Saturday, December 15, 2012

चल भाग -बड़ा आया दुनिया निपटाने वाला

http://web.archive.org/web/20140420081417/http://hindini.com/fursatiya/archives/3740

चल भाग -बड़ा आया दुनिया निपटाने वाला

इधर देखा लोग बता रहे हैं कि इक्कीस दिसम्बर को प्रलय होने वाली है। प्रलय मतलब दुनिया खल्लास।

पता नहीं किसकी दुनिया उजड़ने वाली है। किसका प्लान है हफ़्ते भर बाद दुनिया को फ़ेयरवेल देने का मुला हम तो न शामिल होंगे इस कार्यक्रम में। तमाम काम पड़े निपटाने को। काम निपटाने के पहले दुनिया कैसे निपटा दें भाई? जिसको प्रलय बुलानी हो बुलाये।बैठाये- खिलाये-पिलाये। अपन के पास तो टाइम नहीं प्रलय को लिफ़्ट देने का। आयेगी भी तो कह देंगे फ़िर कभी आना भाई अभी अपन बहुत बिजी हैं। ज्यादा जिद करेगी आने की तो गुस्से का नाटक करके कह देंगे- गेट लास्ट

आप ही सोचिये पहाड़ों पर ताजा बर्फ़ गिरी है। खूबसूरत धूप खिली है। फ़ूल महके हैं। कित्ते लोग वहां पहुंचे हैं बर्फ़ देखने। बर्फ़ कोट पहनकर लुढ़कने-पुढ़कने। वहां के दुकान वाले बोहनी-बट्टा होने की बात सोचकर खुश हो रहे होंगे। मुस्कराते हुये फोटो खिंचवा रहें होंगे लोग। और भी कित्ते दिलकश नजारे होंगे दुनिया भर में। बताओ ऐसे में कौन अहमक है जो दुनिया खतम करना चाहेगा। लगता है योजना आयोग का किसी सिरफ़िरे बाबू ने प्लान बनाया होगा और साहब के दस्तखत के पहले ही प्रलय की योजना की घोषणा का सर्कुलर निकाल दिया होगा। हल्ला मचेगा तो एकाध दिन के लिये सस्पेंड हो जायेगा ससुरा।

अगले हफ़्ते घर जाना है हमको। क्रिसमस की छुट्टी से सटा के तीन छुट्टियां निकालनी हैं। कैजुअल लीव निपटानी हैं। साल का हिसाब-किताब करना है।खोया-पाया तय करना है। अगले साल की कसमें खानी हैं। सबको नया साल मुबारक करना है। अब कोई कहे कि दुनिया खतम करो तो भला हम मान लेंगे? कह देंगे उससे- चल भाग, बड़ा आया दुनिया निपटाने वाला। फ़ूट यहां से। आई से- गेट्टाउट!
दुनिया निपटाने वाले को इत्ती तो अकल होनी चाहिये कि गिनती तो कर लेता पहले कि कित्ती दुनियायें हैं दुनिया भर में। हर एक की तो अपनी अलग दुनिया है। किसी-किसी की तो कई-कई दुनियां हैं। एक ही शहर के लोग अलग-अलग दुनिया में रहते हैं। देश का देखेंगे तो और भी वैराइटी हो जायेगी दुनिया में। कोई इक्कीसवीं सदी में रह रहा है कोई पन्द्रहवीं में तो कोई ग्याहरवीं में। किसी का मन उन्नीसवीं सदी में बसता है तो किसी का बाइसवीं में। ऐसे भी नमूने हैं जो भौतिक रूप से इक्कीसवीं सदी में रहता है लेकिन दिमाग सोलहवीं सदी में रखता है। रहन-सहन के लिये एक से एक आधुनिक साधन इस्तेमाल करता है लेकिन अकल गये के जमाने की इस्तेमाल करता है। प्रेमियों को गोली मार देता है। औरतों को गुलाम समझता है। इश्किया गाने सुनता है लेकिन प्रेम को पाप समझता है।

साधन में भी बहुत विविधता है। किसी के लिये खाने का इंतजाम नहीं है तो कोई पचाने को हलकान है। किसी को दिहाड़ी बीस रुपये नहीं मिलती, किसी को लाखों गिनने की फ़ुरसत नहीं। किसी के पास तन ढकने के लिये कपड़े नहीं हैं, कोई एक कपड़ा दोबारा नहीं पहनता। ऐसी रंग-बिरंगी दुनिया को कैसे एक ही तरीके से निपटाया जा सकता है।

हरेक तरह की दुनिया निपटाने का तरीका अलग-अलग होता है। पंद्रहवीं सदी तलवार से निपटती थी तो उन्नीसवीं सदी तोप से। बीसवीं के लिये परमाणु बम चाहिये। बाइसवीं शायद किसी इंटरनेट वायरस से खतम हो। फ़िर लोगों की अपनी-अपनी पसंद भी होगी भाई। कोई कुछ करके जाना चाहता है, किसी को कुछ करना पड़े उसी में मरन हो जाती है, कोई को अंखियों की गोली से मरना पसंद है तो कोई जुदा होकर मरना चाहता है। कोई देश के लिये जान देना चाहता है, कोई प्रेम के लिये । किसी का कोई मकसद है तो कोई बेमकसद ही विदाई लेना चाहता है। कोई आखिरी सांस तक घूस लेना चाहता है किसी की नियति में लुटते हुये जाना तय है।
ये कौन बौढ़म है जो विविध स्तरीय , बहुरंगी दुनिया को एक ही तरीके से खतम करना चाहता। प्रदूषण नियंत्रण वालों को पता चल गया तो तगड़ा जुर्माना ठोंक देंगे।

तो भाई जिसको अपनी दुनिया खतम करनी हो खतम करे। हम तो न शामिल होंगे इस फ़िजूल के काम में। वैसे भी हम हर काम अपने घर वालों से पूछकर करते हैं। अभी पूछेंगे तो डांट पड़ जायेगी - गैस बुक करानी है, मकान की किस्त जमा करनी है, एल.टी.सी. पर जाना है, बच्चे की पढ़ाई देखनी है, अम्मा की दवाई लानी है, महीने का सामान खरीदना है, डांट खानी है, इतवार को पिक्चर देखने जाना है। न जाने कित्ते तो काम बाकी हैं। ये सब काम छोड़कर दुनिया खतम करने का निठल्लापन सूझ रहा है तुम्हें। लो आधा कप चाय और पी लो फ़िर काम से लगो!

इसलिये भैये अपन तो इस प्रलय प्रोग्राम में भाग न ले पायेंगे। जिसको लेना हो ले। हमें तो एक ठो बहुत पुरानी कविता याद आ रही है:

विदा की बात मत करना
अभी मदहोश सांसों के कनक कंगन नहीं फ़ूले
अम्बर की अटारी में नखत नूपुर नहीं झुले।
न काजर आंज पायी है, न जूड़ा बांध पायी है
यहां भिनसार की बेला उनीदे आंख आयी है।
कह दो मौत से जाकर न जब तक जी भर जिंदगी जीं लें
विदा की बात मत करना।


आपका क्या प्रोग्राम है?

16 responses to “चल भाग -बड़ा आया दुनिया निपटाने वाला”

  1. Alpana
    वाह!वाह!!बहुत खूब लिखा है .
    …………….
    ये पंक्तियाँ तो जबरदस्त हैं–:)
    ‘जो भौतिक रूप से इक्कीसवीं सदी में रहता है लेकिन दिमाग सोलहवीं सदी में रखता है।’
    ऐसे सज्जन यहाँ-वहाँ हर जगह मिलेंगे ,मैं तो इस वाक्य में सोलहवीं नहीं बारहवीं सदी कहना ज्यादा उपयुक्त समझती हूँ.
    इस एक पंक्ति पर बहुत -कुछ लिखा जा सकता है.वीरवार को ही एक घटना हुई थी उसका ज़िक्र करती मगर अभी नहीं फिर कभी सही.
    वैसे अखबार में आया है कि जहाँ से यह खबर उड़ी है उसी देश में लोग इस ख़ास दिन को ज़ोर शोर से मना रहे हैं!
    ———–
    अभी -अभी एक ताज़ा खबर सुनी है कि ‘हेवनली बोडिस’ ने तकनीकी कारणों से इस प्रलय दिन को अगले साल २१-१२-२०१३ तक के लिए टाल दिया गया है :)..
    Alpana की हालिया प्रविष्टी..बरसे मेघ…अहा!
  2. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    अपन का भी कोई इरादा नहीं है
    सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..वालमार्ट जी आइए… स्वागत गीत
  3. ajit gupta
    अजी यह खबर कहाँ से आयी है? अमेरिका से तो नहीं आयी? क्‍योंकि वहाँ एक सिरफिरे ने मासूम बच्‍चों का कत्‍लेआम कर दिया है, तो उसने सोचा होगा कि दुनिया खत्‍म ही हो रही है तो कुछ काम मैं भी कर दूं। बहुत ही सशक्‍त व्‍यंग्‍य है। एकदम धांसू टाइप का।
    ajit gupta की हालिया प्रविष्टी..हे भगवान! मुझे दुनिया का सबकुछ दे दो
  4. संतोष त्रिवेदी
    …. अभी तो मीलों चलना है !
  5. देवांशु निगम
    पिछले महीने ही मनेजर ने कहा था की दिसंबर के आखिरी हफ्ते में दो एक्स्ट्रा छुट्टी ले लेना, हम तो छुट्टी लेकर रहिबे, प्रलय ना आन देब :)
    देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..रोते हुए आते हैं सब !!!
  6. sanjay jha
    वैसे तो इस दुनिया में टिके रहने को कुछ खास नहीं……….पर आपका सोच-विचार को, जोर के देखते हैं तो
    …….. चल भाग, बड़ा आया दुनिया निपटाने वाला। फ़ूट यहां से। आई से- गेट्टाउट!…… कहने का दिल करता है………
    कविता मुरझाये फूलों को खिलाने के लिए काफी है……………..
    प्रणाम.
  7. प्रवीण पाण्डेय
    क्रिसमस का क्या भरोसा, हम तो २१ के पहले ही घूम आते हैं।
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..पढ़ते पढ़ते लिखना सीखो
  8. ashish rai
    मतलब कविता तो कालजयी है , और बाकि सब रापचिक फुरसतिया .
  9. shikha varshney
    हाँ जी और नहीं तो क्या ..और भी गम हैं ज़माने में प्रलय का स्वागत करने के सिवा :):)…
    सुबह बना दी आपने …मजा आ गया.
  10. ankit
    “भैये अपन तो इस प्रलय प्रोग्राम में भाग न ले पायेंगे”
    चिंता न कीजिये अगर आप प्रोग्राम में भाग नहीं ले पाए. अगले साल फिर ऐसा ही प्रलय का प्रोग्राम बनेगा… फुर्सत हो तो तब मज़ा ले लीजियेगा
    ankit की हालिया प्रविष्टी..तुम हो कौन बे
  11. arvind mishra
    विदाई का चिंतन!
    arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..Sunset from Ganges Rajghat Bridge top,Varanasi.
  12. देवेन्द्र पाण्डेय
    दुनियाँ मिटने न मिटने वाली बातें अभी भी चल रही हैं!
  13. संजय @ मो सम कौन
    यूँ ही चलेगी:)
    संजय @ मो सम कौन की हालिया प्रविष्टी..ये आना भी कोई आना है फ़त्तू?….
  14. VMTripathi
    PARLE i mean parlaiiya wali batiya pe ta hum ihe kaheb ki uhe masal ba na ki aapan kaan na tove auur kauwa ke peechhe laggi le ke daudi lagave
  15. वीरेन्द्र कुमार भटनागर
    आपकी पोस्ट पढ़कर वाकई मज़ा आ गया।
    “अब कहीं जाके जीने का सही अन्दाज़ आया, कौन सिरफिरा कहता है कि अज़ाब आया, अज़ाब आया”।
  16. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] चल भाग -बड़ा आया दुनिया निपटाने वाला [...]

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