Saturday, July 24, 2010

… बरसात, बिम्ब की तलाश और बेवकूफ़ी की बहस

http://web.archive.org/web/20140419053219/http://hindini.com/fursatiya/archives/1583

33 responses to “… बरसात, बिम्ब की तलाश और बेवकूफ़ी की बहस”

  1. tarun
    ये दो महीने पहले नहीं सोचा जब चिल्ला चिल्ला के गला फाड़ के गा रहे थे – वर्षा रानी जरा जम के बरसो और अब ये आंसू – ये अच्छी बात नहीं (वाजपेयी स्टाइल में परा जाए)
  2. samvedan ke swar
    हमें तो अपकी आदतों का पता है न गुरुदेव, सो हम भी आपके पीछे लगे हैं..अब हम क्या करते की बात दीगर… हमें पता है कि ऐसे मुआफिक मौसम में जब आप बरसात न आने पर एकाध पोस्ट ठेल चुके हैं हैं तो आने पर क्यों चूकेंगे… सो लगे रहे आपके पीछे..इधर आप पोस्ट फाइनल किए उधर हम भी अपनी टिप्पणी के साथ तैयार हैं..पता है आप टिप्पणी की बरसात पर छतरी लगाए हुए हैं.. कोई बात नहीं, जब छतरी समेटिएगा तो हमरा ई कमेंट भी टपक जाएगा… आप जो किए हैं वो बेवक़ूफी है ये बोलें तो मेरी ज़ुबान गल जाए, लेकिन आधी रात के बाद आपके पोस्ट पर इतनी लम्बी तिप्पणी लिखना तो वाक़ई वही है…
  3. कुश भाई अपनी कलम वाले
    अब हम क्या बोले.? हम तो ठहरे बेवकूफ!
    किन्तु आपने तो बारिश में एक साथ कई लोगो को भिगो दिया है..
  4. सतीश सक्सेना
    कविता लिखने की जबरदस्त प्रतिभा है आपमें गुरु …वाह वाह.. लिखते रहिये !
    सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..पता नहीं मां सावन में-यह ऑंखें क्यों भर आती हैं – सतीश सक्सेना
  5. Anonymous
    सृजन का दर्द ….. मत पूछिए साहब पाठको को होता है ….उन कविताओं को बांचने के बाद ……
    बाई दी वे ……मोबाइल में पैसे भरवाए के नहीं ….
  6. anitakumar
    बहुत दिनो बाद इतनी बढ़िया रचना पढ़ने को मिली है कि हर शब्द पर मुंह से वाह निकल रहा है।
  7. प्रवीण पाण्डेय
    जब इतने कम दिन के लिये आये बारिश तो लोग भी अरमान सजाये बैठे रहते हैं।
  8. भारतीय नागरिक
    पिछली तीन रचनायें पढ़ीं, तीनों मजेदार और गुदगुदाने वाली थीं. लिखने की यही फ्रीक्वेन्सी वांछनीय है.
  9. Pankaj Upadhyay
    एक बेवकूफ़ लम्पट तो हम भी है… बह गये सर जी आपकी इस बरसात स्पेशल पोस्ट मे.. शुरआत से लेकर अन्त तक मौलिकता और मौज.. और क्या चाहिये :)
    - जिन लोगों ने मोर नाचते हुये नहीं देखे वे इसे मन नचबलिये हो गया हो गया पढ़ें
    नचबलिया मन :)
    - “एक कवि अपने घर में सुरक्षित बैठा सामने की मूसलाधार बारिश का फ़ोटोस्नैप लेकर उसको बहुत पहले की अपने याद-कबाड़ की झोपड़ी के स्नैप शाट से मिलाता है। प्रभाव लाने के लिये याद-कबाड़ की झोपड़ी में दो-चार छेद करता है और उसमें से पानी अंदर घुसाकर सब गीला-सीला करके गीली-सीली कवितायें रच डालता है।कविता में मार्मिकता लाने के लिये वह उसमें डेढ़ किलो दर्द मिलाता है। झोपड़ी के बच्चे के कपड़े फ़ाड़कर उसकी मासूम हंसी को अनदेखाकर उसमें अपनी बेबसी चस्पा करता है और कविता फ़ाइनल कर देता है। उसके चेहरे पर सृजन का दर्द फ़ैला हुआ है।”
    इसपर तालिया है सर जी…
    - मायकों के नीम के पेड़ पर पड़े झूले पर न जाने कितनों ने अपनी कवितायें टांग दी हैं। नीम के पेड़ पर कविताओं का जाम सा लग गया है। ट्रैफ़िक आगे बढ़ ही नहीं रहा है।
    बेचार ’नीम का पेड़’
    - एज सच कोई रूल तो नहीं है। जिसको जो प्यारा लगता है उसको प्रियतम कहने लगता है। कहीं-कहीं तो लोग अपने लवर को, हसबैंड को ही प्रियतम कहने लगते हैं। :)
    हे हे.. इतनीईईईई रिसर्च.. पर कैसे?
    - अंग्रेजी में बहस की स्पीड रहती है और बहसियाने वाले ग्रेसफ़ुल लगते हैं। अंग्रेजी में बहस करने का यही फ़ायदा है कि बकबास करते लोग भी ऊंची बात कहते प्रतीत होते हैं। औपनिवेशिक देशों के अग्रेंजी वह तिरपाल है जिसके नीचे लोग अपनी तमाम कमियां छुपा लेते हैं।
    वाह, जबरदस्त ’मौज’… चालू आहे.. :) हम तो बह लिये.. :)
    1. sanjay jha
      (:(:(:
      जय हो.
  10. काजल कुमार
    पोस्ट के साथ-साथ गीली-गीली फ़ोटो व
    पानी बरसा,
    छत टपक गई
    अरे बाप रे!
    मिट्टी थी जो,
    कीचड़ बन गई,
    अरे बाप रे!
    जैसी शरारती-सी लाइनें पढ़ कर मज़ा आ गया. धन्यवाद.
  11. aradhana
    बाप रे ! इत्ता अच्छा कैसे लिख लेते हैं आप??? आधा कमेन्ट तो मेरा पंकज वाला ही समझ लीजिए. आधे में मैं ये कहना चाहती हूँ कि जब आपको पढ़ती हूँ तो हँसते-हँसते पेट फूल जाता है… :-) या तो कुछ नहीं सूझता या फिर लगता है कि पूरी पोस्ट ही उतार दूँ कमेन्ट में … :-)
    और ये एकलाइनें तो गजब हैं -
    -रिश्ते आजकल गतिशील हो गये हैं।
    …अभी-अभी जिन लोगों में सर-फ़ुटौव्वल होने वाली है अगले क्षण वे ही एक दूसरे के प्रियतम बन सकते हैं।
    -मुसीबत में साथ देने वाली मुसीबत भी हमें प्यारी लगती है.
    -जब शातिर लोग चिरकुटई करते पकड़े जाते हैं तो अपने को जाहिल और भुच्च देहाती बताकर बच निकलते हैं। जाहिलियत और देहातीपने को हथियार की तरह प्रयोग करते हैं।
    -अंग्रेजी में बहस की स्पीड रहती है और बहसियाने वाले ग्रेसफ़ुल लगते हैं।
    -औपनिवेशिक देशों के अग्रेंजी वह तिरपाल है जिसके नीचे लोग अपनी तमाम कमियां छुपा लेते हैं।
    और एक बात तो बताइये ये लड़कियों की बातचीत इतनी सटीक कैसे लिखी आपने … मैंने देखा है दिल्ली में लड़कियाँ ऐसे ही अंगरेजी मिश्रित हिन्दी बोलती हैं… क्या आप ऑफिस में चुप्पे-चुप्पे लड़कियों की बात सुनते हैं? :-)
  12. महफूज़ अली
    आपने तो वेआकई में बारिश के पानी में भिगो दिया है…. मेरी पसंद में मामाजी को पढ़कर बहुत अच्छा लगा…. मामा जी को प्रणाम…
  13. abha
    वर्षा रानी सचमुच वीआई पी है …….हवा अंलक , सूरज चाचा भी तो,एक धरती मैया ,बड़ी भारी वीआईपी हैं ,लेकिन हमेशा हमारा भार उठाए फिरती रहती है …..सहेलियों की वर्ता, मामा जी की कविता सब अच्छी.
  14. Abhishek
    हम होते तो ऐसे बरसात में गरमा गरम पकौड़िया खाते :)
    वैसे प्रियतम माने प्यारा अँधेरा ही होना चाहिए.. अंग्रेजी का तिरपाल ओढ़ के बोलूँ?
  15. वन्दना अवस्थी दुबे
    “बाप रे ! इत्ता अच्छा कैसे लिख लेते हैं आप??? आधा कमेन्ट तो मेरा पंकज वाला ही समझ लीजिए. आधे में मैं ये कहना चाहती हूँ कि जब आपको पढ़ती हूँ तो हँसते-हँसते पेट फूल जाता है… या तो कुछ नहीं सूझता या फिर लगता है कि पूरी पोस्ट ही उतार दूँ कमेन्ट में …
    और ये एकलाइनें तो गजब हैं -
    -रिश्ते आजकल गतिशील हो गये हैं।
    …अभी-अभी जिन लोगों में सर-फ़ुटौव्वल होने वाली है अगले क्षण वे ही एक दूसरे के प्रियतम बन सकते हैं।
    -मुसीबत में साथ देने वाली मुसीबत भी हमें प्यारी लगती है.
    -जब शातिर लोग चिरकुटई करते पकड़े जाते हैं तो अपने को जाहिल और भुच्च देहाती बताकर बच निकलते हैं। जाहिलियत और देहातीपने को हथियार की तरह प्रयोग करते हैं।
    -अंग्रेजी में बहस की स्पीड रहती है और बहसियाने वाले ग्रेसफ़ुल लगते हैं।
    -औपनिवेशिक देशों के अग्रेंजी वह तिरपाल है जिसके नीचे लोग अपनी तमाम कमियां छुपा लेते हैं।
    और एक बात तो बताइये ये लड़कियों की बातचीत इतनी सटीक कैसे लिखी आपने … मैंने देखा है दिल्ली में लड़कियाँ ऐसे ही अंगरेजी मिश्रित हिन्दी बोलती हैं… क्या आप ऑफिस में चुप्पे-चुप्पे लड़कियों की बात सुनते हैं? ”
    मेरे पास तो शब्द ही नहीं बचे कुछ लिखने के लिये सो आराधना का कमेंट ही साभार छापे दे रहे हैं, उन्होंने
    पंकज जी के आधे कमेंट को अपना बताया, हमने उनके पूरे कमेंटको अपना लिया :डी
    “बारिश अभी खतम नहीं हुई सो कवि फ़िर दूसरी कविता रचने लगता है। इसमें वह बच्चे की मुस्कान को उसके पास ही छोड़ देता है और बिजली की चमक को चपला बताकर लिखता है कि वह(बिजली) उसके (बालक के ) दांतों की चमक से हीन भावना ग्रस्त होकर धरती पर सरपटक कर आत्महत्या कर लेती है।”
    पूरी पोस्ट में कहां-कहां किसे-किसे लपेटा है, सब जान गये हैं हम अनूप जी…..
  16. virendra jain
    उत्तम पोस्ट, रोचक भी और व्यंग् के छींटे भी
  17. manoj kumar
    आपकी इस कविता में निराधार स्वप्नशीलता और हवाई उत्साह न होकर सामाजिक बेचैनियां और सामाजिक वर्चस्वों के प्रति गुस्सा, क्षोभ और असहमति का इज़हार बड़ी सशक्तता के साथ प्रकट होता है।
    हां, ई कविता नहीं तो और क्या है?
    इस रचना ने मन मोह लिया।
    हास्य व्यंग्य की चाशनी से तैयार माल स्वादिष्ट और मन को तृप्त करने वाला है। शुष्क मन में बहार लाने वाली रचना है यह।
  18. Alpana
    पढ़ने वाला हँसते हँसते दोहरा न हो जाये कोई तो फिर ये फुरसतिया लेख नहीं!
    ‘बरखा महारानी ताम झाम के साथ आती हैं….:)
    और कविता लिखने के प्रयास में हुई बातचीत ..वाह!
    प्रियतम=प्रिय + तम =प्यारा अंधेरा
    प्रियतम माने प्यारा अंधेरा
    अब और क्या क्या अर्थ हो सकते हैं …:)..कल्पना की बड़ी ऊँची उड़ान है.
    [अभी तक पढ़ने का चश्मा लगा नहीं है लगता है आप की पोस्ट के नन्हें नन्हें फॉण्ट पढ़ पढ़ कर ज़रूर लग जायेगा.]
  19. amrendra nath tripathi
    हम किसी की टीप से खुन्ची नहीं लगायेंगे .. धूल और जल की बतकहीं उतना ही प्यारी है जितनी दोनों सखियों की बतकहीं .. अंगरेजी के स्टेटस को लेकर इसी टाइप का इलूजन है , सड़क से संसद तक .. कवियों की मगजमारी भी गजब-भारी है ! .. सखियों की बातों में ब्लॉग की सामयिक अनुगूंजों की आवाजाही भी कम दिलचस्प नहीं , विशेष करके ‘बेवकूफी की होड़ाहोडी के दौरान’ , जाहिलानेपन को छुपाने के लिए ‘देहाती’ के सेफ कार्ड खेलने की प्रवृत्ति को सही खींचा आपने .. यह देखना भी बढियां रहा की मुसीबतें भी गाढ़े का साथी बनती हैं .. कन्हैया लाल जी की कविता की तरावट अभी तक बनी हुई है ! .. आद्यंत जबरदस्त !!
  20. : ….जिंदगी का एक इतवार
    [...] दिन पहले झमाझम बारिश हुई। दफ़्तर से घर आने के लिये उसके [...]
  21. रवि
    @अल्पना के लिए-
    कंट्रोल तथा धन (+) कुंजी एक साथ दबाकर देखें. फ़ॉन्ट का आकार बढ़ जाएगा. और बड़ा आकार करने के लिए यही क्रिया एक बार और दोहराएँ.
    यदि ऐसा नहीं होता है तो कृपया फायरफाक्स ब्राउज़र का नया संस्करण प्रयोग करें.
  22. hempandey
    आप तो लिख कर निबट लिए. शामत टिपण्णी करने वालों की है.इतनी विविधता लिए श्रेष्ठ रचना के किस मुद्दे पर टिपण्णी करे ? बरखा की मोहकता पर, बारिश के कहर पर, ‘मुसीबत में साथ देने वाली मुसीबत भी हमें प्यारी लगती है ‘ जैसे बोध वाक्य पर, प्रियतम पर या कवि, कवियत्री और कविता पर ? बहरहाल एक अच्छी पोस्ट के लिए साधुवाद.
  23. shefali
    बाप रे बाप …..कित्तों को एक साथ लपेट लिए हैं आप ….बहुत आनंददायक पोस्ट लिखी है आपने …
  24. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] [...]
  25. बरसात की सुबह और नाके पर बादल
    [...] कन्हैयालाल नंदन AKPC_IDS += "3112,";Popularity: unranked [?]Hello there! If you are new here, you might want to subscribe to the RSS feed for updates on this topic.Powered by WP Greet Box WordPress Plugin [...]
  26. Rekha Srivastava
    क्या वर्णन किया है वर्षा रानी का कि कानपुर शहर की ( कानपुर की इसलिए कि हम यही रहते हैं और यही का हाल देखते हैं ) पूरी कलई खोल कर रख दी . वैसे व्यंग्य से भरा आपका लहजा बहुत अच्छा लगता है और आपकी पसंद को दाद देती हूँ.
    Rekha Srivastava की हालिया प्रविष्टी..स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर !
  27. रचना त्रिपाठी
    बाप रे.. ! हमने यह लेख अंग्रेजी में समझ लिया…।
    बाप रे.. ! बर्षा रानी का जादू चल गया आप पर..।
    बाप रे..आप तो बवाल कर गये..।
    रचना त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..ए जी, अब तुम बदल गये…!
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