Tuesday, July 18, 2006

उखड़े खम्भे

http://web.archive.org/web/20110925223112/http://hindini.com/fursatiya/archives/160

उखड़े खम्भे

[कुछ साथियों के हवाले से पता चला कि कुछ साइटें बैन हो गयी हैं। पता नहीं यह कितना सच है लेकिन लोगों ने सरकार को कोसना शुरू कर दिया। अरे भाई,सरकार तो जो देश हित में ठीक लगेगा वही करेगी न! पता नहीं मेरी इस बात से आप कितना सहमत हैं लेकिन यह है सही बात कि सरकार हमेशा देश हित के लिये सोचती है। मैं शायद ठीक से अपनी बात न समझा सकूँ लेकिन मेरे पसंदीदा लेखक ,व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई ने इसे अपने एक लेख उखड़े खम्भे में बखूबी बताया है।
यहां जानकारी के लिये बता दिया जाये कि भारत के प्रथम प्रधान मंत्री स्व.जवाहरलाल नेहरू ने एक बार घोषणा की थी कि मुनाफाखोरों को बिजली के खम्भों पर लटका दिया जायेगा।]
एक दिन राजा ने खीझकर घोषणा कर दी कि मुनाफाखोरों को बिजली के खम्भे से लटका दिया जायेगा।
सुबह होते ही लोग बिजली के खम्भों के पास जमा हो गये। उन्होंने खम्भों की पूजा की,आरती उतारी और उन्हें तिलक किया।
शाम तक वे इंतजार करते रहे कि अब मुनाफाखोर टांगे जायेंगे- और अब। पर कोई नहीं टाँगा गया।
लोग जुलूस बनाकर राजा के पास गये और कहा,”महाराज,आपने तो कहा था कि मुनाफाखोर बिजली के खम्भे से लटकाये जायेंगे,पर खम्भे तो वैसे ही खड़े हैं और मुनाफाखोर स्वस्थ और सानन्द हैं।”
राजा ने कहा,”कहा है तो उन्हें खम्भों पर टाँगा ही जायेगा। थोड़ा समय लगेगा। टाँगने के लिये फन्दे चाहिये। मैंने फन्दे बनाने का आर्डर दे दिया है। उनके मिलते ही,सब मुनाफाखोरों को बिजली के खम्भों से टाँग दूँगा।
भीड़ में से एक आदमी बोल उठा,”पर फन्दे बनाने का ठेका भी तो एक मुनाफाखोर ने ही लिया है।”
राजा ने कहा,”तो क्या हुआ? उसे उसके ही फन्दे से टाँगा जायेगा।”
तभी दूसरा बोल उठा,”पर वह तो कह रहा था कि फाँसी पर लटकाने का ठेका भी मैं ही ले लूँगा।”
राजा ने जवाब दिया,”नहीं,ऐसा नहीं होगा। फाँसी देना निजी क्षेत्र का उद्योग अभी नहीं हुआ है।”
लोगों ने पूछा,” तो कितने दिन बाद वे लटकाये जायेंगे।”
राजा ने कहा,”आज से ठीक सोलहवें दिन वे तुम्हें बिजली के खम्भों से लटके दीखेंगे।”
लोग दिन गिनने लगे।
सोलहवें दिन सुबह उठकर लोगों ने देखा कि बिजली के सारे खम्भे उखड़े पड़े हैं। वे हैरान हो गये कि रात न आँधी आयी न भूकम्प आया,फिर वे खम्भे कैसे उखड़ गये!
उन्हें खम्भे के पास एक मजदूर खड़ा मिला। उसने बतलाया कि मजदूरों से रात को ये खम्भे उखड़वाये गये हैं। लोग उसे पकड़कर राजा के पास ले गये।
उन्होंने शिकायत की ,”महाराज, आप मुनाफाखोरों को बिजली के खम्भों से लटकाने वाले थे ,पर रात में सब खम्भे उखाड़ दिये गये। हम इस मजदूर को पकड़ लाये हैं। यह कहता है कि रात को सब खम्भे उखड़वाये गये हैं।”
राजा ने मजदूर से पूछा,”क्यों रे,किसके हुक्म से तुम लोगोंने खम्भे उखाड़े?”
उसने कहा,”सरकार ,ओवरसियर साहब ने हुक्म दिया था।”
तब ओवरसियर बुलाया गया।
उससे राजा ने कहा,” क्यों जी तुम्हें मालूम है ,मैंने आज मुनाफाखोरों को बिजली के खम्भे से लटकाने की घोषणा की थी?”
उसने कहा,”जी सरकार!”
“फिर तुमने रातों-रात खम्भे क्यों उखड़वा दिये?”
“सरकार,इंजीनियर साहब ने कल शाम हुक्म दिया था कि रात में सारे खम्भे उखाड़ दिये जायें।”
अब इंजीनियर बुलाया गया। उसने कहा उसे बिजली इंजीनियर ने आदेश दिया था कि रात में सारे खम्भे उखाड़ देना चाहिये।
बिजली इंजीनियर से कैफियत तलब की गयी,तो उसने हाथ जोड़कर कहा,”सेक्रेटरी साहब का हुक्म मिला था।”
विभागीय सेक्रेटरी से राजा ने पूछा,खम्भे उखाड़ने का हुक्म तुमने दिया था।”
सेक्रेटरी ने स्वीकार किया,”जी सरकार!”
राजा ने कहा,” यह जानते हुये भी कि आज मैं इन खम्भों का उपयोग मुनाफाखोरों को लटकाने के लिये करने वाला हूँ,तुमने ऐसा दुस्साहस क्यों किया।”
सेक्रेटरी ने कहा,”साहब ,पूरे शहर की सुरक्षा का सवाल था। अगर रात को खम्भे न हटा लिये जाते, तो आज पूरा शहर नष्ट हो जाता!”
राजा ने पूछा,”यह तुमने कैसे जाना? किसने बताया तुम्हें?
सेक्रेटरी ने कहा,”मुझे विशेषज्ञ ने सलाह दी थी कि यदि शहर को बचाना चाहते हो तो सुबह होने से पहले खम्भों को उखड़वा दो।”
राजा ने पूछा,”कौन है यह विशेषज्ञ? भरोसे का आदमी है?”
सेक्रेटरी ने कहा,”बिल्कुल भरोसे का आदमी है सरकार।घर का आदमी है। मेरा साला होता है। मैं उसे हुजूर के सामने पेश करता हूँ।”
विशेषज्ञ ने निवेदन किया,” सरकार ,मैं विशेषज्ञ हूँ और भूमि तथा वातावरण की हलचल का विशेष अध्ययन करता हूँ। मैंने परीक्षण के द्वारा पता लगाया है कि जमीन के नीचे एक भयंकर प्रवाह घूम रहा है। मुझे यह भी मालूम हुआ कि आज वह बिजली हमारे शहर के नीचे से निकलेगी। आपको मालूम नहीं हो रहा है ,पर मैं जानता हूँ कि इस वक्त हमारे नीचे भयंकर बिजली प्रवाहित हो रही है। यदि हमारे बिजली के खम्भे जमीन में गड़े रहते तो वह बिजली खम्भों के द्वारा ऊपर आती और उसकी टक्कर अपने पावरहाउस की बिजली से होती। तब भयंकर विस्फोट होता। शहर पर हजारों बिजलियाँ एक साथ गिरतीं। तब न एक प्राणी जीवित बचता ,न एक इमारत खड़ी रहती। मैंने तुरन्त सेक्रेटरी साहब को यह बात बतायी और उन्होंने ठीक समय पर उचित कदम उठाकर शहर को बचा लिया।
लोग बड़ी देर तक सकते में खड़े रहे। वे मुनाफाखोरों को बिल्कुल भूल गये। वे सब उस संकट से अविभूत थे ,जिसकी कल्पना उन्हें दी गयी थी। जान बच जाने की अनुभूति से दबे हुये थे। चुपचाप लौट गये।
उसी सप्ताह बैंक में इन नामों से ये रकमें जमा हुईं:-
सेक्रेटरी की पत्नी के नाम- २ लाख रुपये
श्रीमती बिजली इंजीनियर- १ लाख
श्रीमती इंजीनियर -१ लाख
श्रीमती विशेषज्ञ – २५ हजार
श्रीमती ओवरसियर-
२५५ हजार
उसी सप्ताह ‘मुनाफाखोर संघ’ के हिसाब में नीचे लिखी रकमें ‘धर्मादा’ खाते में डाली गयीं-
कोढ़ियों की सहायता के लिये दान- २ लाख रुपये
विधवाश्रम को- १ लाख
क्षय रोग अस्पताल को- १ लाख
पागलखाने को-२५ हजार
अनाथालय को- ५ हजार

-हरिशंकर परसाई


फ़ुरसतिया

अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।

11 responses to “उखड़े खम्भे”

  1. जीतू
    भई हिसाब मे कुछ गड़बड लगती है। कुछ रुपए कम दिख रहे है:
    २+१+१+०.२५+.०२५=४ लाख ५० हजार रुपए
    धर्मादा खाते मे गयी रकम :२+१+१+०.२५+.०५=४ लाख ३० हजार रुपए।
    फुरसतिया जी २० हजार कहाँ डकार गए? हिसाब दो।
  2. प्रत्यक्षा
    बडा सटीक और तीखा व्यंग.परसाई जी का लेख सही वक्त पर पोस्ट करने के लिये शुक्रिया
  3. नीरज दीवान
    परसाई जी की रचनाएं लाजवाब होती है. यह रचना फिर पढ़ने मिल गई जिसके लिए आपका धन्यवाद. निठल्ले की डायरी भी उत्कृष्ट रचना थी. जबलपुर इप्टा के सदस्यों ने इनकी कई रचनाओं का मंचन किया है. मज़ा आ जाए जब ब्लॉगर्स परसाई जी की तमाम रचनाओं को नेट पर ले आएं. वैसे एक बात बताऊं परसाई जी अपने रिश्तेदार थे. :) उनकी पैदाइश जमानी होशंगाबाद ज़िले की थी. वहीं अपन भी धोखे से टपक गए. :P
  4. आशीष
    जीतु भाई,
    वो २०,००० फुरसतिया जी का कमीशन था, ये रचना टंकीत कर प्रकाशीत करने के लिये
    आशीष
  5. राकेश खंडेलवाल
    चलो यह तो मालूम हो गया कि कम से कम इस साईट पर तो भारत सरकार ने प्रतिबंध नहीं लगाया है. वैसे बहुत बढ़िया लेख लिखा है आपने.
  6. नीरज दीवान
    अनूप जी, मैं जल्द ही कुछ रचनाएं प्रकाशित करूंगा. आप मुझे पूर्व प्रकाशित रचनाओँ की जानकारी अथवा लिंक भेज दें ताकि दुहराव ना पाए.
  7. eshadow
    अच्छा लगा।
  8. निधि
    रोचक और सटीक लेख । बहुत बढ़िया ।
  9. एक मध्यवर्गीय कुत्ता « कीबोर्ड के सिपाही
    [...] अनूप भैया (फ़ुरसतिया) के आदेशानुसार हरिशंकर परसाई जी की यह रचना आपके लिए प्रस्तुत कर रहा हूं.  [...]
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