Sunday, August 20, 2006

…और ये फ़ुरसतिया के दो साल

http://web.archive.org/web/20140420082735/http://hindini.com/fursatiya/archives/175

…और ये फ़ुरसतिया के दो साल

…और ये फ़ुरसतिया के दो साल पूरे हो गये।
सबेरे से मुंह हाथ-धोकर फ़ुरसतिया हर आते-जाते का मुँह ताकते रहे। हर आते-जाते में वे पत्रकार की आत्मा तलाशते रहे। लेकिन सारे पत्रकार हत्या,बलात्कार,लूटपाट के सजीव प्रसारण के जुगाड़ में गये थे। आज फ़ुरसतिया का बहुत मन हो रहा था कि कोई पत्रकार उनसे पूछे कि दो साल का ब्लागिंग का सफर कैसा रहा लेकिन कोई पत्रकार फुरसत में नहीं था। अंत में ऊब कर उन्होंने खुद ही किशोरावस्था में पढ़ा आत्मनिर्भरता का पाठ फिर से पढ़ा तथा पत्रकार-ब्लागर के डबल रोल में शूटिंग शुरू कर दी।सवाल-जवाब की धुआँधार बारिश होने लगी:-
सवाल:- आप कैसे इस ब्लागिंग की बेवकूफी में फंस गये?
जवाब:- अरे पूछो मत। हमने एक दिन अभिव्यक्ति में रवि रतलामी का लेख पढ़ा। उसमें बताया गया था कि ब्लाग क्या है। हम कुछ दिन कुलबुलाते रहे। देखते रहे लेख देबाशीष,रवि रतलामी, पंकज के। फिर सोचा हम क्या इनसे कम खराब लिखते हैं ? सो हमने सोचा कि लिखा जाये जो होगा देखा जायेगा। फिर हमने अँधेरे में मोमबत्ती खोजने की तरह देबाशीष के ब्लाग पर छहरी वाला टाइप राइटर खोजा और शुरू हो गये। तो हमें ब्लाग लेखन के पाप की शुरुआत के दोषी लोग रवि रतलामी तथा देबाशीष हैं। जब एक बार पाप कर लिया तो फिर सोचा बार-बार किया जाये ,लिहाजा जारी हैं अब तक।
सवाल:-जब लिखना शुरू किया था तब क्या सोचा था कि इतना नियमित लिखेंगे?
जवाब:- नहीं,कतई नहीं। जब मैंने लिखना शुरू किया था तब ऐसा कुछ नहीं सोचा था। हमने तो सोचा ये कोई तकनीकी चोचला है। हमसे हो नहीं पायेगा। बड़ी मुश्किल से पहली पोस्ट टाइप की थी जिसमें कुछ जमा ९ शब्द थे- अब कब तक ई होगा ई कौन जानता है। अब यह भी मजे की बात ही है कि शायद सबसे कम शब्दों से शुरू करने वाला ब्लागर सबसे ज्यादा लंबी तथा कुछ लोगों के लिये अझेल तक पोस्ट लिखने के लिये बदनाम है ।
मेरी इस पहली पोस्ट को जीतेंदर ध्यान से देखें। इसमें तीनों टिप्पणियाँ मिट गईं हैं। यह जानबूझकर नहीं हुआ। अनजाने में अज्ञानता में हुआ। जब मेरा जैसा पोस्ट ग्रेजुएट इंजीनियर ,जो कम से कम चार साल से नेट इस्तेमाल कर रहा है, अनजाने में टिप्पणी मिटा देते है तो एक नया बीए पास लड़का जिसने नया-नया नेट प्रयोग करना सीखा है ऐसा करता है तो इसमें उसकी अज्ञानता भी हो सकती है। इस बात पर विचार करना!
नियमित लेखन का तो कोई विचार ही नहीं था शुरू में। एकाध पोस्ट लिखकर शायद दुकान बढ़ा देते लेकिन देबाशीष ने हमारे ब्लाग की भाषा पर कुछ टिप्पणी की जिसके जवाब में हमने काफी मौज ली,जिसका हमें बाद में काम भर का अफसोस भी हुआ। फिर तो मौज-मजे का सिलसिला चल निकला जो आज तक जारी है।

सवाल:- अपने ब्लाग का नाम फ़ुरसतिया काहे रख लिया?

जवाब:- अब नाम कुछ रखना था तो फ़ुरसतिया रख लिया। इसका खुलाशा हमने अपनी शुरुआती पोस्ट फुरसतिया बनाम फोकटिया में किया है। नाम सोचने में हमने बिल्कुल समय बरबाद नहीं किया। उतनी ही स्पीड से रख लिया जिस स्पीड से हमारे तमाम कविगण कवितायें लिखते हैं। तुकान्त-अतुकान्त,सार्थक-निरर्थक। अब यह संयोग है कि तमाम कवितायें पुरालेख में चली जाती हैं लेकिन फ़ुरसतिया भारत में भ्रष्टाचार की तरह चमक रहा है। वैसे यह खुलासा और कर दें कि हमने पहले अपने ब्लाग का नाम ठेलुहा रखा था। लेकिन जब हमने उसमें पोस्ट करने गये तो उसका पासवर्ड ही भूल गये। सो वह हमारा मूल ठेलुहा बेचारा बिना किसी पोस्ट का बाँझ सा पड़ा है। बाद में अवस्थी ने अपना ब्लाग शुरू किया उसका नाम उन्होंने अपने खानदानी स्वभाव के अनुसार ठेलुहा रखा तथा अपनी आलस्य की सनातन वंशपरम्परा का निर्वाह करते हुये ही लिखना बंद भी कर दिया।

सवाल:- ये बार-बार रविरतलामी को अपने ब्लाग लेखन की शुरुआत का दोषी तथा देबाशीष से मौज का किस्सा बार-बार काहे सुनाते हो?

जवाब:- सिर्फ इसलिये कि लोगों को पता चले कि एक लेख लोगों को कितना बरवाद कर सकता है। मेरा ख्याल में हिंदी के जितने भी ब्लाग आज की तारीख में हैं उनमे से आधे की शुरुआत का कारण रविरतलामी का लेख रहा होगा। वैसे यह सच भी बताते चलें कि रवि रतलामी अभिव्यक्ति में पहले व्यंग्यकार के रूप में जाने जाते थे। बाद में पूर्णिमा वर्मन जी को लगा कि ये महाशय तो तकनीकी लेख भी लिखते हैं। इसके बाद से रवि ने ब्लाग आदि के बारे में लिखा। देबाशीष वाले वाकये का उल्लेख बार-बार इसलिये करता हूँ ताकि लोगों को पता चले कि एक-दूसरे बारे में पता न होने पर अक्सर कुछ कह सुन जाते हैं लेकिन उसे दिल पर नहीं लेना चाहिये। बाद में देबू ने एक पंक्ति में अपनी टिप्पणी में अपसोस सा जाहिर किया और हमउतने में ही शर्मिंदा हो गये। हमने देबू को पचास लाइन की मेल लिखी। आज जैसा हमारा ब्लाग देबू के पसंदीदा ब्लाग में है तथा हम देबाशीष के विचार से सहमत हों या न हों लेकिन उनकी बात टालना मेरे लिये मुश्किल होता है। यही जाहिर करने के लिये बार-बार इसका उल्लेख हो जाता है ताकि सनद रहे।

सवाल:- चिट्ठे इतने लंबे काहे लिखते हो?

जवाब:- अब इसका जवाब बड़ा मुश्किल है। लेकिन मुझे लगता है कि अगर कुछ पढ़ने लायक होगा आपके यहाँ तो लोग पढ़ेंगे। नहीं होगा तो नहीं पढ़ेंगे चाहे आप अपने ब्लाग में कुछ भी न लिख कर ऐसे ही पोस्ट कर दो। लंबे लिखने का कारण शायद यही है कि अपनी बात पूरी कहे बिना मन नहीं मानता तथा यह भी कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। वैसे हमने निरंतर के एक अंक में अपने लंबे चिट्ठा लेखन के बारे में पूछिये फुरसतिया से के अंतर्गत लिखा भी था।
सवाल:- लंबे चिट्ठे के अलावा अब संख्या भी बढ़ गयी है पोस्ट लिखने की। क्या और कुछ काम-धाम नहीं है?
जवाब:- अब क्या बतायें! पहले महीने में करीब चार-पांच पोस्ट लिखते थे। लेकिन अब तो इतनी पोस्ट हफ्ते में हो जाती हैं। इतना नियमित लिखने का कारण शायद यही है कि तमाम खुराफातें सूझती रहतीं हैं। हर खुराफात चाहती है कि उसे बयान किया जाये। सो बढ़ गया लिखना।

सवाल:- ये स्वामीजी के चक्कर में कैसे फंस गये? हिंदिनी में कैसे लिखना शुरू किया?

जवाब:- इसकी भी अजीब सी कहानी है। शायद दिसंबर २००४ के दिन थे। हमने अपने ब्लाग में एक दिन स्वामीजी की टिप्पणी देखी कि हमारा ब्लाग पर ये फिदा हो गये। तथा हमारे ब्लाग की जमानत देकर ये अपने घर में छूटे। ये चीजें गुदगुदी पैदा करती हैं। उन दिनों स्वामी की भाषा से हमें लगा कि ये ससुरा कोई बुढ्ढा है जो तमिलभाषी है तथा हिंदी भी टूटी -फूटी जानता है। यह विश्वास काफी दिन बना रहा। हग टूल बनाने की खबर तथा सूचना के अंदाज़ से से हमें इनके सिरफिरे होने का प्रमाण सा मिला। लेकिन बाद में जब इन्होंने अपने ब्लागपर विनोदकुमार शुक्ल के उपन्यास नौकर की कमीज के बारे में लिखा तो हमने अपनी सारी धारणायें रिसाकिल बिन में डालकर डिलीट कर दीं तथा स्वामी के लिये नया फोल्डर-फाइल बनाया। जो कि आज तक चल रहा है ,बहुत कुछ जुड़ा उसमें। फिर इन्होंने हमारे लेखों पर फिदा होना जारी रखा। ‘ये पीला वासन्तिया चाँद’ पर कुछ ज्यादा ही फिदा हैं ये । जब बाद में हिंदिनी साइट बनायी तो हमारे ऊपर डोरे डाले कि हिंदिनी में लिखूँ। हमने सोचा कि दो-चार लेख माँग रहा होगा हमने हाँ कह दी। लेकिन एक दिन फोन किया कि यहीं रहो। करीब दो घण्टे के फोन से हमने घबराकर बिना कुछ समझे सहमति दे दी। तबसे यहीं टिके हैं। एकाध छुटपुट लेख अपने पुराने ब्लागपर लिखने के सिवाय।

सवाल:-सुना है इस बात से जीतू कुछ दिन मुँह फुलाये रहे तुमसे?

जवाब:- हाँ, कुछ तो वैसे ही इनका मुँह फूला रहता था इस बात से कुछ सूज गया तो फूल भी गया। जीतेंद्र ने तो हमें भीष्म पितामह (जो कि दुर्योधन का साथ देने चले गये)का दर्जा देकर हमें महापुरुष बना दिया । असल में उन दिनों जीतू और स्वामी का कुछ ज्यादा याराना था। कहा-सुनी के प्रेम सम्बंध थे। जीतू ने जो साइट बनायी उसमें मुझसे लिखने के लिये कहा होगा जैसे लोग मेहमान को घर से बाहर विदा करते समय चाय के लिये पूछ लेते हैं। जिसकी मुझे याद नहीं क्योंकि मुझे लगा ही नहीं कि इसका भी कोई महत्व है। सो मैंने ध्यान नहीं दिया। फिर जब हम हिंदिनी में लिखने लगे तो इनका मुँह कुछ दिन फूला रहा। लेकिन बकरे की माँ कितने दिन खैर मनायेगी। कुछ दिन में ही हेंहेंहें करने लगे।

सवाल:- तुम जीतेंदर की इतनी खिंचाई काहे करते हो?

जवाब:- हाँ,यह बात तो सही है। बल्कि बात यह भी है कि एकाध बार लोगों ने टोंका भी कि कभी तो छोड़ दिया करो। शायद मानसी ने लिखा था। असल में इनको अपनी खिंचवाई करवाने में कुछ ज्यादा ही मजा आता है। इसका कारण शायद जीतेंदर की खबरों में बने रहने की हुड़क है। शुरू में जब इन्होंने लिखना शुरू किया तो कुछ दिन बाद रोने लगे कि इनका परिचय नहीं है चिट्ठाविश्व में । हमसे एक कनपुरिया का रोना देखा नहीं देखा।हमनें लेख लिखा-मेरा पन्ना,मतलब सबका पन्ना। जिसको पढ़कर ये भावुकता के मारे रोने लगे। फिर पिछले साल जब ब्लागरों का परिचय लिखने के क्रम में प्रत्यक्षा के बारे में लिखा तो ये फिर पसड़ गये कि हमारे बारे में भी लिखो। हमने लिखा । अब फिर कह रहे थे कि निरंतर में हमारा परिचय अभी तक नहीं लिखा। कितना तरसाओगे? तो इसी सब से हालात ऐसे बन जाते हैं कि मौज-मजा चलता रहे। सबसे बड़ा सच है कि जीतेंदर में मजाक सहने की क्षमता है तो किया जाता है। जिस दिन ये बोल जायेंगे,हम भी बोलेंगे जयहिंद!
सवाल:- दिन पर दिन ब्लागर बढ़ते जा रहे हैं। फिर भी लोग पुराने लोगों को खोजते हैं। सन्नाटे का रोना रोते हैं।ऐसा क्यों?
जवाब:- कभी किसी ने कुछ पोस्ट अच्छी लिखीं तो उसका लिखना स्थगित करना खलता तो है ही। जैसे मुझे अवस्थी का लिखना बंद करना तथा अतुल का कम लिखना अखरता है। ये लोग बेहतरीन किस्सा गोई वाले लोग हैं लेकिन पता नहीं किस गैरजरूरी काम में अपने को फंसा लेते हैं कि लिखने से मुंह मोड़ लेते हैं बेवफा प्रेमी की तरह!

सवाल: जब लोग तुमको महाब्लागर,महाचिट्ठाकार,बड़े भाई साहब, चिट्ठाजगत की शान जैसे विभूषणों से नवाजते हैं तो कैसा लगता है?

जवाब:- बहुत बुरा लगता है।शरम आती है। ऐसा लगता किसी बच्चे को सीधे विश्वविद्यालय में घुसेड़ दिया गया हो। मुझे लिखते हुये केवल दो साल हुये। सरकारी नौकरी में दो साल में नौकरी के बाद ‘प्रोबेशन पीरियड’पूरा होता है।इतने दिन में ही इतने विशेषणों से लगता है मानों दोस्त लोग अपने बीच से भगाकर सम्मानित जगह पर बैठा देना चाहते हैं। वैसे भी अभी चिट्ठाकार ,ब्लागर जैसे शब्द ही से लोग अपरिचित हैं। उसमें भी ‘ महा’ लगा देने से लगता है कि करेला पर नीम चढ़ गई हो। वैसे भी ‘महा’ आमतौर पर कानपुर में ‘पुरुष’ के पहले लगता है या बदमाश’ के पहले। महाब्लागर कुछ इसी कैटेगरी का शब्द लगता है। यह मुझे सहज नहीं लगता । कुछ-कुछ ऐसा लगता है कि बिस्तर में आराम से लेटे हुये लैपटाप पर अपनी पोस्ट टाइप करते हुये ब्लागर को ‘महा’ का सूट जबरियन पहना दिया गया हो जिससे उसकी स्वाभाविकता नष्ट हो जाये। मैं बिना किसी अतिरिक्त तामझाम के अपने दोस्तों में से एक रहना चाहता हूँ।

सवाल:- लोगों की टिप्पणियों के बारे में क्या विचार हैं?

जवाब:- जैसे और लोगों के बारे में होते हैं। लोग टिप्पणियाँ करते हैं तो तात्कालिक रूप से अच्छा लगता है। यह संयोग भी है कि हमें कभी टिप्पणियों का टोटा नहीं रहा। मेरे ख्याल में सबसे ज्यादा टिप्पणियाँ या तो जीतेंद्र के ब्लाग में होंगीं या मेरे ब्लाग में तथा मेरी कोई पोस्ट टिप्पणी विहीन नहीं है। लेकिन यह सच है कि नये लोगों को ज्यादा प्रोत्साहन की जरूरत होती है। उनके ब्लाग पर टिप्पणी जरूर करनी चाहिये। कुछ ब्लागर ऐसे भी हैं जिनके ब्लाग पर टिप्पणी लिखना ,चाहे कुछ भी लिखें, जरूरी सा हो जाता है। जीतेंद्र,अतुल,आशीष श्रीवास्तव,स्वामीजी,रमन,प्रत्यक्षा,मानसी,हिंदीब्लागर,छायाजी,समीरजी तथा अब निधि और रत्नाजी आदि इसी श्रेणी में आते हैं। इनके ब्लाग पर टिप्पणी कुछ ऐसा ही है जैसे ‘एकनालेजमेंट’ जैसा है। कि हाँ हमने पढ़ लिया। यह इन लोगों की पोस्ट के अलावा इनसे बने व्यक्तिगत सम्बन्ध महसूस करने के कारण भी होगा।

सवाल: जब लोग टिप्पणियाँ करके तुम्हारे लेखों की तारीफ करते हैं तो तुम्हें इतनी भी तमीज नहीं कि सबको शुक्रिया बोल दिया करो।

जवाब: असल में हम तारीफ के जवाब में शरमा कर खुशी जाहिर कर देना ही सबसे अच्छा जवाब मानते हैं। हर ‘वाह-वाह’ के जवाब में एअर इंडिया के महाराजा का पोज हमसे बनता नहीं।हम शरमा के जो दिल से शुक्रिया अदा करते हैं वो हमारे साथियों के दिल तक जरूर पहुँचता होगा।
सवाल: लोग लिखना चिट्ठा बंद कर देते हैं।कारण क्या हैं?
जवाब:अब यह तो लिखने वाले जाने। लेकिन यह बात सच है कि जब लोग लिखना शुरू करते हैं कुछ दिन अतीत खंगालते हैं। फिर जब अतीत चुक जाता है तो लेखन का संकट शुरू होता है। विषय विविधता के लिये या तो खुद अच्छा पाठक होना चाहिये या फिर दुनियाभर के अनुभव। जैसे सुनील दीपक जी में दोनों हैं। इनका ब्लागलेखन कम-ज्यादा हो सकता है बंद शायद न हो। केवल कड़ी की झड़ी की भड़ी में ब्लाग लेखन बहुत दिन तक नहीं जारी रह सकता। वैसे भी नोटिस बोर्ड तथा लेखन में कुछ तो अंतर होता ही है।

सवाल: अच्छे ब्लाग के क्या गुण मानते हो तुम?

जवाब: पठनीयता,रोचकता,प्रासंगिकता तथा नियमितता मेरे हिसाब से सबसे ज्यादा जरूरी हैं।
सवाल: नये चिट्ठाकारों के बारे में क्या विचार है?
जवाब: क्या नया क्या पुराना लेकिन जिन लोगों ने अभी हाल में ही लिखना शुरू किया उन लोगों में कमाल का आत्मविश्वास है। कुछ नये लोग बहुत अच्छा लिख रहे हैं। खासकर निधि और रत्ना जी । इनके लेखन की सबसे बड़ी खासियत इनकी किस्सा गोई की कला है। ये और भी तारीफ के काबिल तब बन जाती हैं जब कि इन्होंने हिंदी के तमाम प्रसिद्ध साहित्यकारों को नहीं पढ़ा। आशीष तो अब अनुभवी हो गये लेकिन उनके अमेरिका प्रवास के दौरान लिखे लेख बहुत अच्छे थे लेकिन समुचित प्रतिक्रिया न मिलने के कारण उधर की पोस्टें कम करके कन्यापुराण में उलझ गये।
सवाल: सबसे ज्यादा कवितायें तुम्हारे ब्लाग में ‘मेरी पसन्द’ के अंतरगत पोस्ट होती हैं। फिर भी देखा गया है कि तुम लोगों को बरगला कर कविता से लेख की तरफ घसीटने का प्रयास करते हो। ऐसा क्यों?
जवाब: जितने लोग भी ब्लागर कविता लिखते हैं उनका गद्य मुझे उनकी कविता की तुलना कहीं बेहतर लगता है। राकेश खण्डेलवाल की बात अलग है जो गद्य लिखते ही नहीं। जैसे गद्य में पठनीयता ,रोचकता जरूरी लगती है वैसे ही कविता में मुझे सबसे जरुरी लगता है कि कुछ लाइनें तो याद रह जायें। वो कविता जिसमें वो लिखा था जिसमें कुछ ऐसे कहा था जैसे वाक्य जताते हैं कि कुछ कमी है कविताओं में। मुझे इतने ब्लागर्स में सारिका सक्सेना की कविता की कविता की केवल दो लाइनें याद हैं:-
कुछ गीत बज रहे हैं मेरी दिल की धड़कनों में,
कुछ साज बज रहे हैं मेरे मन की सरगमों में।
बाकी की कवितायें होंगी बहुत अच्छी लेकिन मुझे अपील नहीं करतीं इतना कि याद रह जायें।शायद यही मेरी कविता की तमीज की सीमा है। दूसरी बात यह भी है कि ज्यादातर कविताओं मैं,तुम के साथ कुछ वो जुड़ जाता है। समाज सिरे से गायब रहता है। इसलिये कविता उतना सुकून नहीं देती मुझे। मैं फिर कहता हूँ कि यह शायद मेरी कविता की समझ की सीमा है।
सवाल: लिखने की प्रक्रिया क्या है? कैसे लिखते हैं?
जवाब: सीधे की बोर्ड पर खुटखुटा देते हैं। पहले कागज पर ड्राफ्ट लिखते थे। लेकिन बाद में देखा कि ड्राफ्ट तथा पोस्ट में कर्तव्य तथा अधिकार की भावना के बीच सा अंतर है तो कागज-कलम को प्रणाम निवेदित करके की-बोर्ड की शरण चले गये।
सवाल:लिखने के विषय कैसे सूझते हैं?
जवाब: बस ऐसे ही। खुराफाती दिमाग है। तमाम लोगों से मिलता हूँ दिन भर तो विषय का टोटा कभी नहीं रहता। कुछ लोगों के उकसावे पर लिखा जाता है। जैसे मानसी ने कहा है प्रवासी विषय पर लिखो। तो अब लिखना है। कुछ दिन नहीं लिखा तो टल जायेगा।
सवाल: और किन विषयों पर लिखना है?
जवाब: अंतहीन हैं। लेकिन कुछ बिषय हैं जिन पर लिखने का मसौदा बना हुआ है बस लिखना है। कुछ जो दिमाग में हैं वे हैं स्त्री-पुरुष संबंध,प्रेम संबंध,विलुप्त होते शब्दों की प्रक्रिया, आदि-इत्यादि,वगैरह,वगैरह।
सवाल: अपनी सबसे अच्छी कौन सी पोस्ट लगती है?
जवाब: कहना मुश्किल है लेकिन अपने गुरूजी के बारे में लिखी पोस्ट में मैं कुछ जोड़-घटा नहीं सकता इसलिये वह मुझे लगता है उससे अच्छी कोई पोस्ट नहीं है। वैसे अलग-अलग कारणों से लोगों को अलग-अलग चींजें पसंद आती हैं। कभी-कभी (हालांकि बहुत कम ही होता है ऐसा) पुरानी पोस्ट देखते हैं तो हंसी आती है ये भी हमने लिखा था!
सवाल: सबसे खराब भी कोई पोस्ट लगती है?
जवाब: खराब तो कई लगती हैं। लगता है क्या बकवास लिखा है । लेकिन सबसे खराब पोस्ट मुझे वही लगती है जिसे मैंने देबाशीष की खिंचाई करते हुये लिखा था।
सवाल: तो उसे मिटा काहे नहीं देते?
जवाब: कोई मतलब नहीं इस बात का। फिर कोई दूसरी पोस्ट सबसे खराब हो जायेगी। वैसे मुझे लगता है कि पोस्ट हो जाने का बाद अगर और कोई परेशानी नहीं है तो लेख जनता की सम्पत्ति हो जाता है। उसको मिटाने का केवल लेखक का अधिकार नहीं होता।
सवाल: हिंदी ब्लाग जगत में जो नये-नये प्रोजेक्ट चल रहे हैं उनके बारे में कुछ बताओगे?
जवाब: ‘निरंतर’ सबसे नया मामला है। यह चलता रहना चाहिये। इसके अलावा ‘परिचर्चा’ पर मेरी भागेदारी सीमित है। बल्कि कहा जाय है ही नहीं। अक्षरग्राम पर भी लोगों की सक्रियता कम हो गयी है। बुनो कहानी का धागा शशि सिंह ने ऐसा उलझाया कि ओर-छोर ही नहीं मिल रहा। अनुगूंज अब मंदिर का घंटा हो गयी है जिसका मन आता है बजा देता है। कुछ प्रस्ताव थे कि समूह ब्लाग शुरू किया जाय लेकिन लगता नहीं निकट भविष्य में कुछ होगा। फिलहाल अभी तो ब्लाग पर व्यवसायिकता की हवा सबसे ज्यादा चल रही है।
सवाल: व्यवसायिकता के बारे में तुम्हारे क्या विचार हैं?
सवाल: मुझे समझ में नहीं आता क्या कहें? यह सही है कि पैसा मिले तो अच्छा। लेकिन कैसे मिले,उसके लिये कितने प्रतिबंध करने होंगे इसका मुझे अंदाजा नहीं। आज ही देबू ने बताया कि ब्लाग पर विज्ञापन लगाने पर पैसा तभी मिलता है जब उस विज्ञापन को क्लिक किया जाये। अगर यह सच है तो मैंने आज तक किसी भी ब्लाग में किसी भी विज्ञापन को क्लिक नहीं किया। ब्लाग क्या कहें किसी भी साइट पर कोई विज्ञापन नहीं छुआ। वैसे भी ब्लाग लेखन के लिये भुनभुनाते हुये ही सही पूरी छूट देने वाली पत्नी के होते हुये शादी.काम के विज्ञापन क्लिक करने का मन किसका करेगा? आशीष तक उस तरफ नहीं देखते होंगे। समय बतायेगा सारे सवालों के जवाब।
सवाल:रवि रतलामी के ब्लागस्पाट पर लौटने के बारे में कुछ बताओ अपनी प्रतिक्रिया।
जवाब: मुझे अहसास तो था इस बात का लेकिन इतनी जल्दी होगा इसका अंदाजा नहीं था। उन्होंने अपने इंटरव्यू में भी इस बात का संकेत दिया था लेकिन मैंने उसे संपादित कर दिया। उनका वापस जाना खलता है। लेकिन जो है सो है। वैसे रविजी का ब्लागस्पाट का अभी का सीन बहुत अनाकर्षक लगता है। ऐसा लगता है कि मानों विज्ञापनों के झुरमुट में कोई पोस्ट उग आई हो या फिर किसी पोस्ट ने कुछ विज्ञापन गिरफ्तार कर लिये हों। छुट्टी का उपयोग करके कुछ खूबसूरती फैक्टर डालो भाईजी।
सवाल: घर में कितना सहयोग मिलता है लिखने के मामले में?
जवाब: जैसा कि हर घर में होता है हमारे यहाँ भी हमारी श्रीमती जी की मर्जी के बगैर पत्ता नहीं हिलता। वैसे वो हमारे अत्यधिक ब्लागलेखन से बहुत त्रस्त हैं । नाराज भी होती हैं तथा इंटरनेट को अपनी सौत के बराबर मानती हैं जो कि उनके एकमात्र पति को बहकाती रहती है। लेकिन कुछ ऐसा भी है कि उनमें कुछ लोकतांत्रिक गुण भी धंसे हुये हैं लिहाजा अपनी मर्जी के खिलाफ भी हमें अपना समय बर्बाद करने का मौका देती हैं। हमको कई अंतिम अल्टीमेटम मिल चुके हैं। लेकिन चल रहा है मामला। यह कम बड़ा सहयोग नहीं है कि जिस चीज को सख्त नापसंद किया जाये उसे जारी रखने की छूट दी जाये।
सवाल: इस नाराजगी का कारण क्या है? क्या उनको पढ़ने-लिखने में रुचि हीं नहीं है?
जवाब: है काहे नहीं लेकिन जब हम हरदम पिले रहेंगे टाइपिंग में तो कहीं न कहीं कुछ मसौदा तो बनेगा ही। दूसरी बात हमारे यहाँ जीतेंदर जैसे कई पढ़े-लिखे दोस्त हैं जिन लोगों ने सफलता पूर्वक हमारे घर में फैला रखा है कि इंटरनेट पर सब ऐसा-वैसा ही है। वो तो भला हो निधि, मानसी का जिनसे मिलकर तथा जिनके गाने सुनकर उनको अब लगने लगा है कि नहीं कुछ कायदे के लोग भी हैं यहाँ। सब जीतेंदर की तरह नहीं हैं जो नहाते भी अमेरिका की तरफ मुंह करके हैं तभी उनकी पत्नी नहाने के बाद पोछा लगवाती हैं।[वैसे लेखन,इंटरनेट से चिढ़ से ज्यादा या कहें कि मूल कारण इसके पीछे वह डाक्टरी सलाह रही है जिसके अनुसार हमें टीवी, कम्प्यूटर स्क्रीन के सामने देर तक बैठने की सालों सख्त मनाही रही । मनाही अब भी है लेकिन यह चस्का कुछ ऐसा लग गया है कि डाक्टरी सलाह दरकिनार करते रहते हैं-लगातार]

सवाल: हिंदी ब्लागजगत की कुछ खूबियाँ?

जवाब: करीब डेढ़ साल पहले वागर्थ में छपा अनूप सेठी का लेख आज भी कमोवेश चरितार्थ है यहाँ। लोगों में काफी आत्मीयता है। सारा माहौल घरेलू टाइप का है। इन दो सालों में मैं न जाने कितने लोगों का भाईसाहब/भइया बन गया। जाने कितने चेले बन गये। लोग एक दूसरे की खुशियों में शरीक हो रहे हैं,दुख बांट रहे हैं।यह निस्वार्थ सहज संबंध दुर्लभ, सुखद हैं।
सवाल: खामियाँ?
जवाब: अभी तक तकनीकी लोग आपस में मिल कर बडे़ प्रोजेक्ट पर काम करना नहीं सीखे। मतभेत को सुलटाने का हुनर नहीं आया। मतभेद होने पर उससे जूझकर आगे बढ़ने की बजाय लोग किनारे हो जाने का ‘शार्टकट’ अपनाते हैं।

सवाल: और कुछ कहोगे या बस खतम करें?

जवाब: कहने को बहुत कुछ लेकिन वह सब फिर कभी। बाद के लिये भी कुछ रखना होगा न!हाँ किसी को कुछ भी पूछना हो तो पूछे यहाँ या मेल करके(anupkidak at gmail dot com) हम जवाब देने का प्रयास करेंगे।

36 responses to “…और ये फ़ुरसतिया के दो साल”

  1. समीर लाल
    चिठ्ठाकारी के दो सफल वर्ष पूर्ण करने पर हार्दिक बधाई.यह क्रम नित इसी तरह चलता रहे, इस हेतु शुभकामनायें.
    स्व साक्षात्कार अच्छा लगा.
  2. eswami
    आप सबसे बेहतरीन चिट्ठाकार हैं लेकिन हिंदी ब्लागमंडल में आपकी भूमिका उससे भी व्यापक रही है – आपने समूह के सदस्यों को आपस मे जोडे रखा है. आजकल जब मैं तकनीकी काम से ज्यादा प्रबंधन का काम कर रहा हूं तो इमानदारी से महसूस करता हूं की हम तकनीकी खोपडी वाले कितने खर-बुद्दी होते हैं. और आपने तो कितनी ही बार मेरे समेत ऐसे कितने ही चरित्रों की वानर सेना को साधा है.
    मैंने और मेरे अलावा कितने ही ब्लागर्स नें चिट्ठाकारी ही आपका ब्लाग देख कर शुरु की और मैं तो हमेशा आपके लेखन से सीखता हूं. दो चार दिन हुए होंगे मैं मानोशीजी को बता रहा था की आपने कैसे वर्तनी की गलतियां सुधारने, क्लिष्ट शब्द हटाने, छोटे पेरेग्राफ़ रखने और पोस्ट का मंतव्य और मूड बनाए रखने जैसी कितनी छोटी लेकिन महत्वपूर्ण बातें सिखाई हैं मुझे.
    हिंदी साहित्य में कलम के तेवर कितने तेज़ हैं वो आपने धूमिल और परसाईं जी के लेखन को अपने ब्लाग के माध्यम से जैसे हाईलाईट कर के याद दिलवाया है – बहुत महत्वपूर्ण अप्रोच है ब्लागिंग की.
    आपसे सभी को अच्छा और लगातार अच्छा लिखने की ही नही पढने की भी प्रेरणा मिलती है. जब किसी नए ब्लागर की अच्छी पोस्ट देख कर आप खुश होते हैं तो एक सीख मिलती है की अच्छा लेखन किसी महिमामंडन का मोहताज नही होता उसे हमेशा सराहना चाहिए.
    जैसा की मैं पहले भी कह रहा था की आपके तो पाठक भी मंज गए हैं! ये आपके चिट्ठे के ही दो साल नही हैं हिंदी चिट्ठाकारी के लिए भी एक मील का पत्थर है और इसके लिए आप और सभी पाठक(जिनमें ब्लागर्स तो शामिल हैं ही) भी बधाई के पात्र हैं.
  3. राजीव
    वाह अनूप जी, फ़ुरसतिया की दूसरी वर्षगाँठ पर बधाई।
  4. आलोक
    मुबारक। उम्मीद है कि और साठ साल खींचेंगे।
  5. आलोक
    हिन्दी चिट्ठाकारों की कमियों के बारे में –
    उन कमियों का मूल कारण है “हम हिन्दी पर अहसान कर रहे हैं” वाली भावना।
    लेकिन चिट्ठाकारी की वजह से पहली बार हिन्दी के ऑन्लाइन समुदाय तैयार हुए हैं यह खुशी की बात है। शुरू में कुछ अड़चनें आना तो स्वाभाविक है।
    मज़े की बात यह है कि जाल आपके खेल के मैदान की तरह है, चाहें जो खेल खेलें, चाहे जितनी देर खेलें, आपकी मर्ज़ी। इस आज़ादी का शुरुआत में लोगों को अहसास नहीं होता है, इसलिए एक दूसरे का मुँह ताकते हैं, और अपनी बात न मानने पर नाराज़ हो जाते हैं – किसी को किसीकी इजाज़त की ज़रूरत नहीं है – न आपको न किसी और को।
    यह बात जब हम लोग सीख जाएँगे – कि कोई आपको कुछ करने से रोक नहीं सकता है और न आप किसी और को – तो परस्पर आदर की भावना स्वतः आएगी।
    हिन्दी के अभी कुल 700 से भी कम जालस्थल है। बहुत आगे जाना है, साथ ही इसका मतलब यह भी है कि सबके पास बहुत कुछ करने का बहुत मौका है। जब इस बात का अहसास होगा तो बौखलाहट और ऋणात्मक होड़ की भावना स्वतः शून्य में विलीन हो जाएगी।
  6. जीतू
    अमां दो साल हो भी गए? अभी लगता है जैसे कल की ही बात थी।
    खैर! अब दो साल कहते हो तो मन लेते है। अब मान लिया है तो शुभकामनाएं भी देनी ही पड़ेंगी। फुरसतिया को दो साल पूरा करने के लिये बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएं।
    जिन्दगी के सफ़र मे कुछ लोग आपसे अपने आप मिल जाते है, मिल क्या जाते है यूं कहो कि टकरा जाते है, अपने फुरसतिया भी कुछ ऐसी श्रेणी के है। शायद पाठक लोग समझते होंगे कि फुरसतिया से मेरी बचपन की पहचान है, लेकिन नही जनाब, हम लोग सिर्फ़ दो साल पहले ही मिले है, वो भी इनके ब्लॉग लेखन के बाद। लेकिन दोस्ताना इतना गहरा है कि, पुराने दोस्त भी इनके सामने पानी भरते है। फुरसतिया के रुप मे हमे परिपक्व सोच वाला बड़ा भाई, मजाक करने और सह सकने वाला लंगोटिया यार और सही रास्ता दिखाने वाला पथप्रदर्शक मिला है। अनूप को हम चाहे जितना भी हांक ले, चाहे जितना चिकाई लें, अनूप कभी बुरा नही मानते। यही इनकी खासियत है। इनका लेखन बेमिसाल है और ये हिन्दी चिट्ठाजगत की शान है। ईश्वर से यही प्रार्थना है कि ये हम सभी का यूं ही सदैव मार्गदर्शन करते रहें।
  7. मनीष
    बहुत बहुत बधाई! मात्र दो साल में आपने गद्य लेखन में जो मुकाम हासिल किया है वो निश्चय ही काबिलेतारीफ है। भविष्य में आप हिन्दी साहित्य जगत की ऊँचाइयों को छुएँ इन्हीं शुभकामनाओं के साथ !
  8. ratna
    अनूप जी,
    दूसरी वर्षगांठ पर बधाई।
    एक अहम् सवाल– आप इतना बेहतरीन कैसे लिख लेते है?
  9. निधि
    भाई भौत-भौत बधाई चिट्ठे की दूसरी वर्षगाँठ के लिये :) । अब ये कहिये लड्डू कब भेज रहे हैं ?
  10. सागर चन्द नाहर
    दो साल पूरे करने पर हार्दिक बधाई, मैं भी वही कहना चाहूंगा जो आलोक सा. ने कहा है कि”उम्मीद है कि और साठ साल खींचेंगे। “
  11. जगदीश भाटिया
    अनूप जी को बधाई,
    कुछ चिट्ठे ऎसे हैं जिनकी पोस्ट नारद पर देखते ही फौरन क्लिक कर पढ़ते है, उन में सबसे ऊपर फुरसतिया है। आप यूंही लिखते रहें और हम पढ़ते रहें, यही कामना है।
  12. रवि
    पहले तो बधाई दे दूं, फिर इत……ना लं…..बा पोस्ट फ़ुरसत में पढ़ता हूँ:)
  13. नितिन बागला
    ‘फ़ुरसतिया’ के दो वर्ष पूरे होने पर हार्दिक बधाई
  14. Manoshi
    अनूप जी,
    आप के चिट्ठों के माध्यम से ही आपसे परिचय हुआ मगर फिर आनलाइन बातें करते हुये अहसास हुआ कि आप न सिर्फ़ अच्छा लिखते हैं बल्कि एक बहुत अच्छे दोस्त बनने की क़ाबिलियत रखते हैं। आपके ब्लाग के दो साल पूरे करने और ब्लागजगत में आपके अतुलनीय योगदान के लिये ढेरों बधाइयाँ। ऐसा ही लिखते रहें और सब को लिखने के लिये प्रोत्साहित करते रहें।
  15. सृजन शिल्पी
    हमें भी हसरत है कि कुछ लिखें आप जैसा,
    मगर वो किस्सागोई कहाँ से लाएँ जो फितरत में नहीं।
  16. अतुल
    बधाई सबने दे दी। हमारी शुभकामनाऐं स्वीकारें। फिलहाल स्वामी को तमिलभाषी खूसट बुढ़ढ़ा समझने की सिचुऐशन कैसे बनी यही सोच कर मौज आ रही है।
  17. Tarun
    चिठ्ठाकारी के दो सफल वर्ष पूर्ण करने पर हार्दिक बधाई. अब इतने लोग बोल रहे हैं तो खाली जो बोल रहे होंगे इसलिये सोचा देर से ही सही हम भी बहती गंगा में हाथ धों लें। जौहर-चोपडा की फिल्में अगर बोक्स आफिस में रिकार्ड तोड़ती हैं तो आप की पोस्ट टिप्पणियों में। बस ऐसे ही हिट देते रहिये, जहाँ तक रही लेखन की तारीफ तो हमसे भी काबिल लोगों ने कुछ छोडा ही नही कहने को,शुभकामनाओं सहित।
  18. SHUAIB
    कामयाबी दो वर्ष पूरे करने पर हार्दिक बधाई – दुआ है के आपको और इतनी फुरसत मिले के हमें आपका लेख पढने को मिले :)
  19. hindiblogger
    इससे पहले भी आपने कई महानुभावों के ज़ोरदार साक्षात्कार किए हैं, लेकिन इस बार का साक्षात्कार पूर्णता के कहीं ज़्यादा क़रीब है. आप पत्रकार-ब्लॉगर के डबल रोल में छा गए हैं. अच्छा हुआ इंटरव्यू किसी पेशेवर पत्रकार ने नहीं किया, वरना शायद ही इतनी जानकारी मिलती.
    चिट्ठाकारी में दो साल पूरे करने पर बहुत-बहुत बधाई!
  20. आशीष
    हमारी भी बधाई स्वीकार कर ली जाये !
    हम पिछ्ले दस दिनो से खूब आवारागर्दी कर ढेर सारा माल लिखने के लिये जमा कर लाये है, बस अब शुरू हो जाते हैं !
  21. प्रत्यक्षा
    ये बढिया रहा । साक्षात्कार लेने वाला और देने वाला , दोनों को बधाई ।
  22. शशि सिंह
    खेल-खेल में घुस गया इस गली… अब है कि लगता है सदियों पुराना पुस्तैनी मकान है यहां. जब बात पुस्तैनी की हो तो पड़ोस में भाई-चाचा, दीदी-बहिनी भी तो रहेंगे न! इसी रिश्ते के एक छोटे भाई की भी शुभकामनाएं!!!
  23. शशि सिंह
    एगो बात बातइये, ई अपने भीतर के फुरसतिया पत्रकारी आत्मा को काहे सुता रखे थे… बड़ा कमाल का पत्रकार है भई, एकदमे से ब्लागिंग के दुनिया का राजदीप सरदेसाई. पहिले चिरब्लॉगर रवि रतलामी, फिर अनूप शुक्ला. जीतू भैया, देबू दा, सुनीलजी तैयार हो जाइये. फुरसतिया रिपोर्टर अब आपको धरने की तैयारी में है.
  24. देबाशीष
    अनूप,
    ब्लॉगिंग के दो साल पूरे होने पर हमरी भी बधाई! बधाई उन पाठकों को भी जो अनूप के लंबे लेखों का धैर्यपूर्वक पठन कर पाते है, कुछ मेरे जैसे भी होंगे जो समूचा ब्लॉग पृष्ठ सहेजकर उन्हें आफलाईन पढ़ते हैं। अनूप को परसाई पसंद हैं और स्वयं उनकी लेखनी परसाई की कलम सी बेबाक है, खुशवंत सिंह के कॉलम के कैचलाईन सी “विथ मैलिस टुवर्ड्स वन एंड आल”। जीवन और साहित्य से समृद्ध अनुभवों की सीपियों को आपने बटोरकर हमें सौंपा है और आशा है ये सिलसिला अनवरत जारी रहेगा।
    आपके लेखन के सानिध्य से मुझे अनजाने ही धैर्य और मौज लेने की प्रेरणा मिलती रहती है और शायद “कड़ी की झड़ी” के छद्म पोस्टों के मायाजाल से यह बचा ले। आप, रवि और सुनील हिन्दी के सशक्त चिट्ठाकारों में अग्रणी हैं और आशा है कि आपकी लेखनी के आस्वादन का आनंद यूं ही मिलता रहेगा।
    अभिनंदन व शुभकामनायें!
    आपका,
    देबाशीष
  25. ई-छाया
    विलंब से ही सही, बधाई हमारी भी, “देर आयद दरुस्त आयद” माना जाये।
    हमारी मनोकामना है अब जो भी कुछ इनाम विनाम मिलना है चिठ्ठाकारी के लिये आपको भी मिले भाई।
    रवि जी, सुनील जी को तो मिल गया, आप ही रह गये हैं अब। बताइयेगा किधर वोट डालना है, जब वोटिंग हो।
  26. प्रेमलता पांडे
    बहुत-बहुत बधाई।
  27. रवि
    …आज ही देबू ने बताया कि ब्लाग पर विज्ञापन लगाने पर पैसा तभी मिलता है जब उस विज्ञापन को क्लिक किया जाये…
    ऐसा नहीं है. विज्ञापन दिखने पर भी पैसा मिलता है, अलबत्ता कम मिलता है. परंतु जब आपकी पाठक संख्या प्रतिदिन दस हजार से ऊपर हो जाएगी तो फिर आप डॉलर गिनने लगेंगे. अभी तो हिन्दी में यह समय आने में दो-चार साल लगेंगे. परंतु शुरूआत करने में क्या बुराई है?
    …वैसे रविजी का ब्लागस्पाट का अभी का सीन बहुत अनाकर्षक लगता है। ऐसा लगता है कि मानों विज्ञापनों के झुरमुट में कोई पोस्ट उग आई हो या फिर किसी पोस्ट ने कुछ विज्ञापन गिरफ्तार कर लिये हों। छुट्टी का उपयोग करके कुछ खूबसूरती फैक्टर डालो भाईजी।…
    एक कोशिश की है. आपकी टिप्पणी की दरकार फिर से है. वैसे, कुछ विस्तृत सुझाव दे सकें तो और अच्छा.
  28. फुरसतिया » आपने शुभकामनायें दीं तो हम भी कहते हैं शुक्रिया…
    [...] पिछले साल जब दो साल हुये तो हमने खुद ही अपना इंटरव्यू ले डाला था। क्या करें कोई लेता ही नहीं था। इंटरव्यू लेने के लिये जितना प्रसिद्ध होना था उतना हो नहीं पाये थे और बदनामी का स्कोर भी कुछ कम पड़ गया। इनाम / इंटरव्यू हमेशा छंटे हुये लोगों का होता है। हम छंटे हुये लोगों में न आ पाये थे। छंट जाते रहे। इसलिये अपनी तारीफ़ में आत्मनिर्भरता की स्थिति को प्राप्त हुये। [...]
  29. और ये फ़ुरसतिया के चार साल
    [...] सालगिरह के मौके पर अपने खुद के साक्षात्कार के [...]
  30. गर्मी, पाठक और अप्रसांगिक होने के खतरे
    [...] से ढाई साल पहले रविरतलामी जी ने टिपियाया था-जब आपकी पाठक संख्या प्रतिदिन दस [...]
  31. …और ये फ़ुरसतिया के पांच साल
    [...] को धकिया के। पूरी शराफ़त से निकले एक , दो ,तीन , और चार को रास्ता [...]
  32. : …और ये फ़ुरसतिया के छह साल
    [...] में छह साल निकल लिये! पूरी शराफ़त से !एक , दो ,तीन , और चार और पांच को रास्ता [...]
  33. : …और ये फ़ुरसतिया के सात साल
    [...] लिये! कोई गड़बड़ नहीं भाई इसके पहले एक , दो ,तीन , और चार , पांच और छह भी निकले इज्जत [...]
  34. …और ये फ़ुरसतिया के आठ साल
    [...] एक , दो ,तीन , चार , पांच , छह और सात साल के पूरे [...]
  35. : …और ये फ़ुरसतिया के नौ साल
    [...] एक , दो ,तीन , चार , पांच , छह , सात और आठ साल के [...]

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