Wednesday, June 20, 2007

कुछ सुलगते हायकू जैसी तुक बंदी

http://web.archive.org/web/20140419214958/http://hindini.com/fursatiya/archives/291

कुछ सुलगते हायकू जैसी तुक बंदी

सूरज बोला
झुलसेगा शरीर
चल जा भाग।
परछाइयां
दुबक गयीं सब
धंसी खुद में।
जरा सी बात
फ़ैली गर्म लू जैसी
चिलचिलाती।
कोई दिखे न
सन्नाटा पसरा है
चारो तरफ़।
अमलताश
खिलखिलाता खड़ा
बाकी उदास।
धरती तपी
बर्फ़ भी पिघलेगी
डूबेंगे सब।
अपनी गर्मी
सब बाहर करें
सनसनाते।
‘एच’ अलग
‘टू’ भी दूर भगेगा
सब अकेले।
पौशाला है ये
खुद खड़ा धूप में
पानी पिलाता।

17 responses to “कुछ सुलगते हायकू जैसी तुक बंदी”

  1. प्रत्यक्षा
    बढिया ! अब ,
    बरसाती हायकू
    को भी बुला लें
  2. Beji
    परछाइयां
    दुबक गयीं सब
    धंसी खुद में।
    सबसे अच्छी यह लगी…..वैसे तो सभी अच्छी है।
  3. सत्येंद्र प्रसाद श्रीवास्तव
    बहुत अच्छे। हाइकू भी और उठाए गए मुद्दे भी
  4. alok puranik
    बढ़िया-
    ‘एच’ अलग
    ‘टू’ भी दूर भगेगा
    सब अकेले
    -भई वाह
    आलोक पुराणिक
  5. अफ़लातून
    बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति । साधुवाद। और मनोदशा ?
  6. Gyan Dutt Pandey
    फुरसतिया
    फुरसत में
    बाकी सब हलकान!
  7. Jagdish Bhatia
    ‘परछाइयां
    दुबक गयीं सब
    धंसी खुद में।’
    अचछा है :)
  8. राकेश खंडेलवाल
    अब हम भी
    चुप नहीं रहेंगे
    वाह वाह जी.
    क्या खूब है
    गर्मी का असर
    हायकू लिखे
    अच्छी बात है
    सामयिक रहना
    पल दो पल
  9. समीर लाल
    वाकई सुलगते हुए बेहतरीन हैं सभी हाईकु.
    कैसे लिख लेते हो आप?? :)
    लिखी आपने
    दोपहरी की गर्मी
    बने हाईकु.
    लिखते जाओ
    हम सब पढ़ते
    नित नूतन.
  10. आशीष
    ‘एच’ अलग
    ‘टू’ भी दूर भगेगा
    सब अकेले।
    लोगो को एच १ के पिछे भागते सुना था, ये एच टू दूर क्यों भाग रहे है ?
  11. अनूप भार्गव
    साफ़ सुथरे
    सामयिक हायकु
    क्या बात है !!!!!!
  12. arun  arora
    ‘एच’ अलग
    ‘टू’ भी दूर भगेगा
    सब अकेले।
    एच मै एकट्ठे कर रहा हू टू भेजदो ,वरना ये पंगा करेगे,
    मेरी जुम्मेदारी नही है,काहे की रुक नही रहे,जल्दी भेजो दादा
  13. sanjay tiwari
    अपनी गर्मी
    सब बाहर करें
    सनसनाते….
    मूल में यह हमारी प्रवृत्ति है. अभिव्यक्ति रोक दें तो विक्षिप्त होते देर न लगेगी. क्योंकि अंदर इतना भरा है कि रहा तो विस्फोट कर देगा. अंदर आग भी है, शीतलता भी है. आजकल उसका संतुलन बिगड़ गया है. आग इतनी बढ़ गयी है कि शीतलता भी एक कोने में अलग जा बैठी है.
    थोड़े दिनों पहले इष्टदेव की एक कविता पढ़ी थी तो मौन हो गया था. इसे पढ़कर फिर मौन होने का मन कर रहा है, शायद कुछ उतर जाए मेरे भीतर…
  14. anamdas
    तपती गरमी में
    ठंडक लाय
    हाय फुरसतिया
    आपके हायकू
    एक लिख के रूके
    और लिखे न कायकू
    सेट फार्मूला है गुरू
    लिखत जाओ
    बनाय बनायकू
    बारिश शुरू हुई
    गर्मी पर अटके
    अरे लिखो पानी टपकाएकु
  15. अभिनव
    आपने लिख,
    ये हाईकू हमको
    प्रेरित किया।
  16. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] कुछ सुलगते हायकू जैसी तुक बंदी [...]
  17. anupama tripathi
    अमलताश
    खिलखिलाता खड़ा
    बाकी उदास।
    सार्थक सुन्दर हाइकु .सभी .

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