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अन्य हैं जो लौटते दे शूल को संकल्प सारे
By फ़ुरसतिया on September 7, 2007
कल रात हम जब कोई पोस्ट ठेलने की सोच रहे थे तो सोचते ही रह गये। कई टापिक विधायकी के उम्मीदवार की तरह उचक रहे थे हमको चुन लो, हमको चुन लो।
इस चुनाव में देरी हो गयी। सरकारी कार्यक्रमों के क्रियान्वयन की तरह।
अंत में निराला जी की कविता सबसे भारी पडी। इसलिये भी कि यह कविता नेट पर दिखी नहीं। इसके पहले मैंने महादेवी वर्मा जी कविता पंथ होने दो अपरिचित पोस्ट करने की सोची। इसकी ये पंक्तियां मुझे बहुत अच्छी लगती हैं-
और होंगे चरण हारे,
अन्य हैं जो लौटते दे शूल को संकल्प सारे;
दुखव्रती निर्माण-उन्मद
यह अमरता नापते पद;
बाँध देंगे अंक-संसृति से तिमिर में स्वर्ण बेला!
यह मजे की बात है कि महादेवीजी को लोग उनकी कविता मैं नीर भरी दुख की बदली से ही जानने का प्रयास करते हैं। उनकी उद्बोधन कविताओं को न जाने क्यों अनदेखा सा किया जाता रहा। यह तो आलोचक लोग जाने लेकिन उनकी जाग तुझको दूर जाना कविता की ये पंक्तियां मुझे सदैव मनोहारी च उद्बोधनकारी लगती रही हैं-
चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बना!
जाग तुझको दूर जाना!बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बंधन सजीले?
पंथ की बाधा बनेंगे तितलयों के पर रंगीले?
विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन,
क्या डुबा देंगे तुझे यह फूल के दल ओस-गीले?तू न अपनी छाँह को अपने लिए कारा बनाना!
जाग तुझको दूर जाना!
बांध लेंगे क्या तुझे ये मोम के बंधन सजीले जैसी उपमायें हमने तब पढ़ीं थी जब हम हाईस्कूल में थे। आज से तीस साल पहले करीब। उस समय बाल मन था। तब भी लगता था कि कवियत्री कहती हैं तू न अपनी छांह को अपने लिये कारा बनाना। तब से लेकर आजतक कविता के प्रभाव में कमी नहीं हुयी है।
इस तरह की हौसला आफ़जाई करने वाली कवितायें अगर तर्क की कसौटी पर कसी जायें तो तमाम लोचे निकल आयेंगे। लेकिन हमारी कमजोरियां भी कौन ठोस धरातल पर रहती हैं। वे भी तो लंज-पुंज जमीन पर अमरबेल की तरह टिकी रहती हैं। जरा सा ताकत लगाओ उखड़ के हाथ में आ जायेंगी।
ऐसे ही एक और कविता जो हमने शाहजहांपुर में सुनी थी किसी कवि से याद आ रही है-
जो बीच भंवर में इठलाया करते हैं
वे बांधा करते हैं तट पर नाव नहीं,
संघर्षों के पथ के राही सुख का
जिनके घर रहा पड़ाव नहीं।जो सुमन बीहड़ों में, वन में खिलते हैं,
वे माली के मोहताज नहीं होते,
जो दीप उम्र भर जलते हैं
वे दीवाली के मोहताज नहीं होते।
ये कवितायें सहज सरल हैं। पता नहीं इनका कोई साहित्यिक मूल्य होगा कि नहीं कि लेकिन अटके-भटके समय में लगता है सार्वभौमिक हथियार हैं तमाम तरह के प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष युद्दों के खिलाफ़। जीते या हारें मुकाबला हो होइबै करेगा, हो ही रहा है।
हबड़-तबड़ जिंदगी में दफ़्तर /काम के लिये भागते, हड़बड़ाते, भड़भड़ाते, सरपटियाते पोस्ट चढ़ाना क्या है? जैसा भी है वैसा अपना हथियार हिलाना, दिखाना है!
यह उदघोष है कि जंग अभी जारी है और हम कह रहे हैं- अन्य हैं जो लौटते दे शूल को संकल्प सारे।
मेरी पसंद
यह उदघोष है कि जंग अभी जारी है और हम कह रहे हैं- अन्य हैं जो लौटते दे शूल को संकल्प सारे।
मेरी पसंद
आस्था
यदि शब्द पर हो
काव्य पर हो
सृजन पर हो
तो व्यक्ति पर भी
होनी लाज़िमी है
अन्यथा
आस्था में स्नेह में
शुभकामना में
अवश्य कोई
कमी है
यदि शब्द पर हो
काव्य पर हो
सृजन पर हो
तो व्यक्ति पर भी
होनी लाज़िमी है
अन्यथा
आस्था में स्नेह में
शुभकामना में
अवश्य कोई
कमी है
विश्वासरहित
शुभकामनाएं
शब्द हैं खोखले
और निष्प्राण
निरी छलना है
अशुद्ध मंत्रों वाले
यज्ञ में
अपवित्र समिधाओं का
जलना है
शुभकामनाएं
शब्द हैं खोखले
और निष्प्राण
निरी छलना है
अशुद्ध मंत्रों वाले
यज्ञ में
अपवित्र समिधाओं का
जलना है
भावनाएं यदि
सत्यता की
सौगंध लिए
घूंघट खोलना ही चाहती हों
तो उनका उचित
सम्मान भी होना चाहिए
शुभकामनाएं
यदि अन्तर्मन से हों
तो उन पर नाम भी
होना चाहिए ।
सत्यता की
सौगंध लिए
घूंघट खोलना ही चाहती हों
तो उनका उचित
सम्मान भी होना चाहिए
शुभकामनाएं
यदि अन्तर्मन से हों
तो उन पर नाम भी
होना चाहिए ।
Posted in बस यूं ही | 14 Responses
बहुत बहुत धन्यवाद,
चलें वे लीक पर जिनके प्राण हों हारे
हमें तो अपने पैरों से निर्मित पंथ ही प्यारे
यदि अन्तर्मन से हों
तो उन पर नाम भी
होना चाहिए ।”
लेटने से पहले बंदे ,खाट की पहचान करले
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान करले
कुछ भी लेने से पहले,हाट की पहचान करले
है नही लिक्खी गई कही,ये तो बस है जुबानी
आओगे जब हम सुनादेगे तुम्हे भी ये कहानी
वो सबको पता चले.
ऎसा छोटासा प्रयास है.
हमारे इस प्रयास में.
आप भी शामिल हो जाइयॆ.
एक बार ब्लोग अड्डा में आके देखिये.
अरे स्वामी जी, ये स्पैमर (दीपांजिली) को बैन करो जरा, हर जगह बिग-अड्डा का विज्ञापन ठेले जा रही है।