http://web.archive.org/web/20140419155656/http://hindini.com/fursatiya/archives/4106
लेबल
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(75)
अम्मा
(11)
आलोक पुराणिक
(13)
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(2)
कट्टा कानपुरी
(119)
कविता
(65)
कश्मीर
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कानपुर
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(44)
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(141)
श्रीलाल शुक्ल
(3)
संस्मरण
(48)
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(167)
हास्य/व्यंग्य
(399)
Tuesday, March 12, 2013
Sunday, March 10, 2013
मोहब्बत सोहब्बत न की हमने
मोहब्बत सोहब्बत न की हमने,
हमने तो सिर्फ़ लफ़्फ़ाजी की है।
जब भी खाना खराब मिला हमको,
तुमको याद करके हवाबाजी की है।
हमने तो सिर्फ़ लफ़्फ़ाजी की है।
जब भी खाना खराब मिला हमको,
तुमको याद करके हवाबाजी की है।
जब भी कभी पैसे कटे हैं खाते से,
तुमको यादों में मॉल में खड़े देखा है।
हमने अपनी आराम का ख्याल किया,
ये मोहब्बत कहां ये तो निरा धोखा है।
-कट्टा कानपुरी
तुमको यादों में मॉल में खड़े देखा है।
हमने अपनी आराम का ख्याल किया,
ये मोहब्बत कहां ये तो निरा धोखा है।
-कट्टा कानपुरी
Saturday, March 09, 2013
बस स्टैंड पर महिला
http://web.archive.org/web/20140420082505/http://hindini.com/fursatiya/archives/4096
कल महिला दिवस था। फ़ेसबुक और ब्लॉगजगत में कई पोस्टें इस बारे में पढीं। कुछ महिलाओं की बहादुरी के किस्से टेलिविजन पर देखे।
इस मौके पर मुझे कुछ महीने पहले कानपुर के झकरकटी बस अड्डे पर मिली एक महिला की याद आई। हम अपने रिश्तेदार को बस पर बैठाने गये थे। देखा कि एक महिला वहां बैठी थी। साथ में दो झोलों में कुछ सामान। वह कुछ-कुछ बोलती जा रही थी- आत्मालाप जैसा। वहां पान-मसाले की दुकान पर खड़े कुछ लड़के उनसे चुहलबाजी कर रहे थे!
हम लोगों को उन लोगों का उस महिला से चुहलबाजी करना पसंद नहीं आया। हम लोगों ने उनको टोंका तो चुप हो गये। हमारी श्रीमतीजी ने पास की दुकान से खाने का सामान लेकर उस महिला को दिया। वो चुपचाप खाने लगी। वह कुछ बोलचाल नहीं रही थी। आत्मालाप में व्यस्त। कुछ गाते हुये अपने से बातें कर रही थी।
कुछ देर में उन लोगों से ही हमने उस महिला के बारे में पूछा जो महिला से चुहलबाजी कर रहे थे। उन लोगों ने बताया कि महीनों पहले से वह महिला बस स्टैंड पर रहती है। बिहार की किसी जगह की रहनी वाली है शायद। कहां से आयी पूछने पर कुछ बताती नहीं। कहती है अब तो यही घर है। जहां खाने को मिले वही घर।
लोगों ने यह भी बताया कि बस स्टैंड की दुकान और आसपास के लोग उसके खाने का इंतजाम करते हैं। और किसी से वह कुछ लेती नहीं। चाहे भूखी रह जाये। हम लोगों से खाने का सामान कैसे ले लिया इस पर उनको किंचित आश्चर्य था।
इतनी
बातचीत के दौरान वे यह बताने नहीं चूके कि हमने उनको उस महिला से चुहलबाजी
करने से टोका तो उन्होंने जबाब नहीं दिया लेकिन वे उससे ऐसे ही बतियाते
हैं। वह भी ऐसे ही उनसे संवाद करती है। उनके उससे संवाद के ऐसे ही संबंध
हैं।
बहुत दिन हो गये सो अब महिला के बारे में और तमाम बातें भूल गयीं जो उन लोगों ने बताई थीं। यह याद आ रहा है कि उसको उसके घर से बहला-फ़ुसलाकर कोई लाया था। फ़िर यहां छोड़ गया।अब वह वापस घर जाना नहीं चाहती। शायद उसके घर की परिस्थितियां ऐसी हों। उसकी मानसिक स्थिति ऐसी थी कि वह कुछ ठीक से बता भी नहीं पा रही थी। या बताना नहीं चाहती होगी।
घर से बाहर तमाम लोग जाते हैं। स्त्री,पुरुष और बच्चे। कोई अपनी मर्जी से कोई परिस्थितिवश। यह महिला मजबूरी में ही घर से बाहर आई होगी।
इस बार बजट में किसी निर्भया फ़ंड का प्राविधान किया गया है। क्या वह इस महिला के लिये भी होगा?
उस महिला की फ़ोटो और वीडियो यहां लगा रहा हूं यह सोचते हुये कि शायद उससे जुड़ा कोई उसको पहचान सके और वापस घर ले जा सके। उसका इलाज कराकर सामान्य जीवन जीने लायक बना सके।
तो यह हमेशा जरूरी नहीं है
कि कोई लड़का भी भागा होगा
कई दूसरे जीवन प्रसंग हैं
जिनके साथ वह जा सकती है
कुछ भी कर सकती है
महज जन्म देना ही स्त्री होना नहीं है
तुम्हारे उस टैंक जैसे बंद और मजबूत
घर से बाहर
लड़कियां काफी बदल चुकी हैं
मैं तुम्हें यह इजाजत नहीं दूंगा
कि तुम उसकी सम्भावना की भी तस्करी करो
वह कहीं भी हो सकती है
गिर सकती है
बिखर सकती है
लेकिन वह खुद शामिल होगी सब में
गलतियां भी खुद ही करेगी
सब कुछ देखेगी शुरू से अंत तक
अपना अंत भी देखती हुई जाएगी
किसी दूसरे की मृत्यु नहीं मरेगी
आलोक धन्वा
बस स्टैंड पर महिला
By फ़ुरसतिया on March 9, 2013
इस मौके पर मुझे कुछ महीने पहले कानपुर के झकरकटी बस अड्डे पर मिली एक महिला की याद आई। हम अपने रिश्तेदार को बस पर बैठाने गये थे। देखा कि एक महिला वहां बैठी थी। साथ में दो झोलों में कुछ सामान। वह कुछ-कुछ बोलती जा रही थी- आत्मालाप जैसा। वहां पान-मसाले की दुकान पर खड़े कुछ लड़के उनसे चुहलबाजी कर रहे थे!
हम लोगों को उन लोगों का उस महिला से चुहलबाजी करना पसंद नहीं आया। हम लोगों ने उनको टोंका तो चुप हो गये। हमारी श्रीमतीजी ने पास की दुकान से खाने का सामान लेकर उस महिला को दिया। वो चुपचाप खाने लगी। वह कुछ बोलचाल नहीं रही थी। आत्मालाप में व्यस्त। कुछ गाते हुये अपने से बातें कर रही थी।
कुछ देर में उन लोगों से ही हमने उस महिला के बारे में पूछा जो महिला से चुहलबाजी कर रहे थे। उन लोगों ने बताया कि महीनों पहले से वह महिला बस स्टैंड पर रहती है। बिहार की किसी जगह की रहनी वाली है शायद। कहां से आयी पूछने पर कुछ बताती नहीं। कहती है अब तो यही घर है। जहां खाने को मिले वही घर।
लोगों ने यह भी बताया कि बस स्टैंड की दुकान और आसपास के लोग उसके खाने का इंतजाम करते हैं। और किसी से वह कुछ लेती नहीं। चाहे भूखी रह जाये। हम लोगों से खाने का सामान कैसे ले लिया इस पर उनको किंचित आश्चर्य था।
बहुत दिन हो गये सो अब महिला के बारे में और तमाम बातें भूल गयीं जो उन लोगों ने बताई थीं। यह याद आ रहा है कि उसको उसके घर से बहला-फ़ुसलाकर कोई लाया था। फ़िर यहां छोड़ गया।अब वह वापस घर जाना नहीं चाहती। शायद उसके घर की परिस्थितियां ऐसी हों। उसकी मानसिक स्थिति ऐसी थी कि वह कुछ ठीक से बता भी नहीं पा रही थी। या बताना नहीं चाहती होगी।
घर से बाहर तमाम लोग जाते हैं। स्त्री,पुरुष और बच्चे। कोई अपनी मर्जी से कोई परिस्थितिवश। यह महिला मजबूरी में ही घर से बाहर आई होगी।
इस बार बजट में किसी निर्भया फ़ंड का प्राविधान किया गया है। क्या वह इस महिला के लिये भी होगा?
उस महिला की फ़ोटो और वीडियो यहां लगा रहा हूं यह सोचते हुये कि शायद उससे जुड़ा कोई उसको पहचान सके और वापस घर ले जा सके। उसका इलाज कराकर सामान्य जीवन जीने लायक बना सके।
मेरी पसन्द
अगर एक लड़की भागती हैतो यह हमेशा जरूरी नहीं है
कि कोई लड़का भी भागा होगा
कई दूसरे जीवन प्रसंग हैं
जिनके साथ वह जा सकती है
कुछ भी कर सकती है
महज जन्म देना ही स्त्री होना नहीं है
तुम्हारे उस टैंक जैसे बंद और मजबूत
घर से बाहर
लड़कियां काफी बदल चुकी हैं
मैं तुम्हें यह इजाजत नहीं दूंगा
कि तुम उसकी सम्भावना की भी तस्करी करो
वह कहीं भी हो सकती है
गिर सकती है
बिखर सकती है
लेकिन वह खुद शामिल होगी सब में
गलतियां भी खुद ही करेगी
सब कुछ देखेगी शुरू से अंत तक
अपना अंत भी देखती हुई जाएगी
किसी दूसरे की मृत्यु नहीं मरेगी
आलोक धन्वा
Posted in बस यूं ही, सूचना | 13 Responses
13 responses to “बस स्टैंड पर महिला”
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प्रणाम. -
देश की बहुत ही दुखद स्थिति है। ये सारे फण्ड तो डकारने के लिए बनते हैं।
ajit gupta की हालिया प्रविष्टी..हम चिड़ियाघर की तरह अपने-अपने कक्ष में बैठे हैं -
@किसी निर्भया फ़ंड का प्राविधान
ज्यादा मुग्लाते में मत रहिये. सरकारी प्राविधान सिर्फ सरकारी लोगों के लिए होता है;)
दीपक बाबा की हालिया प्रविष्टी..प्रणाम -
महिला की फोटो और विडिओ लगाकर बड़े सबाब का काम किया आपने .काश दूसरे भी ऐसा सोचते
-
भारतीय संविधान में दी गयी प्रस्तावना का अब नेताओं की निगाह में कोई महत्व नहीं. अन्यथा कोई भी नागरिक इस दशा को प्राप्त न होता.
दयानिधि की हालिया प्रविष्टी..जूता चल गया -
“घर से बाहर तमाम लोग जाते हैं। स्त्री,पुरुष और बच्चे। कोई अपनी मर्जी से कोई परिस्थितिवश। यह महिला मजबूरी में ही घर से बाहर आई होगी। ”
यह महिला घर से बाहर आई नहीं, कर दी गयी शुक्ला जी.
पता नहीं कितने विक्षिप्त/अर्धविक्षिप्त स्त्री-पुरुष ऐसी निर्वासित ज़िंदगी जी रहे हैं. स्टेशन या बस स्टैंड ही उनका बसेरा होता है अक्सर, यानी जहाँ परिजन छोड़ गए, उससे आगे की सीमा वे जानते ही नहीं. -
काश कोई पहचान ले और उसे घर मिले..
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..हम जिये है पूर्ण, छवि व्यापी रहे -
आपने तो आज भावुक कर दिया. मेरी एक रिश्ते की बहन भी घर से भागना चाहती है. इसलिए नहीं कि उसे किसी लड़के से प्रेम हो गया है, बल्कि इसलिए कि घर में उसको बँधुआ मजदूर बनाकर रख दिया गया है. लेकिन हम कम से कम उसका ऐसा हाल कभी नहीं होने देंगे.
aradhana की हालिया प्रविष्टी..Freshly Pressed: Friday Faves -
इसी तरह की एक औरत हमारे मोहल्ले में भी घूमती रहती थी , बाद में पता चला दिमागी संतुलन खो बैठी तो घर वालों ने घर से निकाल दिया था | पता नहीं क्या हुआ होगा उसका |
एक और लड़का घूमा करता है | जितना पता चला है उस हिसाब से उसके बड़े भाई ने घर से निकाल दिया है और इलाज भी नहीं करवाया वरना जायदाद का लफड़ा हो जाता |
आपने ये अच्छा किया की फोटो और विडियो डाल दिए , शायद कुछ भला हो जाए इस महिला का | मेरे हिसाब से महिला दिवस पर इससे अच्छी पोस्ट नहीं हो सकती है !!!!
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..वो दिन कैसा होगा !!!! -
घरवाले उसे पहचान कर ले जायेंगे , मुझे संदेह है| लेकिन फिर भी, काश ऐसा हो जाए|
-
इस स्पीड से समाज जागृत हुआ तो कभी नही होगा । इसलिये बहुत तेजी से कुछ होना चाहिये
-
ऐसी स्त्री उपस्थितियाँ अक्सर हमारे बेहद आस-पास अपने नामौजूद स्वरुप में मौजूद रहती है … मुझे ऐसी स्त्रियों को देखना और उनके साथ किया जाने वाला व्यवहार बहुत बेचैन करता है … इन कुछ ना कह सकने वाली स्त्रियों की जिम्मेदारी कोई भी नहीं उठाना चाहता है … समाज के सार्वजनिक पटल पर मौजूद सार्वजनिक तौर पर खायी-पी जाने वाली स्त्रियाँ है यह … कुछ समय पूर्व किसी अत्यंत व्यग्र क्षण में इन पर कुछ लिखा भी था …http://www.hemadixit.blogspot.in/2011/10/blog-post.html
-
[...] बस स्टैंड पर महिला [...]
Wednesday, March 06, 2013
किसी और पोस्ट को लाइकियाओगी तो मुश्किल होगी
तुम मेरी बात पर ताली न बजाओ तो कोई बात नहीं,
किसी और की बात पर बजाओगी तो मुश्किल होगी।
तुम मेरे सड़े चुटकुले पर न खिलखिलाओ तो को बात नहीं,
किसी और के जोक पर मुस्काओगी तो मुश्किल होगी।
किसी और की बात पर बजाओगी तो मुश्किल होगी।
तुम मेरे सड़े चुटकुले पर न खिलखिलाओ तो को बात नहीं,
किसी और के जोक पर मुस्काओगी तो मुश्किल होगी।
तुम मेरी पोस्ट पर न टिपियाओ तो कोई बात नहीं,
किसी और पोस्ट को लाइकियाओगी तो मुश्किल होगी।
-कट्टा कानपुरी
किसी और पोस्ट को लाइकियाओगी तो मुश्किल होगी।
-कट्टा कानपुरी
Sunday, March 03, 2013
कुत्तों का मेला, सौंदर्य और प्रदर्शनी
http://web.archive.org/web/20140420082107/http://hindini.com/fursatiya/archives/4068
आज सुबह कुत्तों का मेला देखने गये। 
कल रात ही हमारे साथी बनर्जी जी ने अल्टीमेटम दे दिया था -सुबह चलना है। सुबह हुई नहीं कि उठो चलो का हांका होना शुरु हो गया। हम तो फ़िर भी उठ जाते हैं। हमारे साथ के देवांजंन की गुडमार्निंग इतवार को बारह बजे होती है। साढ़े नौ बजे निकले सिटी स्पोर्ट्स क्लब जबलपुर के लिये जहां मेला लगा था कुत्तों का।
मेले में देखा तरह-तरह के कुत्ते प्रदर्शनी में आये थे। सात ग्रुप की तीस वैराइटी के कुत्ते। पूरे मैदान में कुत्ते अपने मालिक/मालकिनों को अपने पीछे दौड़ा रहे थे। ढाई साल का चुहिया बिरादरी का कुत्ता इत्ता छोटा दिखा कि उसको अपने कोट की जेब में डाल के चल दे कोई। एक चुहिया बिरादरी वाले कुत्ते को बेस्ट ऑफ़ ब्रीड का इनाम का मिला तो उस पर कनपुरिया मित्र की प्रतिक्रिया आई- महँगाई का असर कुत्तों पर भी दिख रहा है इसकी खुराक कम कर दी गयी है पोषण नही मिला तो ये हाल हो गया है साल भर रुक जाता तो चूहा केटेगिरी में भी फर्स्ट आ जाता दो साल बाद अमीबा।
कुछ कुत्ते इत्ते तगड़े दिखे जैसे कोई मल्टीनेशनल कंपनी। किसी को भी ’टेकओवर’ करने के लिये जीभ लपलपाते हुये से। खड़े हो गये तो लगे कि अपन से ऊंचे हैं। एक कुत्ता इत्ता स्लिम, ट्रिम, हैंडसम टाइप दिखा कि अगर कुत्तों के मैट्रीमोनियल छपते होंगे तो उसके बारे में लिखा जाता- छरहरा, स्मार्ट, भोजन का खर्च चार अंकों में। इच्छुक लोग संपर्क करें।
कुत्ते को लोग खूबसूरत पिंजड़ों में लाये थे। जैसे डोली में बैठाकर सवारियां लाई जाती हैं। शो शुरु होने के पहले उनका मेकअप कर रहे थे लोग। बाल संवार रहे थे, कंघी करना, डियो से नहलाना, मुंह में पानी की पिचकारी से पानी पिलाना। कुत्ते और तमाम कुत्तों को देखकर भौंक रहे थे। शायद हेल्लो, हाऊ डू यू डू , व्हाट्स अप कह रहे हों।
माइक
पर कुत्ता समारोह का संचालन शुद्ध हिन्दी में अपने राजेश जी कर रहे हैं।
उतनी ही प्रांजल भाषा में जितनी में वे साहित्यिक समारोहों का संचालन करते
हैं। कोई समारोह उन पर भाषा के भेदभाव का आरोप नहीं लगा सकता। लेकिन शो
शुरु होते ही भाषा फ़िर वही अंग्रेजी हो गयी- लास्ट काल फ़ार टोकेन नंबर
फ़िफ़्टी नाइन! 
एक बच्ची जिसका नाम तान्या था अपनी मम्मी के साथ अपने पामेरियन कुत्ते को लेकर आई थी। आठ महीने का कुत्ता जिसका नाम शैडो था अपने आंखों में बाल लटकाये इधर-उधर टहल रहा था। पता चला कि उसका रजिस्ट्रेशन न होने के कारण उसको एडमिट कार्ड नहीं मिल सका। वह परीक्षा से वंचित हो गया। यह भी कि शैडो को तान्या की जिद पर उसके पापा ने बर्डडे गिफ़्ट किया था-कोलकत्ता से मंगाकर।
प्रतियोगिता से पहले कुत्तों की जांच होती दिखी। उसका ब्लडप्रेशर टाइप नापा गया, हार्टबीट भी। शायद यह भी देखा जाता हो कि कहीं कुत्ते ने कोई शक्तिवर्धक दवा तो नहीं ले रखी है। मेटलिक सेंसर से कुत्ते की वैसे ही जांच हो रही थी जैसे एयरपोर्ट पर यात्रियों की चेकइन करते समय होती है।
कुत्तों को माइक की आवाज से डिस्टर्बेंन्स हो रहा था सो साउंड बाक्स की दिशा बदली गयी। वैसे ही जैसे क्रिकेट खिलाड़ी की मांग पर स्टेडियम की साइड स्कीन इधर-उधर की जाती है।
निर्णायकों में एक महिला निर्णायक भी थीं। चुस्त-दुरुस्त। एक बार फ़िर लगा कि महिलायें हर उस क्षेत्र में बराबरी से दखल दे रही हैं जो कभी सिर्फ़ पुरुषों के लिये आरक्षित माने जाते थे।
कुत्तों की अलग-अलग तरह से नंबरिंग हो रही थी। दौड़ा के, चला के, स्ट्रेच करके। एक एक्शन में देखा कि कुत्ते अपनी टांगे फ़ैलाकर पूंछ को एंटिना की तरह ऊंची करके पोज दे रहे थे।
कुत्तों के मालिक/मालकिन अपने कुत्तों के सौंन्दर्य एवं कला प्रदर्शन में लगे थे। कभी-कभी कोई कुत्ता उनके निर्देशों का पालन न करता तो वे उदास हो जाते।
कुछ बड़े कुत्ते तो एकदम घोड़े जैसी दुलकी चाल से चलते दिखे। उनकी चाल में किसी विकसित राज्य के मुखिया सा आत्मविश्वास दिखा। उनके मालिक उनके इशारे पर उनको चला रहे थे।
एक
पामेरियनपामरेनियन कुत्ते की फोटो देखकर हमारे धीरेंद्र पांडेय बोले-इसको डंडे में बाँध कर जाला भी साफ़ किया जा सकता है!
वो तो भला हो कि किसी पशुप्रेमी ने उनकी बात नहीं सुनी वर्ना आज इत्तवारै
के दिन उनपर ठुक जाता मुकदमा पशुओं की बेइज्जती खराब करने का।
वहीं पर बड़ी मूंछों वाले एस.पी.पाण्डेयजी मिले। एस.पी. बोले तो सत्यप्रकाश पाण्डेय इलाहाबाद के पास सिराथू के रहने वाले हैं। फ़ौज की नौकरी से नायक के पद से रिटायर होने वाले पाण्डेयजी बैंकों की सुरक्षा का काम देखते हैं। उनकी मूंछें देखकर लगा कि मंछे हों तो पाण्डेयजी जैसी।
कुत्ता बड़ा स्वामिभक्त जानवर होता है। शो में देखा कि कुत्तों की देखभाल के लिये नौकर लगे थे। हमारी मेस में दो कुत्ते बाघा और लाली रहते हैं। सोचा उनको भी ले जाते। लेकिन उनको कैसे ले जाते। उनका वहां रजिस्ट्रेशन नहीं होता। वे आवारा कुत्ते हैं। लेकिन कोई भी आवाज होने पर मेस पूरी मेस को अपनी आवाज पर उठा लेते हैं। बीच में एक बार कांजी हाउस वाले पकड़कर ले गये थे बाघा को तो उसको बनर्जी जी ने छुड़वाया। एक बार जीप के नीचे लुढ़कनी खाने से बाघा का आत्मविश्वास उससे रूठा हुआ है जैसे सहवाग से उनका बल्ला। वह सहम-सहमा दीखता है जैसे अपने बॉस के सामने कोई कामचोर अधिकारी।
नीचे कुत्तों के मेले से कुछ और फोटो :
कुत्तों की जांच मेज। 
इसको देख के लगा कि ये कुत्ता है ऊंट का बच्चा! वजन साठ किलो के करीब

क्या इस्टाइल है

धूप का चश्मा लगाये हीरो कुत्ता

अपनी बारी के इंतजार में एक डम्पलाट कुत्ता

अपनी बिरादरी चुहिया बिरादरी में सबसे अच्छा कुत्ता उमर दो साल

पामरेनियन कुत्ता

महिला निर्णायक

कुत्तों के मेले का नजारा

कुत्तों की इतनी प्रजाति थी मेले में
कुत्तों का मेला, सौंदर्य और प्रदर्शनी
By फ़ुरसतिया on March 3, 2013
कल रात ही हमारे साथी बनर्जी जी ने अल्टीमेटम दे दिया था -सुबह चलना है। सुबह हुई नहीं कि उठो चलो का हांका होना शुरु हो गया। हम तो फ़िर भी उठ जाते हैं। हमारे साथ के देवांजंन की गुडमार्निंग इतवार को बारह बजे होती है। साढ़े नौ बजे निकले सिटी स्पोर्ट्स क्लब जबलपुर के लिये जहां मेला लगा था कुत्तों का।
मेले में देखा तरह-तरह के कुत्ते प्रदर्शनी में आये थे। सात ग्रुप की तीस वैराइटी के कुत्ते। पूरे मैदान में कुत्ते अपने मालिक/मालकिनों को अपने पीछे दौड़ा रहे थे। ढाई साल का चुहिया बिरादरी का कुत्ता इत्ता छोटा दिखा कि उसको अपने कोट की जेब में डाल के चल दे कोई। एक चुहिया बिरादरी वाले कुत्ते को बेस्ट ऑफ़ ब्रीड का इनाम का मिला तो उस पर कनपुरिया मित्र की प्रतिक्रिया आई- महँगाई का असर कुत्तों पर भी दिख रहा है इसकी खुराक कम कर दी गयी है पोषण नही मिला तो ये हाल हो गया है साल भर रुक जाता तो चूहा केटेगिरी में भी फर्स्ट आ जाता दो साल बाद अमीबा।
कुछ कुत्ते इत्ते तगड़े दिखे जैसे कोई मल्टीनेशनल कंपनी। किसी को भी ’टेकओवर’ करने के लिये जीभ लपलपाते हुये से। खड़े हो गये तो लगे कि अपन से ऊंचे हैं। एक कुत्ता इत्ता स्लिम, ट्रिम, हैंडसम टाइप दिखा कि अगर कुत्तों के मैट्रीमोनियल छपते होंगे तो उसके बारे में लिखा जाता- छरहरा, स्मार्ट, भोजन का खर्च चार अंकों में। इच्छुक लोग संपर्क करें।
कुत्ते को लोग खूबसूरत पिंजड़ों में लाये थे। जैसे डोली में बैठाकर सवारियां लाई जाती हैं। शो शुरु होने के पहले उनका मेकअप कर रहे थे लोग। बाल संवार रहे थे, कंघी करना, डियो से नहलाना, मुंह में पानी की पिचकारी से पानी पिलाना। कुत्ते और तमाम कुत्तों को देखकर भौंक रहे थे। शायद हेल्लो, हाऊ डू यू डू , व्हाट्स अप कह रहे हों।
एक बच्ची जिसका नाम तान्या था अपनी मम्मी के साथ अपने पामेरियन कुत्ते को लेकर आई थी। आठ महीने का कुत्ता जिसका नाम शैडो था अपने आंखों में बाल लटकाये इधर-उधर टहल रहा था। पता चला कि उसका रजिस्ट्रेशन न होने के कारण उसको एडमिट कार्ड नहीं मिल सका। वह परीक्षा से वंचित हो गया। यह भी कि शैडो को तान्या की जिद पर उसके पापा ने बर्डडे गिफ़्ट किया था-कोलकत्ता से मंगाकर।
प्रतियोगिता से पहले कुत्तों की जांच होती दिखी। उसका ब्लडप्रेशर टाइप नापा गया, हार्टबीट भी। शायद यह भी देखा जाता हो कि कहीं कुत्ते ने कोई शक्तिवर्धक दवा तो नहीं ले रखी है। मेटलिक सेंसर से कुत्ते की वैसे ही जांच हो रही थी जैसे एयरपोर्ट पर यात्रियों की चेकइन करते समय होती है।
कुत्तों को माइक की आवाज से डिस्टर्बेंन्स हो रहा था सो साउंड बाक्स की दिशा बदली गयी। वैसे ही जैसे क्रिकेट खिलाड़ी की मांग पर स्टेडियम की साइड स्कीन इधर-उधर की जाती है।
निर्णायकों में एक महिला निर्णायक भी थीं। चुस्त-दुरुस्त। एक बार फ़िर लगा कि महिलायें हर उस क्षेत्र में बराबरी से दखल दे रही हैं जो कभी सिर्फ़ पुरुषों के लिये आरक्षित माने जाते थे।
कुत्तों की अलग-अलग तरह से नंबरिंग हो रही थी। दौड़ा के, चला के, स्ट्रेच करके। एक एक्शन में देखा कि कुत्ते अपनी टांगे फ़ैलाकर पूंछ को एंटिना की तरह ऊंची करके पोज दे रहे थे।
कुत्तों के मालिक/मालकिन अपने कुत्तों के सौंन्दर्य एवं कला प्रदर्शन में लगे थे। कभी-कभी कोई कुत्ता उनके निर्देशों का पालन न करता तो वे उदास हो जाते।
कुछ बड़े कुत्ते तो एकदम घोड़े जैसी दुलकी चाल से चलते दिखे। उनकी चाल में किसी विकसित राज्य के मुखिया सा आत्मविश्वास दिखा। उनके मालिक उनके इशारे पर उनको चला रहे थे।
वहीं पर बड़ी मूंछों वाले एस.पी.पाण्डेयजी मिले। एस.पी. बोले तो सत्यप्रकाश पाण्डेय इलाहाबाद के पास सिराथू के रहने वाले हैं। फ़ौज की नौकरी से नायक के पद से रिटायर होने वाले पाण्डेयजी बैंकों की सुरक्षा का काम देखते हैं। उनकी मूंछें देखकर लगा कि मंछे हों तो पाण्डेयजी जैसी।
कुत्ता बड़ा स्वामिभक्त जानवर होता है। शो में देखा कि कुत्तों की देखभाल के लिये नौकर लगे थे। हमारी मेस में दो कुत्ते बाघा और लाली रहते हैं। सोचा उनको भी ले जाते। लेकिन उनको कैसे ले जाते। उनका वहां रजिस्ट्रेशन नहीं होता। वे आवारा कुत्ते हैं। लेकिन कोई भी आवाज होने पर मेस पूरी मेस को अपनी आवाज पर उठा लेते हैं। बीच में एक बार कांजी हाउस वाले पकड़कर ले गये थे बाघा को तो उसको बनर्जी जी ने छुड़वाया। एक बार जीप के नीचे लुढ़कनी खाने से बाघा का आत्मविश्वास उससे रूठा हुआ है जैसे सहवाग से उनका बल्ला। वह सहम-सहमा दीखता है जैसे अपने बॉस के सामने कोई कामचोर अधिकारी।
नीचे कुत्तों के मेले से कुछ और फोटो :
Posted in बस यूं ही | 5 Responses
5 responses to “कुत्तों का मेला, सौंदर्य और प्रदर्शनी”
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“मेले में कुल 273 कुत्ते और कुतियाँ आयी थीं .अभी प्रदर्शन में कुछ देर थी ..मगर तभी वह खौफनाक माम्बा सांप मैदान में दिखा ..भगदड़ मच गयी .कितने कुत्ते कुतियाँ मालिक से पट्टे छुडा भाग चले …. कुछ एक दूसरे को देख गुर्राते रहे ,कुछ बुरी तरह झगड़ पड़े और 73 कुत्ते कुतिया तो प्रणय संसर्ग में आबद्ध हो गए !”
जान गुडी की प्रसिद्ध कृति स्नेक की याद हो आयी! भाग्यशाली हैं आप ऐसे दृष्टांत के चश्मदीद बनें !
सुधारें =पामेरियन नहीं पामरेनियन !
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..कितना भटक गया इंसान -
पामरेनियन…
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..एक चिड़िया ही तो थी,घायल हुई -सतीश सक्सेना -
आप तो श्वानमय वातावरण से भी एक पोस्ट झटक लाये..
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..टा डा डा डिग्डिगा -
दिनांक 07/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद! -
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Padm Singh पद्म सिंह की हालिया प्रविष्टी..मगर यूं नहीं
ajit gupta की हालिया प्रविष्टी..डॉक्टर ने कहा – आप चुप रहिए, बस मुझे सुनिए
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..एक चिड़िया ही तो थी,घायल हुई -सतीश सक्सेना
सरकार भौत काम लेती है …
Kajal Kumar की हालिया प्रविष्टी..कार्टून :- हर मर्ज़ की एक दवा है हकीम लुकमान
तभी कहें फुर्सत में भी ब्लॉग्गिंग काफी तेज रहती है.
दीपक बाबा की हालिया प्रविष्टी..प्रणाम
लाने को सामान बहुत है।
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..हम जिये है पूर्ण, छवि व्यापी रहे
जितेन्द्र भगत की हालिया प्रविष्टी..गुलमर्ग: सपरिवार
दिनांक 14/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
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Kailash sharma की हालिया प्रविष्टी..हाइकु (अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर)
चिंता को रख तू निज ठेंगे पे …
वाह … मज़ा आ गया इनको पढ़ के …