http://web.archive.org/web/20140419213730/http://hindini.com/fursatiya/archives/311
तमाम तमाम लेख उनके हाल आफ फ़ेम में लगे थे। इसके अलावा अपने अमेरिकन जीवन के संस्मरण उन्होंने लिखे। ये संस्मरण एक खांटी देशी के एक चकाचौंध भरे देश में पहुंचकर लिखे थे, इस चकाचौध में वो बच्चा अपनी मस्ती बरकरार रखे थे। ये संस्मरण अभिव्यक्ति में धारावाहिक रूप में छपे हैं। इनकी शुरुआत करते हुये अतुल ने लिखा था-
हाल ही में इनमें से एक लेख मैंने प्रवासी भारतीयों के पत्रिका निकट में भी देखा। निरंतर से भी वे शुरू से ही जुड़े रहे।
एक भारतीय होने के बावजूद बालक संस्कारी और जानता है कि अमेरिका में हर ठुकन कथा के बादक्लेम पुराण होता है। सो एक आदर्श नागरिक होने के नाते उसने लिखा-
याद तो हमें भी आती है
By फ़ुरसतिया on July 31, 2007
ज्ञानदत्त पाण्डेयजी और आलोक पुराणिकजी आजकल हमारी सबेरे की चाय से जुड़ गये हैं। कभी-कभी ज्ञानजी का लेख पोस्ट होने में देर हो जाती है तब दुबारा चाय का जुगाड़ करना पड़ता है।
ज्ञानजी के नित नये अन्दाज में प्रस्तुत लेख पढ़कर यही लगता है कि आते-आते इतनी देर क्यों कर दी। यही बात आलोक पुराणिकजी के साथ है। उनका लेख पढ़ते हुये लगता है कि कैसे ये महाराज इतने-इतने बेहतरीन तर्क जुगाड़ लेते हैं कटाक्ष करने के लिये। अद्भुत टाइप।
आज ज्ञानजी ने देवीचरण उपाध्याय को याद किया। कुछ दिन पहले उन्होंने लिखा था कभी-कभी धुरविरोधी की याद आती है।
ज्ञानदत्त पाण्डेयजी और आलोक पुराणिक आजकल हमारी सबेरे की चाय से जुड़ गये हैं। कभी-कभी ज्ञानजी का लेख पोस्ट होने में देर हो जाती है तब दुबारा चाय का जुगाड़ करना पड़ता है। 
उस दिन जब धुरविरोधी के बारे में पढ़ा था तब यह सोचा था कि शायद वे फ़िर लिखना शुरू करें। अभी तक नहीं किया। लेकिन अगर वे पढ़ने लिखने से जुड़े हैं तो जरूर किसी न किसी रूप में अपने विचार प्रकट करेंगे। ऐसा मुझे लगता है।
मैंने जबसे ब्लाग लिखना शुरू किया तबसे तमाम लेखक आये लिखना शुरू किया लोगों पहली पसंद बने और ऐतिहासिक हो गये। वे अभी भी ब्लाग जगत से पाठक की हैसियत से जुड़े हैं लेकिन उनका लेखन जड़त्व का शिकार हो गया है।
इनमे सबसे पहला नाम है अतुल अरोरा का। उनके रोजनामचे की हम प्रतीक्षा करते थे। उनकी किस्सागोई के अन्दाज के सभी पाठक मुरीद थे। भैंसकथा के बहाने उन्होंने मौज का नया सिलसिला शुरू किया था जो कि अब थम सा गया लगता है।
नारद जी ने स्वयँभू नारद के मन मे झाँक कर देख लिया , कि वे कानपुर के किसी मोहल्ले में साइकिल के टायर में डँडा लगा कर दौड़ने का खेल खेल रहे थे। उनके पीछे दस बारह बालकों की टोली थी, उसमें एक बालक जो एक हाथ से अपनी नेकर सँभाले था और दूसरे हाथ से नाक पोंछता भाग रहा था सब उसे छुट्टन-छुट्टन कहकर बुला रहा थे।
तमाम तमाम लेख उनके हाल आफ फ़ेम में लगे थे। इसके अलावा अपने अमेरिकन जीवन के संस्मरण उन्होंने लिखे। ये संस्मरण एक खांटी देशी के एक चकाचौंध भरे देश में पहुंचकर लिखे थे, इस चकाचौध में वो बच्चा अपनी मस्ती बरकरार रखे थे। ये संस्मरण अभिव्यक्ति में धारावाहिक रूप में छपे हैं। इनकी शुरुआत करते हुये अतुल ने लिखा था-
उम्र तमाम होती रही। दोस्त मिले-छूटे। कानपुर की गलियों में एल.एम.एल.वेस्पा चलाते-चलाते एक दिन खुद को अटलांटा में तेज गली में पाया।अभी तक तेजरफ़्तार रहे इस जिंदगी में जो अभी तक गुजरा है, खट्टा-मीठा या गुदगुदाता सा है उसमें से कुछ आपके साथ बांट रहा हूं यहां।
हाल ही में इनमें से एक लेख मैंने प्रवासी भारतीयों के पत्रिका निकट में भी देखा। निरंतर से भी वे शुरू से ही जुड़े रहे।
अतुल अरोरा कनपुरिया होने के नाते बाई डिफ़ाल्ट शरारती हैं। इनकी रचनात्मकता के चरम क्षण वे होते हैं जब ये अपनी चिकाईबाजी के परममूड में होते हैं। आजकल न जाने कहां ये बिजी हैं कि न चिकाई करते हैं न लिखाई। बस जब कभी टोंका जाता है तो पिनपिनाते हुये कहते हैं -कमेंट तो करते हैं। ऐसे थोड़ी चलता है। देखो यहां दुनिया भर के फ़साद हो रहे हैं और तुमको मिर्ची ही नहीं लगती। क्या बात है भाई! 
सूचनार्थ बता दें कि हिंदी ब्लाग जगत के शुरुआती दौर में हम लोगों ने अंग्रेजी के ब्लागरों से जम के कुश्ती करी। अब चूंकि यहां आपस में लड़ने की सुविधा हो गयी है इसलिये वहां जाकर लड़ना छोड़ दिया।
याद तो हमें ठेलुहा नरेश उर्फ़ इंद्र अवस्थी के लेखन की भी बहुत है। हमारे ब्लाग लिखना शुरू करने के बाद ये ब्लाग लिखने को उचके। इनके परिचय से ही इनके मूड का अन्दाज लग जायेगा।
जन्म से कलकतिया, अभियांत्रिकी (कंप्यूटर साइंस) इलाहाबाद से, मूलत: उत्तर प्रदेश से. नौकरी और प्रोजेक्ट बड़ौदा, मुंबई, कलकत्ता, जमशेदपुर, लास एंजिलिस में करने के बाद वर्तमान में पोर्टलैंड, ओरेगन, संयुक्त राज्य में कार्यरत. जहाँ रहे प्रवासी माने गये, जैसे कलकत्ते में यूपी वाले, यूपी में बंगाली, बड़ौदा-मुंबई में श्रद्धानुसार भैया या बांग, अब यू. एस. में देसी या इंडियन. पंगा लेने की आदत नहीं, लेकिन जहाँ भी रहे, ठँस के रहे, हर जगह अपना फच्चर फँसाते रहे. लोगों ने मौज ली तो हमने भी लोगों से मौज ली. बहरहाल हमको भी शिकायत का मौका नहीं मिला. शायद इसी स्थिति को प्राप्त होने को ठेलुहई कहते हैं.
इंद्र अवस्थी खानदानी ठेलुहा हैं। आलस्य से इनका चिरस्थायी गठबंधन है। इंद्र अवस्थी में ठेलुहई के कीटाणु होने की बात की ठेलुहई को पुष्टि करते हुये उनके पिताजी ने कहा-
लल्ला पर जो पुत्तन का जो लेख पढ़ा वह वास्तव में बड़ा सशक्त रेखाचित्र है. -रेखैचित्र कहा जायेगा इसे ,हय कि नहीं !.लल्ला भी एक अद्वितीय जीव हैं।जैसे जीवन में कुछ बुराइयां होती हैं लेकिन वे अनिवार्य बुराइयां होती हैं जैसे हमारे मौरावां के फकीरे हैं।वैसे ही लल्ला में चाहे जो बुराई हों लेकिन लल्ला की उपस्थिति हर मौके पर अनिवार्य रहती है।पुत्तन का लेख मैंने पढ़ा और पढ़कर मुझे लगा जैसे जो वंश परम्परा में ठेलुहई के कीटाणु होते हैं वे पुत्तन में मौजूद हैं।
इंद्र अवस्थी वाचिक परंपरा के व्यंग्यकार हैं। जितना लिखते हैं उससे कई गुना बातचीत में झेलाते हैं। पोर्ट्लैंड में अक्सर अपनी गाड़ी आफ़िस की तरफ़ ठकेलते हुये वे हमसे बतियाते हैं और ब्लाग जगत का भी हालचाल लेते हैं। मैंन उनके लिखने-पढ़ने से विरत रहने को कोसता हूं तो अगला कहता है- पढ़ते तो हैं। पचास परसेंट तो पा लिया। इससे ज्यादा नंबर की चाह हमें कभी रही है आजतक।
प्रियंकरजी आजकल संकर भाषा के पनघट पर अपनी गगरी कम कुल्हड़ ज्यादा फोड़ रहे हैं। इसी संकर भाषा के पनघट पर ठेलुहाते हुये अवस्थी ने लिखा था
सिटीज की तो बात ही छोड़ दो, विलेजेज में भी बड़ा क्रेज़ हो गया है. बिहार से रीसेंटली अभी एक मेरे फ्रेंड के फादर-इन-ला आये हुए थे, बताने लगे – ‘एजुकेसन का कंडीसन भर्स से एकदम भर्स्ट हो गया है. पटना इनुभस्टी में सेसनै बिहाइंड चल रहा है टू टू थ्री ईयर्स. कम्प्लीट सिस्टमे आउट-आफ-आर्डर है. मिनिस्टर लोग का फेमिली तो आउट-आफ-स्टेटे स्टडी करता है. लेकिन पब्लिक रन कर रहा है इंगलिश स्कूल के पीछे. रूरल एरिया में भी ट्रैभेल कीजिये, देखियेगा इंगलिस स्कूल का इनाउगुरेसन कोई पोलिटिकल लीडर कर रहा है सीजर से रिबन कट करके.किसी को स्टेट का इंफ्रास्ट्रक्चरवा का भरी नहीं, आलमोस्ट निल.’ (अपने ग्रैंडसन से भी आर्ग्युमेंट हो गया, सीजर-सीजर्स के चक्कर में उनका. मुँगेरीलाल जी डामिनेट कर गये इस लाजिक के साथ – ‘हमको सिंगुलर-पलूरल लर्न कराने का ब्लंडर मिस्टेक तो मत ट्राई करियेगा, हम ई सब टोटल स्टडी करके माइंड में फिल कर लिया हूँ और हम नाट इभेन अ सिंगल टाइम कोई लीडर का राइट हैंड में सीजर देखा हूँ मोर दैन भन. सो हमसे तो ई इंगलिस बतियायेगा मत, नहीं तो अपना इंगलिस फारगेट कर जाइयेगा.’ लास्ट सेंटेंस में हिडेन थ्रेट को देखकर ग्रैंडसन साइलेंट हो गये )
अपनी गाड़ी की ठुकन कथा बयान करते हुये अवस्थी ने लिखा :-
सब कुछ उपयुक्त था. गाड़ी ९ साल पुरानी हो चुकी थी, सो समय उचित था. हमें ठोंका गया सो अवसर उपयुक्त था. ठोंकने वाली ‘I am so sorry’ का अखंड पाठ कर रही थी सो मामला भी चकाचक था. हम अपने को परंपरागत तरीके से चुटकी काट कर वास्तविकता कन्फर्म भी कर चुके थे, सो जो हुआ था, वह अवश्य ही हुआ था. बकौल श्रीलाल शुक्ल हमारी बाँछें भी जहाँ कहीं थीं खिल पड़ीं थीं. हमने आकाश की तरफ देखा शायद इस दुर्लभ अवसर का दर्शन करने देवगण भी पधारें हों. तभी हमारे कानों में चिंगलिश आवाज पड़ी – ‘ If you need any assistance, you may take my phone numer’. यानी एक चीनी महिला इस क्षण की साक्षी बनने को भी तैयार थीं.
एक भारतीय होने के बावजूद बालक संस्कारी और जानता है कि अमेरिका में हर ठुकन कथा के बादक्लेम पुराण होता है। सो एक आदर्श नागरिक होने के नाते उसने लिखा-
हमारे सामने कोई रास्ता नहीं बचा, झख मारकर हम गठबंधन की किसी संतुष्ट पार्टी के असंतुष्ट विधायक-सांसद की तरह ( ‘जो मिल रहा है उसे दाब लो नहीं तो उससे भी हाथ धो बैठोगे’ जैसी भावना के वशीभूत होकर) तैयार हो गये जनहित में पुरानी गाड़ी को ही बनवाने को.हम इंश्योरेंस वाले की विजयी मुसकान फोन पर ही सुन रहे थे. चूँकि एक आदर्श अमरीकी उपभोक्ता के सारे दाँव हम खेल चुके थे और सामने वाला भी सारी जवाबी चालें चल चुका था और हम दोनों एक दूसरे से थोड़ा-थोड़ा ऊब चुके थे, इसलिये अब एक दूसरे को बाई-बाई किया गया.
अतुल और अवस्थी कानपुर से जुड़े रहे हैं। दोनों की आजकल अमेरिका में घिसाई कर रहे हैं। इनके लेखन की याद अक्सर आती है। कब इनको दुबारा बुखार चड़ेगा।
यह लेख वस्तुत: लेख कम रेलवे स्टेशन पर चिपका इस्तहार ज्यादा है कि इस तरह का लड़का बिना बताये घर से भाग गया है। बेटा घर चले आओ। तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा। घरवाले परेशान हैं। पहुंचाने वाले को उचित इनाम!
आगे कुछ और इश्तहार चिपकेंगे। बहुत लोग घर से भागे हुये हैं। 
Posted in इनसे मिलिये, बस यूं ही | 21 Responses
बाकी बढिया चकाचक..:)
इ दोनो(अतुलवा और इन्द्र ठलुवा) घर से भागे हुए है, इनके लिए इश्तहार तो चिपकाया जाए, लेकिन दूसरा वाला, “पकड़वाने वाले को उचित इनाम मिलेगा” टाइप का। इन दोनो की कमी बहुत खलती है। अतुलवा तो कभी कभी बहकावे मे आकर एक आध पोस्ट (रस्म अदायगी टाइप) लिख ही देता है, ये ठलुवा, बैठे बैठे करता का है? है भई? जवाब दो।
शुक्रिया शुक्ल जी यह सब लिंक देने के लिए!!