Wednesday, January 23, 2013

एक लड़की है … और सौ – सौ आरे हैं

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एक लड़की है … और सौ – सौ आरे हैं

कृष्णबिहारी
कृष्णबिहारी
कानपुर में अपना बचपन और जवानी के दिन बिताने वाले और आजकल अबूधाबी में अध्यापक कृष्णबिहारी जी हिन्दी के जानेमाने कथाकार हैं। उनके बारे विस्तार से जानने के लिये उनसे हुयी एक बातचीत ( कृष्ण बिहारी- मेरी तबियत है बादशाही ) और कथाकार गोविंद उपाध्याय द्वारा उन पर लिखा आत्मीय लेख (मैं कृष्णबिहारी को नहीं जानता – गोविन्द उपाध्याय ) पढ सकते हैं।
बिहारी जी से हुई बातचीत में अपने बारे में उन्होंने ये कहा था-
“मैं ‘मनमौजी’ या ‘बादशाह’ तबियत का जाना जाता हूं लेकिन शायद कुछ करीबी लोगों को छोड़कर बहुत से लोग यह नहीं जानते कि मेरे भीतर का फकीर ही सच्चा इनसान है । मैंने लगभग तीस साल पहले एक ग़ज़ल कही थी -
लाख होने दो मेरी तबाही
मेरी तबीयत तो है बादशाही।
एक फकीराना किस्मत मेरे साथ हर कदम पर होती है । हो सकता है कि कुछेक पल पहले मेरी जेब भरी हो और कुछेक पल बाद ही मैं अप्रत्याशित रूप से खाली हो गया होऊं। मगर हर हाल में खुश रहना मेरी तबियत का स्थायी अंश है ।”
उन्होंने दिल्ली में हुई बलात्कार की घटना पर उन्होंने अपनी फ़ेसबुक दीवार पर जो लिखा उसे जस का तस यहां पेश कर रहा हूं।

एक लड़की है … और सौ – सौ आरे हैं

डेल्ही गैंग रेप को सुनकर मैंने आक्रोश में एक गीत लिखा . उस गीत पर मेरे विद्यालय की एक छात्रा ने विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर अभिनय किया जिसे देखकर भारतीय राजदूतावास के प्रेक्षागार में उपस्थित सभी दर्शकों की आँखें भर आयीं .गीत इतनी करुण स्थिति उत्पन्न करेगा , मैं नहीं जानता था . यह गीत हिन्दुस्तान की हर लड़की की आपबीती है . यदि आप किसी लड़की के भाई , चाचा , पिता , मित्र या प्रेमी हैं तो उसकी व्यथा को दूर करने में अपनी भागीदारी निभाएं . गीत आपके सामने है :
एक लड़की है … और सौ – सौ आरे हैं
उसकी गर्दन जानती है कि सभी दुधारे हैं .
घर से बाहर जाए तो वह डर – डर जाती है
घर में ही कुछ हो जाए तो वह मर -मर जाती है
किस से अपनी व्यथा कहे जब सब हत्यारे हैं .
एक लड़की है… और सौ – सौ आरे हैं .

इस दुनिया में उसका आना एक दुर्घटना है
फिर तो उसका सारा जीवन टुकड़ा -टुकड़ा कटना है
उसकी सूनी आँखों में बस आंसू खारे हैं .
एक लड़की है … और सौ -सौ आरे हैं .
कैसा भाई , कैसे रिश्ते ? किसने उसको प्यार दिया
जिसको उसने अपना समझा ,उसने उसको मार दिया
उसके सपने लड़ते -लड़ते अपनों से ही हारे हैं .
एक लड़की है …और सौ – सौ आरे हैं .

7 responses to “एक लड़की है … और सौ – सौ आरे हैं”

  1. देवेन्द्र पाण्डेय
    सही बात है। हृदयस्पर्शी कविता है।..आभार।
  2. indian citizen
    गीत मार्मिक और लोग सम्वेदनहीन..
  3. pragya
    जिसने भी यह सुना वही रो दिया .
  4. pradip kumar paliwal
    सार्थक गीत !
    दरअसल ‘दामिनी’ के मामले में संवेदना का ज्वार इसलिए भी उभरा क्यूंकि कहीं न कहीं हम सब स्वयं को भी दोषी मान रहे थे ! ख़ैर…स्थिति बदले यही उस ‘बेटी’ के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजली होगी !
  5. naveen mani tripathi
    बहुत ही सुन्दर और ममस्पर्शी कविता पढ़ने को मिली ….बहुत बहुत आभार शुक्ल जी |
  6. प्रवीण पाण्डेय
    संवेदनशील पंक्तियाँ..समाज को उजागर करती..
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..बख्शा तो हमने खुद को भी नहीं है
  7. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] एक लड़की है … और सौ – सौ आरे हैं [...]

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