Tuesday, April 10, 2012

एक टिप्पणी मिली पोस्ट को अकेले में

अक्ल की बात से बड़ा डर लगता है
अंदर जरूर कोई घपला है, हमेशा लगता है,
कुछ न कुछ बेवकूफ़ी हमेशा करते रहना
दोस्ती निभाते रहो जैसे अब तक निभाई है।

एक टिप्पणी मिली पोस्ट को अकेले में,
पोस्ट ने उसको छाती से सटा सा लिया,
कहां घूमती फ़िरी थी बावली आज तक,
तेरी याद में ब्लॉग की जान पे बन आई है।

फ़ेसबुक के भी मजे यारों क्या कहिये,
दोस्ती-दुश्मनी खूब मजे में निभाई है,
खुश हुये तो लाइक करके फ़ूट लिये ,
अन्फ़्रेंड करके दुश्मनी भी खूब निभाई है।

देश में बहुत सी समस्यायें हैं भैये,
सबसे जालिम उनमें से ये मंहगाई है,
सैकड़ों अप्सराओं से घिरे थे जो कभी,
एक से निभाने में कांख निकल आई है।

-कट्टा कानपुरी

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