Tuesday, March 25, 2014

भोर हुआ सूरज उग आया

आज सुबह छत पर आ गए. सोचा सूरज भाई को आज उगते देखा जाये.अब हमको ये तो पता है कि सूरज पूरब में उगता है लेकिन यह नहीं पता है कि पूरब किधर है. लेकिन सोचा कि सुबह जिधर ज्यादा लाली दिखे वही पूरब. सो देखने लगे पूरब की तरफ.

देखा तो सूरज भाई अधउगे मौजूद थे आसमान में. आसमान नहीं क्षितिज में. बंगला में कहेंगे तो बनेगा खितिज. आधे उगे सूरज भाई ऐसे लग रहे थे कि केवल मुंह रजाई के बाहर किये दुनिया भर को अलसाए से 'शुभ प्रभात' कह रहे हों.

सामने का पेड़ मेरे और उगते सूरज के बीच पर्दा सा किये खड़ा है.ऐसा लगा कि पेड़ जच्चा पूरब दिशा बच्चा सूरज को जन्म देते समय खुद को चादर जैसा ताने उसको आड़ प्रदान कर रहा है.

बाकी सब दिशाएं , पेड़-पौधों के साथ खड़ी चुपचाप उत्सुकता से सूरज को जन्म लेते देख रहीं हैं.पेड़ों के चेहरे ख़ुशी से चमकने से लगे.बगल के हनुमान मन्दिर में किसी ने घंटा बजाया है- टन्न !

सूरज के पैदा होते ही चिड़ियाँ चीची चची चीची चची करते हुए सोहर सरीखा गा रही हैं. चीची की बहुतायत से एकबारगी लगा कि यहाँ भी सब 'मेड इन चाइना' माल खप रहा है क्या?

सामने सड़क पर लोग टहलते हुए दिख रहे हैं. कुछ फुर्ती से सरपट और कुछ खरामा-खरामा. सरपट वाले शायद मार्निंग वाक शुरू कर रहे हैं इसीलिए तेजी में हैं. लौटते हुए लोग आराम से टहल रहे हैं.

चढ़ाई पर फटफटिया सवार लिए फटफटी फटाफट सडक की ढाल चढ़ता जा रहे है.चेहरे पर ढाल-विजय का गर्व मफलर की तरह लपेटे.उसके पीछे एक साईकिल सवार अपना सीना,हाथ,पैर सब बाहर निकालते हुए ढाल चढ़ रहा है. ढाल उतरते साईकिल वाले फर्राटे से बिना पैडल मारे सर्र देना जा रहे हैं. उनके लिए सड़क फिसल पट्टी सरीखी है.

देखते-देखते सूरज की किरणें धड़धड़ करती, मुस्कराती हुई पेड़,पौधों,फूल,पत्ती,सड़क,छत, लता-वितान, कोने-अतरे सब जगह छा गयीं.जो भी जगह खुली और खाली दिखी वहां उन्होंने ऐसे कब्जा कर लिया जैसे डेली पसिंजर लोकल ट्रेन की सीटों पर करते हैं. अलबत्ता ये सब मुस्करा रहीं है,खिलखिला रहीं हैं इसलिए प्यारी , दुलारी च लग रहीं हैं!

सूरज भाई आ गए हैं. हम उनके साथ चाय पीते हुए बतिया रहे हैं. सुबह हो गयी है. हम बचपन में याद की हुई कविता दोहरा रहे हैं:

भोर हुआ सूरज उग आया,
जल में पड़ी सुनहरी छाया,
ऐसा प्यारा समय न खोओ,
मेरे प्यारे अब मत सोओ।


  • अनूप शुक्ल

No comments:

Post a Comment