी के लिये ये टाइमफ़ेल है।
किसी की मन की मुक्त उड़ान है।
किसी के लिये बिल्कुल अझेल है।
कोई अच्छा लिखे तो आफ़त। खराब लिखे तो डबल आफ़त।
अच्छा लिखे तो कहा जाता है- तारीफ़ के लिये शब्द नहीं हैं।
खराब लिखे तो- वाह, बहुत खूब! लिखते रहिये। साधुवाद!
मरन है लिखने वाले की। समझ ही नहीं पाता कि लोग कह क्या रहे हैं। वो तो भला हो अनामी-सनामी भाइयों का जो मुंह दबाकर सच बयान कर जाते हैं। कुछ सच का पता चलता है वर्ना तो पता ही न चले।
जिसे देखो वह कालजयी लेखन कर रहा है। कालजयी लेखन के चलते अकालजयी च बवालजयी लेखन दब जाता है। जैसे कालाधन सफ़ेदधन को साइडलाइन कर देता है वैसे ही कालजयी लेखन अकालजयी लेखन का टेटुआ दबा देता है।
इतना अच्छापन और भलापन पसरा है यहां पर कि चलते हुये डर लगता है। कहीं किसी अच्छाई को टक्कर न लग जाये। कोई भलमनसाहत आहत न हो जाये। जिसे देखो वह भला दिखता है। जिसे देखो वह अच्छा। भलमनसाहत और अच्छाई के मारे नाक में दम है। स्व.राजबहादुर विकल जी शाहजहांपुर के बारे में बताते हुये कविता पढ़ते थे:
पांव के बल मत चलो, अपमान होगा!
सर शहीदों के यहां बोये हुये हैं।
कविता से लगता है कि बड़े सलीके से शहीदों के सर देख-देखकर मार्गों पर बोये गये होंगे ताकि आने वाली पीढियां पांव के बल चलने में शरमायें।
ब्लॉगिग के बारे में एक अच्छी बात है कि लोग इसके स्तर के प्रति काफ़ी चिंतित रहते हैं। इसका स्तर गिरने न पाये। स्तर ऊंचा होता रहे इसके लिये लोग बहुत पसीना बहाते हैं। परेशान रहते हैं। अब यह बात अलग है कि जैसे-जैसे इसके स्तर की चिंता करने वाले बढ़ रहे हैं लोगों में इसके गिरते स्तर के प्रति बेचैनी बढ़ती जा रही है। कोई तो बता रहा था कि किसी डाक्टर ने अपने मरीज को वजन कम करने की सलाह देते हुये बताया- ब्लॉगिंग के स्तर के बारे में चिंता करते रहो, दुबले हो जाओगे। हर जिम्मेदार ब्लॉगर स्टुअर्ट लिटिल की तरह ब्लॉग की नैया को बचाने में पिला पड़ा है।
कुछ दोस्त भी गजब के होते हैं। एक ने मेरे लेख का एक हिस्सा अपने नाम से कहीं पेश किया। मैंने उससे बाद में धमकाते हुये अकेले में कहा- वाह बेटा, मेरा लेख मय कामा-फ़ुल स्टॉप के अपने नाम से छाप दिया। कम से क्रेडिट तो दे देते मुझे।
उसने फ़ौरन पलटवार किया- तुम क्या कामा, फ़ुल स्टॉप विरासत में लेकर पैदा हुये थे। और वो लेख तुमने कहां से टोपा बतायें क्या! उसको क्रेडिट दिया जहां से टीपा?
हम चुप हो गये। जरा सी बात पर दोस्त से क्या बहस करें। बह्स की एक बड़ी आफ़त तो यह कि जहां शुरू करो लोग टोंकने लगते हैं स्वस्थ बहस करो। इतना तो ट्रैफ़िक वाले गाड़ी का प्रदूषण प्रमाण पत्र नहीं मांगते जितना बहस के गवाह बहस का स्वास्थ्य प्रमाणपत्र मांगते हैं। कोई-कोई तो बिना बहस अपने पास से दे देता है प्रमाण पत्र-स्वस्थ बहस देखकर अच्छा लगा।
बहस का तो ऐसा है कि बहस में लोग तर्क,विषय, तथ्य के चक्कर में नहीं पड़ते। बात चाहे ईरान की हो चाहे तूरान की। तर्क अगर अफ़गानिस्तान के हैं तो वही पेश किये जायेंगे। न हुआ तो राजस्थान के तो हैं ही इफ़रात में। आपको मानना हो तो मानो न मानना हो तो भी मानना तो पड़ेगा ही। आखिर स्वस्थ बहस जो हो रही है। बहस में वही तो कहेंगे जो पता है। सही-गलत की चिंता करें तब तो हो चुकी बहस।
दो दिन पहले कुछ कवितायें अदबदाकर निकल पड़ीं। मैंने उनको पोस्ट कर दिया। भाई लोगों ने खूब मजे लिये। कोई कहता है बहुत खूब लिखते रहें, कोई कहता मौज लेना सामाजिक अपराध है। हालत ऐसे हो गये हमारे जैसे भीड़ में कोई उचक्का फ़ंस जाये। कोई उसे इधर घसीटता है कोई उधर। कोई कहता है मारो साले को । कोई कहता है छोड़ दो बेचारे को।
कवितायें जब भी सोचता हूं खुराफ़ात ही सूझती है। खुराफ़ाती मुखड़े आकर खड़े हो जाते हैं सामने फ़ट से। जैसे … अब जैसे के आगे क्या कहें। अपने आप समझ जाइये।
जैसे आज ही सोचना शुरू किया तो फ़ट से एक मुखड़ा सामने आ गया रूपा फ़्रंट लाइन पहनकर-
जिंदगी एक झाम है
कलट्टरगंज का जाम है
निकल गये तो सुकून है
फ़ंस गये तो हराम है।
अब देखिये डायरी से शुरू हुये थे। कविता तक आ पहुंचे- बेमतलब की बातें करते-करते।
अच्छा ही हुआ। खराब लिखने के यही फ़ायदेतो देख ही चुके हैं। अब बेमतलब लिखने के भी देख लिये जायें।
मेरी पसंद
मीर के थे तीर तो गालिब का भी था इक कमाननाम लेकर इनका ही चलती हैं कितनी ही दुकान है।
मीर थे, ग़ालिब थे, चाहे दाग थे तो इसमें क्या
लिख दिया ब्लॉगर कवि ने एक मोटा सा दीवान है।
मीर-गालिब ब्लॉग पर लिखते गजल की पोस्ट औ
गर न मिलती टिपण्णी तो लुट गया होता जहान है।
है सदा रोशन तुम्हीं से बुद्धि का दीपक यहाँ
और ऐसे दीपकों से जगमगाता है मकान है।
कह दिया इक ब्लॉगर ने भी बात जो मन में रही
और कहकर दे गया अपना भी छोटा सा निशान है।
सच तो ये है ब्लॉग पर भी कितने गालिब-मीर हैं
सब मिले तो उठ गया है, ब्लॉग का ऊंचा मचान है।
आप से हमारी ए विनती ऐड कर अशआर एक
और घर पर पंहुच कर डिनर में लें सब्जी औ नान है।
शिवकुमार मिश्र की बज में बिना मतलब का सुधार करने के बाद
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25 responses to “…एक बेमतलब की पोस्ट”
Wednesday, August 11, 2010
…तुम मेरे जीवन का उजास हो
http://web.archive.org/web/20140419213458/http://hindini.com/fursatiya/archives/1632
…तुम मेरे जीवन का उजास हो
By फ़ुरसतिया on August 11, 2010
तुम मेरे जीवन का उजास हो!
न जाने कब मेरे मन आयी होगी
पहली बार यह बात
लेकिन अब इसे मैं
फ़िर फ़िर दोहराता हूं
सोचता हूं फ़िर दोहराता हूं।
सच तो यह है
कि मुझे पता भी नहीं
ठीक-ठीक मतलब उजास का
लेकिन कुछ-कुछ ऐसा लगता है
कि इसका मतलब होता है रोशनी
जिसमें सब कुछ दिखता है उजला-उजला सा
तुम्हारी मुस्कान में धुला-धुला सा।
अगर कोई पूछे
तो शायद बता भी न पाऊं ठीक-ठीक
कि कैसा होता है जीवन का उजास
हां यह जरूर लगता है कि यह है
बस एक खुशनुमा सा एहसास
जिसमें न रोशनी में चौंधियाती हैं आंखें
और न किसी अंधेरे में उड़ते हैं होशो हवास।
मैं यह नहीं कहता
-सच तो यह है कि मैं यह कहना भी नहीं चाहता
कि तुम सबसे सुन्दर
सबसे अच्छी हो इस दुनिया में
या तुम जैसा भला-प्यारा
और कोई नहीं इस सारी दुनिया में।
क्योंकि ऐसा सोचना तुमसे बिछुड़कर
पूरी दुनिया में बेमतलब भटकने जैसा है
दुनिया भर की सुन्दरता में कुश्ती कराने जैसा
जिसमें सिवाय बदसूरती के कोई नहीं जीतता।
जितनी भी यादे हैं हमारे साथ की
वे बस पहले और पहले
या उसके भी और पहले की हैं
या फ़िर पहले के थोड़ा बाद की
या फ़िर बाद वाली से कुछ पहले की।
ऐसा कुछ याद नहीं मुझे
जिसे दोहराते हुये मैं कह सकूं
ये तो भला हुआ हमारे साथ
लेकिन वो हुआ कुछ कम भला
जो समय बीत गया
लगता है सब भला-भला सा
तुम्हारी मुस्कान में धुला-धुला सा।
पहले, बहुत पहले कभी डरता था
तुमसे बिछुड़ जाने के एहसास से
अर्सा हुआ ऐसी कोई बात सोचे हुये
अब तो हंसी आती है
कभी ऐसा सोचने की बात सोच-सोचकर।
लगता ही नहीं कभी अलग रहे
अनगिन दिन के अलगाव के बावजूद
हमेशा यही लगता रहा
कि तुम कहीं दूर नहीं
बस यहीं कहीं आसपास हो!
तुम मेरे जीवन का उजास हो!
न जाने कब मेरे मन आयी होगी
पहली बार यह बात
लेकिन अब इसे मैं
फ़िर फ़िर दोहराता हूं
सोचता हूं फ़िर दोहराता हूं।
सच तो यह है
कि मुझे पता भी नहीं
ठीक-ठीक मतलब उजास का
लेकिन कुछ-कुछ ऐसा लगता है
कि इसका मतलब होता है रोशनी
जिसमें सब कुछ दिखता है उजला-उजला सा
तुम्हारी मुस्कान में धुला-धुला सा।
अगर कोई पूछे
तो शायद बता भी न पाऊं ठीक-ठीक
कि कैसा होता है जीवन का उजास
हां यह जरूर लगता है कि यह है
बस एक खुशनुमा सा एहसास
जिसमें न रोशनी में चौंधियाती हैं आंखें
और न किसी अंधेरे में उड़ते हैं होशो हवास।
मैं यह नहीं कहता
-सच तो यह है कि मैं यह कहना भी नहीं चाहता
कि तुम सबसे सुन्दर
सबसे अच्छी हो इस दुनिया में
या तुम जैसा भला-प्यारा
और कोई नहीं इस सारी दुनिया में।
क्योंकि ऐसा सोचना तुमसे बिछुड़कर
पूरी दुनिया में बेमतलब भटकने जैसा है
दुनिया भर की सुन्दरता में कुश्ती कराने जैसा
जिसमें सिवाय बदसूरती के कोई नहीं जीतता।
जितनी भी यादे हैं हमारे साथ की
वे बस पहले और पहले
या उसके भी और पहले की हैं
या फ़िर पहले के थोड़ा बाद की
या फ़िर बाद वाली से कुछ पहले की।
ऐसा कुछ याद नहीं मुझे
जिसे दोहराते हुये मैं कह सकूं
ये तो भला हुआ हमारे साथ
लेकिन वो हुआ कुछ कम भला
जो समय बीत गया
लगता है सब भला-भला सा
तुम्हारी मुस्कान में धुला-धुला सा।
पहले, बहुत पहले कभी डरता था
तुमसे बिछुड़ जाने के एहसास से
अर्सा हुआ ऐसी कोई बात सोचे हुये
अब तो हंसी आती है
कभी ऐसा सोचने की बात सोच-सोचकर।
लगता ही नहीं कभी अलग रहे
अनगिन दिन के अलगाव के बावजूद
हमेशा यही लगता रहा
कि तुम कहीं दूर नहीं
बस यहीं कहीं आसपास हो!
तुम मेरे जीवन का उजास हो!
Posted in कविता | 37 Responses
37 responses to “…तुम मेरे जीवन का उजास हो”
-
स्स्सस्स्स्सस्स्श…..
यहीं हूँ बिना आवाज़ किये.. आप चालू रहिये
आज कानपुर में बारिश हो रही है क्या?
अत्यंत मनभावन कविता… बहुत, बहुत, बहुत पसंद आयी… -
कविता सीधे साधे सच्चे शब्दों में स्वानुभूति की बेहद ईमानदारी से अभिव्यक्त करती है। यह दाम्पत्य प्रेम को भींगो देने वाली कविता है। भिंगोने की आशय रूलाने-धुलाने से नहीं बल्कि आत्मा को प्रकाशित करने से है।
manoj kumar की हालिया प्रविष्टी..अरब न दरब झूठ का गौरब -
कितनी खूबसूरती से अपने मन की बात कह डाली आपने. कितने लोग हैं, जो अपने जीवन साथी के लिये इतनी सुन्दर कोमल भावनाओं को रखने के साथ-साथ व्यक्त भी करते हैं, वो भी इतनी मासूमियत और बिना किसी शब्दाडम्बर के??
“मैं यह नहीं कहता
-सच तो यह है कि मैं यह कहना भी नहीं चाहता
कि तुम सबसे सुन्दर
सबसे अच्छी हो इस दुनिया में
या तुम जैसा भला-प्यारा
और कोई नहीं इस सारी दुनिया में।
क्योंकि ऐसा सोचना तुमसे बिछुड़कर
पूरी दुनिया में बेमतलब भटकने जैसा है
दुनिया भर की सुन्दरता में कुश्ती कराने जैसा
जिसमें सिवाय बदसूरती के कोई नहीं जीतता।”
ईमानदारी से कही गई बात, जैसे केवल स्वगत कथन हो!!!!
खुशकिस्मत हैं आप जिन्हें सुमन जैसी साथी मिली, या सुमन जिन्हें आप जैसा साथी मिला….. या आप दोनों ही. सुमन जी की तस्वीर ने कविता में चार चांद लगा दिये हैं.
ऐसी ही सहज, सुकून देने वाली कविताएं रचते रहें.
वन्दना अवस्थी दुबे की हालिया प्रविष्टी..चिट्ठी न कोई संदेश -
क्या बात है !अनूप जी
एक के बाद एक बढ़िया कविताएं पढ़ने को मिल रही हैं
लगता ही नहीं कभी अलग रहे
अनगिन दिन के अलगाव के बावजूद
हमेशा यही लगता रहा
कि तुम कहीं दूर नहीं
बस यहीं कहीं आसपास हो!
तुम मेरे जीवन का उजास
बहुत सुंदर भाव ! ज़िंदगी की ,जज़्बों की ,ख़्वाहिशात की जीत इस में नहीं कि कितना समय साथ में गुज़रा
बल्कि इस में है कि कैसा समय गुज़रा
सच्ची कविता! -
बेहद सादगी से भरी सुंदर अभिव्यक्ति, कोई चांद सितारे तोड़ने की बात नहीं, सीधी दिल से निकली आवाज्…।:)
-
एकदम झकास ,’डाउन टु अर्थ’ कविता । कहां गद्य वद्य के चक्कर में पड़ गये आप ?
इमानदार अभिव्यक्ति । मिलन , विरह , दुविधा – सभी क्षणों की ।
अनूप भार्गव की हालिया प्रविष्टी..एक ख़याल -
आपके रोमांस के आगे बौना हिमालय…
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सबसे पहले तो गुरु जी को प्रणाम……..
गुरु जी आपने …आज का दिन बना दिया…. अंग्रेज़ी में बोलें तो… यू हैव मेड माय डे… आज की कविता बहुत पसंद आई…. बहुत सुंदर भाव हैं….
तुम मेरे जीवन का उजास हो!
यह पंक्ति ही अपने आप में कम्प्लीट है…. बहुत ही सुंदर पंक्ति है…
महफूज़ अली की हालिया प्रविष्टी..मैंने अपने खोने का विज्ञापन अखबार में दे दिया है- महफूज़ -
सेंटी मूड!!!!!!!सब खैरियत है शुक्ल जी….!!!!
वैसे बड़ा भला लगा मन को…
dr.anurag की हालिया प्रविष्टी..सुन जिंदगी!! किसी-किसी रोज तेरी बहुत तलब लगती है -
भावपूर्ण सुन्दर कविता..
सीधे दिल के भाव उतार दिए हैं कागज़ पर !
[आज उनका जन्मदिन तो नहीं?]
‘मैं यह नहीं कहता
-सच तो यह है कि मैं यह कहना भी नहीं चाहता
कि तुम सबसे सुन्दर
सबसे अच्छी हो इस दुनिया में
या तुम जैसा भला-प्यारा
और कोई नहीं इस सारी दुनिया में।’
इस बात के लिए आप ने कविता में बड़ा ही अच्छा कारण दिया है..
इस नज़र से तो कभी’ तारीफ़ न करने का कारण’ सोचा भी नहीं था.
‘क्योंकि ऐसा सोचना तुमसे बिछुड़कर
पूरी दुनिया में बेमतलब भटकने जैसा है’
———बहुत खूब!—
–सुमन जी की मुस्कान बड़ी प्यारी है ..मम्मी -बेटे की बहुत ही प्यारी सी तस्वीर है.
Alpana की हालिया प्रविष्टी..आसमान पर चलना कैसा लगता है -
नीम्बू-मिर्च लगा कर टांग लीजिये अब
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सुन्दर कविता , आपके मूड में ऐसे ही स्विंग आते रहे और हमें आपके शानदार गद्य और पद्य दोनों ही पढने को मिलते रहे .
Sanjeet Tripathi की हालिया प्रविष्टी..चोला-माटी के बहाने छत्तीसगढ़ी गीत की रॉयल्टी को लेकर उपजा विवाद -
कहीं भाभीजी का जन्मदिन या आपलोगों का वैवाहिक वर्षगाँठ तो नहीं न आज ???
प्रेम की सहज सरल और तरल अनुभूति शब्दों की चूनर ओढ़े जब बाहर निकलती है, तो एकदम ऐसी ही मोहक दिखती है और अपने अप्रतिम सौंदर्य से अपने संपर्क में आने वाले हर मन में उजास भर देती है…
जोड़ी सलामत रहे आपकी…सदा सदा सदा…
रंजना. की हालिया प्रविष्टी..धन का सदुपयोग -
is rang ka me adi nahi, na hi aap kabhi dikhe the
padhe hamene pichli aur usse bhi pichli post, the
padh ke samjhne me itti jor lagani pari ki tip nahi diye the
tipta bhi to kya, ye samajh me nahi aa rahe the. -
अनूप जी,
आपके जीवन का इ उजास बना रहे
और उनका लाली सलामत रहे.
आज त उम्र का नाजायज फ़ायदा उठाकर इ आसिरबाद टाइप का टिपण्णी त लगाइए सकते हैं…
इ प्रेम भाव बना रहे और चाँद त गोदी में देखाइये दे रहा है… -
बहुत ही प्यारी कविता है ..इंडिया में मानसून जोरों पर है लगता है .:)
shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..थेम्ज क्रूज मेरी नजर से - -
कविता पढ़ने की शरूआत ही की थी..तुम.. पर चूहे का तीर गया ही था कि वहाँ हाथ बन गया…! क्लिक किया तो जाना कि ..
…ओस की एक बूंद.. से शुरूवात हुई थी तारीफ की..!
जब सुनते-सुनते श्रीमती जी बोर हो गईं, बताया कि ओस की वो बूंद सूख चुकी है तो विरह के गीत गाए जाने लगे.. वहाँ भी झिड़की..
…कविता भौतिकीय विचलन का शिकार है.गैलिलियो तक को पता था कि सूरज धरती के चारो तरफ नहीं घूमता.तुमफिर सूरज को क्यों घुमा रहे हो?
..सकपका कर कवि महोदय ने ..
घर घिरा है घरवालों से,
हम घिरे हैं पर बवालों से
..आदि-आदि ऊटपटांग रचना कर डाली..!
हम घबराकर लौट आए ….तुम मेरे जीवन का उदास हो.
मैने सोचा, अगली लाइन होगी..कभी खत्म न होने वाली प्यास हो..!
मगर नहीं…
कवि इस बार धीर-गंभीर हैं..
जितनी भी यादे हैं हमारे साथ की
वे बस पहले और पहले
या उसके भी और पहले की हैं
या फ़िर पहले के थोड़ा बाद की
या फ़िर बाद वाली से कुछ पहले की।
….वाह! वाकई जीवन का उजास इन्हीं के इर्द-गिर्द घूमता है.
..इन तारीफों के पुल से गुजरते वक्त एक और प्रश्न उठ गया दिमाग में..पाठकों से इसके उत्तर की अपेक्षा है..
..कि मंचीय हास्य व्यंग्य कवि (इनमें बड़े-बड़े नाम भी शामिल हैं) जहाँ पत्नी का उपहास करके प्रशंशा बटोरते थे वहीं ब्लॉगर बंधु पत्नी का उजास देखते हैं. पति तो दोनों हैं, दोनो व्यंग्यकार हैं मगर एक उपहास करने से नहीं डरता तो दूसरा सिर्फ प्रशंसा के सौ बहाने तलाशता है. इसके क्या कारण हो सकते हैं..?
बेचैन आत्मा की हालिया प्रविष्टी..आजादी के 63 साल बाद -
…. क्योंकि ऐसा सोचना तुमसे बिछुड़कर
पूरी दुनिया में बेमतलब भटकने जैसा है
दुनिया भर की सुन्दरता में कुश्ती कराने जैसा
जिसमें सिवाय बदसूरती के कोई नहीं जीतता..
— काव्यत्व के उत्कर्ष पर हैं ये पंक्तियाँ ! प्रेम में पनपती आश्वस्ति , आश्वस्ति से पनपता औदात्य , औदात्य से पनपता त्याग , और फिर काव्यत्व-व्यापकत्व ! प्रेम जगत का प्रेमी बनाता है , एक सार्थक विश्वदृष्टि निर्मित करता है !
कविता की सहजता आकर्षक है ! कविता के उत्तरार्ध से अंत तक जैसे चेहरे पर मंद-स्मिति खिलती जा रही हो ! सुन्दर ! आभार !
amrendra nath tripathi की हालिया प्रविष्टी..बजार के माहौल मा चेतना कै भरमब रमई काका कै कविता ध्वाखा -
पहले बुनाई अब मन की घुमाई। अपने घर में रहने वाले कानपुर को कभी इतना मृदुल नहीं देखा। बारिश का असर होगा।
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रंजना दी की तरह मेरे मन में भी पहला भाव यही आया कि कहीं आज वैवाहिक वर्षगाँय तो नही शुकुल जी की। रंजना दी ने जन्मदिन की संभावना भी बढ़ा दी है।
वो क्या है ना कि विवाह के इतने वर्षों पश्चात जब अचानक स्नेह का सोता फूटता दिखाई दे, वो भी लिंक एवं चित्रों द्वारा स्पष्ट हो कि पत्नी के ही लिये ही फूटा है तो ज़रा कलैंडर की तरफ ध्यान स्वयमेव चला जाता है।
वैसे हम जैसो को तो बस भाव से भरा कुछ हो कविता ही लगता है और कविता है तो बढ़िया ही लगता है। मगर अमरेंद्र जैसे आलोचक की प्रशंसा पा लेना स्वयं में बड़ी बात तो है ही….!!
ये टोटल मौज थी…! यहाँ आने पर आपैआप मौज लेने का माहौळ सा लगे लगता है। अतः कोई भी बात गंभीरता से ना ली जाये (कविता की प्रशंसा के अतिरिक्त ) -
बहुत अच्छा पोस्ट .बधाई
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Kya baat hai shukul,
ऐसे सेंटीयाने की तुलना सिर्फ नत्थूलाल की मूंछों से हो सकती है!
कुच्छ तो चक्कर है…. -
उजास – बेहद खूबसूरत लफ्ज़ वो उजाला जिसमे न आँखें चोंधियाती हैं , ना ही अँधेरे से मन व्यथित होता है . . एक नपी तुली रोशनी .कविता बहुत भावपूर्ण है !
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बहुत सुन्दर – फोटू के साथ समझी। कितनी बड़ी और सहज कविता । वहाँ बज पर, मैं अनुपानुकूल कुछ समझ रही थी… बस मौज जहाँ उजास का मतलब नहीं पता ,यहाँ आई पता चला कितनी बड़ी बात …….
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क्या लिखूँ अनुप भैया बहुत सुन्दर कविता लिखी है मन को मोह लिया। मुझे लगता है न जैसे की मेरे विचार भी ऎसे ही हैं। बहुत सुन्दर।
नीलकमल की हालिया प्रविष्टी..ये प्यार था या कुछ ओर था -
kya kahoo . hindi ke liya aise prayas bade jarrori hi.
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Ujaas!! aapki kavita to mujhe bahut achhi lagi!! prantu mujhe Hindi typing nahi aati isliye hindi mein koi comment nahi kar paunga.
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आपका कनपुर ब्लोगर्स असोसिअसन में स्वागत है ।
http://kanpurbloggers.blogspot.com/ -
अनूप जी आपको कानपुर ब्लोगर्स पर देख कर हार्दिक प्रसन्नता हुयी- आभार
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ये उजास क्या हुआ ?
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फिर से पढने आया इसे.. कुछ तस्वीरें कुछ बातें बस दिमाग से चिपक जाती हैं। टचवुड!!
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उजास फैलाती कविता.
राहुल सिंह की हालिया प्रविष्टी..मर्दुमशुमारी -
अनूप, तुम्हारी कविता पढ़कर बहुत अच्छा लगा. तुम दोनों को भगवान् हमेशा खुश रखे.
Kailash Varma की हालिया प्रविष्टी..My new blog! -
[...] इस कविता से हुई। हमारी ओस की बूंद और जीवन के उजास ने जो लिखा वह उनकी बड़ी दीदी के मुताबिक [...]
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[...] …तुम मेरे जीवन का उजास हो [...]
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कुछ पविञ पुस्तकों के बारे में मान्यता है कि वे किसी के द्वारा नहीं लिखी गईं, सीधे आसमान से नाज़िल हुईं। आपकी यह कविता भी मुझे लगता है आपके ऊपर अवतरित हुई होगी इसी लिये इतनी सुवासित और शीतल आलोक से ओत-प्रोत है।
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I would really love to produce a journal but.. I’m uncertain which web sites make the most traffic? What kind of web blogs do you really surfing? I largely surf photo weblogs and street fashion we
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मजा आ गया पढकर। ब्लागिंग का मजा ही तब है कि जब आपको ऐसे विचार पढने को मिलें जो आपको कम पसन्द हैं। यही विविधता तो बार बार इधर का रूख करवाती है। अब सुरेश चिपलूनकर जी की हर पोस्ट हम मन से पढते हैं लेकिन हर पोस्ट से सहमत नहीं होते, वो अपना धर्म निभा रहे हैं और हम अपना। इतने पर भी लगता नहीं कि सुरेशजी मेरे बारे में कुछ गलत सोचते होंगे या हम उनके बारे में।
फ़िर अभी किसी ब्लाग पर पौराणिक ग्रंथ और इतिहास की मिली जुली खिचडी देखी, टिप्पणी देखी तो लगा कुछ लोग आहत टाईप स्टेज पर पडे टिपिया रहे थे। हमें तो पढकर अच्छा लगा, एक नया विचार मिला. मानो तो मर्जी न मानो तो मर्जी
ब्लागिंग का स्तर नहीं गिरने देना चाहिये, इसके लिये टिप्पणी रणबांकुरों की फ़ौज बनानी चाहिये तो स्तरहीन लेखकों को डरा धमकाकर उनका स्तर ऊंचा कर सकें
नीरज रोहिल्ला की हालिया प्रविष्टी..हे दईया कहाँ गये वे लोग
१-ब्लॉगिंग के स्तर के बारे में चिंता करते रहो, दुबले हो जाओगे। [शुक्र मनाईये वंदना लूथरा हिंदी ब्लोगों पर नहीं आती नहीं तो..]
२-हम तुम्हारी गलती का इंतजार करने लगे पीटने के लिये तब तो हो चुका।
[इस एक वाक्य के सहारे जितनी चाहे खुराफात कर सकते हैं!: )..
इस वाक्य के प्रचार के ज़रा दूरगामी प्रभाव तो सोचीये..?]
३-ब्लॉग अभिव्यक्ति का माध्यम है। रसोई गैस की तरह है जिसमें आप हर वह व्यंजन बना सकते हैं जिसका सामान आपके पास है![रसोई गैस??!!!!!!हर तरह का व्यंजन?]
४-ब्लॉगिंग साहित्य नहीं हैं। साहित्य नहीं है तो वाहित्य भी नहीं है।[:)]
—————-
आप के इस लेख पर मेरी राय-
‘तारीफ़ के लिये शब्द नहीं हैं.’
———————————-
‘आप से हमारी ए विनती ऐड कर अशआर एक
और घर पर पंहुच कर डिनर में लें सब्जी औ नान है
इस पर यही कहना है-
वाह, बहुत खूब! लिखते रहिये।
…………………………………………………
[ हर कविता को समझना आसान नहीं होता है पर शायद हर कविता पर 'ब्लोगिया टिप्पणी' लिखना सबसे आसान होता है...:) ]
लिखते रहें ! ;-))
शुभकामनायें आपको !
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..क्या हमारा मन आज़ाद है – सतीश सक्सेना
लिखने वाली की तो सच में मरन है जी !
एक दम झकाझक च भकाभक पोस्ट है. अब समझिए हम क्या कहना चाह रहे हैं.
चलिये अब यहीं से उठते हैं और आगे बढ़ते हैं।
asli vyanjan mil hi nahi raha tha. testy ka testy aur pachak ka pachak. aap itta lamba gap na de. hum akele nahi mere jaise lakho nahi to
hazaro honge.
hame jiyada nahi to utta to chahiye hi jise hamara hajma bana rahe.
rapchik…..man kilkit.cha.pulkit ho gaya. jhare raho kallatargunj……..
pranam.
यह पोस्ट बेमतलब है या मतलब वाली इस बात पर एक स्वस्थ बहस होनी चाहिए:-)
मेरी बेमतलब की ग़ज़ल को पसंद करने और उसमे बिना मतलब का सुधार करने के लिए आपको साधुवाद और मुझे बधाई!!!
हाँ, आभार तो भूल ही गए थे.
Shiv Kumar Mishra की हालिया प्रविष्टी..दुर्योधन की डायरी – पेज ११८८
सनाम: दोहरा मजा देती पोस्ट है. मौज लेते रहें (मुझे छोड़ कर, किसी की भी)
हम भी यही करते हैं। टिप्पणी देने के लिए अगली पोस्ट का इंतज़ार नहीं करते। एक बार टिप्पणी कर दिए पोस्ट पर अगली पोस्ट आने तक टिप्पणी करते रहते हैं।
मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..आँच – 31 पर तेरा जूता तेरे सिर
लिखते रहिए!
तारीफ़ के शब्द तब तक ढूंढता हूं (कहीं से टीपता हूं)!
मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..आँच – 31 पर तेरा जूता तेरे सिर
बवाल की हालिया प्रविष्टी..जाने क्या वो लिख चलेबवाल
किलर झपाटा की हालिया प्रविष्टी..आज़ादी की सालगिरह मुबारक़ हो दोस्तों
ऊपर नीरज की टीप एक दम धक् चिक है .
आपकी…..तारीफ़ के लिये शब्द नहीं हैं।
- वाह, बहुत खूब! लिखते रहिये। साधुवाद!
वैसे एक ओर सामाजिक अपराध कर दिया ना………….ओर मिश्रा जी की फोटो भी लगा दी ….
dr.anurag की हालिया प्रविष्टी..चिरकुटाई की डेमोक्रेसी
ब्लोगिंग के सारे सूत्र कोपी कर लिए हैं,रोज सुबह हनुमान चालीसा से पहले इसका पाठ कर दिन शुरू करेंगे…
झक झक आनंद दायक पोस्ट…
शिव की रचना अब जाकर मुकम्मल हुई है… “है” लगाने के बाद…
रंजना. की हालिया प्रविष्टी..आखिरी ख्वाहिश
विवेक सिंह की हालिया प्रविष्टी..रनदीप को धन्यवाद भी तो बोलो
सत्य वचन…..एकदम ऱापचिकात्मक भाव व्यक्त किए हैं आपने तो……कभी इसी बात को लेकर पुष्पा भारती जी से एक सेमिनार में मत भेद हो चुका है…..उन्हें ब्लॉगजगत में टेंशनात्मक जैसे शब्दों के इस्तेमाल से टेंशन थी और अपन को उनके सोचने के इस सोचनात्मक ढर्रे से टेंशन थी……टेंशन पर टेंशन काट उठा और नतीजा सिफर
बढ़िया पोस्ट।
बहस के लिए बाक़ी हैं न
शुरुआत ही बहुत धांसू है. एकदम हॉरर शो के पहले आने वाली चेतावनी की तरह- ” यह धारावाहिक काल्पनिक घटनाओं…… ’
“किसी ने जरा सा हल्ला मचाया नहीं कि दस लोग चिल्लाते हुये शांति पाठ करने लगते हैं। मन लगाकर लड़ने भी नहीं देते”
किसको लपेटे में लिया है यहां? कोई तो होगा ही….. सोचना पड़ेगा
” ब्लॉगिंग साहित्य नहीं हैं। साहित्य नहीं है तो वाहित्य भी नहीं है”
“मरन है लिखने वाले की। समझ ही नहीं पाता कि लोग कह क्या रहे हैं। वो तो भला हो अनामी-सनामी भाइयों का जो मुंह दबाकर सच बयान कर जाते हैं। कुछ सच का पता चलता है वर्ना तो पता ही न चले।”
हां, सच्ची:(
“ब्लॉगिंग के स्तर के बारे में चिंता करते रहो, दुबले हो जाओगे। ”
हमारे दुबले होने का यही कारण तो नहीं?
“बह्स की एक बड़ी आफ़त तो यह कि जहां शुरू करो लोग टोंकने लगते हैं स्वस्थ बहस करो। इतना तो ट्रैफ़िक वाले गाड़ी का प्रदूषण प्रमाण पत्र नहीं मांगते जितना बहस के गवाह बहस का स्वास्थ्य प्रमाणपत्र मांगते हैं। कोई-कोई तो बिना बहस अपने पास से दे देता है प्रमाण पत्र-स्वस्थ बहस ”
कहाँ-कहाँ दिमाग दौडाते हैं…..
“कोई कहता है बहुत खूब लिखते रहें, कोई कहता मौज लेना सामाजिक अपराध है। हालत ऐसे हो गये हमारे जैसे भीड़ में कोई उचक्का फ़ंस जाये। कोई उसे इधर घसीटता है कोई उधर। कोई कहता है मारो साले को । कोई कहता है छोड़ दो बेचारे को। ”
अगर हम इसी तरह से कॉपी पेस्ट करते रहे तो पूरी पोस्ट ही कमेन्ट बॉक्स में उतर आएगी
आपकी अगली पोस्ट तक के लिए खुराक तो मिल ही गई….
वन्दना अवस्थी दुबे की हालिया प्रविष्टी..भारत वर्ष हमारा है
शरद कोकास की हालिया प्रविष्टी.. लिखो ! न सही कविता – दुश्मन का नाम – लीलाधर मंडलोई की एक कविता
अभय तिवारी की हालिया प्रविष्टी..सदाचार और छिनार
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