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Friday, October 31, 2008
Tuesday, October 28, 2008
दीपक से साक्षात्कार
http://web.archive.org/web/20140419220213/http://hindini.com/fursatiya/archives/551
जब से बिजली से जगमगाने वाली सजावटी लड़ियों का आगमन हुआ है दिवाली के
दीपक की लोकप्रियता पर प्रश्न चिह्न लगने लगे हैं। एक दिन था जब दीपावली की
आवली में सिर्फ़ मिट्टी के बने दीपकों की जगमगाहट होती थी। दीवाली में
कुम्हार वैसे ही व्यस्त हो जाते थे जैसे चुनाव में नेता, वर्षांत में
चार्टेड एकाउंटेंट या परीक्षा में विद्यार्थी। उनके भाव बढ़ जाते, वे बेभाव
कमाते। वक्त का तकाज़ा, आज वे बेभाव हो गए। दीपक को मोमबत्तियों ने और
मोमबत्तियों को बिजली की झालरों ने अपदस्थ कर दिया। कुम्हारों का तो जो हुआ
सो हुआ दीपक का क्या हुआ होगा. . .
हमने अपने दीवाली चिंतन से उन्हें अवगत कराया। मिर्ज़ा ईद के चाँद की तरह रोशन हो गए। अचानक चाय का आख़िरी घूँट लेकर बोले– बरखुरदार मन का चिराग़ रौशन कर लो। चलो आज किसी दीए का इंटरव्यू लेते हैं। देखें जो रोशनी देता है, वो कैसा महसूस करता है।
हमारी सहमति–असहमति को तवज्जो दिए बग़ैर मिर्ज़ा हमको टाँग के वैसे ही चल दिए जैसे अमेरिका ब्रिटेन के साथ चलता है। रास्ते में एक पेशेवर साक्षात्कार सेवा कंपनी से एक इंटरव्यू लेने वाली सुंदरी को साथ ले लिया। वह तुरंत अपने नाज़–नखरे, लिपिस्टक, पाउडर, अल्हड़ता, चश्मा, अदायें और माइक समेट कर साथ चल दी।
हम इंटरव्यू लेने लायक दीये की खोज में भटकने लगे। जिस मुस्तैदी से विकसित देश आतंकवादी खोजते हैं या बेरोज़गार रोज़गार टटोलते हैं या फिर जवान लड़की का बाप अपनी कन्या हेतु वर खोजता है उसी तन्मयता से हम नए–पुराने, समूचे–टूटे, छोटे–बड़े दीये की खोज में थे। हर भूरी गोल दिखती चीज़ पर साथ की महिला माइक अड़ा देती – क्या आप दीपक जी हैं?
अचानक मिर्ज़ा के चेहरे पर यूरेका छा गया। वे एक नाली के किनारे कूड़े के
ढ़ेर में दीये को खोजने में कामयाब हो गए। इंटरव्यू–कन्या को इशारा किया।
कन्या मुस्कराई। अपना तथा माइक का टेप आन किया। बोली– दीपक जी आप कैसे हैं?
आई मीन हाऊ आर यू मिस्टर लैंप? उधर से कोई आवाज़ नहीं आई। सुंदरी मुस्कराई,
कसमसाई, सकुचाई, किंचित झल्लाई फिर सवाल दोहराया गया – आप कैसे हैं? क्या
आप मेरी आवाज़ सुन पा रहे हैं दीपक जी?
जवाब नदारद। कन्या आदतन बोली– लगता है दीपक जी से हमारा संपर्क नहीं हो पा रहा है।
इस बीच मिर्ज़ा पास के पंचर बनाने वाले को पकड़ लाए जो कि पहले बर्तन बनाता था। और दीपक तथा कन्या के बीच वार्ता अनुवाद का काम पंचर बनाने वाले को सौंप दिया। इस आउटसोर्सिंग के बाद इंटरव्यू का व्यापार धड़ल्ले से चलने लगा। कन्या दीपक को कालर माइक पहले ही पहना चुकी थी।
सवाल : दीपक जी आप कैसे हैं? कैसा महसूस कर रहे हैं?
जवाब : हमारी हालत उस सरकार की तरह है जिसका तख़्ता पलट गया हो। मैं पहले पूजा गया। फिर महीनों रोशनी देता रहा। आज घूरे पर पड़ा हूँ। कैसा महसूस कर सकता है कोई ऐसे में। मेरी हालत ओल्ड होम में अपने दिन गिनते बुजुर्गों–सी हो गई है।
सवाल : आप यहाँ कब से पड़े हैं? मेरा मतलब कब से यहाँ रह रहे हैं?
जवाब : अब हमारे पास कोई घड़ी या कैलेंडर तो है नहीं जो बता सकें कि कब से पड़े हैं यहाँ। लेकिन यहाँ आने से पहले मैं सामने की नाली में पड़ा था। हमारे ऊपर पड़े तमाम कूड़े–कचरे के कारण नाली जाम हो गई तो लोगों ने चंदा करके उसको साफ़ कराया तथा मुझे कूड़े समेत यहाँ पटक दिया गया। तब से यहीं पड़ा हूँ।
सवाल : आप पालीथीन, पार्थेनियम वगैरह के साथ कैसा महसूस करते हैं? डर नहीं लगता आपको अकेले यहाँ इनके बीच?
जवाब : यहाँ तो सब कुछ कूड़ा है। यहाँ कूड़े में जातिवाद, संप्रदायवाद तो है नहीं जो किसी से डर लगे। लेकिन हमारा पालीथीन का क्या मेल? हमें कोई ठोकर मारेगा हम ख़तम हो जाएँगे। वे बहुतों को ख़तम करके तब जाएँगी। ये जो बगल की पालीथीन देख रहीं हैं ये तीन गायों को, उनके पेट में घुस कर निपटा चुकी है।
जवाब : माफ़ करें, इस बारे में हमारी और मिट्टी के दूसरे उत्पादों की दुर्दशा के संबंध में एक जनहित याचिका पाँच साल से विचाराधीन है इसलिए इस बारे में मैं कुछ नहीं बता पाऊँगा।
सवाल : आप में और उद्घाटन के दीये में क्या अंतर होता है?
जवाब : वही जो एक नेता और आम आदमी में होता है। जैसे आम जनता का प्रतिनिधि होते हुए भी नेता आम जनता के कष्टों से ऊपर होता है वैसे ही उद्घाटन का दिया दिया होते हुए भी हमेशा चमकता रहता है। उसे तेल की कोई कमी नहीं होती। उसके कंधों पर अंधेरे को भगाने का दायित्व नहीं होता। वह रोशनी में रोशनी का झंडा फहराता है। हमारी तरह अंधेरे से नहीं लड़ता। हम अगर आम हैं तो वह ख़ास।
सवाल : दीपावली पर आप दीये लोग कैसा महसूस करते हैं?
जवाब : इस दिन हमारी पूछ चुनाव के समय में स्वयंसेवकों की तरह बढ़ जाती है। हमें भी लगता है कि हम अंधेरे को खदेड़कर दुनिया को रोशन कर रहे हैं। यह खुशनुमा अहसास मन में गुदगुदी पैदा करता है। वैसे हम सदियों से रोशनी बाँटते रहे यह कहते हुए :
जवाब : तमाम कारण हैं। कटिया की बिजली की सहज उपलब्धता ने तथा तेल की कीमतों में लगातार बढ़ोत्तरी ने हमें उसी तरह बाहर कर दिया है जिस तरह विकसित देश की कंपनियाँ अपने कर्मचारियों को ‘ले आफ़’ कर देती हैं। लेकिन आप लोगों ने जो भी किया हो अंधेरे के डर से हमें जब भी याद किया गया हम कभी अपने काम से नहीं चूके।
सवाल – जवाब शायद और चलते लेकिन तेज़ हवा के कारण दिया कूड़े से सरककर गहरी नाली में जा गिरा। वहाँ तक माइक का तार नहीं पहुँच पा रहा था।
सुंदरी का समय भी हो चुका था। थैंक्यू कहकर उसने अपनी मुस्कराहट व माइक दोनों को एक साथ समेट लिया।
हम वापस लौट पड़े। मिर्ज़ा कुछ उदासी के पाले में पहुँचकर मेराज़ फैज़ाबादी का शेर दोहरा रहे थे :
अभिव्यक्ति में पूर्व-प्रकाशित
दीपक से साक्षात्कार
By फ़ुरसतिया on October 28, 2008
हमारे
दोस्त मिर्ज़ा कमरे में किसी वायरस की तरह घुसे। राकेट की तरह लहराते हुए
कमरे की कक्षा में स्थापित हुए और चटाई बम की तरह तड़कने लगे। घर में रोशनी
के अनार फूटने लगे। मिर्ज़ा चकरघिन्नी की तरह नाचकर सबसे मिले।
हम यह सब सोच ही रहे थे कि हमारे दोस्त मिर्ज़ा कमरे में किसी वायरस की
तरह घुसे। राकेट की तरह लहराते हुए कमरे की कक्षा में स्थापित हुए और चटाई
बम की तरह तड़कने लगे। घर में रोशनी के अनार फूटने लगे। मिर्ज़ा चकरघिन्नी की
तरह नाचकर सबसे मिले। बच्चों को पुचकारा, चाय का फ़रमाइशी आर्डर उछाला और
हमारी पीठ पर धौल जमाते हुए कंदील की तरह मुस्करा कर बोले, “मिया क्या
चेहरे पर मुहर्रम सजाए हो, कौन तुम्हारी कप्तानी छिन गई है जो गांगुली बने
बैठे हो?”हमने अपने दीवाली चिंतन से उन्हें अवगत कराया। मिर्ज़ा ईद के चाँद की तरह रोशन हो गए। अचानक चाय का आख़िरी घूँट लेकर बोले– बरखुरदार मन का चिराग़ रौशन कर लो। चलो आज किसी दीए का इंटरव्यू लेते हैं। देखें जो रोशनी देता है, वो कैसा महसूस करता है।
हमारी सहमति–असहमति को तवज्जो दिए बग़ैर मिर्ज़ा हमको टाँग के वैसे ही चल दिए जैसे अमेरिका ब्रिटेन के साथ चलता है। रास्ते में एक पेशेवर साक्षात्कार सेवा कंपनी से एक इंटरव्यू लेने वाली सुंदरी को साथ ले लिया। वह तुरंत अपने नाज़–नखरे, लिपिस्टक, पाउडर, अल्हड़ता, चश्मा, अदायें और माइक समेट कर साथ चल दी।
हम इंटरव्यू लेने लायक दीये की खोज में भटकने लगे। जिस मुस्तैदी से विकसित देश आतंकवादी खोजते हैं या बेरोज़गार रोज़गार टटोलते हैं या फिर जवान लड़की का बाप अपनी कन्या हेतु वर खोजता है उसी तन्मयता से हम नए–पुराने, समूचे–टूटे, छोटे–बड़े दीये की खोज में थे। हर भूरी गोल दिखती चीज़ पर साथ की महिला माइक अड़ा देती – क्या आप दीपक जी हैं?
उत्साही
पालीथीन के टुकड़े उड़न तस्तरियों से कूड़े के ढेरों की परिक्रमा कर रहे थे।
कूड़े के ढेर के ये उपग्रह आपस में टकरा भी रहे थे, गिरकर फिर उड़ रहे थे।
गाजर घास विदेशी पूँजी-सी चहक रही थी। जितना उखाड़ो उतना फैल रही थी।
सारे रास्ते पालीथीन, प्लास्टिक पाउच और पार्थेनियम गाजर घास से पटे पड़े
थे। उत्साही पालीथीन के टुकड़े उड़न तस्तरियों से कूड़े के ढेरों की
परिक्रमा कर रहे थे। कूड़े के ढेर के ये उपग्रह आपस में टकरा भी रहे थे,
गिरकर फिर उड़ रहे थे। गाजर घास विदेशी पूँजी-सी चहक रही थी। जितना उखाड़ो
उतना फैल रही थी। साँस लेना मुश्किल। लेकिन हम इन आकर्षणों के चक्कर में
पड़े बिना दीपक की खोज में लगे थे। हमें नई दुनिया की खोज में कोलंबस के
कष्ट का अहसास हो रहा था। सब कुछ दिख रहा था। गोबर के ढ़ेरपान की पीक, सड़क
पर गायों की संसद कीचड़ में सुअरों की सभा केवल दिया नदारद था– नौकरशाही में
ईमानदारी की तरह।जवाब नदारद। कन्या आदतन बोली– लगता है दीपक जी से हमारा संपर्क नहीं हो पा रहा है।
इस बीच मिर्ज़ा पास के पंचर बनाने वाले को पकड़ लाए जो कि पहले बर्तन बनाता था। और दीपक तथा कन्या के बीच वार्ता अनुवाद का काम पंचर बनाने वाले को सौंप दिया। इस आउटसोर्सिंग के बाद इंटरव्यू का व्यापार धड़ल्ले से चलने लगा। कन्या दीपक को कालर माइक पहले ही पहना चुकी थी।
सवाल : दीपक जी आप कैसे हैं? कैसा महसूस कर रहे हैं?
जवाब : हमारी हालत उस सरकार की तरह है जिसका तख़्ता पलट गया हो। मैं पहले पूजा गया। फिर महीनों रोशनी देता रहा। आज घूरे पर पड़ा हूँ। कैसा महसूस कर सकता है कोई ऐसे में। मेरी हालत ओल्ड होम में अपने दिन गिनते बुजुर्गों–सी हो गई है।
सवाल : आप यहाँ कब से पड़े हैं? मेरा मतलब कब से यहाँ रह रहे हैं?
जवाब : अब हमारे पास कोई घड़ी या कैलेंडर तो है नहीं जो बता सकें कि कब से पड़े हैं यहाँ। लेकिन यहाँ आने से पहले मैं सामने की नाली में पड़ा था। हमारे ऊपर पड़े तमाम कूड़े–कचरे के कारण नाली जाम हो गई तो लोगों ने चंदा करके उसको साफ़ कराया तथा मुझे कूड़े समेत यहाँ पटक दिया गया। तब से यहीं पड़ा हूँ।
सवाल : आप पालीथीन, पार्थेनियम वगैरह के साथ कैसा महसूस करते हैं? डर नहीं लगता आपको अकेले यहाँ इनके बीच?
जवाब : यहाँ तो सब कुछ कूड़ा है। यहाँ कूड़े में जातिवाद, संप्रदायवाद तो है नहीं जो किसी से डर लगे। लेकिन हमारा पालीथीन का क्या मेल? हमें कोई ठोकर मारेगा हम ख़तम हो जाएँगे। वे बहुतों को ख़तम करके तब जाएँगी। ये जो बगल की पालीथीन देख रहीं हैं ये तीन गायों को, उनके पेट में घुस कर निपटा चुकी है।
यहाँ
कूड़े में जातिवाद, संप्रदायवाद तो है नहीं जो किसी से डर लगे। लेकिन
हमारा पालीथीन का क्या मेल? हमें कोई ठोकर मारेगा हम ख़तम हो जाएँगे। वे
बहुतों को ख़तम करके तब जाएँगी।
सवाल : आपकी इस दुर्दशा के लिए कौन ज़िम्मेदार है?जवाब : माफ़ करें, इस बारे में हमारी और मिट्टी के दूसरे उत्पादों की दुर्दशा के संबंध में एक जनहित याचिका पाँच साल से विचाराधीन है इसलिए इस बारे में मैं कुछ नहीं बता पाऊँगा।
सवाल : आप में और उद्घाटन के दीये में क्या अंतर होता है?
जवाब : वही जो एक नेता और आम आदमी में होता है। जैसे आम जनता का प्रतिनिधि होते हुए भी नेता आम जनता के कष्टों से ऊपर होता है वैसे ही उद्घाटन का दिया दिया होते हुए भी हमेशा चमकता रहता है। उसे तेल की कोई कमी नहीं होती। उसके कंधों पर अंधेरे को भगाने का दायित्व नहीं होता। वह रोशनी में रोशनी का झंडा फहराता है। हमारी तरह अंधेरे से नहीं लड़ता। हम अगर आम हैं तो वह ख़ास।
सवाल : दीपावली पर आप दीये लोग कैसा महसूस करते हैं?
जवाब : इस दिन हमारी पूछ चुनाव के समय में स्वयंसेवकों की तरह बढ़ जाती है। हमें भी लगता है कि हम अंधेरे को खदेड़कर दुनिया को रोशन कर रहे हैं। यह खुशनुमा अहसास मन में गुदगुदी पैदा करता है। वैसे हम सदियों से रोशनी बाँटते रहे यह कहते हुए :
जो सुमन बीहड़ों में, वन में खिलते हैं
वे माली के मोहताज नहीं होते,
जो दीप उम्र भर जलते है
वे दीवाली के मोहताज नहीं होते।
जैसे
आम जनता का प्रतिनिधि होते हुए भी नेता आम जनता के कष्टों से ऊपर होता है
वैसे ही उद्घाटन का दिया दिया होते हुए भी हमेशा चमकता रहता है। उसे तेल की
कोई कमी नहीं होती। उसके कंधों पर अंधेरे को भगाने का दायित्व नहीं होता।
सवाल : आजकल आप लोगों की संख्या इतनी कम कैसे हो गई? क्या आप लोग भी परिवार नियोजन अपना रहे हैं?जवाब : तमाम कारण हैं। कटिया की बिजली की सहज उपलब्धता ने तथा तेल की कीमतों में लगातार बढ़ोत्तरी ने हमें उसी तरह बाहर कर दिया है जिस तरह विकसित देश की कंपनियाँ अपने कर्मचारियों को ‘ले आफ़’ कर देती हैं। लेकिन आप लोगों ने जो भी किया हो अंधेरे के डर से हमें जब भी याद किया गया हम कभी अपने काम से नहीं चूके।
सवाल – जवाब शायद और चलते लेकिन तेज़ हवा के कारण दिया कूड़े से सरककर गहरी नाली में जा गिरा। वहाँ तक माइक का तार नहीं पहुँच पा रहा था।
सुंदरी का समय भी हो चुका था। थैंक्यू कहकर उसने अपनी मुस्कराहट व माइक दोनों को एक साथ समेट लिया।
हम वापस लौट पड़े। मिर्ज़ा कुछ उदासी के पाले में पहुँचकर मेराज़ फैज़ाबादी का शेर दोहरा रहे थे :
चाँद से कह दो अभी मत निकल,लेकिन घर पहुँचते ही पटाखे छुड़ाते बच्चों को देखते ही मिर्ज़ा उदासी को धूल की तरह झटककर कब फुलझड़ी की तरह चमकने लगे पता ही न चला।
ईद के लिए तैयार नहीं हैं हम लोग।
अभिव्यक्ति में पूर्व-प्रकाशित
37 responses to “दीपक से साक्षात्कार”
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वाह, दीये का दुख सुनकर तो हम भी दुखी हो गए । परन्तु पहले दीये जलाने की तैयारी कर लें फिर अगले साल तक के लिए उनके लिए दुखी भी हो लेंगे ।
आपको व आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं ।
घुघूती बासूती -
बहुत सुंदर साक्षात्कार! आज दीवाली के दिन इस से अच्छा हो ही नहीं सकता कुछ भी।
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इमोशनल कर दिया . आप पर्याप्त सफल रहे अपने उद्देश्य में .
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बहुत दिल को छूने वाली रचना ! शुभकामनाएं !
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दीपावली के शुभ अवसर पर श्री दीपक जी के साथ आपका और मिर्जा का इंटरव्यू पढ़ कर आँखे नम हो आईँ, गला रौंध सा गया. किसी तरह बस आपके संवेदनशील हृदय को दाद देने टिप्पणी लिख पा रहे हैं ताकि जितने दिन यह संवेदनशीलता खींच पाये, खिँचती रहे..भले ही घसीट घसीट कर.
इस विशेष मौके पर मंच से इस बेहतरीन शेर के लिए भी दाद देना चाहूँगा:
जो सुमन बीहड़ों में, वन में खिलते हैं
वे माली के मोहताज नहीं होते,
जो दीप उम्र भर जलते है
वे दीवाली के मोहताज नहीं होते।
जिसने भी कही है, बहुत उम्दा बात कही है.
मौके के अनुरुप आपको और आपके परिवार को पुनः दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं. -
बेहतरीन अभिव्यक्ति , दीपवली की बहुत-२ शुभकामनायें !!.
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वाह, इतनी सुन्दर पोस्ट पर – दिवाली के दीये तुम्हें भेजता हूँ; अन्धेरे में अपना गुजारा चलेगा!
ग्रेट पोस्ट सारे दीये डिजर्व करती है। -
Prabhat Tandon जी का फोटू दिखा रहे हैं और बाकी सबको हुडुकचुल्लू बना दिया . अन्याय .
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अनूप भाई साहब हमेँ तो मिट्टी का दीपक ही बहुत भाता है – आपको दीपावली की शुभकामनाएँ – परिवार के सँग खूब आनँद करेँ -
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दीपावली पर आप को और आप के परिवार के लिए
हार्दिक शुभकामनाएँ!
धन्यवाद -
वाह! क्या बात है…। बहुत मजेदार पोस्ट रही ये भी।
============================
!॥!दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं!॥!
============================ -
चाँद से कह दो अभी मत निकल,
ईद के लिए तैयार नहीं हैं हम लोग। -
बन्धु,तीन व्यक्ति आप का मोबाइल नम्बर पूँछ रहे थे।मैनें उन्हें आप का नम्बर तो नहीं दिया किन्तु आप के घर का पता अवश्य दे दिया है।वे आज रात्रि आप के घर अवश्य पहुँचेंगे।उनके नाम हैं सुख,शान्ति और समृद्धि।कृपया उनका स्वागत और सम्मान करें।मैने उनसे कह दिया है कि वे आप के घर में स्थायी रुप से रहें और आप उनकी यथेष्ट देखभाल करेंगे और वे भी आपके लिए सदैव उपलब्ध रहेंगे।प्रकाश पर्व दीपावली आपको यशस्वी और परिवार को प्रसन्न रखे।
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आपका अंदाज खूब है।
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मिट्टी के दिये के बुरे दिन इंडिया में आये होंगे, यहाँ तो हमने मिट्टी के ही दिये जलाये हैं।
हमारी सहमति–असहमति को तवज्जो दिए बग़ैर मिर्ज़ा हमको टाँग के वैसे ही चल दिए जैसे अमेरिका ब्रिटेन के साथ चलता है।
ऊपर की लाईन में कुछ तो मीसिंग है, अगर ऐसे कहा जाता तो कैसा होता – “हमारी सहमति–असहमति को तवज्जो दिए बग़ैर मिर्ज़ा हमको टाँग के वैसे ही चल दिए जैसे अमेरिका ब्रिटेन को साथ लिये चलता है। “ -
आपको सपरिवार दीपोत्सव की शुभ कामनाएं। सब जने सुखी, स्वस्थ एवं प्रसन्न रहें। यही प्रभू से प्रार्थना है।
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सच्चे मन से दिल की बातें लिखने मे आप कमाल रखते हैं
आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं -
‘वह रोशनी में रोशनी का झंडा फहराता है। हमारी तरह अंधेरे से नहीं लड़ता।’
क्या बात है . दीपक का काम अंधेरे से लड़ना है,रौशनी में रौशनी का झंडा फहराना नहीं . बहुत सही लिखा है आपने .
दीपक की मिट्टी और जिस मिट्टी से हम बने हैं उस मिट्टी में बहुत गहरा रिश्ता है . इसीलिए तो तमाम सोडियम-लैम्प और सीएफ़एल के बावजूद मन मिट्टी के दिये की ओर ही झुकता है . उसी के लिए अकुलाता है . -
शानदार..
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हम समझ गए. यहाँ दीया भी है, मिर्जा भी और सुन्दरी भी. तो दीपावली पर ‘सुन्दरी दीया मिर्जा’ की जगमगाहट युक्त ये अनूप पोस्ट तो अव्वल नंबर पाना ही हुई. हप्पी दीवाली.
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बेहतरीन… बस और क्या ?
सिम्पली नथिंग बट बेहतरीन ! -
जलाओं दिये पर रहे ध्यान इतना अधेरा ब्लागिंग में रह न पाये जरा सा।
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दीये के दर्द को अच्छा समझा आपने वरना इतने मसाला साक्षात्कार और तड़क-भड़क खबरों में कौन पूछता !
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अनूप जी बहुत ही संवेदनशील लेकिन आप के खिलंदड़े अंदाज में लिपटी बेहतरीन पोस्ट है। एक ही पोस्ट में अपने प्रतिबिम्बों से कितनी बातें कह गये। दिवाली के दिन मिर्जा का आना सौहार्दय का प्रतीक है। वातावरण के प्रति संवेदना तो है ही। वैसे हैरान हूँ क्या सच में कानपुर में लोग मिट्टी के दिये नहीं जलाते। यहां तो खास मिट्टी के दिये ही जलाये जाते हैं और इतने सुंदर सुंदर डिजाइन के दिये मिलते हैं कि उन्हें फ़ेंकने का तो मन ही नहीं होता। हमने तो रोजमर्रा की दिया बाती के लिए भी मिट्टी का दिया रख छोड़ा है, पीतल को चमकाने की जहमत से बच जाते हैं और मिट्टी के दिये को देख भक्ति जो जगती है वो तो अलग ही अहसास है। इतनी सुंदर संवेदनशील, काव्यात्मक पोस्ट के लिए बधाई
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नववर्ष की शुभकामनाएं
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सर्जनात्मक और बढि़या
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भरपूर संवेदना !
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वाह….अभिव्यक्ति, भाव अपने चरम पर हैं…पाठक को अपने रौ में बहा ले जाता है….. सबकुछ है इस लेख में. आभार.
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सवाल : दीपावली पर आप दीये लोग कैसा महसूस करते हैं?
जवाब : इस दिन हमारी पूछ चुनाव के समय में स्वयंसेवकों की तरह बढ़ जाती है।
” great inteview, vaise ye deepak hain bhut kmal ke kya roshnee krtyn hain khud jal kr ..”
Regards -
: फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176 June 21, 2011 at 11:48 pm | Permalink[...] दीपक से साक्षात्कार [...]
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अति सुंदर —-
जिसने अपना खून जला कर
अँधियारा उजियार किया …
जिसने अपनी ज्योति शिखा से
ऊर्ध्वगमन संदेश दिया …
जिसने दुख अनदेखा कर के
तिमिर मिटा जग सुखी किया
उस दीपक की दयनीय दशा ने
दीवाली पर दुखी कर दिया
…..पद्म सिंह
Padm Singh पद्म सिंह की हालिया प्रविष्टी..ज्योति पर्व की हार्दिक मंगल कामनाएँ -
वाह!
चार साल पुराना लेख आज भि उतना ही सामायिक..
”यहाँ तो सब कुछ कूड़ा है”
अफ़सोस इतने सालों में भी दीपक ‘ का दुःख कुछ कम न हुआ !
Alpana की हालिया प्रविष्टी..बुरा न मानो …दीवाली है ! -
वाह!
चार साल पुराना लेख आज भी उतना ही सामयिक..
”यहाँ तो सब कुछ कूड़ा है”
अफ़सोस इतने सालों में भी दीपक ‘ का दुःख कुछ कम न हुआ !
Alpana की हालिया प्रविष्टी..बुरा न मानो …दीवाली है ! -
सुन्दर प्रस्तुति … दीवाली पर्व के शुभ अवसर पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं …
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आपकी ४ साल पुरानी पोस्ट पढ़ी। आप की नज़र तो बेमिसाल है ही आप का अन्दाज़े-बयाँ भी अद्भुत है। आप कोई भी विषय चुनें, उसे जबर्दस्त रोचक बना देते हैं। दीपक की लोकप्रियता भले ही घट रही हो, ऐसा ही लिखते रहे तो आपकी लोकप्रियता ज़रूर एक दिन हास्य-व्यंग का शीर्ष छुयेगी। दीपक के आलोक में जो शीतलता है, सुकून है वह अन्यञ कहाँ। दीपक प्रतीक है आशा का, जीवन का, तिमिर से संघर्ष का, वह अब भी मौजूद है आरती की थाली में, गंगा के घाटों पर। दीपक हमारी संस्कृति का अंग है।
-
दीवाली पर्व के शुभ अवसर पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं
-
(:(:(:
प्रणाम.
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कभी तो दो-चार पैसे बचाना सीखिये।
लैला-मजनू में पट नहीं रही आजकल,
उनको लिव-इन के फ़ायदे गिनाना सीखिये।
bahut achchi lagi aapki ye panktiyan
bahut sunder
मुश्किलों में मुस्कुराना सीखिए
टांग फटने से बचाना सीखिए
सर्दियों की शाम में पानी गरम कर
टांग को बस गुनगुनाना सीखिए
फिर भी गर फट जाए तो मुश्किल नहीं
क्रीम बढ़िया सी लगाना सीखिए
क्रीम से भी काम गर जो न बने
मोजों में रुई घुसाना सीखिए
गैर के पैसे को हिल्ले से लगाना सीखिये।
बहुत बढिया है जी ! आपके आदेश का पालन करते हुए हम तो पहले ही लट्ठ छोड़ कर फटे में टांग उलझाने को तैयार रहते हैं !:)
उनको लिव-इन के फ़ायदे गिनाना सीखिये।
जलवे हैं आशिकों के आजकल बहुत,
न मिले कोई तो खुद लटपटाना सीखिये।
“ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha kya kmaal kee class lee hai aaj aapne, bhut kuch seekha diya….. or han vo apkee janch ka kya hua, koee inquery vgerh beethaee kya…report aa jaye to ek photopocy humko bhee dejega”
Regards
कैसे न अड़ाया जाये फटे में टांग, वह संयम सिखाने का यत्न करें महामहिम ब्लॉगर जी!
लिखा (ऐज यूजुअल) बहुत बढ़िया है!
देश के हालत बड़ी खराब है दोस्तों,
तसल्ली से इस पर बहसियाना सीखिये।
मज़ा आगया।
थामिये कम्पूटर ओर फुरसतियाना सीखिये
लगता है ….दीवाली के बाद अभी भी छुट्टियों का खुमार है….टांग अडा ही दी !
फुरसतिया की तरह जमीनी बातें करना सीखिए !
अब और क्या चाहते हो, इस मासूम से ?
फिर वहां से भाग जाना सीखिए
लैला बेचारी है रोये जार-जार
मंजनू से उसको रुलाना सीखिए
बुश की हालत देखकर हैं सब खुशी
कुछ तो उसपे तरस खाना सीखिए
आपने पिटवा दिया मासूम को
थोड़ा मरहम भी लगाना सीखिए
बस ….मजा आ गया
उनको सही जगह मरहम लगाने की जगह दिखाना सीखिए
उनको लिव-इन के फ़ायदे गिनाना सीखिये।
जलवे हैं आशिकों के आजकल बहुत,
न मिले कोई तो खुद लटपटाना सीखिये।
गैर की तारीफ़ तो फ़िजूल है यार,
अपनी तारीफ़ों के कनकौवे उड़ाना सीखिये।
अब इसे तर्रन्नुम में सुनाना सीखिये.
अपना लिखा तो सभी पढ़वाते हैं, मियाँ
आप गैरों को पढ़ कर टिपियाना सीखिये. (ये दूसरों के लिए है, आप तो सीखे सिखाये हो. :))
-बहुत उम्दा!! वाह वाह!!
गाहे गाहे हिनहिनाना सीखिये.
नक्ल में भी अक्ल लाज़िम है जनाब,
यो हीं मत भोंपू बजाना सीखिये.
दिल भी मिल जायेंगे इक दिन देखना,
हाथ तो पहले मिलाना सीखिये.
आप लिखती हो ग़जब की शायरी
मछलियाँ ऐसे फँसाना सीखिये.
हम अछूतों से रखे हो दूरियाँ,
पांव बुलबुल के दबाना सीखिये.
वज़्न से गिरते हो फुरसतिया चचा,
ग़ज़ल पहले गुनगुना सीखिये.
चार्वाक जिंदाबाद।
अब ग़जल को आजमाना सीखिए॥
हैं ग़जलगो ब्लॉग में बिखरे हुए।
अब इन्हें पहचान जाना सीखिए॥
काफिया जो तंग हो कम वज्न भी।
तो बहर को भी भुलाना सीखिए॥
मौका-ए-फुरसत अगर मिल जाय तो।
ग़जल की कक्षा में जाना सीखिए॥
हमने सीख ली, आप भी फुरसतिया ग़ज़ल कहना सीखिए
भाई वाह क्या व्यंज़ल है!
धन्यवाद इस टांग अडाई की नसीयत के लिये,
अपने पैसे से ऐश किये तो क्या किये,
गैर के पैसे को हिल्ले से लगाना सीखिये।
गैर की तारीफ़ तो फ़िजूल है यार,
अपनी तारीफ़ों के कनकौवे उड़ाना सीखिये।
waah
गैर के पैसे को हिल्ले से लगाना सीखिये।
Wah wah…
शुभ्कामनाए
नीरज