Thursday, December 22, 2005

मजा ही कुछ और है

http://web.archive.org/web/20110101201625/http://hindini.com/fursatiya/archives/92


पिछले दिनों जब अमिताभ बच्चन स्वस्थ होकर वापस आये तो सहारा वन टीवी पर उस दिन के कार्यक्रम का प्रसारण किया जिसके बाद से अमिताभ बच्चन की तबियत खराब हुई। इसमें हरिवंशराय बच्चन की स्मृति में लखनऊ में आयोजित कवि सम्मेलन की झलकियां दिखाईं गई। उज्जयिनी के कवि ओम व्यास ने एक कविता पढ़ी थी -मजा ही कुछ और है। यह कविता पंक्ति दिमाग में फंसी थी। आज सोचा इसे निकाल ही दिया जाये। अब जब इसे निकाला तो तमाम और लाइनें भरभरा कर निकल पड़ीं। इसे बिना किसी लाग-लपेट के यहां दे रहा हूं। तमाम पहलू छूट रहे हैं। लेकिन आफिस भी पुकार रहा है लिहाजा जितना है उतने में ही मौज का जुगाड़ करे।
आपके दिमाग में कुछ कुलबुला रहा हो तो उसे यहीं या फिर अपने ब्लाग में निकाल के धर दें। इसका भी मजा ही कुछ और है।
जाडे़ में बिस्तर पर बैठ कर खाने का,
बाथरूम में बिन नहाये पानी गिराने का,
हल्ला मचा कर अवकाश पर जाने का
अनुगूंज का बूथ कब्जिया के जीत जाने का -

मजा ही कुछ और है।
हिंदी प्रेमियों का अंग्रेजी में लटपटाने का
गरियाने के बाद उसे मौज बताने का
२० साल पुरानी साइकिल फिर से चलाने का
फाइलों के बीच से कविता निकाल लाने का
मजा ही कुछ और है।
हिंदी पोस्ट पर अंग्रेजी में टिपियाने का
हर फिसली कन्या का गाडफादर बन जाने का
कुंवारे की कंडली में शादी योग खोज लाने का
गणितीय भाषा में प्रेम का झंडा लहराने का
मजा ही कुछ और है।
शादी लायक लड़के को नंगा दिखाने का
कविता पढ़कर ‘प्रतिकविता’ झिलाने का
ग्राहक पाकर पुराना स्टाक निकालने का
रोज-रोज,नये-नये उपदेश पिलाने का
मजा ही कुछ और है।
हर नयी नवेली को कुंवारी न बताने का
मिर्जा के मुंह से मामला रफा-दफा करवाने का
बिना सोचे नई-नई योजनाये उछालने का
करने के समय हे-हे-हे करके मुकर जाने का
मजा ही कुछ और है।
विदेश में जाकर देश के बारे में आंसू बहाने का
जहां हैं उसे कोसते हुये वहीं टिके रह जाने का
रोते हुये देश के प्रेम में पागल बन जाने का
शहीदाना अंदाज में पेड़ का टूटा-पत्ता बन जाने का
मजा ही कुछ और है।
रोजमर्रा के लेनदेन को टीवी पर दिखाने का
पकड़े जाने पर थू-थू,शर्म-शर्म मच जाने का
साजिश है हमको फंसवाने की का बहाना बनाने का
निर्लप्त देशवासियों का काम-धंधे में लग जाने का
मजा ही कुछ और है।
ये लगता है फिर आ जायेगा टीम में- बताने का
फिर लफड़ा करेगा कहकर गांगुली को गरियाने का
निकाले जाने पर ये तो ‘गल्त हुआ’ बताने का
फिर ये तो चलता ही रहता है बताने का
मजा ही कुछ और है।
आंख खुलते ही लैपटाप से चिपक जाने का
चाय लाती पत्नी को देखकर सकपकाने का
‘बड़ी अच्छी लग रही हो’ कह मस्का लगाने का
‘उठो बच्चों’ कह फिर से टाइपिंग में जुट जाने का
मजा ही कुछ और है।
सबेरे-सबेरे स्वामी से नेट पर बतियाने का
व्यस्त जीतू से ‘कमेंट करो यार’ कहलाने का
भाभियों को साष्टांग करके प्यारा बन जाने का
आफिस जाने से तुरंत पहले कविता झिलाने का
मजा ही कुछ और है।

फ़ुरसतिया

अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।

12 responses to “मजा ही कुछ और है”

  1. eswami
    आपके अँदाज-ए-बयाँ से दिल की बात सुनने का
    सार्वजनिक सामूहिक खिंचाई पे मूह फाड के हंसने का
    क्रिसमस पे खाली दफ्तर मे तुकबँदी बुनने का
    काम का ढेर पडा है सोच के सिर धुनने का
    मजा ही कुछ और है.
  2. vinayjain
    बाँच चुके ब्लॉगों को
    देख चुके ख़बरें सब
    काम-काज निपटा के
    खाली-खाली बैठें जब
    शुकुल जी के लिक्खे को
    चाय संग पढ़ने का
    साथ-साथ हँसने का

    मजा ही कुछ और है
    :)
  3. Ashutosh Dixit
    क्राइस्ट चर्च के सामने आंखै सेन्क्ने का,
    रिजर्व बैन्क के सामने “वेलू” के दोसे खाने का,
    ठग्गु के लड्डू/कुल्फी खाने का,
    और कानपुर मॅ बिना हेल्मेट/सीट बेल्ट के वाहन चलाने का,
    मजा ही कुछ और है…..
  4. Ashutosh Dixit
    संगी साथियॉ के साथ “विष-अम्रृत” खेलने का, शाम को छत पे लेट कर अपने घोन्सलो को वापस जाते तोतॉ को गिनना, वो मम्मी के बनाये बेसन के लड्डू एक ही दिन में खत्म कर देना, हैन्ड पम्प से पानी भरना, लाइट के जाने और आ जाने पे शोर मचाना. — छुटपन की ऐसी बात को याद करने का मजा ही कुछ और है.
  5. Manoshi
    आगे और नहीं जोडूँगी कि मज़ा ही कुछ और है पर अशुतोष जी की टिप्पणी ने बहुत सी यादें ताज़ा कर दीं| “पोसम्पा भई पोसम्पा, सवा रुपये की घडी चुराई, अब तो जेल को जाना पडेगा, जेल की रोटी खाना पडेगा…”आदि आदि…
  6. प्रत्यक्षा
    और इसी तरह ढेर सारी टिप्पणियाँ
    साथ साथ बटोरने का भी फुरसतियाजी
    मज़ा ही कुछ और है :-)
  7. kali
    Shukla ji bahut bhadiya tarika hai commentors ki sankhya bhadane ka. Matlab jiske mirchi lage woh bhi commentiyaga hi bilkul Jitu jaise (bhale hi bolen hume koi farak nahi, magar aag uthi hai, dhuna nikla hai, badbu faili hai Jitu guru !) , jiske sir main khujli lagi Jhak ko aage bhadane ki woh bhi tankan karega. Aur humre aur pratyaksha jaise jo trick notice karenge who bhi vuvachenge hi. Dhanya ho gurudev :)
  8. सारिका सक्सेना
    अनूप जी की कविता के साथ-साथ सभी की टिप्पणियों को पढने में भी बहुत मजा आया।
  9. r p singh sadana
    dear friends, its been a great pleasure to go through this mazaa kucchh aur hai thing.its good to know that people like you guys are still there . i simply loved all those things related to kanpur as i belong to this city. my best wishes for more such work .doosaron ki shararaton ko padh ke, un men apne bachpan ki tasveer dekhne ka mazaa i kucchh aur hai. apni aap beeti ke jag beeti mein mil jane ka mazaa bhi kucchh aur hi hai .bhai bahut mazaa aaya.thanks.
  10. विवेक सिंह
    आंख खुलते ही लैपटाप से चिपक जाने का
    चाय लाती पत्नी को देखकर सकपकाने का
    ‘बड़ी अच्छी लग रही हो’ कह मस्का लगाने का
    ‘उठो बच्चों’ कह फिर से टाइपिंग में जुट जाने का
    मजा ही कुछ और है।
    ऊपर वाला हमारे लिए लिखा गया है :)

1 comment:

  1. धूप में सुलग जाने का मजा ही कुछ और है 🥰🥰

    ReplyDelete