http://web.archive.org/web/20140210192538/http://hindini.com/fursatiya/archives/4820
लेबल
अमेरिका यात्रा
(75)
अम्मा
(11)
आलोक पुराणिक
(13)
इंकब्लॉगिंग
(2)
कट्टा कानपुरी
(119)
कविता
(65)
कश्मीर
(40)
कानपुर
(309)
गुड मार्निंग
(44)
जबलपुर
(6)
जिज्ञासु यायावर
(17)
नेपाल
(8)
पंचबैंक
(179)
परसाई
(2)
परसाई जी
(129)
पाडकास्टिंग
(3)
पुलिया
(175)
पुस्तक समीक्षा
(4)
बस यूं ही
(276)
बातचीत
(27)
रोजनामचा
(899)
लेख
(36)
लेहलद्दाख़
(12)
वीडियो
(7)
व्यंग्य की जुगलबंदी
(35)
शरद जोशी
(22)
शाहजहाँ
(1)
शाहजहाँपुर
(141)
श्रीलाल शुक्ल
(3)
संस्मरण
(48)
सूरज भाई
(167)
हास्य/व्यंग्य
(399)
Monday, September 30, 2013
Friday, September 27, 2013
इति श्री वर्धा ब्लॉगर एवं सोशल मीडिया सम्मेलन
http://web.archive.org/web/20140209191351/http://hindini.com/fursatiya/archives/4803
Monday, September 23, 2013
वर्धा राष्ट्रीय संगोष्ठी -कुछ यादें
http://web.archive.org/web/20140417064241/http://hindini.com/fursatiya/archives/4772
वर्धा राष्ट्रीय संगोष्ठी -कुछ यादें
By फ़ुरसतिया on September 23, 2013
और ये तीसरा ब्लॉगिंग सेमिनार, कार्यशाला, गोष्टीं संपन्न हुयी। पहला 2009 में इलाहाबाद में – न भूतो न भविष्यतनुमा। दूसरा 2010 में वर्धा में जहां हमने आलोकधन्वा, जो ब्लॉगिंग को सबसे कम पाखण्ड वाली विधा मानते हैं, की कविता सुनी:
केरल एक्सप्रेस से वर्धा पहुंचे। संतोष त्रिवेदी और अविनाश वाचस्पति इटारसी में मिल गये। संतोष त्रिवेदी ने फ़ौरन कैमरा चमकाया और लिखा -इटारसी में अचानक फुरसतिया साथ हो लिए। ई-स्वामी की लिखी बात एक बार फ़िर याद आई- चीजें अपनी उपयोग करवाती हैं। संतोष जो भी देखते हैं, जिससे भी मिलते हैं उसको यथासम्भव अपने कैमरे में कैद करके सबसे तेज चैनल की तरह फ़ौरन फ़ेसबुक पर पेश करते हैं। केरल एक्सप्रेस में कार्तिकेय मिश्र और संजीव सिन्हा भी मिले सेवाग्राम स्टेशन पर।
वर्धा विश्वविद्यालय पहुंचने पर पता चला कि हम लोगों के ठहरने का इंतजाम बाबा नागर्जुन सराय में था। तीन साल पहले जब आये थे तब फ़ादर कामिल बुल्के अतिथि गृह में ठहरे थे। तब बाबा नागार्जुन सराय बनी नहीं थी। हमारे ठहरने की व्यवस्था डा. अरविन्द मिश्र के साथ थी। वे प्रात:भ्रमण के लिये निकले थे। हमने उनके कमरे के बाहर अपना सामान अड़ा दिया। संतोष त्रिवेदी और अविनाश वाचस्पति के कमरे में पहुंचकर वहां मौजूद व्यवस्था से चाय पी। अविनाश वाचस्पति कोल्ड टी पीना चाहते थे सो बर्फ़ मांगने लगे। लेकिन सुबह-सुबह मिली न!
कुछ देर में डा.अरविन्द मिश्र टहलकर वापस आये। पहले से किंचित और विस्तृत दिखे। पता चला कि उन्होंने वरिष्ठ ब्लॉगर का हवाला देते हुये हमारे लिये अलग करने का इंतजाम किया। वरिष्ठ ब्लॉगर/कनिष्ठ ब्लॉगर की बात वे इलाहाबाद में हुये सम्मेलन से (2009) करते आये हैं। अपनी बात को अमली जामा पहनाया उन्होंने चार साल बाद। वैसे तो सब ब्लॉगर बराबर होते हैं लेकिन कुछ ब्लॉगर ज्यादा बराबर होते हैं। कभी मंच पर टाट के कपड़े तक पहनकर कविता पढ़ने वाले बाबा नागार्जुन सराय में व्यवस्था दिव्यनुमा थी। कमरे में एसी, टीवी, सोफ़ा, फ़्रिज ,सिटिंग रूम सब मौजूद। लगभग वीराने में बसे इस विश्वविद्यालय में सुविधायें सब उच्चस्तर की जुटाने का प्रयास किया गया है। यह अलग बात कि बाथरूम में नहाने के बाद पानी काफ़ी देर तक जमा रहता है। यह हमारे देश के सिविल इंजीनियरों की गुणता का परिचायक है।
कमरे में सामान जमाने के बाद हाल में काठमांडू में हुये अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन की भी चर्चा हुई। सुनी-सुनाई बातों से पता चला कि वहां ठहरने की व्यवस्था इतनी दिव्य थी कि सुरक्षा व्यवस्था के लिहाज से लोगों को पानी और निपटान के लिये भी बहुत मेहनत करने पड़ी।
नाश्ते के बाद पहला सत्र हबीब तनवीर सभागार में शुरु हुआ। वही हाल जिसमें तीन साल पहले जमे थे। शुरुआत वर्धा विश्वविद्यालय के कुलगीत से हुयी जिसे आप यहां सुन सकते हैं। विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं ने गायन और अभिनय के जरिये इसे पेश किया। मंच पर मौजूद सिद्धार्थ त्रिपाठी ने विश्वविद्यालय की बात करते हुये इसे रेगिस्तान में नखलिस्तान की उपमा दी।
कार्यक्रम की शुरुआत में रवि रतलामी और युनुसखान की जुगलबंदी पेश की गयी। ब्लॉग, फ़ेसबुक और ट्विटर के बारे मेँ आडियो-विजुअल प्रस्तुति देखकर/सुनकर मजा आ गया। युनुस की आवाज फ़ंटास्टिक है। प्रस्तुतिकरण झकास।
पहले सत्र की शुरुआत में विषय प्रवर्तन किया कार्तिकेय मिश्र ” ने। लोगों को ब्लॉगिंग और सोशल मीडिया से जुड़ी जानकारी देते हुये कार्यक्रम की शुरुआत की। सधी आवाज में अपनी बात कहते हुये कार्तिकेय ने विश्वविद्यालय के तमाम लोगों के मन हिला दिये। प्रवीण पांडेय भारतीय रेल की तरह हल्का सा देर से आये। उनके लिये कुर्सी सुरक्षित रखी गयी। कार्यक्रम के बारे में अपने ब्लॉग में लिखते हुये विश्वविद्यालय की छात्रा सुनीता भाष्कर ने लिखा:
कार्यक्रम के दौरान हर्षवर्धन त्रिपाठी ने पत्रकारों को मिलने वाली सुविधाओं की तर्ज पर ब्लॉगरों के लिये सुविधाओं और उनके पंजीकरण की भी बात कही। इस पर अपनी बात हुये मंच से बताया गया कि इसके निहित खतरे भी हैं । फ़िर सभी ब्लॉगरों को पंजीकरण कराना होगा। आदि-इत्यादि।
प्रथम सत्र के अंत से पहले आदि चिट्ठाकार आलोक कुमार को मंच पर बुलाकर सबसे रूबरू करवाया गया। यह बात जब सूझी तब तक सब गुलदस्ते खतम हो गये थे इसलिये आलोक को वैसे ही सबसे मुखातिब कराया गया जैसे कभी उन्होंने बिना किसी औपचारिकता के अपनी पहली पोस्ट लिखी होगी।
पहले सत्र की शुरुआत के फ़ौरन बाद दूसरा सत्र शुरु हुआ। सत्र के बीच में चाय-साय के आदी हो चुकी अपन चाय के लिये बाहर को लपके। लेकिन पता चला कि ऐसा कोई इंतजाम न था। यह भी पता चला कि किसी सेमिनार में चाय पीकर तितर-बितर कप इधर-उधर फ़ेंककर चल देने की सहज प्रवृत्ति के चलते सत्रों के बीच चायपान की व्यवस्था बंद कर दी गयी है। हमने यादों के खजाने से जु्मला निकाल उच्चारा- लमहों ने खता की है, सदिंयों ने सजा पायी है।
फ़िलहाल अभी के लिये इतना ही। आगे किस्से जारी रहेंगे….. ।
सूचना: सबसे ऊपर का चित्र सेवाग्राम आश्रम में उस समय तक मौजूद ब्लॉगरों का है।
“हर भले आदमी की एक रेल होती हैऔर अब तीन साल के अन्तराल के बाद 20-21 को जमें वर्धा में जहां कवि/कहानीकार विनोद कुमार शुक्ल जी के दर्शन हुये जिन्होंने अपने उपन्यासों के बारे में बात कहते हुये कहा- फ़ंतासी यथार्थ से मुठभेड़ की ताकत और हौसला प्रदान करती है।
जो माँ के घर की ओर जाती है
सीटी बजाती हुई
धुआँ उड़ाती हुई”
केरल एक्सप्रेस से वर्धा पहुंचे। संतोष त्रिवेदी और अविनाश वाचस्पति इटारसी में मिल गये। संतोष त्रिवेदी ने फ़ौरन कैमरा चमकाया और लिखा -इटारसी में अचानक फुरसतिया साथ हो लिए। ई-स्वामी की लिखी बात एक बार फ़िर याद आई- चीजें अपनी उपयोग करवाती हैं। संतोष जो भी देखते हैं, जिससे भी मिलते हैं उसको यथासम्भव अपने कैमरे में कैद करके सबसे तेज चैनल की तरह फ़ौरन फ़ेसबुक पर पेश करते हैं। केरल एक्सप्रेस में कार्तिकेय मिश्र और संजीव सिन्हा भी मिले सेवाग्राम स्टेशन पर।
वर्धा विश्वविद्यालय पहुंचने पर पता चला कि हम लोगों के ठहरने का इंतजाम बाबा नागर्जुन सराय में था। तीन साल पहले जब आये थे तब फ़ादर कामिल बुल्के अतिथि गृह में ठहरे थे। तब बाबा नागार्जुन सराय बनी नहीं थी। हमारे ठहरने की व्यवस्था डा. अरविन्द मिश्र के साथ थी। वे प्रात:भ्रमण के लिये निकले थे। हमने उनके कमरे के बाहर अपना सामान अड़ा दिया। संतोष त्रिवेदी और अविनाश वाचस्पति के कमरे में पहुंचकर वहां मौजूद व्यवस्था से चाय पी। अविनाश वाचस्पति कोल्ड टी पीना चाहते थे सो बर्फ़ मांगने लगे। लेकिन सुबह-सुबह मिली न!
कुछ देर में डा.अरविन्द मिश्र टहलकर वापस आये। पहले से किंचित और विस्तृत दिखे। पता चला कि उन्होंने वरिष्ठ ब्लॉगर का हवाला देते हुये हमारे लिये अलग करने का इंतजाम किया। वरिष्ठ ब्लॉगर/कनिष्ठ ब्लॉगर की बात वे इलाहाबाद में हुये सम्मेलन से (2009) करते आये हैं। अपनी बात को अमली जामा पहनाया उन्होंने चार साल बाद। वैसे तो सब ब्लॉगर बराबर होते हैं लेकिन कुछ ब्लॉगर ज्यादा बराबर होते हैं। कभी मंच पर टाट के कपड़े तक पहनकर कविता पढ़ने वाले बाबा नागार्जुन सराय में व्यवस्था दिव्यनुमा थी। कमरे में एसी, टीवी, सोफ़ा, फ़्रिज ,सिटिंग रूम सब मौजूद। लगभग वीराने में बसे इस विश्वविद्यालय में सुविधायें सब उच्चस्तर की जुटाने का प्रयास किया गया है। यह अलग बात कि बाथरूम में नहाने के बाद पानी काफ़ी देर तक जमा रहता है। यह हमारे देश के सिविल इंजीनियरों की गुणता का परिचायक है।
कमरे में सामान जमाने के बाद हाल में काठमांडू में हुये अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन की भी चर्चा हुई। सुनी-सुनाई बातों से पता चला कि वहां ठहरने की व्यवस्था इतनी दिव्य थी कि सुरक्षा व्यवस्था के लिहाज से लोगों को पानी और निपटान के लिये भी बहुत मेहनत करने पड़ी।
नाश्ते के बाद पहला सत्र हबीब तनवीर सभागार में शुरु हुआ। वही हाल जिसमें तीन साल पहले जमे थे। शुरुआत वर्धा विश्वविद्यालय के कुलगीत से हुयी जिसे आप यहां सुन सकते हैं। विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं ने गायन और अभिनय के जरिये इसे पेश किया। मंच पर मौजूद सिद्धार्थ त्रिपाठी ने विश्वविद्यालय की बात करते हुये इसे रेगिस्तान में नखलिस्तान की उपमा दी।
कार्यक्रम की शुरुआत में रवि रतलामी और युनुसखान की जुगलबंदी पेश की गयी। ब्लॉग, फ़ेसबुक और ट्विटर के बारे मेँ आडियो-विजुअल प्रस्तुति देखकर/सुनकर मजा आ गया। युनुस की आवाज फ़ंटास्टिक है। प्रस्तुतिकरण झकास।
पहले सत्र की शुरुआत में विषय प्रवर्तन किया कार्तिकेय मिश्र ” ने। लोगों को ब्लॉगिंग और सोशल मीडिया से जुड़ी जानकारी देते हुये कार्यक्रम की शुरुआत की। सधी आवाज में अपनी बात कहते हुये कार्तिकेय ने विश्वविद्यालय के तमाम लोगों के मन हिला दिये। प्रवीण पांडेय भारतीय रेल की तरह हल्का सा देर से आये। उनके लिये कुर्सी सुरक्षित रखी गयी। कार्यक्रम के बारे में अपने ब्लॉग में लिखते हुये विश्वविद्यालय की छात्रा सुनीता भाष्कर ने लिखा:
विवि के कुलगीत से आरंभ हुई संगोष्ठी की शुरूआत ब्लागिंग के दस साला वीडियोनुमा सफरनामे से हुई। विवि के कुलपति विभूति नारायण राय ने देश के विभिन्न हिस्सों से आए ब्लागरों का स्वागत करते हुए विवि दवारा सोशल मीडिया पर पूर्व में आयोजित संगोष्ठियों का हवाला दिया। साथ ही हिंदी ब्लागिंग को लेकर विवि द्वारा हुई पहलों व परियोजनाओं से सभी को अवगत कराया। जिसमें हिंदी समय डाट काम व हिंदी शब्दकोश जैसे योगदान शामिल हैं. उन्होंने कहा कि राज्य को खुद पर नियंत्रण रखने की जरूरत है बजाय इसके कि वह हर न्यूनतम अभिव्यिक्त पर अकुंश लगाने की कारर्ववाही करे।इसके अलावा कुलपति जी ने विश्वविद्यालय के द्वारा हिन्दी ब्लॉगिंग के लिये संकलक के इंतजाम का आश्वासन दिया। चिट्ठाजगत के डॉ विपुल जैन ने आवश्यक तकनीकी जानकारी विश्वविद्यालय को सौंप दिया है। अब विश्वविद्यालय को इसकी कोडिंग वगैरह करके शुरुआत करनी है। 15 अक्टूबर तक इसके शुरु हो जाने की बात कही गयी। चिट्ठाजगत और वर्धा विश्वविद्यालय की साइट हि्दीसमय को मिलाकर इसका नाम तय हुआ है -चिट्ठासमय। आशा है कि धड़ाधड़ महाराज अपने नये रूप में समय पर अवतरित हों सकेंगे।
कार्यक्रम के दौरान हर्षवर्धन त्रिपाठी ने पत्रकारों को मिलने वाली सुविधाओं की तर्ज पर ब्लॉगरों के लिये सुविधाओं और उनके पंजीकरण की भी बात कही। इस पर अपनी बात हुये मंच से बताया गया कि इसके निहित खतरे भी हैं । फ़िर सभी ब्लॉगरों को पंजीकरण कराना होगा। आदि-इत्यादि।
प्रथम सत्र के अंत से पहले आदि चिट्ठाकार आलोक कुमार को मंच पर बुलाकर सबसे रूबरू करवाया गया। यह बात जब सूझी तब तक सब गुलदस्ते खतम हो गये थे इसलिये आलोक को वैसे ही सबसे मुखातिब कराया गया जैसे कभी उन्होंने बिना किसी औपचारिकता के अपनी पहली पोस्ट लिखी होगी।
पहले सत्र की शुरुआत के फ़ौरन बाद दूसरा सत्र शुरु हुआ। सत्र के बीच में चाय-साय के आदी हो चुकी अपन चाय के लिये बाहर को लपके। लेकिन पता चला कि ऐसा कोई इंतजाम न था। यह भी पता चला कि किसी सेमिनार में चाय पीकर तितर-बितर कप इधर-उधर फ़ेंककर चल देने की सहज प्रवृत्ति के चलते सत्रों के बीच चायपान की व्यवस्था बंद कर दी गयी है। हमने यादों के खजाने से जु्मला निकाल उच्चारा- लमहों ने खता की है, सदिंयों ने सजा पायी है।
फ़िलहाल अभी के लिये इतना ही। आगे किस्से जारी रहेंगे….. ।
सूचना: सबसे ऊपर का चित्र सेवाग्राम आश्रम में उस समय तक मौजूद ब्लॉगरों का है।
मेरी पसन्द
मेरी पसन्द में वर्धा में ही तीन साल पहले सुनी आलोक धन्वा की दो कवितायें।
Posted in संस्मरण, सूचना | 37 Responses
37 responses to “वर्धा राष्ट्रीय संगोष्ठी -कुछ यादें”
-
इस पोस्ट ने सेमिनार के वातावरण का चित्र बना दिया है जो बहुत रोचक है। सेमिनार में जो चर्चा हुई उसका विवरण अगली किश्त में आना चाहिए। आपको इसे अत्यन्त सफल बनाने में दिये योगदान के लिए तहेदिल से शुक्रिया।
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..वर्धा परिसर में अद्भुत बदलाव… -
…..बहुत अच्छा अनुभव रहा !
आप लिख रहे हैं,हम फ़िलहाल बांच रहे हैं…..इससे बढ़िया क्या लिखा जायेगा ?
जल्द ही अपने अनुभव साझा करूँगा,फुरसत से ! -
इलाहाबाद में जो हुआ न भूतो न भविष्यतनुमा। पूरी तरह से सहमत। लेकिन अच्छी बात ये कि इलाहाबाद के बाद वर्धा में हुए दोनों ही चर्चा मिलन सुखद रहे। अभी-अभी प्रधानमंत्री ने एक कार्यक्रम में सोशल मीडिया की चर्चा की है जाहिर है थोड़ा पाबंदी के इरादे से। बोले सोशल मीडिया का भारत में दुरुपयोग हो रहा है- संदर्भ मुजफ्फरनगर
हर्षवर्धन की हालिया प्रविष्टी..भारतीय राजनीति को बदल रहा है सोशल मीडिया -
सजीव चित्रण. जारी रहें.
प्रणाम. -
संगोष्ठी की रपट पढ़कर अच्छा लग रहा है, स्वयं को वहीं पा रहे हैं। जारी रखिए।
ajit gupta की हालिया प्रविष्टी..कविता – बचपन के पन्ने मेरे हाथों में -
बड़े ब्लॉगर छोटे ब्लॉगर
जे बात जम गई
काजल कुमार की हालिया प्रविष्टी..कार्टून :- पहले ही कहा था ना, कि अवार्ड-सम्मेलन न कराओ -
हाँ भाई बड़े ब्लॉगर और छोटे ब्लॉगर में फर्क तो होना ही चाहिए ( ये मेरी सोच नहीं है ) वैसे हमें लगता है की बड़े को फिर से परिभाषित किया जाना चाहिए. बड़े किस तरह के बड़े ( कद काठी में , ओहदे में , या फिर लोकप्रियता में या फिर पुरस्कृत किये जाने में ) सुधी ब्लॉगर बंधू इसको परिभाषित कर ही सकते हैं क्योंकि न हम इसा श्रेणी में कहीं भी नहीं आते हैं .
आपके इस लेख से सारी जानकारियाँ मिली और आगे के लिए इन्तजार है . गए नहीं तो क्या सचित्र वर्णन काफी शामिल होने जैसी अनुभूति देने के लिए.
Rekha Srivastava की हालिया प्रविष्टी..पांच वर्ष ब्लोगिंग के ! -
ये अंत में चाय में बेईमानी करके पूरा मामला बिगाड़ दिया…
-
वर्धा विश्वविद्यालय – १ पर केन्द्रित ‘एक्टिव इंडिया चैनल’ के ये दो वीडियो संभवतः अधिकांश मित्रों ने न देखे हों -
1- http://activeindiatv.com/videos/viewvideo/26/news-a-politics/exclusive-interview-with-international-blogger-kavita-vachaknavee
2- http://activeindiatv.com/videos/viewvideo/25/news-a-politics/seminar
Dr. Kavita Vachaknavee की हालिया प्रविष्टी..ब्रिटेन में आय / कमाई के औसत आंकड़े -
Vivran ati uttam hai guruji. Civil engineeron par bhi aapki kripa ho hi gai aakhir aapne apni sahyogi biradri ko bhi chhoda. Bahut achha. Badhai.
-
आप पहले पहुँच गये जबलपुर, पहली एफआईआर आपकी ही मानी जायेगी। ५० के ऊपर तो वैसे भी वानप्रस्थी गौरव के उजले पक्ष हैं आप। सुन्दर रपट।
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..साइकिल, टेण्ट और सूखे मेवे -
पहले आपकी सभी कड़ियाँ बाँच लें.. अगर कुछ बच जाता है (जिसकी संभावना कम ही है) तो हम लिख मारेंगे..
-
लाख सामान अडाईए टिकायिये -अपुन के कमरे में इंट्री नई रे बाबा!
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..ब्लॉगर सम्मेलनों की बहार में वर्धा ब्लॉगर सम्मेलन की रिमझिम! -
“या…..” हम न हुए
शुरुआत तो आपने निखालिस अपने इश्टाइल में की है। आगे का इंतजार है अब।
वाकई इस बार न पहुंच पाने का अफसोस रहेगा। -
[...] « Previous फुरसतिया हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै? [...]
-
आप और मिशिर जी में कौनो समझौता हुआ का? बड़ी आसानी से निबट लिए …….का ख़ाक सफल माने ई संगोष्ठी को ……जब एक्को विवाद ना हुए ?
हा हा …….आगे की बातों का इन्तजार रहेगा
प्राइमरी का मास्टर की हालिया प्रविष्टी..अपने सीने में ‘शिक्षक होने का तमगा’ लिए घुमते हैं?-
sanjay @ mo sam kaun की हालिया प्रविष्टी..कभी सोचता हूँ…
-
-
आयोजकों, विश्वविद्यालय और पढ़ने वालों के पास सनद हो गई कि ब्लॉगर मूलतः कितने बचकाने जीव होते हैं, जैसे जीवन में कभी सिंगल एसी रूम न देखा हो, ऐसी हड़प और चातुरी में जुटे रहे। फिर उस चातुरी पर लेखमाला भी लिखी जा रही हैं…. जिसे पढ़कर मुझे कई बारातों के उन बच्चों की याद आई जो घोड़ी या विदाई की कार पर से वार कर फेंके जाते पैसों के लिए परस्पर हाथापाई करते हैं। उन बच्चों को याद कर उनके जीवन के अभावों पर दया भी आई । पर वह काम कोई अपने को सभ्य कहने वाला पढ़ा लिखा इंसान करे तो दया नहीं आती। ऊपर से इसे अपनी निपुणता भी समझे कि वाह मैंने तो झपट्टा मार कर हथिया ली अमुक वस्तु।
भले दिखाने वाला इसे अपनी निपुणता समझ कर दिखा रहा हो परंतु पढ़ने वाले के सामने अपनी तुच्छता दिखाने जैसा है।
Dr. Kavita Vachaknavee की हालिया प्रविष्टी..ब्रिटेन में आय / कमाई के औसत आंकड़े -
आपकी प्रस्तुति पढते हुए ऐसा लग रहा है जैसे हम अभी ” नागार्जुन सराय ” में ही हैं और हिन्दी विश्वविद्यालय-परिसर में चहल-क़दमी कर रहे हैं । सुन्दर ,सुरुचि-पूर्ण, सम्यक संरचना ।
-
कविता वाचकनवी जी ने उसी पश्चिमी मानसिकता का परिचय दिया है जिसमें एक अंग्रेजी लेखक हिन्दी लेखक को देखता है।आखिर चिरकुटिया लेखन और चिरकुट और दलिद्दर लेखक हिन्दी में ही होते हैं।दुर्भाग्य से हिन्दी ब्लागर तो और दयनीय होता है।
लेखिका स्वयं हिन्दी की लेखिका हैं और वे अपने लिखे का मानदेय भी नहीं लेती होंगी,हम ऐसा मान लेते हैं।
यही एक आम ब्लागर सहज रूप से अपनी बात कहता है,आतिथ्य को सम्मान देता है,जैसा हिन्दी सम्मेलनों में विदेश के अलावा यहाँ नहीं होता तो इस पर उन्हें ब्लागर निपट दरिद्र और भूखा लगता है।
कविता जी,आपको हिन्दी ब्लागिंग की रत्ती भर समझ नहीं है।आप इस बहाने पता नहीं किससे बदला लेना चाहती हैं? -
“कविता जी,आपको हिन्दी ब्लागिंग की रत्ती भर समझ नहीं है।”
श्री श्री संतोष त्रिवेदी, आपकी इन बातों पर ब्लोगिंग के प्रारम्भ से जुड़ा कोई भी सीनियर ब्लॉगर हँसेगा ही। इतना आकाश में उड़ना बहुधा अपनी ही भद्द करवा देता है, यह तो जानते ही होंगे। मुझे भले ही आपकी दृष्टि में समझ नहीं है पर निस्संदेह आपको आपकी समझ मुबारक। इतना मत छ्लकें कि लोगों को कहावतें याद आने लगें।
Dr. Kavita Vachaknavee की हालिया प्रविष्टी..ब्रिटेन में आय / कमाई के औसत आंकड़े -
संतोष जी ,
भारी भरकम बौद्धिक और झूठें अभिजात्य – आग्रहों से मुक्त हो लोग जीवन के कुछ जीवंत पलों को साझा कर लें तो बार बार के अवसाद ग्रस्त होनें से बच सकते हैं !
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..वर्धा ब्लॉगर सम्मलेन -जो किसी ने नहीं लिखा! -
सजीव चित्रण
बी एस पाबला की हालिया प्रविष्टी..काठमांडू की ओर दही की तलाश में तीन तिलंगे -
बढ़िया है ब्लॉगर मीट हो गई , कभी यहाँ दिल्ली में खूब होती थी, अब तो खैर ज़माना हो गया
amit की हालिया प्रविष्टी..मकई पालक सैण्डविच….. -
आपने तो उनके कमरे के बाहर अपना सामान अड़ा ही दिया था, ये तो अरविन्द जी अपने सिद्धांत पर अड़े रहे और एक जंगल में एक ही शेर रहा, हमें तो यूँ लग रहा है कि कयामत की रात बस आते-आते रह गई
sanjay @ mo sam kaun की हालिया प्रविष्टी..कभी सोचता हूँ… -
Do you have a spam issue on this blog; I also am a blogger, and I was curious about your situation; we have developed some nice methods and we are looking to trade solutions with other folks, why not shoot me an email if interested.|
-
I had heard about blog pages and method of be aware of what they happen to be. My question for you is what do you craft within a blogging site, like products that is in your thoughts or possibly no matter what? And what websites can i logon to to start web blogs? .
-
I’m searching to discover the maximum amount of around the on the web browsing network when i can. Can just about anyone recommend highly their favorite blogging, bebo manages, or sites for you to pick most comprehensive? The ones that are most sought-after? Thanks! .
-
Do you know the recommended software systems to make weblogs and internet websites?
-
[…] वर्धा राष्ट्रीय संगोष्ठी -कुछ यादें […]
Subscribe to:
Posts (Atom)
इस जीवन में दिख जाता है,
कुछ कुछ अपने जीवन जैसा।
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..अभिव्यक्ति का आकार – ब्लॉग, फेसबुक व ट्विटर
कुछ उजले कलकल सोते देखे।
मन के वीराने वन प्रान्तर में,
खिलते कुछ हरियल पौधे देखे।
वाह ! उजले स्रोत स्मृति में ऐसे ही झलकते रहें और आपकी दृष्टि में हरियाली ऐसे ही बसी रहे .अच्छा गीत !
प्रियंकर की हालिया प्रविष्टी..बड़की भौजी / कैलाश गौतम
बधाई !
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..कुछ खस्ता सेर हमारे भी – सतीश सक्सेना
Dr. Monica Sharrma की हालिया प्रविष्टी..आज के अभिभावकों की दुविधा
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..मोहिं वर्धा बिसरत नाहीं!
बहुत अच्छे.
Avinash Vachaspati की हालिया प्रविष्टी..काठमांडू में भारतीय ब्लॉगरों का सम्मान : डेली न्यूज़ ऐक्टिविस्ट दिनांक 26 सितम्बर 2013 में प्रकाशित
पंछी की हालिया प्रविष्टी..Dharma Shastra, Hindu Jain Granth, Religion, Hypocrisy in Hindi
हमने कुछ अच्छे काम कर डाले
बहुत अच्छा किया
यह काम करते रहे
और लोग को भी प्रेरित करते rahe
वरना हम भी मन के कोने में घुमने निकले थे
फुर्सत का रोना छोड़ अच्छा कम किया
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..ट्युज॒डेज विध मोरी : ए बुक टू चेरिश !!!
Abhishek की हालिया प्रविष्टी..संयोग
इसे जारी रखा जाए..
सतीश चन्द्र सत्यार्थी की हालिया प्रविष्टी..फेसबुक पर इंटेलेक्चुअल कैसे दिखें
सतीश चन्द्र सत्यार्थी की हालिया प्रविष्टी..फेसबुक पर इंटेलेक्चुअल कैसे दिखें